राष्ट्रवाद की धार्मिक पृष्ठभूमि में दलितों की दशा तथा हाथरस काण्ड की सच्चाई से उठते सवालThe condition of Dalits and backward classes in the religious background of nationalismJagriti PathJagriti Path

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Tuesday, December 22, 2020

राष्ट्रवाद की धार्मिक पृष्ठभूमि में दलितों की दशा तथा हाथरस काण्ड की सच्चाई से उठते सवालThe condition of Dalits and backward classes in the religious background of nationalism

राष्ट्रवाद की धार्मिक पृष्ठभूमि में दलितों की दशा तथा हाथ Dalits and backward classes in the religious background of nationalism
The condition of Dalits and backward classes in the religious background of nationalism




हाल ही में सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में साबित किया है कि हाथरस घटना में वाकई गेंग रेप और हत्या हुई थी।
लेकिन  बड़े दुर्भाग्य की बात है कि अपराध के समय फेसबुक एवं अन्य सोशल साइट्स तथा देश के कुछ प्रमुख न्युज चैनल "जो ज्यादातर वर्तमान सरकार के लिए पत्रकारिता करते हैं" उन्होंने इस मामले में भ्रान्ति फैला दी थी कि इस बालिका की हत्या उनके घरवालों ने ही की थी तथा उसके उपरांत पुलिस ने जल्दबाजी में शव जलाकर मामले को अन्धकार में डाल दिया । इसलिए उस समय सभी को एसा लगा कि इस मामले की सच्चाई कुछ और हो सकती है। लेकिन वो लोग भी कितने बर्बर थे जिसमें इस बालिका को न्याय दिलाने की जगह अपराधियों के पक्ष में खड़े हो गये थे । विडम्बना है कि भविष्य में ऐसे संगीन अपराधों के लिए जाति तथा धर्म के ताल्लुकात से अपराधियों का पक्षपात होगा जिससे किसी फरियादी को न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा तथा उच्च जाति वर्ग जनित  अपराध बढ़ जायेंगे। यह सब धर्म तथा जाति को देखते हुए किया जाता है । हाथरस काण्ड में भी अपराधी गैर दलित होने के कारण देश की मुख्यधारा के कुछ मिडिया एजेंसी,तथा स्वर्ण राजनीति पार्टियां आदि हाथरस की बेटी के खिलाफ खड़े थे। इसलिए अब देश में सामाजिक स्तर से सियासत और प्रेस मिडिया आदि से जुड़े लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष जाति धर्म की स्वता के पुर्वाग्रहो से तरफारी करते हैं इसी का परिणाम यह है कि वर्तमान में मुस्लिम वर्ग से इतनी नफ़रत फैलाई जा रही है। हकीकत तो यह कि देश वर्तमान में तीन वर्गों में विभाजित है जिसमें हिन्दु, दलित तथा मुस्लिम समुदाय हालांकि दलित हिन्दुओं में ही आते हैं लेकिन हिन्दु धर्म की उच्च जातियां जो स्वयं को इस धर्म पर मालिकाना हक जताते हैं उनके लिए दलित भी घृणा की दृष्टि से देखे जातें हैं इसलिए स्वभाविक तौर पर दलितों और मुस्लिम समुदाय पर होने वाले अपराधों में यह लोग कभी निष्पक्ष न्याय की मांग नहीं करवायेंगे जब अपराधी सर्वण जातियों से संबंधित होगा। लेकिन भारत जैसे विशाल देश में यह गौण मानसिकता ज्यादा मायने नहीं रखती क्योंकि वर्तमान में लोग धर्म जाति से ऊपर उठकर