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Tuesday, March 16, 2021

Social Crime सामाजिक क्षेत्र में बढ़ रहे जातिगत व धार्मिक अपराध चिंता का विषय

Social crime
सामाजिक क्षेत्र में धार्मिक और जातिगत अपराध तथा महिलाओं के साथ अपराध चिंता का सबब प्रतिकात्मक फोटो जागृति पथ



एक तरफ हम लोकतंत्र को मजबूत करने और मानव अधिकार को मजबूत करने की बात कर रहे हैं ।लेकिन दूसरी और अपराधियों में कानून का कोई भय नहीं है ,आज महिला शोषण एवं हत्या , बलात्कार, चोरी डकैती जैसे अपराध करने वाले अपराधियों में कानून और सजा का डर बिल्कुल नहीं है यह एक बड़ी चुनौती और समस्या है।
महिलाओं , दलित एवं पिछड़ी जातियों के खिलाफ अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है।
बड़ी चिंता की बात है कि अपराधी खुलेआम वीडियो बनाकर अपराध को अंजाम देते हैं उन्हें कानून और पुलिस व्यवस्था का कोई डर नहीं है। ऐसे में इन दलित लोगों की हत्या की जा रही है तथा आए दिन महिलाओं के साथ बदसलूकी होती है इनकी चिंता कौन करेगा इन के लिए कौन जिम्मेदार है, क्या कारण है कि वर्तमान समय में तेजी से अपराध बढ़ रहे हैं और अपराधियों में अपराध करने का हौसला बुलंद होता जा रहा है इसके लिए वर्तमान कुछ परिस्थितियां जिम्मेदार हैं जिसमें सबसे बड़ी समस्या है कि वर्तमान राजनीतिक लोगों द्वारा जातिवाद धार्मिकता आदि को बढ़ावा दिया जा रहा है लोगों में एक दूसरे के प्रति आक्रोश की भावना भरी जाती है यह सिर्फ वोट बैंक के लिए किया जाता है इससे प्रभावित होकर इनके समर्थक छोटे-मोटे अपराध को अंजाम देते हैं और उनको राजनीतिक नेताओं द्वारा सजा से बचा लिया जाता है और यही अपराधी आगे बढ़कर बड़े अपराध को अंजाम देते हैं ।जिससे समाज में डर और असंतोष का माहौल उत्पन्न होता है।
बड़ी विडंबना है कि जांच तथा न्याय प्रक्रिया में लंबा समय लग जाता है और इस लंबे समय का फायदा उठाकर अपराधी बेखौफ हो जाते हैं कि हमारा कुछ नहीं बिगड़ने वाला इसी कमजोर व्यवस्था से नए अपराधियों का जन्म होता है ।
कुछ अपराधी अपने नेताओं और जनप्रतिनिधियों के संपर्क में रहकर उनकी आड़ में अपराध को अंजाम देते हैं और वही नेता उनके लिए न्याय व्यवस्था एवं सजा में ढाल बनते हैं । इसी कारण से असमाजिक तत्वों को सजा नहीं मिल पाती भ्रष्टाचार और पक्षपात पूर्वक व्यवहार इन अपराधियों में अपराध करने की हिम्मत भर देता हैं। वर्तमान देश में राजनीतिक स्वार्थ के लिए गुटों का निर्माण किया जाता है जिसमें हिंदू ,मुस्लिम , दलित आदि वर्गों में विभाजित हो जाते हैं।
हिंदुओं में नेताओं द्वारा एवं धर्म प्रसारको द्वारा मुस्लिम विरोधी घृणात्मक विचार भर दिए जाते हैं उनके समर्थक मुस्लिम लोगों के खिलाफ आग उगलते हैं और भीड़ द्वारा उनकी हत्या की जाती है और इन आरोपियों के साथ धर्म के लोग आगे आकर उनके सहायक बनते हैं ।
इसी प्रकार अन्य सामाजिक अपराध में यही स्थिति देखने को मिलती है जिससे अपराधियों मे बेखोफ पैदा होता है।

