विश्व कैंसर दिवस : World Cancer Day
मानव सहित पूरे जैविक मण्डल के जीवों को प्रकृति ने खुबसूरत जीवन दिया है तो साथ में कुछ बिमारियां भी दी है हालांकि यह बिमारियां भी दुर्भाग्यवश लग जाती है।
मानव शरीर में अनेक प्रकार के रोग है लेकिन सभी शत प्रतिशत ईलाज है लेकिन कुछ असाध्य रोग है जिसका पूर्णत ईलाज नहीं है। कैंसर और एड्स ऐसे रोग है जिसको पूर्णतः ठीक नहीं किया जा सकता। लैटिन कैंसर एक ऐसी बिमारी है जिसका नाम सुनकर हर किसी के होश उड़ जाते हैं। आज दुनिया भर में सबसे अधिक रिचर्स की जाने वाली यह बिमारी दुर्भाग्यवश दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। हालांकि इस बिमारी का शुरुआती दौर में ईलाज हो जाता है। लेकिन कैंसर का सही समय पर पता नहीं चलता इसलिए दुर्भाग्य से अधिकांश मामलों में इसका पता देर से चलता है। जिससे ईलाज करना आसान नहीं होता है। लेकिन वर्तमान में इस बिमारी के मायने बदल गए हैं। अब इस बिमारी को खत्य भी किया जा सकता है। इसलिए आज कैंसर दिवस पर यह समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर इस ख़तरनाक बिमारी के क्या कारण है? इसका बचाव क्या है? वर्तमान में इस बिमारी का इलाज कैसे किया जाता है? तथा इस बिमारी को कैसे सर्वाइव किया जा सकता है?
कैंसर क्या है आखिर कैसे एक स्वस्थ शरीर पर होता है इसका हमला
कैंसर एक ऐसी बिमारी है जो कोशिकाओं के अनियंत्रित विभाजन से शुरू होती है जिसमें यह कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभाजित होकर शरीर में गांठों का निर्माण कर लेती है जिससे यह खतरनाक गांठें आस पास के ऊतकों की कार्यप्रणाली को बाधित करती है। समय पर इनका इलाज ना होने पर यह शरीर के दूर दराज अंगों में फ़ैल जाता है। यह जब खून से फैलता है तो इसे हीमेटोजिनस स्प्रैड कहा जाता है, इसमें कैंसर की कोशिकाएं प्राइमरी ट्यूमर से टूट कर खून में आ जाती हैं और खून के साथ शरीर के दूसरे हिस्सों तक पहुंच जाती हैं। कैंसर के आम लक्षण हैं वजन में कमी, बुखार, भूख में कमी, हड्डियों में दर्द, खांसी या मूंह से खून आना, कमजोरी,आदि हैं।
विश्व भर में हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। साल 1933 में इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई थी और इसके पीछे ये उद्देश्य रहता है कि लोगों को इस बीमारी और इससे बचने के तरीकों को लेकर जागरूक किया जा सके। तो चलिए आपको इस दिन के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं।
कुछ साल पहले तक कैंसर को लाइलाज रोग माना जाता था, लेकिन हाल ही के कुछ सालों में ही कैंसर के उपचार की दिशा में क्रांतिकारी रिसर्च हुई है और अब अगर समय रहते कैंसर की पहचान कर ली जाए तो उसका उपचार किया जाना काफी हद तक पॉसिबल है। कैंसर के संबंध में यह समझ लेना बेहद जरूरी है कि यह बीमारी किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकती है। तो सेहत के प्रति कभी भी लापरवाही न बरतें। सकारात्मक जीवन शैली तथा संतुलित आहार से इसे बचा जा सकता है।
विश्व कैंसर दिवस का इतिहास
विश्व कैंसर दिवस सबसे पहले 1993 में स्विट्ज़रलैंड में UICC के द्वारा मनाया गया था। जिसमें कुछ अन्य प्रमुख कैंसर सोसाइटी, ट्रीटमेंट सेंटर, पेशेंट ग्रुप और रिसर्च इंस्टिट्यूट ने भी इसको आयोजित करने में मदद की थी। ऐसा बताया जाता है कि उस समय तकरीबन 12.7 मिलियन लोग कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। जिनमें से हर साल तकरीबन 7 मिलियन लोगों अपनी जान गवां देते थे।
कैंसर दिवस का थीम
इस साल वर्ल्ड कैंसर डे की थीम है "मैं हूं और मैं रहूंगा" (“I am and I will”) है। ये थीम साल 2019 से 2021 तक मतलब 3 साल के लिए रखी गयी है जो इस साल भी कायम है। सबसे पहले विश्व कैंसर दिवस वर्ष 1993 में जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल (UICC) के द्वारा मनाया गया था।
