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Sunday, February 7, 2021

Chamoli Uttarakhand glacier breach: उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर की तबाही देखें वीडियो आखिर क्यों फटता है ग्लेशियर

Chamoli Uttarakhand glacier breach
Chamoli Uttarakhand glacier breach 



Chamoli Uttarakhand India Joshimath glacier breach: 

चमोली ग्लेशियर टूटने का खौफनाक मंजर देखें विडियो




भारत के उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर के फिसलने से तबाही मच गई भारत का उत्तराखंड जिला देश भूमि के नाम से जानी जाती है केदारनाथ सहित यहां कई बड़े बड़े धार्मिक स्थल यहां मौजूद हैं। यहां अक्सर बर्फ बारी होती रहती है तथा हिमालय पर्वत श्रृंखला से छटा यह स्थान अक्सर बर्फ के बड़े बड़े ग्लेशियरो से ढका हुआ है। यहां से कई  महत्वपूर्ण नदियों के उद्गम स्थल भी है यहां ऋषिगंगा, धौलीगंगा आदि नदियां बहती हैं। इसलिए यहां ग्लेशियर टूट कर गिरता है तो इन नदियों का जलस्तर अचानक विनाशकारी हो जाता है। 
इसलिए यहां जब ग्लेशियर अचानक टूट कर फिसलता है तो इन नदियों के पानी में तेज बहाव पैदा होता है तथा तेज गति से बहाव से मलबा आदि साथ बहकर सैलाब सा बन जाता है जिससे आसपास के इलाकों में बाढ आ जाती है तथा तेज बहाव के रास्ते में आने वाले मानव बस्तियों में तबाही मच जाती है। इस बार जोशीमठ से करीब 25 किलोमीटर दूर पैंग गांव के ऊपर बहुत बड़ा ग्लेशियर फटा। जिसके चलते धौली नदी में बाढ़ आ गई। इसके बाद हिमस्खलन हुआ और ग्लेशियर की बाढ़ के चलते ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट को बड़ा नुकसान भी हुआ।
इस बार चमौली में आई इस भीषण त्रासदी की क्या वजह  रही होगी? आइए जानते की कोशिश करते हैं।

चमोली में सैलाब का खौफनाक मंजर


चमोली जिले में एक बार फिर पानी ने तबाही मचाई है यहां एक जोशीमठ ग्लेशियर टूट गया। ग्लेशियर टूटने से नदियों में अचानक पानी बढ़ गया। पानी तेज गति से विनाश करता हुआ आगे बढ गया। पानी के प्रवाह से ऋषि गंगा तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट का बांध भी टूट गया है क्योंकि इस बांध में क्षमता से अधिक जल आ गया। जिससे निचले इलाकों में पानी पहुंच जाता है।
ऐसे में जब ग्‍लेशियर का बड़ा हिस्‍सा पहाड़ से बेहद तेजी से गिरता है तो उसके साथ मिट्टी, पत्‍थर एवं अन्‍य तत्‍व भी वेग से आकर नदी में गिरते हैं, जिससे पानी का बहाव उस गति में आ जाता है, जो एक प्रकार से सुनामी जेसा मंजर बन जाता है। लिहाज़ा, शुरुआती कुछ घंटों में यह जिस-जिस हिस्‍से से गुजरता है, तबाही मचाता जाता है. हालांकि धीरे-धीरे इसकी गति कम हो जाती है।

वर्ष 2013 को केदारनाथ में आई थी विनाशकारी आपदा


साल 2013 में हुई केदारनाथ की आपदा में कई हजार जानें चली गई थीं। लोगों को अपने परिवार वालों के शव तक नसीब नहीं हो पाए थे। दुनिया के कई बड़े अखबारों ने इसे पूरी दुनिया में हुई सबसे बड़ी आपदाओं में से एक माना था। याद दिला दे कि 13 जून से 17 जून 2013 के बीच में उत्तराखंड राज्य में काफी बारिश हुई थी। आमतौर पर मॉनसून के दिनों में होने वाली यह बारिश सामान्य तौर बारिश से काफी ज्यादा थी, जिससे चौराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया। ग्लेशियर पिघलने से मंदाकिनी नदी उफान पर आ गई और इससे आई बाढ़ ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी नेपाल के एक बड़े हिस्से को प्रभावित कर दिया। तेज बारिश का पानी पहाड़ों से होकर सीधे केदारनाथ मंदिर में आ गया, जिससे हजारों लोग पानी में बह गए। हालांकि, सबसे ज्यादा तबाही केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और हेमकुंड साहिब जैसे धार्मिक स्थानों में हुई। केदारनाथ के शिव मंदिर में लाशों का ढेर लग गया था। भारी बारिश और ग्लेशियर के पिघलने के कारण आई इस बाढ़ से हजारों लोग मारे गए थे। लाखों लोग बेघर हो गए और करोड़ों रुपयों का नुकसान हो गया।अधिकतर रास्ते कट गए थे। कई पहाड़ दरकने से सबकुछ मलबे में तब्दील हो गया था। 8वीं शताब्दी के प्रभू केदारनाथ के मंदिर को भी नुकसान पहुंचा था। लगभग 5000 लोगों की जान चली गई थी। 

