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Energy crisis in future |
मानव सदियों से परम्परागत ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग करता रहा है। जीवाश्म ईधन के रूप में तथा अन्य परंपरागत ऊर्जा स्रोत के रूप में, इन स्रोतों के भंडार सीमित मात्रा में ही हैं। निरंतर जनसंख्या वृद्धि और ऊर्जा के इन स्रोतों के अंधाधुंध उपयोग से उर्जा के स्रोत धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं, जो कि शीघ्र बिल्कुल खत्म हो जायेंगे। ऐसे स्थिति में ऊर्जा का गंभीर संकर खड़ा हो सकता है। ऊर्जा किसी भी देश के लिए विकास का इंजन होती है। किसी देश में प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत कितनी होती है, यह वहां के जीवन स्तर का सूचक होता है।
वर्तमान में ऊर्जा संकट का असर आम जनता पर नजर आ रहा है क्योंकि तेल और कोयले की कमी के चलते विद्युत उत्पादन में अनियमितता आ रही है जिससे किसानों को पर्याप्त बिजली आपूर्ति नहीं मिल रही है। तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के कारण डीजल, पेट्रोल अन्य ईंधन की खपत बढ़ने के कारण तेल व अन्य ईंधन के दाम बढ़े है।
पेट्रोलियम उत्पादों के तेजी से बढ़ रहे दामों के कारण महंगाई दर तेजी से बढ़ रही है। गौरतलब है कि संम्पूर्ण विश्व के सामने ऊर्जा संकट गहराया हुआ है लेकिन भारत जैसे विपुल जनसंख्या वाले देशों की चिंता बढ़ गई है कि भविष्य में ऊर्जा के विकराल संकट से कैसे निपटा जाए।
हम जानते हैं कि परंपरागत और जीवाश्म ईंधन की मात्रा सीमित है तो हम नवीनीकरण ऊर्जा उत्पादन में कितने कामयाब हो रहें हैं यह समझना बहुत जरूरी है।
राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार आये दिन किसी न किसी चूनावी मुद्दों में व्यस्त नजर आ रही है। ऊर्जा संकट के साथ-साथ भविष्य में कई समस्याएं दहलीज पर हैं जिस पर अमल करने की जरूरत है। किसी भी देश की प्रगति अपने ऊर्जा स्त्रोतों पर निर्भर करती है। भारत में वाहनों की बढ़ोतरी के कारण भारी मात्रा में दूसरे देशों से तेल आयात करना पड़ता है जिससे अर्थव्यवस्था की कमर टूट रही है।
विकासशील भारत का भविष्य ऊर्जा के प्रबंधन पर टिका है। इसलिए गौर करने वाली बात है कि वर्तमान में हम वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन में कितने सफल हुए हैं? हमारे देश में अगर आने वाले सौ सालों में परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत खत्म हो जाते हैं तो नई पीढ़ी के लिए गैर परंपरागत स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन कितना सुलभ होगा यह कहना मुश्किल है। वर्तमान में हमारे वैज्ञानिक सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, आदि वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन के जरिए बता चुके हैं हालांकि भारत में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा आदि गैर-परंपरागत ऊर्जा उत्पादन के संयंत्र भी लगाये गये है लेकिन वर्तमान में अनवीकरण संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग के आगे यह प्रयास "ऊंट के मुंह में जीरा" कहावत के समान है। सबसे बड़ी चुनौती यह कि हमारे देश में गैर- परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों के उपयोग हेतु ऊर्जा रुपांतरण और नवीन तकनीक के साधनों में बदलाव की जरूरत है जो कि नाम मात्र की है। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पहले से ही प्रदुषण की समस्या है लेकिन वहां पर आज भी पूरानी तकनीकी के वाहनों का प्रयोग होता है जो कि बड़ी मात्रा में ईंधन की खपत के साथ-साथ वातावरण को धुआंदार बनाते हैं। हमारे देश में शहरों के साथ-साथ गांवों में भी दूपहिया वाहनों का परिचालन तेजी से बढ़ रहा है जो कि बड़ी मात्रा में पैट्रोलियम ईंधन आधारित है। बड़ी बड़ी मशीनें और कारखानों में भी पूरानी तकनीक विकसित नहीं हुई जिससे इनका संचालन गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों से सरलता से किया जा सके। भारत नहीं पूरे विश्व के सामने बड़ी चुनौती है कि ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों पर आधारित शक्तिशाली इंजन तकनीक का निर्माण कर के अधिक से अधिक गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों का उपयोग किया जाए। हमारा देश विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है साथ ही विकसित राष्ट्रों की दौड़ में तो यह जरूरी हो जाता है कि जल्द ही ऊर्जा और उत्पादन में आत्मनिर्भर बनें।
विश्वव्यापी ऊर्जा संकट से बचने के लिये जरूरी है कि ऊर्जा के इन परंपरागत स्रोतों का समझदारी से उपयोग किया जाये। इन स्रोतों का अपव्यय न किया जाये। आज हमारे देश में ऊर्जा के अपव्यय को रोक कर विवेकशील तरीके से अनावश्यक ऊर्जा खर्च को कम किया जाए तो भविष्य के लिए ऊर्जा स्त्रोतों का बड़ा हिस्सा बचत किया जा सकता है। ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों को बढ़ावा दिया जाए, सौर ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, जल ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ताप ऊर्जा आदि का उपयोग करके तथा रोजमर्रा की छोटी यात्रा के लिए साइकिल का उपयोग आदि छोटे प्रयासों के माध्यम से ऊर्जा का अपव्यय कम किया जा सकता है।
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