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Friday, January 22, 2021

मानव सेवा हो या पत्रकारिता सच्चाई का साथ नहीं छोड़ें The need for honest journalism in India

journalism in India
The need for honest journalism in India for democracy's future


 Journalism Crisis in India


आज भारत सहित दुनिया के कुछ देशों में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाने वाला मीडिया धन और टीआरपी के चक्कर में अपने कर्त्तव्यों और मर्यादाओं को लगभग खो चुका है। इसके साथ-साथ जो लोग जनसेवा के योग्य है वे अपने दार्शनिक विचारों और निष्पक्षता को भी किसी न किसी प्रकार के स्वार्थ में निहित कर देते हैं। यह बात बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सच के लिए लड़ना लोगों को कठिन लगने लगा है। क्योंकि झूठ के संसार में उन्हें आर्थिक लाभ के साथ साथ आलिशान सुखी जीवन जीने मिल जाता है। यह दिलचस्प भी है कि सता की छत्रछाया में स्वामीभक्त बनने पर किसी व्यक्ति को लोकप्रियता और भौतिक सुख सुविधाएं अधिक मिलती है।

इसलिए जो व्यक्ति पत्रकारिता और जनसेवा में आने को उत्सुक उनको यह तय करके आना चाहिए कि हमें इस क्षेत्र में ईमानदारी से काम करना है। भले ही इस निष्पक्ष कार्य के लिए कितना भी मूल्य चुकाना पड़े। मनुष्य को इस बात का अहसास और सोच लेकर आगे बढ़ना चाहिए कि यह जीवन एक दिन तो समाप्त होना ही है। जीवन के अन्त में यह मायने नहीं रखता कि आपके कितना सुख भोगा और कितना दुःख। इसलिए आप सत्य की राह पर चल कर दुःख भोग कर भी मरेंगे तो लोग आपको याद करेंगे लोगों को अहसास होगा कि वह आदमी मरते दम तक सत्य के साथ खड़ा था। कहने का मतलब यह है कि यह जीवन नश्वर है तो क्यों ना अपने कर्म मानव हित और सत्य के लिए किए जाएं। आज भी कुछ लोग इतनी कशमकश में मानव सभ्यता के हितों और अन्याय के खिलाफ लडने के लिए कहीं से भी अवसर ढूंढ लेते हैं। ऐसे सच्चे लोगों की आज भी कमी नहीं है। इसलिए पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले लोगों को अपना एक ध्यये बना लेना चाहिए कि किसी भी परिस्थितियों में हम हमारा ईमान दांव पर नहीं लगायेंगे।


इसके लिए हम दो उदाहरणों से समझने की कोशिश करते हैं कि जनसेवा,सत्य पर लिखने या आवाज उठाने, अन्याय के खिलाफ लड़ने , आवश्यकता पड़ने पर क्रान्ति लाने आदि मानव जाति के उद्धार या किसी शोषित वर्ग के हितों के लिए लड़ना पड़े तो बेशक सत्य के साथ लड़ना चाहिए। सत्य पर अडिग रहना बहुत जरूरी है इस प्रकार इस राह में बहुत दुश्वारियों का सामना करना पड़ेगा। इतिहास गवाह है ऐसे लोगों के हालात बहुत बुरे और कष्ट भरे रहें लेकिन वे लोग सत्य पथ से विचलित नहीं हुए। आज उन लोगों को इतिहास गर्व से याद करता है । लेकिन गुलामी करने वालों को नहीं। इस नष्ट होने वाले जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने सुखी और दुखी रहे।

वैसे इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं लेकिन आज हम दो
इन उदाहरणों में पहले बात करते हैं महाराणा प्रताप और कार्ल मार्क्स की । 

महाराणा प्रताप

मेवाड़ के  महाराणा प्रताप दूसरे राजाओं की तरह चाहते तो ऐसो-आराम से अकबर के अधीन सुख भोग सकते थे। लेकिन महाराणा प्रताप ने सत्य और संघर्षों का रास्ता चुना इतने दूख भौगने के बाद भी महाराणा प्रताप ने कभी अपने ईमान और स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। ज़िन्दगी भर कष्टों का सामना करते रहे और मुगलों से लौहा लेते रहे।

