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Wednesday, November 18, 2020

सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार और मृत्यु भोज का दंश

Death banquet mrityu bhoj social problem
मृत्यु भोज एक सामाजिक बुराई



भारत में पूर्व समय में बहुत कूरीतियां प्रचलन में थी कालान्तर में धीरे धीरे सभी का उन्मूलन किया गया जिसमें सती प्रथा,भ्रुण हत्या आदि । लेकिन कुछ कूरीतियां अभी भी समाज में विद्यमान है जिससे आधुनिक समाज में बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मृत्यु भोज और बाल विवाह जैसी भयानक कूरीतियों ने कई परिवारों को तबाह कर दिया। सरकार समय समय विभिन्न योजनाओं और कानुनों से इन्हें नियन्त्रण करने की कोशिश करती है लेकिन इन बुराइयों पर कोई असर नहीं पड़ता । समाज के लोग ही इन कूरीतियों को बढ़ावा देते हैं। धनाढ्य वर्ग इस भारी-भरकम खर्च को सहन कर लेते हैं लेकिन यही बारी जब गरीब परिवार की आती है तब मजबूरन कर्ज लेकर मृत्युभोज का आयोजन करना पड़ता है जिससे उस परिवार की तीन पीढ़ियां उस कर्ज और ब्याज में दब जाती है जिससे उस परिवार में न तो शिक्षा की व्यवस्था हो पाती है और न ही उचित चिकित्सा की। मृत्यु भोज की रूपरेखा रेखा कैसे तैयार होती है? कैसे मजबूर होकर सामाजिक दबाव में आकर मृत्युभोज की ओर अग्रसर होते हैं ? आइए हम समझने की कोशिश करते हैं।
घर में अचानक से किसी की मौत होना पुरा परिवार स्तब्ध ! फिर शुरू होता हैं उस परिवार की समाज में इज्जत बरकरार  रखना,एक वक्त था, तब गाँव में किसी  की मौत होने पर दाह क्रिया पश्चात् प्रत्येक घर से आटा व राशन एकत्रित करके घर आये लोगों को सादा भोजन कराया जाता था, वो वक्त था तब लोगों के गले से निवाला नहीं उतरता था।
लेकिन आधुनिक  रिवाज ऐसे शुरू हुए हैं, जिस व्यक्ति के पास मां- बाप के इलाज के पैसे नहीं होते हैं उन्ही मां -बाप के मरने पर  कर्ज लेकर मां- बाप का मरना सुधारने में लग जाते हैं| इंसान को दफनाया नहीं कि पीछे घर में  हलवे की कड़ाही चढ़ा दी जाती हैं, एक वक्त तक बारहवे के समय पकवान  बनते थे, लेकिन वर्तमान समय में तो पूरे बारह या अठारह दिन पकवान बनने लग गये । विडम्बना हैं ऐसे कार्य अधिकतर पढ़े लिखे लोग कर रहे हैं,मृत्यु भोज बंद करने के लिये समय -समय पर सरकार नये नियम बनाती हैं, लेकिन साक्षर- निरक्षर सभी मिलकर उन नियमो का तोड़ कैसे निकालना हैं? उसमें लग जाते हैं.इतने दिन तक होने वाले खर्च पैसे से जो इंसान पहले से कर्ज में हैं और भी अधिक कर्ज दार बन जाता हैं।
पंच और रिश्ते दार भोज खत्म होते ही, जितनी  कमियाँ रही सेवा में उनका राग गाते हुए अपने घर का रुख करते हैं। पीछे रह जाता हैं वह परिवार जिसमें कमाने वाला एक खाने वाले -दस! अब घर खर्च उठाये या कर्ज उतारे? 
तो बताये कोई मरना कैसे सुधरा? कौन खुश हुआ? 
हर इंसान खुद से प्रण कर ले कि किसी की भी मौत होने पर उस घर में सिर्फ दूर से आने पर ही भोजन किया जाये वो भी सादा। क्युं न अपने आस पास किसी के घर बैठने  (सांत्वना देने) जाये तो सिर्फ पानी और चाय पीकर ही उठ जाये, हो सकता हैं ऐसी कुरीतियाँ अपने आप बंद हो जाये।
इस प्रयास से कोई गरीब परिवार कर्ज से बच जाए। समाज में सहकारिता की भावना से रह कर प्रत्येक परिवार के सुख दुख को समझ कर उसके साथ खड़ा होकर मृत्युभोज जैसी कूरीति को समाप्त करने की पहल समाज के लोगों को ही करनी चाहिए।

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