Netaji Subhash Chandra Bose: The Great Leader of India
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों की बात करें तो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का नाम भी भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु , महात्मा गांधी आदि महापुरुषों की कतार में शामिल होता है। नेताजी प्रतिभाशाली और कर्मठ नेता थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए भारत के बाहर रहकर भी बिगुल बजाया। उन्होंने एक ऐसी सैना का भी गठन कर लिया था जिसने अंग्रेज़ो को बेकफुट पर ला दिया था। नेताजी का राष्ट्र के प्रति प्रेम और समर्पण वाकई असाधारण था। कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में हो या फ्रिडम फाइटर्स के नेतृत्व में उन्होंने हर मोर्चे पर एक आदर्श और कर्मठ नेता की भूमिका निभाई। इसलिए आज आजाद भारत में आज उनका नाम बड़े गर्व से लिया जाता है।
पराक्रम दिवस
देश के महान स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर वर्ष 23 जनवरी को मनाई जाती है । सन 2021 मैं भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose की जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया ।भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती यानी 23 जनवरी 2021 से पराक्रम दिवस के रूप में मनाना आरंभ किया है। तो आइए जानते हैं नेता जी के जीवन और संघर्षों के बारे में कुछ रोचक जानकारी।
नेताजी का जीवन परिचय
भारत के वीर सपूत क्रान्तिकारी एवं आजादी की मशाल नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। नेताजी के पिता जी का नाम जानकीनाथ बोस और माता जी का नाम प्रभावती देवी था।
नेताजी नें साल 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। एक न्युज एजेन्सी के मुताबिक उनके एक बेटी है । अनिता नाम से उनकी बेटी वर्तमान में वो जर्मनी में अपने परिवार के साथ रहती हैं।
तथ्य बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस 18 अगस्त 1945 को हवाई जहाज में मंचुरिया जा रहे थे, लेकिन इसके बाद वो अचानक कहीं लापता हो गए, और आज तक उनकी मौत एक अनसुलझी गुत्थी बनी हुई है। उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करते समय भी उनके परिवार ने उनकी मौत के रहस्य को लेकर सवाल उठाए थे। लेकिन 18 अगस्त 1945 को भारत माता ने अपना सपूत खो दिया जो भारत की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।
उनके इन प्रयासों के लिए उन्हें इतिहास में युगों युगों तक याद किया जाएगा। उनकी आजाद सेना लगभग आधे से अधिक भारत पर स्वतंत्रता प्राप्त कर चुकी थी। लेकिन दुर्भाग्यवश उदारवादी नेताओं के बीच तालमेल नहीं होने के कारण उनकी आजाद हिंद सैना पूर्ण स्वराज में चूक गई।
सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा एवं स्वतंत्रता आंदोलन में आगमन
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी शुरुआती पढ़ाई कटक में ही रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से की थी। बाद में नेताजी ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में साल 1913 में प्रवेश लिया उसके बाद 1915 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा को प्रथम श्रेणी में पास किया। नेताजी के माता-पिता उनकी शिक्षा के प्रति जागरूक थे। इसी कारण सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता ने उन्हें इंडियन सिविल सर्विस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। उस समय अंग्रेजी शासन में इतनी बड़ी पढ़ाई करना बहुत मुश्किल था। लेकिन नेताजी बहुत दृढ़ निश्चययी और प्रतीभाशाली थे।
अंग्रेजों के शासन में किसी भारतीय का इस परीक्षा में पास होना तो दूर, इसमें बैठना भी बहुत महत्वपूर्ण बात थी। इस सबके बावजूद नेताजी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। 1921 में भारत में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ने लगीं। ये खबर मिलते ही नेताजी भारतीय प्रशासनिक सेवा को बीच में ही छोड़कर भारत लौट आए और फिर वो बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए। जहां महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, तो वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। इसलिए नेताजी गांधी जी के विचार से सहमत नहीं थे। हालांकि, दोनों का मकसद केवल और केवल भारत को आजाद करवाने का था।
आजाद हिंद फौज का गठन एवं संचालन
अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना करते हुए आजाद हिंद फौज का गठन किया। नेताजी ने अपनी फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को उस समय बर्मा अब म्यांमार पहुंचे। यहां उन्होंने 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।' You give me blood, I will give you freedom. का मशहूर नारा दिया। हालांकि आज़ाद हिन्द फौज का गठन पहली बार राजा महेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में हुआ था। मूल रूप से उस वक्त यह आजाद हिन्द सरकार की सेना थी, जिसका लक्ष्य अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्रता दिलाना था। जब दक्षिण-पूर्वी एशिया में जापान के सहयोग द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने करीब 40,000 भारतीय स्त्री-पुरुषों की प्रशिक्षित सेना का गठन शुरू किया और उसे भी आजाद हिन्द फौज नाम दिया तो उन्हें आज़ाद हिन्द फौज का सर्वोच्च कमाण्डर नियुक्त करके उनके हाथों में इसकी कमान सौंप दी गई। दूसरे विश्व युद्ध के समय नेताजी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई बहुत तेज कर दी थी इसलिए उन्हें उन्हीं के घर में नजरबंद कर दिया गया था।।
कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में नेताजी
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस वर्ष 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित किए गये। जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। 1939 के कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के समर्थन से खड़े पट्टाभी सीतारमैया को हराकर विजय प्राप्त की। इस पर गांधी और बोस के बीच अनबन बढ़ गई, जिसके बाद नेताजी ने खुद ही कांग्रेस को छोड़ दिया।
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