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Navratra perv |
नवरात्र भारतीय संस्कृति का पवित्र पर्व
भारतीय हिन्दू संस्कृति की परम्पराओं और आस्था के प्रतिक, शक्ति पूजन के सबसे पवित्र दिन तथा
आदिशक्ति मां दुर्गा की उपासना का पावन पर्व शारदीय नवरात्र शनिवार 17 अक्टूबर से शुरू हो रहा हैं। इसके साथ ही मलमास का समापन हो जाएगा। नवरात्र का शुभारंभ इस बार दुर्लभ संयोग के साथ होगा। इसलिए ग्रहीय दृष्टि से शारदीय नवरात्र शुभ और कल्याणकारी होगा। नवरात्र के दौरान नौ दिनों तक घरों, मन्दिरों में विधिविधान से पूजन अर्चना कर भक्त मां भगवती आशीष प्राप्त करेंगे।
इस बार कोरोनावायरस से देश में हर त्यौहार और दिवस प्रभावित हुए हैं इसलिए इस नवरात्रि में होने वाले उत्सव, गरबा, तथा मन्दिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ कम देखने को मिलेगी। तथा मन्दिरों में आवाजाही के भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन का पालन किया जाएगा। नवरात्र को लेकर मन्दिरों में सरकार की गाइड लाइन के अनुसार सिद्धपीठ ललिता देवी, कल्याणी देवी और अलोपशंकरी मंदिर में पूजन-अर्चन की तैयारी की गई है।
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नवरात्र स्थापना फोटो जागृति पथ |
मां दुर्गा के नौ रूप
ये मां दुर्गा (शक्ति) के नौ रूप या नौ अवतार के नाम है नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की अलग-अलग रूप से पूजा अर्चना की जाती है।
१.शैलपुत्री२.ब्रह्मचारिणी३.चन्द्रघंटा४.कूष्माण्डा५.स्कंदमाता६.कात्यायनी७.कालरात्रि८.महागौरी९.सिद्धिदात्री
नवरात्र स्थापना ,पूजन और महत्व
हिन्दू धर्म में मां दुर्गा के नौ रूपों को शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है भगवान राम ने नौ दिन तक शक्ति पूजा की थी तथा मां दुर्गा ने श्री राम को विजयी होने का आशीर्वाद दिया था इस प्रकार रावण के साथ युद्ध में राम को विजय प्राप्त होती है। इस दिन सुबह शाम माता रानी के विभिन्न रूपों की आरती आराधना की जाती है । भजन संध्या का आयोजन किया जाता है। भारत विभिन्न अंचलों में वहां की परम्परा अनुसार त्योहार मनाए जाते हैं।
इस प्रकार नवदुर्गा की पूजा-अर्चना और स्तुति से समृद्धि, खुशहाली तथा जीवन संकट मुक्त होता है मां दुर्गा खुशहाल जीवन का आशीर्वाद प्रदान करती है।
प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं। नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेले लगते हैं । माता के सभी शक्तिपीठों का महत्व अलग-अलग हैं। लेकिन माता का स्वरूप एक ही है। कहीं पर जम्मू कटरा के पास वैष्णो देवी बन जाती है। तो कहीं पर चामुंडा रूप में पूजी जाती है। बिलासपुर हिमाचल प्रदेश मे नैना देवी नाम से माता के मेले लगते हैं तो वहीं सहारनपुर में शाकुंभरी देवी के नाम से माता का भारी मेला लगता है।
नवरात्र पूजा अर्चना और कार्यक्रम
साल 2020 में अधिक मास पड़ने के कारण इस साल नवरात्र का त्योहार एक माह के विलंब से शुरू हो रहा है। यह पर्व शक्ति का रूप देवी दुर्गा की अराधना का त्योहार है। 9 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में भक्त प्याज-लहसुन तक खाना छोड़ देते हैं। साथ ही, कई जगह देवी के भक्त इस दौरान मां जगदम्बा को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं।
नवरात्र की स्थापना से पहले मंदिरों को साफ किया जाता है तथा मन्दिरों की पूजन सामग्री आदि को पवित्र किया जाता है। मूर्तियों को गंगाजल से स्नान करवा कर पूर्ण रूप से स्वच्छ किया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। मन्दिरों में पूजारी पूजा अर्चना के साथ विधिवत मंत्र जाप करते हैं।
शहरों और गांवों में लोग अपने घरों में घी का दीपक जलाकर नवदुर्गा से सुरक्षा और समृद्ध जीवन का वरदान मांगते हैं।
नवरात्र में श्रद्धालु घी की अखंड ज्योति जलाते हैं तथा नौ दिन तक घी की ज्योति अखंड जलती है। भक्त नौ दिन तक उपवास करते हैं। लगातार नौ दिन तक उपवास करने वाले भक्त केवल फलों का आहार करते हैं। नवरात्रि की समाप्ति के साथ ही दसवें दिन विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है।
58 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग
इस बार के शारदीय नवरात्र पर ग्रहीय आधार पर विशेष संयोग बन रहा है। यानी 17 अक्टूबर को 58 वर्षों के बाद शनि, मकर में और गुरु, धनु राशि में रहेंगे। इससे पहले यह योग वर्ष 1962 में बना था। यह संयोग नवरात्र पर्व को कल्याणकारी बनाएगा।
नवरात्र स्थापना अभिजित मुहूर्त
नवरात्र 2020 में स्थापना एवं पूजन का शूभ मुहर्त विभिन्न हिन्दू पंचांगो में बताया गया है । इस प्रकारअभिजित मुहूर्त 10:30 बजे से 12:20 बजे तक है। शेष दिन में किसी भी समय स्थापना पूजन किया जा सकता है
नवरात्र की वैज्ञानिक मान्यता
नवरात्र के पीछे की वैज्ञानिक मान्यता यह है कि पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली वृत संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। विभिन्न प्रकार की बिमारियों के फैलने का खतरा इस मौसम में अधिक रहता है इसलिए इस पावन दिनों में हवन,ज्योति आदि से वातावरण को शुद्ध किया जाता है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है। जिसमे साफ सफाई बर्तनों को धोना घरों , मन्दिरों आदि स्थानों की रंगाई पुताई की जानी चाहिए जिससे वातावरण में शुद्धता होती हैं।
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