रोजगार , शिक्षा, मंहगाई आदि मुद्दों पर ध्यान देने लगे हैं लेकिन फिर धर्म जाति आधारित सियासत होती हैं तब इन लोगों की भावना भड़क जाती है जिससे वे लोग विकास, रोजगार , मंहगाई आदि को भूलकर धर्म और जाति का राग अलापने लगते हैं जिसका ताजा उदाहरण किसानों के आंदोलन के खिलाफ मोर्चा खोले हुए लोग, हाथरस में पिडित परिवार के खिलाफ खड़े लोग, अम्बेडकर की मुर्तियां तोड़ने वाले,NRC का सपोर्ट करने वाले , मुस्लिम समुदाय से नफ़रत करने वाले, यह सब लोग इसी धार्मिक और जातीय निजता के चलते अंधाधुंध सरकार के पक्ष में खड़े हो जाते हैं । यह लोग विवेकहीन होकर इसलिए कुछ राजनीतिक दलों को सपोर्ट करते कि कहीं कहीं यह दल उनके एजेंडे पर काम कर रहे हैं जिससे इन हमजाती और हमधर्मी लोगों को लगता है कि हम शक्तिशाली और सुरक्षित होंगे। लेकिन भारत एक विचित्र देश है यहां की विविधता में एकता बहुत ही विलक्षण है क्योंकि यहां आप लोगों को ना तो बांट सकते ना ही एकजुट कर सकते हैं क्योंकि यहां के लोगों की अनुभूति और सिद्धांतवादी सोच भी अनोखी है । इसका सबसे बड़ा कारण जाति व्यवस्था है । उदाहरण के लिए आर एस एस नामक संघ ने हिन्दुओ को एक सुत्र में बांधने की कोशिश की उनमें हिन्दुत्व भरने की कोशिश की लेकिन धीरे-धीरे इसी धर्म और संघवाद में जातीय संगठनों की बाढ़ आ गई जिसमें करणी सेना, बजरंग दल, दलित मोर्चा, आदि आदि जातीय और वर्ण आधारित संगठन बन गये जो अपने अपने एजेंडे से काम करते हैं। वैसे हिन्दु धर्म नहीं एक विशाल सभ्यता की जीवन शैली का नाम है इसलिए इसमें कट्टरवाद कभी नहीं पनपा है। हिन्दु धर्म को मुस्लिम धर्म के प्रतिनिधि के रूप में खड़ा करना कुछ लोगों की मुर्खता है। यह मुर्ख लोग वही है जो हिन्दू दर्शन को पाखण्डवाद , आडम्बरों में धकेल कर लोगों में ऊंच-नीच की भावना से स्वयं को उच्च स्थान पर रखना चाहते हैं जिससे इस धर्म का विशेष वर्ग धर्म पर मालिकाना हक जता कर शेष लोगों पर अपनी विचारधारा थोंप सकें । इसलिए वर्तमान में हिन्दु जीवन शैली को कट्टर धर्म का रुप देकर इस साज़िश को सियासत से जोड़ा गया । अगर हिन्दू धर्म की कट्टरता की भावना शक्तिशाली  हिन्दु धर्म के नाम पर बने  संगठनों के माध्यम से सियासत तक पहुंचती है तो जाहिर है कि यह भावना भारत की शासन व्यवस्था , मिडिया , गैर सरकारी संगठनों, को प्रभावित करेगी तथा इन सिस्टमों जुड़े लोग हमेशा विवेकहीन होकर सत्य की जगह जूठ का प्रचार-प्रसार करेंगे क्योकि इनकी निजत्व की भावना इन्हें आकृषित और प्रभावित करेगी। लेकिन भारत जैसे विशाल देश में कई मौलिक मुद्दे है जिससे आप इन लोगों को केवल लम्बे समय तक धार्मिक खतरों से डराकर एकत्र नहीं रख सकते हैं इसलिए बीच-बीच में किसानों , बेरोजगारों आदि लोगों को सड़क पर आन्दोलनकारीओं के रूप में देखा जाएगा तब इन आन्दोलन करने वाले लोगों पर आरोप प्रत्यारोप देखें जायेंगे। वर्तमान में ताजा उदाहरण है कि देश की कुछ मिडिया एजेंसी और भाजपा का आईटी सेल किसानों को देश विरोधी तक बोल रहे हैं, इन्ही लोगो ने हाथरस के पिडित परिवार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था।
