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Saturday, January 30, 2021

कौन कर रहा है किसानों को बदनाम? दिल्ली में हो रही हिंसा का सच! Farmers protest 2020-21

Farmers protest Red fort flag
किसान आन्दोलन की ट्रेक्टर रेली में हुई हिंसा तथा लाल किले पर झंडा फहराने की घटनाओं की तस्वीरें की एंगल से हकीकत सामने नहीं आती इसलिए तस्वीरों के साथ साथ पूरे मामले को समझना जरूरी है। गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा तथा झंड़ा लगाते हुए युवकों तथा शांति पूर्वक रैली निकालने वाले किसानों की कुछ तस्वीरें साभार सोशल मीडिया



तीन कृषि कानूनों को खत्म किए जाने की मांग को लेकर 26 जनवरी को किसानों ने किसान गणतंत्र परेड का आयोजन किया। किसानों की ओर से राजधानी-एनसीआर के इलाके में ट्रैक्टर मार्च निकाला गया। इस मार्च के दौरान हुई हिंसा तथा लाल किले पर झंडा फहराने की घटना पूरे देश में सुर्खियों का विषय बना हुआ है। लेकिन हकीकत में लाल किले पर झंडा किसका था ? किसने फहराया? क्या झंड़ा खालिस्तान का था? इन सब सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं। क्या इस हिंसा के बाद आन्दोलन कमजोर होगा? किसान आन्दोलन का आगे का रास्ता क्या होगा? यह समझने के लिए हमें पूरा घटनाक्रम समझना जरूरी है।

भारत के इतिहास में पहली बार 72 वां गणतंत्र दिवस ऐतिहासिक रहा इस बार कृषि कानूनों के खिलाफ चला आ रहा लम्बा आन्दोलन अपने चरम पर तब पहुंचा तब किसानों को दिल्ली में ट्रेक्टर रेली की अनुमति मिल गई। लेकिन दुर्भाग्यवश इस ऐतिहासिक मार्च में किसानों के साथ कुछ उपद्रवी शामिल हो गये जिन्होंने हिंसात्मक रूप अपनाकर पूरे आन्दोलन को बर्बाद कर दिया। लेकिन यह आन्दोलन पूरे विश्व के सामने चर्चा का विषय बन गया। हर वर्ष जब पूरा देश शांतिपूर्ण गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों को देखता है लेकिन इस बार राजधानी में हर सड़क और गली में किसान ही किसान नजर आ रहा था। सरकार और किसान संगठनों की  लम्बी बातचीत तथा सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कृषि बिलों पर रोक लगाने के बावजूद भी किसानों ने आन्दोलन को वापिस नहीं लिया क्योंकि किसानों की मांग केवल इन कानूनों को वापिस लेने की है। लेकिन सरकार भी झुकना नहीं चाहती और किसान अपनी मांगों से पीछे नहीं हटना चाहते। इसलिए यह आन्दोलन दिन-दिन तेज होता जा रहा है।
यह आन्दोलन गणतंत्र दिवस को ऐतिहासिक और विश्व पटल पर सुर्खियों में आ गया जब किसान आन्दोलन के कुछ अनियंत्रित गुट लाल किले की प्राचीर तक पहुंच गये।  हालांकि लालक़िले की प्राचीर पर उपद्रवियों ने हुड़दंग किया लेकिन कुछ यूवक झंडा फहराकर पुलिस की समझाइश के बाद वापिस लौट गये। लेकिन लाल किले पर एक व्यक्ति द्वारा तिंरगे को फेंक कर अन्य झंडा लगाने की घटना ने तूल पकड़ा । जिससे मीडिया ने बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया तथा पूरी किसान कौम को नीचा दिखाया। इस तस्वीर में साफ दिखाई दे रहा है कि पुलिस की मौजूदगी में एक युवक तिंरगे को फेंक रहा है। इस तरह की हरकतें करने वाले गुटों को किसान संगठनों ने खुद को अलग किया है। वे बता रहे हैं कि यह उपद्रव करने वाले हमारे आन्दोलन में शामिल नहीं है। तो फिर यह सवाल उठता है कि यह उपद्रवी कौन है? झंडा फहराने वाले कांड में दीप सिद्धु का नाम सामने आया है तथा सोसल मीडिया पर दीप सिद्धु को भाजपा का समर्थक माना जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि भला भाजपा समर्थक व्यक्ति किसानों के आंदोलन में शामिल कैसे हो सकता है? खैर इस घटनाक्रम से विश्व के अन्य देशों में यह तस्वीरें पहुंच गई है। तो हर कोई हैरान रह गया होगा शान्ति प्रिय भारत में अचानक ऐसा क्या हो गया कि इतने बड़े आन्दोलन हो रहे हैं। इससे यह सवाल जरूर उठते होंगे कि कहीं न कहीं भारतीय सरकार किसानों के हित में काम नहीं कर रही है। या फिर भारतीय लोगों में सही जानकारी और जागरूकता में कमी आने लगी है जिससे लोगों की विवेक शक्ति दूसरों के विचारों से नियंत्रित होती है। 


