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Tuesday, March 30, 2021

Rajasthan Day राजस्थान दिवस एकीकरण एवं अस्तित्व का गौरवशाली इतिहास

Rajasthan Day diwas
Rajasthan Day It is also known as the Foundation Day of Rajasthan.  Rajasthan Day is celebrated on the 30th of the third month (March) of every year.  On 30 March 1949, the princely states of Jodhpur, Jaipur, Jaisalmer and Bikaner merged to form the 'Greater Rajasthan Union'.



30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। राजस्थान राज्य भारत के पश्चिमी भाग में स्थित है जिसकी सीमा पाकिस्तान से लगती है। पश्चिमी भाग में दुनिया के सबसे बड़े आबादी वाले मरूस्थल से घिरा है। तथा पूर्व में नदियों एवं पठारी क्षेत्र से घिरा मिला-जुला रूप राजस्थान भौगोलिक स्थिति को विचित्र बनाता है। इसलिए राजस्थान को खनिजों का अजायबघर भी कहा जाता है। हालांकि राजस्थान के अस्तित्व का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन राजस्थान का स्थापना दिवस 30 मार्च को मनाया जाता है क्योंकि 30 मार्च,1949-राजस्थान एकीकरण के चौथे चरण में संयुक्त राजस्थान में जयपुर ,जोधपुर, बीकानेर ,जैसलमेर का विलय कर उपप्रधानमंत्री श्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा जयपुर में वृहत् राजस्थान का उद्घाटन किया था । इस प्रकार राजस्थान का वर्तमान रूप ज्यादा पुराना नहीं है। लेकिन राजपुताने का इतिहास प्राचीन एवं गौरवशाली है जिसे जानकर हर कोई आश्चर्य चकित हो जाता है। क्योंकि यहां की सांस्कृतिक विरासत बहुत निराली है। राजस्थान का अस्तित्व प्रागैतिहासिक काल से मिलता है। समय-समय पर यहां चौहान, मेवाड़,गहलोत वंशों का राज रहा है। मेवाड़, मारवाड़, जयपुर, बुंदी, कोटा, भरतपुर और अलवर बड़ी रियासतें हुआ करती थीं। इन सभी रियासतों ने ब्रिटिश शासन की अधीनता स्वीकार कर ली थी। इससे राजाओं ने अपने लिए तो रियायतें हासिल कर लीं लेकिन लोगों के बीच असंतोष रहा। 1857 के विद्रोह के बाद महात्मा गांधी के नेतृत्व में लोग एकजुट हुए और स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। आजादी के बाद जब रियासतों का विलय होना शुरू हुआ तो बड़ी रियासतों जैसे बिकानेर, जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर को मिलाकर वृहद राजस्थान बना। 1958 में आधिकारिक तौर पर मौजूदा राजस्थान राज्य अस्तित्व में आया। उस समय अजमेर, आबू रोड तालुका और सुनेल टप्पा रियासतों ने भी राजस्थान में विलय किया।
आइए राजस्थान दिवस पर राजस्थान के बारे में खास बातें जानने की कोशिश करते हैं।