कार्ल मार्क्स


दूसरा उदाहरण है विश्व के गरीब मजदूरों के लिए लड़ने वाले कार्ल मार्क्स जिन्होंने पूंजीवाद के खिलाफ मजदूरों के शोषण के विषय में लिखते रहे। बहुत बड़े दार्शनिक मार्क्स ने संषर्ष भरा रास्ता चुना हालांकि उस समय के गुलाम समकालीन लेखक सरकारों के लिए चाटुकारिता करके लिखते थे इसलिए वे उनकी भव्य छत्र छाया में आलीशान आरामदायक ज़िन्दगी जी रहे थे । लेकिन मार्क्स अपने रास्ते से विचलित नहीं हुआ। उसको हर देश से निकाला गया बहुत से देशों ने उसे नागरिकता नहीं दी। लेकिन लिखता रहा। दास कैपिटल लिखना शुरू किया । गरीबी के दिन देखे । जेल में भुखा रहा मगर दास कैपिटल लिखना बन्द नहीं किया। बहुत दुःख देखने के बाद भी उसकी जन सेवा और ईमानदारी में कोई कमी नहीं आई। लेकिन उसकी मौत के समय भी उसके पास नागरिकता भी नहीं रहीं। वह दर -दर भटका, विभिन्न देशों से भगाया गया लेकिन उसने जो ठान ली थी उसके साथ समझौता नहीं किया । मार्क्स चाहता तो पूंजीपतियों के संरक्षण में सुखी जीवन जी सकता था। लेकिन सौभाग्य से ऐसा नहीं हुआ वरना दुनिया में दास कैपिटल नहीं होता।
उस दास कैपिटल पर आज पूंजीवादी देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाए विकसित कर दी। उस ग्रन्थ की बारिकियों से दुनिया के देश महाशक्तियां बन गये। मजदूरों की बेड़ियां टूट गई ।  उसके मरने के बाद भी उसे इतना पढ़ा और समझा गया। और वो सभी समकालीन लेखक और दार्शनिक गुमनाम हो गये जो सरकारो की स्वामीभक्ति में लगे थे। मरने के बाद यह मायने नहीं रखता कि उसने कष्ट ज्यादा सहन किये। आपके जीवन का मतलब यही है कि आप सत्य पर कितने अडिग रहे, कितना संषर्ष किया। इस धरती पर कितने ही आये और गये है। 

देश हित के लिए सत्य की राह पर आवाज बुलंद करें


इसलिए अगर आप मानवता की सेवा के अवसर ढूंढ रहे हैं तो सत्य की कश्ती लेकर अथाह समुद्र में उतरिए। जहां आपको डूबोने के लिए लाखों लहरों का सामना करना पड़ेगा लेकिन । सत्य की कश्ती को नहीं छोड़ना चाहिए। कितने भी कष्टों का सामना भी करना पड़े अपने ईमान पर अटल रहना चाहिए। इसलिए आज लोकतंत्र को बचाने के लिए निडरता और ईमानदारी की पत्रकारिता की जरूरत है। जो लोगों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर  रहें तथा अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज उठाए । आज ईमानदारी और निष्पक्षता को धन दौलत से खरीदा जा रहा है इसमें हमारे पत्रकार भी बिक रहें हैं। ऐसे में देश के लिए पत्रकारिता का नया संकट खड़ा हो गया है। अब आदर्श पत्रकारिता के लिए उस अनुशासन की आवश्यकता महसूस हो रही है। जिसमें ईमानदार और कर्मठ पत्रकार एवं लेखक आगे आकर देश का नेतृत्व बिना किसी लोभ लालच एवं दबाव से लोगों की आवाज उठायें तथा देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के मूल्यों को बचाकर देश का भविष्य सुरक्षित करें।

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