इन्हीं लोगों ने धार्मिक राष्ट्रवाद के नाम पर देश की सियासत तक अपनी विचारधारा को फ़ैलाने की कोशिश की जिसके परिणामस्वरूप मठों में तपस्या करने वाले साधुवाद और योगी लोग संसद भवन तक पहुंच गये। खैर भारत में राजनीतिक क्षेत्र में सभी को समान अधिकार है । लेकिन बुद्धिजीवियों पर अवार्ड वापसी गेंग का ठप्पा लगाना, छात्र आन्दोलन को टुकड़े टुकड़े गेंग तथा किसानों को खालिस्तानी कह कर देश में असली मुद्दों को दबाकर वहां धार्मिक कट्टरवाद की आड़ में जिस राष्ट्रवाद की भावना पैदा की गई जिसके दुरगामी  परिणाम, अन्यायी, पक्षपाती और मानव आवश्यकताओं के विपरित नजर आ रहे हैं। इसका सबसे कटु सत्य हाथरस घटना थी जिसमें सरकार सहित वे सभी लोग जो भारत में नव राष्ट्रवाद के पक्षधर हैं हाथरस के पीड़ित परिवार के खिलाफ खड़े थे क्योंकि यहां यह परिवार दलित और अपराधी स्वर्ण होने के कारण यह राष्ट्रवादी तबका उस परिवार के खिलाफ खड़ा हो गया लेकिन सीबीआई के अधिकारियों ने तमाम दुश्वारियों के बावजूद निष्पक्ष जांच की जिससे यह झूठ का रूप ले चुका सच आखिर सत्य साबित हुआ। लेकिन दुर्भाग्यवश इस धार्मिक राष्ट्रवाद की भावना जिसमें जातीय अलगाववाद है यह अगर कायम रहता है तो भारत की न्यायिक और रक्षार्थ संस्थाएं भी दुषित और पक्षपाती हो जाएगी जहां किसी निम्न वर्ग को न्याय की उम्मीद नहीं रहेंगी। लेकिन खुशी की बात है विचित्र भारत में धार्मिक राष्ट्रवाद को जगह नहीं मिलने वाली है क्योंकि यहां जातिवाद तथा अनेक धर्म के लोगो के कारण यहां पासा पलटने में समय नहीं लगता इसकी का ताजा उदाहरण किसान आंदोलन है जिसमें बहुत से समुदायों के लोग किसानों का साथ दे रहे हैं। आजादी की लड़ाई में भी भारत के सामन्तो और शासकों द्वारा अंग्रेजों का साथ देने के बावजूद भी क्रांन्तिकारियो के साथ वे सभी धर्म समुदायों के लोग मैदान में नजर आये थे।

भारत में पिछले कुछ समय में जो हिन्दु राष्ट्रवाद की भावना तथा ऐजेण्डे आधारित नितियों का प्रचलन शुरू हुआ है इसमें सबसे पहले निशाने पर मुस्लिम समुदाय है इसलिए  तीन तलाक बिल, NRC, आदि कदम इसके उदाहरण हैं । वैसे मतदाताओं को केवल धर्म जाति तथा राष्ट्रवाद पर भ्रमित किया जाता है जिससे वोट बैंक को मजबूत किया जा सके। लेकिन कभी कभी वोट बैंक के एजेंडों पर थोड़ा बहुत काम भी करना पड़ता है जो वर्तमान में वैसा ही हो रहा है। हर कोई राजनैतिक दल अपने वोट बैंक के लिए किसी देशव्यापी ऐजेण्डे का सहारा लेते हैं कांग्रेस ने गरीबी के मुद्दे को सहारा बनाया इस तरह समय- समय पर विभिन्न दलों ने विभिन्न प्रकार के मुद्दों को वोट बैंक के लिए सहारा लिया था लेकिन इन एजेंडों का भी ट्रैंड होता है कुछ अधिक समय के लिए चलते हैं तो कुछ बहुत कम ही चलतें है। एजेण्डों को ढूंढ कर लाना तथा जनता पर थौपना भी अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि और चुनौती होती है। वर्तमान भाजपा सरकार ने राष्ट्रवाद और हिंदू धर्म के एजेंडे पर चमत्कारी रूप से वोट बैंक निर्मित कर दिया। वर्तमान वोट बैंक तथा सता की निरन्तरता  एवं ऐजेण्डे के क्रियान्वयन में पूंजीवाद का समर्थन भी एक हितकारी विषय बन गया है। इसलिए पूंजीपतियों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाकर राजनैतिक दल भी मजबूत बन सकते हैं। इसलिए वर्तमान सरकार पूंजीवाद की तर्ज पर पूंजीपतियों को गले लगा रहीं है।  