राजस्थान का नामकरण तथा गौरवशाली इतिहास की एक झलक


राजस्थान का नाम आते ही जहन में वीरता, साहस, स्वातंत्र्य प्रेम एवं देशभक्ति की गौरवशाली परम्परा उभर आती है। यह प्रदेश मातृभूमि पर प्राण न्यौछावर करने वाले वीरों एवं प्रसिद्ध साधु-संतों की कर्मभूमि रहा है। यह प्रदेश शौर्य गाथाओं, पराक्रम के उदाहरणों एवं लोकधर्मी कलाओं की विराट विरासत को अपने में समेटे हुए है।
इस मरु प्रधान प्रदेश को समय-समय पर विभिन्न नामों से पुकारा जाता रहा है। महर्षि वाल्मिकी ने इस भू-भाग के लिए 'मरुकान्तार' शब्द का प्रयोग किया है। राजस्थान' शब्द का प्राचीनतम प्रयोग 'राजस्थानीयादित्य' वसंतगढ़ (सिरोही) के शिलालेख (विक्रम संवत् 682 में उत्कीर्ण) में हुआ है। इसके बाद वं मुहणोत नैणसीरी ख्यात' एवं 'राजरूपक' नामक ग्रंथों में भी 'राजस्थान' शब्द का प्रयोग हुआ है।
छठी शताब्दी में इस राजस्थानी भू-भाग में राजपूत शासकों में ने अलग-अलग रियासतें कायम कर अपना शासन स्थापित किया। इन रियासतों में मेवाड़ के गुहिल, मारवाड़ के राठौड़, ढूँढाड़ के र्य कच्छवाहा व अजमेर के चौहान आदि प्रसिद्ध राजपूत वंश थे। र्ग राजपूत राज्यों की प्रधानता के कारण ही कालान्तर में इस सम्पूर्ण ने भू-भाग को ‘राजपूताना' कहा जाने लगा। राजस्थानी भू-भाग के ने लिए 'रान ताना' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1800 ई. में
जॉर्ज थामस द्वारा किया गया था। कर्नल जेम्स टॉड' (पश्चिमी एवं मध्य भारत के राजपूत राज्यों के पॉलिटिकल एजेन्ट) ने इस प्रदेश को 'रायथान' कहा क्योंकि तत्समय स्थानीय बोलचाल एवं लौकिक साहित्य में राजाओं के निवास के प्रांत को 'रायथान' कहते थे। ब्रिटिशकाल में यह प्रांत 'राजपूताना' या 'रजवाड़ा' तथा अजमेर-मेरवाड़ा (अजमेर व आस-पास का भू-भाग) के नाम से पुकारा जाता था। इस भौगोलिक भू-भाग के लिए 'राजस्थान'(Rajasthan ) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान के इतिहास पर 1829 में लंदन से
प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति 'Annals and Anh tiquities of Rajasthan' (इसका अन्य नाम Central and 1 Western Rajpoot States of India) में किया। स्वतंत्रता के पश्चात् राज्य पुनर्गठन की प्रक्रिया के दौरान अलग-अलग नामकरण के पश्चात् अन्ततः 26 जनवरी, 1950 को औपचारिक रूप से इस संपूर्ण भौगोलिक प्रदेश का नाम 'राजस्थान' स्वीकार किया गया, तब अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र इनसमें शामिल नहीं था।
स्वतंत्रता के समय राजस्थान 19 देशी रियासतों,3 ठिकानेकुशलगढ़,लावा व नीमराणा तथा चीफ कमिश्नर द्वारा प्रशासित अजमेर-मेरवाड़ा प्रदेश में विभक्त था। स्वतंत्रता के बाद 1950 तक अजमेर-मेरवाड़ा को छोड़कर सभी क्षेत्र राजस्थान में सम्मिलित हो गये थे। उस समय अजमेर-मेरवाड़ा के प्रथम एवं एक मात्र मुख्यमंत्री श्री हरिभाऊ उपाध्याय थे। अजमेर-मेरवाड़ा के विलय के बाद राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवम्बर, 1956 को आया। राज्य को वर्तमान में 33 जिलों में बाँटा गया है। प्रतापगढ़ को 33वाँ जिला बनाया गया है। राज्य के हर जिले की अपनी परम्पराएँ, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व विशेषताएँ हैं।



राजस्थान राज्य का खास पहचान राज्य चिन्ह


राजस्थान का राजकीय खेल- बास्केटबॉल
राजस्थान का राज्य पशु - चिंकारा
राजस्थान का राज्य पक्षी - गोडावण
राजस्थान का राज्य वृक्ष- खेजड़ी
राजस्थान का राज्य फूल - रोहिड़ा
राजस्थान का राज्य वाद्ययंत्र-अलगोजा



राजस्थान का एकीकरण


स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय राजस्थान राज्य 19 देशी रियासतों,3 ठिकाने (चीफशिप) यथा लावा, नीमराना व कुशलगढ़ ओर चीफ कमिश्नर द्वारा प्रशासित अजमेर - मेरवाड़ा में विभक्त था। सरदार वल्लभ भाई पटेल के आग्रह एवं दबाव के बदौलत यहां के शासकों ने एक-एक कर अपनी रियासत का विलीनीकरण कर एकीकृत राजस्थान में गठन का मार्ग प्रशस्त किया। जिस राजस्थान का स्वरूप आज हम देख रहे हैं यह स्वरूप 1 नवंबर 1956 को सामने आया।

राजस्थान का एकीकरण के चरण


1. प्रथम चरण(मत्स्य संघ)


18 मार्च,1948- राजस्थान के एकीकरण के प्रथम चरण में अलवर ,भरतपुर, धौलपुर व करौली रियासत व नीमराणा को मिलाकर मत्स्य संघ का निर्माण किया गया। इसका उद्घाटन केंद्रीय मंत्री गाडगिल द्वारा किया गया। इसमें धौलपुर के महाराजा उदय भान सिंह को राजप्रमुख,करौली के महाराजा को उप राज्य प्रमुख और अलवर प्रजामंडल के प्रमुख नेता श्री शोभाराम कुमावत को मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया। मत्स्य संघ की राजधानी अलवर रखी गई। के. एम.मुंशी के आग्रह पर इस चरण का नाम मत्स्य संघ दिया गया।


2. द्वितीय चरण (राजस्थान संघ)