किसानों को लम्बी मशक्कत के बाद ट्रेक्टर मार्च निकालने की अनुमति दिल्ली पुलिस ने दी थी। तथा दिल्ली पुलिस ने कुछ रूट निर्धारित किए थे। लेकिन समय का इंतजार कर रहे किसानों ने जब ट्रेक्टर रेली शुरू की तो कुछ रास्तों पर पुलिस ने बेरीकेडिंग कर दी जिससे इस मार्च में हंगामा हुआ। पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे जिससे किसान अंसुलित हो गये । नांगलोई इलाके में प्रदर्शनकारी किसानों पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले इस्तेमाल किए।  पुलिस ने  किसानों पर तब लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े जब पूर्व निर्धारित मार्ग से हटकर किसानों की  परेड आईटीओ सहित कई अन्य स्थानों पर पहुंच गई। किसान राजपथ की ओर जाना चाहते थे। दिल्ली पुलिस ने किसानों को राजपथ पर आधिकारिक गणतंत्र दिवस परेड समाप्त होने के बाद निर्धारित मार्गों पर ट्रैक्टर परेड की अनुमति दी थी। दूसरी तर इस पूरे मामले को देश के कुछ मुख्य न्युज चैनल  देश विरोधी बता रहे हैं।तथा किसानों पर हिंसा के आरोप लगा रहे हैं।
हालांकि उपद्रव को लेकर किसान नेताओं ने चिंता जाहिर की तथा संयुक्‍त किसान मोर्चे की तरफ से अपने बयान में कहा गया कि आज के किसान गणतंत्र दिवस परेड में  भागीदारी के लिए हम किसानों को धन्यवाद देते हैं, लेकिन हम उन अवांछनीय और अस्वीकार्य घटनाओं की भी निंदा और खेद करते हैं, जो आज घटित हुई हैं और ऐसे कृत्यों में लिप्त होने वाले लोगों से खुद को अलग करते हैं।
 हांलांकि किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि हम उन लोगों को जानते हैं जो अशांति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी पहचान की गई है। ये राजनीति दलों के लोग हैं जो आंदोलन को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम को समझने के बाद ऐसा लग रहा है कि यह लड़ाई अब किसानों और सरकार की जगह अब पार्टी समर्थकों और किसानों की हो गई है। गणतंत्र की हिंसा के बाद सरकार के मंत्रियों और नेताओं में किसानों के प्रति तेवर तेज हो गये है यह लोग बार बार तिंरगे के अपमान और हिंसा की दुहाई देकर किसानों को दिल्ली से खदेड़ना चाहते हैं। इसलिए एक बीजेपी नेता ने गृहमंत्री को भड़काऊ पत्र लिख कर अपमानजनक शब्दों में कहा है कि किसान आतंकवादी है हमें छूट दो ताकि हमारे आदमी इन लोगों पर लाठीचार्ज चार्ज कर के भगा दें। इसके कुछ समय बाद कुछ लोग स्थानीय लोगों के रूप में किसानों पर हमला करते हैं। ऐसे में किसानों का भी आपा खोना स्वभाविक है एक तरफ वो पुलिस और सरकार से परेशान दूसरी तरफ स्थानीय लोगों की आड़ में बीपेपी समर्थकों का हमला इसलिए अब किसानों पर तिहरी मार पड़ रही है। ऐसे में किसानों में शामिल कुछ लोग उग्र हो सकतें हैं। इसलिए मीडिया द्वारा  एक पुलिस अधिकारी पर तलवार का हमला दिखाया जा रहा है इसके सामने एक स्थानीय व्यक्ति को भी पत्थर बाजी करते देखा जा रहा है। इस प्रकार अब यह तय करना मुश्किल हो गया है कि कौन क्या कर रहा है? कुछ प्रमुख मीडिया पहले से ही सरकार की तरफ है तथा अब पार्टी समर्थक भी मैदान में हैं तो ऐसे में किसानों की परेशानियां बढ़ गई है कि कभी भी कोई उपद्रवी आन्दोलन में घुस कर आन्दोलन को बदनाम कर सकता है। सोशल मिडिया पर भी यह आन्दोलन दो गुटों में बंट गया है कुछ लोग किसानों के विरोध में केंपेन चला रहे हैं जो सरकार एवं बीजेपी समर्थक हैं। दूसरी ओर कुछ लोग किसानों के समर्थन में लगे हैं। इस प्रकार भ्रामक सूचनाओं को फैला कर लोगों की ओपनियन बदलने की कोशिश की जा रही है। अब यह काम आई टी सेल बखुबी कर रहा है।

