(Heuristic Method) इस विधि को 'खोज विधि' या स्वयं ज्ञान विधि के नाम से भी जानते हैं। अमेरिकन शिक्षाविद् आर्मस्ट्रांग को इस विधि का जन्मदाता माना जाता है। यह पद्धति स्वयं खोज करने या अपने आप सीखने की विधि है। इसमें छात्र को स्वयं तथ्यों का अध्ययन, अवलोकन और निरीक्षण करने का अवसर दिया जाता है और छात्र से ऐसी उम्मीद की जाती है कि वह अपने प्रयास से सत्य की जांच करे। यह विधि आगमन विधि को आधार मानकर विकसित की गई है। इस विधि में अध्यापक ऐसी परिस्थिति का निर्माण करता है कि छात्रों के सामने एक समस्या उत्पन्न हो जाती है, तथा छात्र उस
समस्या का हल ढूंढने को तैयार होते हैं और उसके लिए कार्य तथा निरीक्षण करते हैं, निष्कर्ष निकालते हैं और परीक्षण करते हैं। यह वैज्ञानिक खोजों का स्वभाविक क्रम है। विज्ञान व गणित का घनिष्ठ सम्बन्ध है इसलिए यह विधि गणित के क्षेत्र में भी प्रभावशाली रही है।
ह्यूरिस्टिक का अर्थः
ह्यरिस्टिक विधि का अर्थः 'ह्यूरिस्टिक' ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, "मैं खोजता हूँ।'' इस प्रकार इस विधि में छात्र नवीन तथ्यों तथा सिद्धान्तों को स्वयं अपने प्रयास द्वारा खोजते हैं। ह्यरिस्टिक विधि में अध्यापक छात्रों
से कम बताता है और स्वयं अधिक से अधिक खोजकर सत्य को पहचानने के लिए प्रेरित करता है।
हरबर्ट स्पेन्सर ने कहा है कि "बालकों को जितना कम से कम सम्भव हो बताया जाए और उनको जितना अधिक-से-अधिक सम्भव हो खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।" संक्षेप में खोज विधि का मुख्य उद्देश्य छात्रों में खोज की प्रवृत्ति का विकास करना होता है।"
खोज या अन्वेषण विधि के उद्देश्य
1.छात्रों में वैज्ञानिक प्रवृत्तियों का विकास करना।
2.छात्रों में जिज्ञासा, वस्तुनिष्ठता, साहस, धैर्य, कठिन परिश्रम,सृजनात्मकता सम्बन्धी गुणों का विकास करना। 3.छात्रों को अन्वेषण तथा अनुसन्धानकर्ता के रूप में पहचानना।
4.छात्रों को स्वयं ज्ञान तथा तथ्यों को खोजने हेतु उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है।
ह्यरिस्टिक या खोज विधि के सिद्धान्त
1.क्रियाशीलता का सिद्धान्त
2.स्वानुभव द्वारा सीखने का सिद्धान्त
3.पूर्व अनुभवों के प्रयोग का सिद्धान्त
4.सत्यापन का सिद्धान्त 5.रुचि का सिद्धान्त 6.प्रेरणा का सिद्धान्त
ह्यूरिस्टिक विधि के कार्य प्रणाली
1.समस्या की उपस्थितिः सर्वप्रथम छात्रों के समक्ष शिक्षक
किसी समस्या को उत्पन्न करता है तथा छात्रों को उसका
ज्ञान कराता है।
(2) तथ्यों की खोज: समस्या का बोध होने के पश्चात् छात्र उससे सम्बन्धित तथ्यों की खोज करते हैं और उन्हें एकत्रित करते हैं। इसके लिए शिक्षक, छात्रों को पुस्तकों के नाम अथवा अनुभव क्षेत्रों से अवगत कराता है। वह समय-समय पर छात्रों की शंकाओं का समाधान भी करता है
(3) परिकल्पनाओं का निर्माणः इन तथ्यों के आधार पर छात्र समस्या के हल के विषय में अनेक अनुमान लगाते हैं, जो परिकल्पनायें कहलाती हैं।
(3) परिकल्पनाओं का परीक्षण: इसके अन्तर्गत छात्र अनेक अन्य तथ्यों के आधार पर इन परिकल्पनाओं की सत्यता की परख करते हैं।
(4) नियम अथवा निष्कर्ष निकालनाः असत्य तथा भ्रमपूर्ण
परिकल्पनाओं को छात्र छोड़ते हुए सत्य तथा शुद्ध परिकल्पनाओं को स्वीकार करके नियम निर्धारण करते हैं।
खोज विधि या ह्युरिस्टिक विधि के गुण:
(1) यह विधि मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधि है क्योंकि इसमें करके सीखने' तथा स्वयं सीखने आदि सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है,
(2) यह विधि वैज्ञानिकता के दृष्टिकोण का विकास कर छात्र को स्वयं निर्णय लेने हेतु सक्षम बनाती है,
(3) मानसिक शक्तियों का विकास करती है,
(4) शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं में समन्वय स्थापित करती है।
(5) अनुसन्धान की प्रवृत्ति का विकास होता है, (vi) यह विधि छात्र को आत्मनिर्भर बनाती है जिससे छात्र स्वयं अपने प्रयासों से ज्ञान की प्राप्ति करता है,
(6) गृह कार्य से मुक्ति मिलती है क्योंकि इस विधि में अधिकांश कार्य छात्र प्रयोगशाला में ही कर लेता हैं।
अन्वेषण विधि या हरिस्टिक विधि के दोषः
(1) यह विधि प्राथमिक स्तर के बच्चों के लिए अनुपयुक्त है।
(2) सामान्य बुद्धि के छात्रों केलिए अनुपयुक्त।
(3) समूह शिक्षण के लिए अनुपयुक्त।
(4) पाठ्यक्रम के सभी विषयों का शिक्षण असम्भव है।
(5) पाठ्यक्रम को इस विधि से पूरा नहीं किया जा सकता है।
(6) समय और शक्ति का दुरुपयोग होता है।
(7) व्ययसाध्य है।
(8) इसकी प्रक्रिया धीमी व लम्बी है।
(9) विशेष पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता पड़ती है।
(10) अध्यापक पर अधिक उत्तरदायित्व होता है,
(11) योग्य एवं सुप्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होती है।
(12) यह विधि केवल उच्च कक्षाओं के लिए उपयुक्त है, (13) सामूहिक शिक्षण के लिए अनुपयुक्त है
(14) गलतनिष्कर्षनिकालने की सम्भावना बनी रहती है।
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