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Guru Gobind Singh |
Guru Gobind Singh Jayanti 2021:
आज का दिन सिक्ख धर्म के साथ-साथ पूरे हिन्दुस्तान के लिए किसी पर्व या त्योहार से कम नहीं है। आज का दिन एक ऐसे वीर योद्धा , महापुरुष और गुरु के जन्म से जुड़ा हुआ है जिसकी जीवन शिक्षा और संघर्ष आज हमें गौरव और स्वाभिमान का पाठ पढ़ाते हैं। जी हां आज सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म दिन है उनकी जयंती पूरे भारतवर्ष में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन तथा लंगरों में भोजन आदि का आयोजन किया जाता है। इस दिन गुरुवाणी तथा सिख धर्म के गुरुओं की शिक्षाओं का वाचन किया जाता है।आज के समय हमारे लिए गुरु गोबिंद सिंह का जीवन बेहद प्रासंगिक और आदर्श है। गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब की रचना पूरी की, जो भगवान के गुणों का वर्णन करने वाले भजनों (शबद) या बानी का संग्रह है। ग्रन्थ में दस सिख गुरुओं की शिक्षाएँ हैं और उन्हें सिखों का पवित्र ग्रंथ माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में पवित्र पाठ की पुष्टि की और पवित्र पाठ को आध्यात्मिक नेतृत्व पर पारित किया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु प्रथा को समाप्त किया और गुरु ग्रंथ साहिब को सर्वोच्च स्थान दिया।
गुरु गोबिंद सिंह का जीवन परिचय
सिख धर्म के दसवें वें गुरु,गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पटना बिहार में 22 दिसंबर 1666 को हुआ था।
गुरु गोबिंद सिंह के पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी था। वे उनके एक मात्र पुत्र थे।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पौष महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था।
इसलिए भारत में गुरु गोबिंद सिंह की जयंती की हर वर्ष दिनांक अलग अलग होती है क्योंकि यह हिन्दू महीने पौष की शुक्ल सप्तमी के दिन को ही जयंती पर्व माना जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा वाणी - "वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह" तथा सिख धर्म के अनुयायियों को जीवन जीने के लिए पांच सिद्धांत भी बताए जिन्हें 'पांच ककार' कहा जाता है। पांच ककार में ये पांच वस्तुएं आती हैं जिन्हें खालसा सिख धारण करते हैं। ये पांच ककार 'केश', 'कड़ा', 'कृपाण', 'कंघा' और 'कच्छा' इन पांचो के बिना खालसा वेश पूर्ण नहीं माना जाता है। आज भी सिख धर्म के पुरूष यह पांच वस्तुएं धारण करते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु 7 अक्टूबर सन् 1708 ई. में नांदेड़, महाराष्ट्र में हुई थी।
पटना साहिब में आज भी पड़ी यादगार वस्तुएं
गुरुद्वारा साहिब में आज भी वह चीजें मौजूद हैं, जो गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में थी। पानी भरने के लिए जिस कुएं का इस्तेमाल माता गुजरी जी करती थीं, वह आज भी यहां है। इसे देखने संगतों की भीड़ उमड़ी रहती है। आज भी इस गुरुद्वारे में गुरु गोबिंद सिंह जी की छोटी कृपाण मौजूद है। यही वह कृपाण है जिसे गुरु गोबिंद सिंह जी बचपन के दिनों में धारण करते थे। गुरु जी अपने केशों में जिस कंघे का इस्तेमाल करते थे, वह भी यहां है। गुरु तेग बहादुर साहिब जी के लकड़ी के खड़ाऊं (चप्पल) भी संभाल कर रखे गए हैं।
चिड़िया संग मै बाज लड़ाऊं, इतिहास का अद्भुत युद्ध और गोबिंद सिंह
गुरु गोबिंद सिंह जी के हौंसले और हिम्मत आज हमें उत्साह और हिम्मत का पाठ पढ़ाते हैं । ऐसी विजयी सोच जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। जब किसी के हौसले टूटने ने लगे तो इस अद्भुत घटना को जरूर पढ़ना चाहिए।
भारत के इतिहास में युद्ध तो बहुत हुए हैं लेकिन चमकौर युद्ध ऐसा युद्ध है जो आपके रोंगटे खड़े कर देगा और आपके हौसले बुलंद कर देगा। इस युद्ध में मुगलों की दस लाख सैनिकों वाली फ़ौज का सामना महज 42 सिख सैनिको के साथ हुआ और गुरु गोबिंद सिंह के नेतृत्व में कैसे जीत होती है यह वाकई अद्भुत और दुर्लभ हैं जो हमें यह सिखाते हैं कि इंसान को कभी हिम्मत नहीं खोनी चाहिए।
चिड़िया संग मै बाज लड़ाऊं,सवा लाख से एक लड़ाऊं।तभी गोबिंद सिंह नाम कहाऊं।।
यह बात गुरु गोबिंद के उसी समय की है सब गुरु गोबिंद सिंह जी ने कैसे ब्यालीस योद्धाओं के अन्दर दस हजार सैनिकों के सामने लड़ने की हिम्मत और जिद्द भर दी जिससे उन लोगों को दस हजार की सेना के सामने जीत नजर आने लगी। इतिहास में यह युद्ध चमकौर युद्ध Battle of Chamkaur के नाम से भी जाना जाता है जो कि मुग़ल सेनापति वज़ीर खान की अगुवाई में दस लाख की फ़ौज का सामना सिर्फ 42 सिखों के सामने 6 दिसम्बर 1704 को हुआ था। जो की गुरु गोबिंद सिंह जी की अगुवाई में तैयार हुए थे| नतीजा यह हुआ की मात्र ब्यालीस सिख योद्धाओं के सामने मुगल सैना में खलबली मच गई।
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