4 मार्च,1948-राजस्थान एकीकरण के द्वितीय चरण में बांसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर ,झालावाड़, कोटा, प्रतापगढ़ टोंक,किशनगढ़ व शाहपुरा रियासत चीफशिप कुशलगढ़ को मिलाकर राजस्थान संघ का निर्माण किया गया । इसका उद्घाटन श्री गाडगिल के हाथों से ही संपन्न हुआ।कोटा के महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख, बूंदी के महाराजा बहादुर सिंह को उप राज प्रमुख तथा प्रोफेसर को गोकुललाल असावा को प्रधानमंत्री बनाया गया ।कोटा को इसकी राजधानी बनाया गया ।

3. तृतीय चरण (संयुक्त राजस्थान)


18 अप्रैल,1948-राजस्थान राज्य की तीसरे चरण में उदयपुर रियासत को शामिल कर संयुक्त राजस्थान का निर्माण हुआ। पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसका उद्घाटन किया गया। मेवाड़ के महाराणा भूपाल सिंह को राजप्रमुख,माणिक्य लाल वर्मा को प्रधानमंत्री बनाया गया, उदयपुर को इस नए राज्य की राजधानी बनाया गया। कोटा के महाराव को उपराज प्रमुख बनाया गया ।श्री गोकुललाल असावा उपप्रधानमंत्री बनाया गया।


4. चतुर्थ चरण (वृहत् राजस्थान)


 30 मार्च,1949-राजस्थान एकीकरण के चौथे चरण में संयुक्त राजस्थान में जयपुर ,जोधपुर, बीकानेर ,जैसलमेर का विलय कर उपप्रधानमंत्री श्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा जयपुर में वृहत् राजस्थान का उद्घाटन किया ।इससे पूर्व जयपुर ,जोधपुर ,जैसलमेर, बीकानेर और सिरोही की पांच रियासते ही ऐसी बची थी जो एकीकरण में शामिल नहीं हुई थी। इनके अलावा 19 जुलाई 1948 को केंद्रीय सरकार के आदेश पर लावा को जयपुर राज्य में शामिल कर लिया गया जबकि कुशलगढ़ पहले से ही बांसवाड़ा रियासत का अंग बन चुकी थी। वहीं वृहत् राजस्थान में जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह को आजीवन राज प्रमुख, उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को महाराजा प्रमुख, कोटा के महाराज श्री भीम सिंह उप राज्य प्रमुख व श्री हीरालाल शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया और इसी के साथ जयपुर को वृहत् राजस्थान की राजधानी घोषित किया गया।हाई कोर्ट जोधपुर में, शिक्षा विभाग बीकानेर में खनिज खनिज और कस्टम एक्साइज विभाग उदयपुर में, वन और सहकारी विभाग कोटा में कृषि विभाग भरतपुर में रखने का निर्णय लिया गया।


5. पंचम चरण (संयुक्त वृहत्तर राजस्थान)


15 मई,1949-राजस्थान एकीकरण के पांचवें चरण में भारत सरकार ने मत्स्य संघ को वृहत् राजस्थान में लाने हेतु शंकरराव देव समिति गठित की गई ,जिसकी सिफारिश पर मत्स्य संघ को वृहत् राजस्थान में मिला लिया गया और वहां के प्रधानमंत्री शोभाराम को शास्त्री मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया।

6. षष्ठम चरण (राजस्थान) जनवरी,1950


राजस्थान के छठे चरण में सिरोही के विलय पर राजस्थानी और गुजराती नेताओं के मध्य काफी मतभेद थे सरदार वल्लभभाई पटेल सिरोही और देलवाड़ा को गुजरात में शामिल करना चाहते थे लेकिन राजस्थान के नेता इन्हें राजस्थान का अंग बनाना चाहते थे। जनवरी 1950 में सिरोही का विभाजन करने और आबू व देलवाड़ा को बंबई प्रांत और शेष भाग राजस्थान में शामिल करने का फैसला लिया गया। इसकी राजस्थान वासियों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई जिसके 6 साल बाद राज्यों के पुनर्गठन के समय वापस राजस्थान को देना पड़ा ।26 जनवरी 1950 को भारत के संविधान लागू होने पर राजपूताना भूभाग को राजस्थान नाम दिया गया।

7. सप्तम चरण (1 नवम्बर,1956)

 राजस्थान एकीकरण के सांतवे चरण अर्थात अंतिम चरण में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सिरोही की आबू व देलवाड़ा तहसील, मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले की मानपुरा तहसील का सुनेल टप्पा तथा अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र राजस्थान में मिला दिया गया तथा राज्य के झालावाड़ जिले को सिरोंज क्षेत्र मध्य प्रदेश में मिला दिया गया।
इस प्रकार राजस्थान का वर्तमान स्वरूप उपरोक्त चरणों से गुजरने के परिणामस्वरूप अस्तित्व आया है।


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