एक अर्बुद (Tumor ट्यूमर) का मतलब
एक अर्बुद (Tumor ट्यूमर) का अर्थ है कोशिकाओं cells की असामान्य वृद्धि जिससे एक परावर्तित (ट्रांसफॉर्मड) कोशिकाओं का समूह बन जाता है। जिसे गांठ (Lump लम्प) कहा जाता है। इसके बनने के प्रमुख कारण होते हैं- कोशिका विभाजन को नियंत्रित करने वाली प्रक्रिया का समापन तथा उसके अन्दर उपस्थित जीन्स (आनुवंशिकता की इकाई) में किन्हीं लक्षणों के प्रति जीनी उत्परिवर्तन (जीनिक म्यूटेशन)।
सामान्यतः अर्बुद दो प्रकार के होते हैं- सुयम अर्बुद (Benign बिनाइन) जो अधिकतर परिसम्पुटित (इनकेप्स्लेटेड) होते हैं व एक ही स्थान तक सीमित रहते हैं। दूसरे अर्बुद, दुर्दम अर्बुद (Meligent मैलिगनेन्ट) कहलाते हैं ।
प्रत्येक ट्यूमर कैंसर नहीं होता
बिनाइन(सौम्य) ट्यूमर नॉन-कैंसरस होते हैं, जबकि मेलिग्नेंट(घातक) ट्यूमर को कैंसरस माना जाता है। बिनाइन ट्यूमर से जीवन को कोई खतरा नहीं होता और यह फैलता भी नहीं है। यह जिस अंग में होता है, वहीं रहता है और वहीं से इसे सर्जरी के जरिए हटा दिया जाता है। दूसरी तरफ मेलिग्नेंट ट्यूमर बदमाश होते हैं। ये अपने आसपास के अंगों पर भी हमला कर कर देते हैं और उन्हें भी अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं। इनकी ताकत इतनी ज्यादा होती है कि ये ट्यूमर से अलग हो जाते हैं और ब्लड में घुस जाते हैं, जिसका नतीजा यह होता है कि कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में भी फैलना शुरू हो जाता है। फैलने की इस प्रक्रिया को मेटास्टैटिस कहा जाता है।
क्या है ? कैंसर बिमारी के कारण और बचाव
आज कल भाग दौड़ भरी जिंदगी में पता ही नहीं चलता की कब कौन-सी बिमारी लग जाए। इंसान आज कल अपने जीवन की मौलिक आवश्यकताओं ,शोहरत और पैसे के चक्कर में अपने शरीर की देखभाल को भूल जाता है। हालांकि कैंसर जैसी बिमारी के होने का अभी पुख्ता कारण क्या है यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है। दुर्भाग्य से ही लगने वाली इस बिमारी के रिस्क फेक्टर में सबसे पहले आता है अनुवांशिक कारक जिसमें डी एन ए की सरंचना और उसकी क्रिया विधि जिससे यह डीएनए कोशिकाओं को अनियंत्रित वृद्धि करने का निर्देश देता है। इसमें कुछ बदलाव शुरू हो जाते हैं जिससे यह कोशिकाओं के विभाजन को प्रभावित करता है। दुसरा सबसे अहम रिस्क फैक्टर Risk Factor मानव शरीर पर वातावरण से मिलने वाले हानिकारक तत्व है जिसमें रेडिएशन,धूम्रपान-सिगरेट या बीडी का सेवन से मुंह, गले, फेंफडे, पेट और मूत्राशय का कैंसर होता है। तम्बाकू, पान, सुपारी, पान मसालों, एवं गुटकों के सेवन से मुंह, जीभ खाने की नली, पेट, गले, गुर्दे और अग्नाशय (पेनक्रियाज) का कैंसर होता है। इसके अलावा आलसी जीवन शैली जिसमें शरीर की कसरत नहीं होने के कारण मोटापा बढ़ता है। जिससे एसी खतरनाक बीमारी का खतरा बिमारी का खतरा रहता है। शारीरिक श्रम नहीं होने से शरीर में कई प्रकार की बिमारियां घर करती हैं तथा बढ़ती उम्र में रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर ही ऐसी भयानक बिमारियों का खतरा रहता है। बाकि कैंसर जैसी बिमारी वर्तमान में तेजी से फ़ैल रही है इसलिए तजा शोध में ऐसा पाया गया है कि विभिन्न प्रकार के दुर्लभ कैंसर हो रहे हैं जिसके कारण स्पष्ट नहीं होते। आंतों, प्रोस्टेट,लीवर,गुर्दे , हड्डियों,लसिका ग्रन्थियों आदि प्रकार के अंगों में कैंसरों के मामले सामने आ रहे हैं जिसके स्पष्ट कारण नहीं है हालांकि रीसर्च में डाक्टर बताते हैं कि बदलता वातावरण, तथा विभिन्न प्रकार के प्रदुषण तथा अनियमित जीवनशैली जिसमें फास्ट फुड , शराब, कीटनाशक युक्त खाद्य पदार्थ, सुर्य की किरणें, रेडिएशन आदि कारक कैंसर जैसी बिमारियों के लिए उतरदायी है। कोई एक कारक को हम कैंसर के लिए उत्तरदाई नहीं मान सकते हैं। अनुवांशिक लक्षण जिससे शारीरिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर या मजबूत होती हैं इसलिए इन पर भी निर्भर करता है कि यह बिमारी कितनी जल्दी शरीर में पनप सकती है। इसलिए कैंसर जैसी भयानक बिमारी से बचने के ज्ञान स्वच्छ जीवनशैली अपनाकर तथा विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थों में बचना एक बेहतरीन कदम होना चाहिए। शारीरिक श्रम,वजन नियंत्रण तथा शुद्ध एवं संतुलित भोजन जिसमें हरे फल सब्जियां आदि शामिल हो करना चाहिए।