लेकिन भारत जैसे आर्थिक विषमता वाले राष्ट्र में अर्थव्यवस्था को त्वरित रूप से पूंजीपतियों के हाथों में सौपना आसान नहीं है क्योंकि इस मामले में भारत की गरीबी, महंगाई तथा किसानों की समस्याएं  पौल खोल देती है वैसा ही हुआ कि आज किसान सड़क पर है तथा बेरोजगारी और महंगाई  बढ़ रही है लेकिन जो लोग धार्मिक राष्ट्रवाद में निजत्व से आस्था रखने है या वर्तमान सरकार से हिन्दुराष्ट्र की आस्था रखते हैं वे लोग कभी भी किसानों के समर्थन में नहीं आयेंगे और ना ही दलित पीडितो के साथ खड़े होंगे। इन लोगों को भारत का संविधान भी रास नहीं आएगा क्योंकि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता और समानता का प्रबल समर्थन करता है तथा इसके लिए बाधित भी करता है। भारत का मुस्लिम समुदाय जागरूक हैं यह वरग हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को जल्दी भांप गया तथा आज मुस्लिम विरोधी कानुनों के विरोध में पहली कड़ी में है। लेकिन बहुमत और भारी समर्थन के चलते केवल विरोध ही कर रहे हैं। अब बात आती है दलितों की भारत का दलित वर्ग अब भी नासमझ के अंधकार में है दलितों को नहीं पता कि वर्तमान में हिन्दु धर्म की और झुकें हुए राष्ट्रवाद में उनको फायदा है या नुकसान? इस प्रश्न का उत्तर फिर से हाथरस काण्ड में ढूंढते हैं हाथरस काण्ड में  सवर्ण राष्ट्रवादी धड़ा आरोपियों के पक्ष में संतभ के रूप में खड़ा रहा उन में मिडिया , राष्ट्रवादी दल , यहां तक सभी गैर दलित इन स्वर्ण अपराधियों को दूध में धोने की कोशिश कर रहे थे । फिर भी भारत में सीबीआई जैसी कुछ संस्थाएं बची है जो धार्मिक कट्टरवाद तथा जातिवाद से भरे राष्ट्रवाद की चाछनी में पूर्ण रूप से नहीं डूबे हैं। अगर भारत में इस तरह का राष्ट्रवाद जिसमें किसानों,मजदुरों, बेरोजगारों तथा राष्ट्र के असली निर्माताओं आदि की उपेक्षा होती है, कायम रहता है तो दलितों की स्थिति दयनीय होगी। इसलिए भारत में उस असली राष्ट्रवाद की जरूरत है जिसमें पिछड़े वर्ग, दलितों, किसानों, बेरोजगारों आदि जरूरतमंदों की बात हो , धर्म के खतरे की जगह बेरोजगारी और शिक्षा की बात हो , मन्दिरों और मस्जिदों की जगह स्वास्थ्य गरीबी उन्मूलन की बात हो, नाम परिवर्तन की जगह न्याय और संविधान की मजबूती की बात हो, किसान बिल की जगह किसानों को प्रत्यक्ष लाभ की बात हो, धार्मिक आग की जगह भाईचारे और आपसी सौहार्द की बात हो , जातिवाद की जगह समानता की बात हो, तथा संविधान की मजबूती और निष्पक्ष क्रियान्वयन की बात हो तभी भारतवर्ष में उन्नति और प्रगती के द्वार खुलेंगे।

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