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Polution from fireworks |
इस बार दिवाली पर पटाखों पर पाबंदी का मुद्दा काफी चर्चा में रहा । भारत में कुछ राज्यों में पटाखों पर पूर्ण पाबंदी रही वहीं कुछ राज्यों में पटाखों पर कुछ छूट भी रही ।
इस बार प्रदुषण और कोरोनावायरस से ग्रसित मरीजों का हवाला देते हुए पटाखों पर पाबंदी रही।
दिलचस्प बात यह रही कि पटाखों की पाबंदी पर खूब राजनीति हुई इस मुद्दे को पर्यावरण से दूर ले जाकर धर्म आस्था और राजनीति से जोड़ा गया। अधिकतर कांग्रेस शासित राज्यों में पटाखों पर पाबंदी रही। राम और हिंदू धर्म के त्यौहारों में गहरी आस्था रखने वालों ने इस निर्णय का खूब विरोध भी किया।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली एनसीआर में दिवाली पर पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे। और इसके साथ ही कई राज्यों में भी ऐसे ही प्रतिबंध लगाए गए हैं। कहा जा रहा है कि कई शहरों में प्रदूषण इतना ज़्यादा हो गया है कि साँस लेना दूभर है और प्रदूषण के कारण कोरोना संक्रमण के भी तेज़ी से फैलने के आसार हैं। अब ज़ाहिर है पटाखे जलेंगे तो प्रदूषण तो बढ़ेगा। ऐसे में सवाल यह है कि प्रदूषण और कोरोना बढ़ने का ख़तरा उठाया जाए या साल में एक बार आने वाले इस त्योहार को भूल जाएँ?
एसे में दिवाली पर पटाखों पर पाबंदी का एनजीटी और कई राज्य सरकारों का फ़ैसला लोगों को चुभने वाला भी निकला। सरसरी तौर पर भले ही यह फ़ैसला रंग में भंग डालने वाला लगे, लेकिन उनके तर्कों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि पर्यावरण का ख्याल रखना हम की जिम्मेदारी है।
अब हम बात करते हैं कि पटाखों पर प्रतिबंध पर आखिर विरोध का कारण क्यों बना ? क्या पटाखों पर पाबंदी लगाना सही हैं? इन सवालों के जवाब विवेक , तर्कशीलता और वैज्ञानिक सोच से ही प्राप्त कर सकते हैं। किसी पूर्वाग्रह में हम सही ग़लत में अन्तर नही कर सकते हैं। भारत लोग धार्मिक कर्मकांड में विश्वास अधिक रखते हैं इसलिए किसी भी कीमत पर धार्मिक परिपाटी के खिलाफ लिये गये फैसले को बर्दाश्त नहीं करतें। सोसल मिडिया पर कुछ लोग पाबंदी पर विरोध करते हुए यह कह रहे थे कि एक दिन पटाखों से क्या हो जाएगा। कुछ लोग हिन्दू धर्म के खिलाफ साजिश की बात कर रहे थे। तो कुछ लोग त्योंहारों की खुशी में बाधा और अधिकार छीनने की बात करके विरोध जता रहे थे। लेकिन बहुत कम बुद्धिजीवियों ने समर्थन किया। इस फैसले का समर्थन उसी ने किया जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सकारात्मक सोच रखता हो और उसकी समझ और सोच धर्म, आस्था, राजनीति आदि से बहुत ऊपर थी।
पटाखों का समर्थन करने वाले या इसे खुशियों का इजहार मानने वालों को बता दें कि हर साल पटाखों से औसतन सौ शहरों में से 10 शहरों में आगजनी की घटनाएं होती हैं। कई बच्चे अपना मुंह,आंख आदि जलाकर अस्पताल पहुंचते हैं। गांवों में झौपड़ी या कच्चे घरों में रहने वाले रहवासियों की ढाणियां जलकर खाक हो जाती है। मवेशी जल जातें हैं। यह हकीकत है पिछले सालों में दीपावली के अगले दिन का अखबार खोलकर देखेंगे तो पाएंगे कि यह पटाखों की असलियत है।
अस्पतालों में भर्ती दमा और टीबी के रोगियों के लिए यह खतरनाक धुंआ मौत का कारण बन जाता है। हम इतने मुर्ख कैसे बन सकते हैं? कि इतनी दर्दनाक कीमत चुकाने के बाद भी हमें वो आनंद और खुशी केवल पटाखों के धमाकों में चाहिए? हम हमारी मानव सभ्यता के सुख और वातावरण की परवाह किए बिना अगर केवल पटाखों में ही खुशी और आस्था का प्रतीक ढूंढेंगे तो इससे बड़ी मुर्खता नहीं हो सकती।
दुर्भाग्यवश पटाखों पर पाबंदी लगने के बाद भी कुछ राज्यों और शहरों में यह सिलसिला नहीं रुका जिस राज्य में सख्त पाबंदी थी वहां पर भी अनाधिकृत रूप से पटाखों की बिक्री हुई। लोगों ने फोड़े भी खूब! लेकिन आप इस बार दीपावली पर आगजनी की घटनाओं को गूगल पर सर्च करोंगे या अखबारों में पढ़ोगे तो चौंक जाओगे। क्योंकि इस बार भी पटाखों की वजह से आगजनी की घटनाएं किस प्रकार सामने आई हैं?
हम पर्यावरण दिवस पर एक पौधा लगाने , योग दिवस पर एक दिन योग, जल दिवस पर एक दिन पानी बचाने,ऊर्जा दिवस पर एक दिन विद्युत बचाने आदि की बातें करते हैं। अगर संकीर्ण मानसिकता से सोचें तो एक दिन में क्या होने वाला है? लेकिन एक दिन और एक व्यक्ति द्वारा एक समय में किए गए कार्य से बहुत फर्क पड़ता है। इसलिए एक दिन दिपावली पर अरबों लोगों द्वारा खरबों रूपए के (शोरा ) सोडियम नाइट्रेट और पोटैशियम क्लोराइड को बर्बाद करके हवा को प्रदुषित करने से बहुत फर्क पड़ता है।
हम एक दिन की खुशी के लिए अपने देश की संपत्ति और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। सबसे बड़ी विडंबना है कि हम केवल एक दिन में पर्यावरण में बहूत बड़ी मात्रा में जहरीली हवा का मिश्रण जान बूझकर करते हैं जिसका खामियाजा श्वास रोगियों और पशु ,पक्षियों आदि को भुगतना पड़ता है। अगर हम पिछले वर्षों के अखबारों को खंगालने की कोशिश करें तो सबसे अधिक आगजनी की घटनाएं दिवाली पर पटाखों की वजह से पायेंगे। इसलिए बेहतर यह है कि खुशियों के इजहार के लाखों विकल्प है लेकिन पर्यावरण को बचाने का एक मात्र विकल्प प्रदुषण रहित जीवन शैली है। जिसके लिए धार्मिक और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से बाहर निकल कर ईको फ्रेंडली सिस्टम बनाया जाएं।
दैनिक नवज्योति अखबार राजस्थान में संपादित लेख
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