क्या है कैंसर का उपचार
कैंसर जैसी भयानक बिमारी का नाम लेते ही हर किसी के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। इसलिए इस बिमारी को लेकर लोगों में डर ज्यादा है जिससे लोग धैर्य खो देते हैं। तथा निराश हो जाते हैं जिससे अवसाद में आकर इस बिमारी से लड़ने की जगह खुद समर्पण कर के बैठ जाते हैं जिससे शारीरिक और मानसिक दोनों ऊर्जा में कमी आ जाती है। हालांकि ऐसा कुछ नहीं है इस भयानक बिमारी को मात देना बहुत आसान है। लेकिन इसके लिए एक जिद्द तथा जीतने वाला हौसला चाहिए। आज दुनिया लाखों कैंसर सर्वाइवर मौजूद है जिनको कभी इस बिमारी ने जकड़ा था लेकिन अब वे सामान्य जीवन जी रहें हैं। इसलिए समय पर ईलाज के साथ साथ एक जुनून रख कर अगर इससे मुकाबला किया जाए तो निश्चित इस बिमारी को हराया जा सकता है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस बिमारी के उपचार लिए की विकल्प मौजूद हैं जो इसकी अवस्थाओं के अनुसार प्रयोग में लाए जाते हैं। इस बिमारी के पहली स्टेज में सर्जरी और रेडियो थेरेपी के माध्यम से इलाज किया जाता है। तथा उन्नत चरणों में कीमोथेरेपी तथा सर्जरी के संयोजन से इसका इलाज किया जाता है। वर्तमान में इम्यूनोथेरेपी जैसे विकल्प मौजूद हैं।
कैंसर का निदान एवं जांच
हालांकि कैंसर बिमारी के शुरुआती लक्षण नहीं होते हैं इसलिए शुरुआत में किसी सामान्य जांच में यह बिमारी पकड़ में नहीं आती लेकिन जब डाक्टरों को कोई संदेह लगता है तो वे स्पष्ट निदान करने के लिए की प्रकार की जांचे करवाते हैं जिसमें से कुछ निम्न प्रकार हैं।
CEA- TEST -यह टेस्ट रक्त के आधार पर रक्त में मौजूद कर्सिनोमा के संकेतों का पता करता है इस प्रकार से यह एक ट्युमर मार्कर ही जो रक्त में मौजुद कर्सिनोमा के लेवल को बताता है अगर यह सामान्य से अधिक मात्रा में आने पर कुछ प्रकार के कर्सिनोमा कैंसर का संकेत देता है हालांकि धुम्रपान करने वाले व्यक्ति में भी सीइए की मात्रा अधिक होती है। लेकिन डाक्टर अन्य जांच बिन्दुओं से आधार बनाकर कैंसर ट्युमर तथा उसके स्तर का पता करता है।
CT/MRI: सीबीसी जांच के बाद इलाज कराने पर भी अगर रिपोर्ट बार-बार अच्छी नहीं आ रही है तो डॉक्टर सीटी स्कैन या एमआरआई कराने के लिए कहते हैं। CT स्कैन या MRI में करीब 6000-7000 रुपये का खर्च आता है।
PET/CT और PET/MRI: पहले खाली PET (पोजिट्रोन इमिशन ट्रोमोग्राफी) यूज होती थी, जबकि अब PET/CT या PET/MRI भी होती हैं। ये कंबाइंड अप्रोच से काम करती हैं और बेहतर रिजल्ट देती हैं। इनसे पूरी बॉडी की स्कैनिंग हो जाती है। इससे शरीर में कहीं भी कैंसर सेल बढ़ रहे हों तो जानकारी मिल जाती है। PET/CT की कीमत करीब 20,000 रुपये और PET/MRI की कीमत करीब 55,000 रुपये होती है।
FNAC-यह पतली सूई से किसी तरल पदार्थ के नमुने को निकाल कर उसमें मौजूद सेल्स की जांच करते हैं। तथा इसमें भी स्पष्ट ना होने पर सर्जिकल बायोप्सी का सुझाव दिया जाता है।
बायोप्सी: यह कैंसर के खतरे को पुख्ता करने का एक तरीका है। इसमें मरीज के शरीर से एक सैंपल निकाला जाता है। अमूमन वह ट्यूमर हो सकता है। नमूने से पता चलता है कि ट्यूमर में कैंसर सेल्स हैं या नहीं। इसके कई तरीके हैं: मसलन: खुरचना, छेद करना, सुई बायोप्सी आदि।
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