इसी प्रकार लालक़िले पर खालिस्तानी झंडे की अफवाह फैलाई गई थी लेकिन असल में वह खालीस्तानी झंड़ा नहीं था। ना ही लाल किले पर तिरंगे को हटाया गया था। यह तो केवल मीडिया ने जानबूझकर गलत एंगल से एक फोटो वायरल की जिसमें तिरंगे को छुपाकर फोटो शूट की थी। लेकिन असल में तिंरगे से दूर और नीचे स्थित एक गुंबद पर किसानों का झंडा लगाया गया। जबकि खालिस्तानी झंडे की जो अफवाह फैली थी वह खालिस्तानी झंडा ना होकर निशान साहिब का झंड़ा था।
इसके बाद दीप सिध्दु ने स्वीकार भी किया की हमारे गुट ने प्रतिकात्मक विरोध के लिए ऐसा किया।

दिलचस्प बात है यह कि किसान आन्दोलन को भी सीएए के विरोध में हो रहे आन्दलन जैसा बना दिया है । वहां पार्टी समर्थक मुस्लिम समुदाय से भिड़ रहे थे तो अब वो ही लोग किसानों से भिड़ रहे हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हो रहा है कि सरकार और जनता के मुद्दों को जानबूझकर अराजकता में धकेल दिए जाते हैं जिसमें पार्टी समर्थक और आन्दोलनकारी आपस में लड़ते हैं वो भी पुलिस की मौजूदगी में। पिछले कुछ सालों से ऐसा कई बार देखा गया है कि जो लड़ाई कानून से समाप्त होनी चाहिए वो लड़ाई कुछ समर्थकों की भीड़ द्वारा हड़प ली जाती है। हालांकि दिल्ली पुलिस और सरकार का दायित्व बनता है कि आन्दोलन करने वाले किसानों के इलाकों में स्थानीय लोगों के रूप में उपद्रवियों को नहीं जानें दें। किसानो की सुरक्षा भी बहुत जरूरी है। इसलिए हमें यह क्रोनोलोजी समझ में आ रही है कि भारत में अब आन्दोलन तथा हक की मांगे केवल दो गुटों का शिकार हो रही है । यह गुट पार्टियों के शीर्ष नेताओं के बयानों और इशारों पर तैयार होते हैं। इसलिए राजनैतिक और सियासी दलों में घटते नैतिक मूल्यों से लोकतंत्र कमजोर होगा ही साथ साथ में देश में धार्मिक और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने लगेगा तथा अराजकता का माहौल उत्पन्न होगा।

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