इस गंभीर सामाजिक समस्या के समाधान के लिए त्वरित न्याय प्रणाली तथा निष्पक्ष जांच एवं निष्पक्ष मीडिया का होना जरूरी है। पुलिस प्रशासन एवं सुरक्षा एजेंसियों को बिना किसी दबाव में आकर निष्पक्ष जांच करके तुरंत सजा दिलाने का कार्य करना चाहिए। लेकिन विडंबना यह है कि यह शक्तिशाली सरकार एवं शक्तिशाली राजनेताओं के दबाव में आकर अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह नहीं कर सकते जिससे अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
21वीं सदी के विश्व में मानव अधिकार इतना परिष्कृत हुआ है लोकतंत्र मजबूत हुआ है । समाज सुधार आंदोलनों के बाद भी तथा आजादी के 72 साल बाद भी दलित भेदभाव और ऊंच-नीच जैसी भावनाओं से प्रताड़ित किए जाते हैं उनकी हत्या की जाती है इनके खिलाफ जो कदम उठाए जाते हैं बहुत कमजोर और पक्षतापुर्व है। कभी-कभी अन्य मामले में निर्दोष व्यक्ति को तुरंत जेल हो जाती है लेकिन लाखों अपराधों के मामले कोर्ट में लंबित और विचाराधीन रहते हैं।  
एक छोटी सी बात पर दो दलित मासूमों की हत्या की जाती है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में दलितों की स्थिति अब भी दयनीय है। 
एक अन्य घटना में कुछ असामाजिक तत्व गले में धार्मिक लिबास पहनकर एक बेटी का सामूहिक बलात्कार करते हैैं उनकी वीडियो बनाकर लोगों को दिखाते हैं इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में अपराधी कितने बेखौफ है इसके लिए जिम्मेदार वर्तमान शासन व्यवस्था सुरक्षा व्यवस्था तथा न्याय व्यवस्था है।
ऐसी शर्मसार घटनाओं को देखकर बेटियों की चिंता होने लगती है कि घर में बेटी को कैसे रखा जाए उनकी शिक्षा तथा अन्य सुविधाएं कैसे दिलाई जाए।
सबसे बड़ा सवाल है की देश का शासन चलाने वाले लोग देश के प्रत्येक विभाग में काम करने वाले लोग किसी जातिगत धार्मिक विचारधारा के पक्षधर नहीं बने भले ही अपराध से ग्रसित लोगों का देश मैं प्रतिनिधित्व कम हो भले ही भले ही विचारधारा अलग हो। समाज में अपराधों के खिलाफ परिवारवाद ,जातिवाद ,धार्मिकता का पक्ष नही लेना चाहिए। अपराधी कोई भी हो उसे त्वरित सजा दिलाने सभी को निष्पक्ष बनना पड़ेगा।
भारत में दलित , महिलाओं तथा पिछड़े लोगों पर हो रहे अपराध रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए नहीं तो यह एक बड़े आंदोलन की ओर बढ़ेगा।
बड़े खेद का विषय है कि एक ट्रैफिक लाइट के उल्लंघन पर कड़ी कार्यवाही हाथों हाथ होती हैं । लेकिन बलात्कार और हत्या की खबर हम सिर्फ घटना होने वाले दिन ही देखते हैं उसके बाद सब कुछ ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है यहां से हम अपराधों को बढ़ावा देने का कार्य करते हैं।

बलात्कार और हत्याएं आज के दौर में समाज के लिए बड़ा खतरा है, इन्हें समय रहते काबू में लिया जा सकता है लेकिन राजनीतिक स्वार्थ भाई भतीजावाद, परिवारवाद आदि से ऊपर उठकर ही कड़े से कड़े कदम कदम उठाए जा सकते हैं देश में वोटों के लिए तथा राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोगों में 
आक्रमकता भरनी बंद करनी चाहिए । वोटों के लिए लोगों में फूट डालकर धर्म के नाम पर वैमनस्य उत्पन्न कर वोट तो प्राप्त किए जा सकते हैं लेकिन इसके दूरगामी परिणाम समाज अपराध को जन्म देंगे।
भारत में संविधान तथा दंड संहिता में कठोर कानून तो है लेकिन यह कानून कुछ बड़े लोगों की पकड़ में कमजोर हो जाते हैं ।कुछ अपराधी नेताओं और समाज के कद्दावर लोगों के करीबी होते हैं और इनके द्वारा इन करीबी अपराधियों को सजा देने में बचाया जाता है । 
अंत में निष्कर्ष है कि समाज में हो रहे इन अपराधों को सभी को आगे बढ़कर रोकना होगा। नहीं तो वह दिन दूर नहीं अराजकता उत्पन्न हो जाए तथा अपराध सहने वाले लोग खुद आगे बढ़कर प्रत्युत्तर दे।

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