आखिर बिना बारिश ग्लेशियर क्यो फिसलते है?


 आसमान साफ होने और तेज धूप निकलने पर ग्‍लेशियर की निचली परत पर काफी वजन आ जाता है। इससे ग्‍लेशियर में क्रैक आ जाते हैं। निचली परत के कमजोर हो जाने और पिघलने के कारण ग्‍लेशियर के टूटने की स्थिति बनना इसकी मुख्‍य वजहों में से एक होना संभव है।
इसप्रकार बर्फबारी के कारण ग्‍लेशियरों पर काफी बर्फ जमा हो जाती है । जिससे इनके निचले लेअर पर दबाव पड़ता है जिससे वह पहाड़ों से मजबूती खो देती है। हालांकि इस बार चमौली ग्लेशियर स्थखलन  कुछ अलग मामला रहा है। की बार  आसमान साफ होने और तेज धूप से ग्‍लेशियर की निचली परत पर काफी वजन आ जाता है  जिससे ग्‍लेशियर में क्रैक आ जाते हैं तथा निचली परत के कमजोर हो जाने और पिघलने के कारण ग्‍लेशियर के टूटने की स्थिति बन जाती है।  यह इसकी मुख्‍य वजहों में से एक हो सकती है।

ग्लेशियर पिघलने के लिए ग्‍लोबल वॉर्मिंग है उतरदायी


ग्लेशियर के फटने और पिघलने की घटनाओं के पीछे धरती का बढ़ता तापमान उतरदायी है। ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि हो रही है जिससे ग्लेशियरो की पहाड़ियों से पकड़ कमजोर हो रही है। वैज्ञानिकों का ऐसा दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग से ध्रु्वो पर बर्फ पिघल रही है तो हिमालय पर्वत श्रेणी के ऊपरी हिस्सों में जमा ग्लेशियर इस वजह से कमजोर हो रहें हैं। लेकिन उत्तराखंड में कुछ वर्षों के अंतराल में लगातार हो रही यह घटनाएं चिंताजनक है । तथा इन ग्लेशियर्स के अचानक खिसकर टूटने की कुछ और भी वजह हो सकती है जिसमें लगातार भारी बरसात और बर्फ बारी भी उतरदायी है।
चमोली की घटना को जलवायु परिवर्तन के सीधे असर के तौर पर देखा जा सकता है। ग्लेशियरों पर ग्लोबल वॉर्मिंग के असर की काफी स्टडी की गई है। हाल ही में ICIMOD की HI-MAP रिपोर्ट ने भी इसकी ओर इशारा किया है। रिपोर्ट में पाया गया है कि हिमालय के हिंदुकुश क्षेत्र में तापमान बढ़ रहा है और वैश्विक तापमान बढ़ने का असर ऊंचाई की वजह से हिमालय पर ज्यादा है। एक साल पहले इंटरनैशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डिवेलपमेंट (ICIMOD) की हिंदुकुश हिमालय असेसमेंट रिपोर्ट में आशंका जताई गई थी कि साल 2100 तक अगर वैश्विक उत्सर्जन में कमी नहीं आई तो हिमालय के ग्लेशियर्स का दो-तिहाई हिस्सा पिघल जाएगा। इसप्रकार इस रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग को एसी घटनाओं के लिए उतरदायी माना जाता है। इसलिए प्राकृतिक स्थलों का संरक्षण तथा संतुलन बनाए रखना मानव के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने की बात को हमें स्वीकार करनी चाहिए इसके परिणामस्वरूप समुद्री जल स्तर भी बढ़ रहा है तथा कई द्वीपों के जलमग्न होने का खतरा भी मंडरा रहा है।


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