नार्गोनो-काराबाख़ पर आर्मेनिया-अजरबैजान के बीच संघर्ष: परिचय, युद्ध घटनाक्रम,कारण, इतिहास तथा रूस और भारत का रूखArmenia-Azerbaijan conflict over Nargono-Karabakh: Introduction, war developments, causes, history and the attitude of Russia and IndiaJagriti PathJagriti Path

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Tuesday, October 20, 2020

नार्गोनो-काराबाख़ पर आर्मेनिया-अजरबैजान के बीच संघर्ष: परिचय, युद्ध घटनाक्रम,कारण, इतिहास तथा रूस और भारत का रूखArmenia-Azerbaijan conflict over Nargono-Karabakh: Introduction, war developments, causes, history and the attitude of Russia and India


Armenia-Azerbaijan war
Armenia-Azerbaijan


आर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध2020: एक नजर में

Armenia-Azerbaijan War 2020: Overview

पिछले दिनों आर्मेनिया और अज़रबैजान दो देशों के बीच तनाव और युद्ध की घटनाएं पूरे विश्व का ध्यानाकर्षण किए हुए हैं रोजाना किसी अखबार या टीवी चैनलों यह मुद्दा सुर्खियों में है पिछले 24-25 दिनों से ज़ारी संघर्ष में दोनों देशों को काफी जान-माल का नुक़सान हुआ है हालांकि यह ताजा खबरें सुनकर आपको लगता होगा कि यह अचानक भड़का युद्ध है तो आपकी गलतफहमी है, यह अचानक होने वाला कोई युद्ध नहीं है यह वर्षों लम्बा विवाद है जिससे समय समय पर हिंसक झड़पें होती रही है इसलिए जानने की कोशिश करेंगे की आखिर क्या मसला है जिससे यह दो देश आपस में लड रहे हैं? कुछ टीवी चैनल विश्व युद्ध के खतरे जैसी आकृषित हेडलाइन दिखा रहे हैं।


क्या यह संघर्ष विश्व युद्ध की घंटी हैं?

Are these conflicts the bells of world war?

हालांकि कुछ अखबारों ने और पत्रकारों ने इस युद्ध को तृतीय विश्व युद्ध की घण्टी बता कर लोगों को चौंकाया जरूर है लेकिन विश्व युद्ध छिड़ने जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि यह दो देशों के बीच आपसी सीमा क्षेत्र का मामला है तथा इस भौतिकवाद की प्रतिस्पर्धा और शान्ति  सिद्धांत के बीच बड़े युद्ध की सम्भावना बहुत कम ही रहती है विश्व में अमेरिका ,रूस,ईरान, इराक जैसी विकसित महाशक्तियां भला युद्ध में क्यो बर्बाद होना चाहेंगी। हां इस दोनों देशों के संघर्ष में कुछ पडौसी देश कूटनीतिक और व्यापारिक फायदा जरूर उठा सकते हैं लेकिन सीधे तौर पर कोई देश किसी देश के साथ युद्ध में कूदना नहीं चाहेंगा। आर्मिनिया और अज़रबैजान दोनों के बीच यह संघर्ष बहुत पुराना है इससे पहले भी इन दोनों देशों की सेनाओं में कई भंयकर युद्ध हो चुके है।



युद्ध में हो रहा जान-माल नुकसान एवं आरोप-प्रत्यारोप

Loss of life and property and allegations in war

वर्तमान में इस युद्ध की  शुरुआत से 19 अक्टूबर तक अज़रबैजान के ख़िलाफ़ जंग में आर्मीनिया के 729 सैनिकों की अब तक मौत हो चुकी है। इससे पहले कई लोगों की जानें जा चुकी है।
हालांकि दूसरी तरफ़ अज़रबैजान अपनी तरफ़ से जानोमाल के किसी किस्म के नुक़सान का कोई ब्योरा नहीं दे रहा है। राष्ट्रपति इलहाम एलियेव ने एक इंटरव्यू में हाल ही में कहा था कि जंग ख़त्म होने के बाद ये जानकारी सार्वजनिक की जाएगी।साथ ही राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने दावा किया है कि उनकी सेना ने दक्षिणी जेबरैल ज़िले के 13 और गांवों पर दोबारा क़ब्ज़ा कर लिया है।
इस बार लम्बे समय से जारी संघर्ष का क्या होगा?,कब समाप्त होगा? यह कहना मुश्किल है क्योंकि यह अभी निश्चित नहीं है कि जल्द आपसी समझौता हो जाए यह युद्ध कुछ महीने और जारी रह रह सकता है। हालांकि रूस मध्यस्थता कर के माहौल शान्त करवाने की कोशिश कर रहा है । मगर दशकों से चली आ रही यह लड़ाई एकदम रूक जाए ऐसा संभव नहीं लग रहा है। चिंता की बात यह है कि इस हमलों में नागरिकों का मारा जाना गलत संकेत है निर्दोष नागरिकों का हमले का शिकार होने की आंशका बनी हुई है।


अब तक का संघर्ष और घटनाक्रम एवं ईरान की धमकी

Struggles and events so far and Iran's threat

आपको बता दें कि नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर अजरबैजान और आर्मीनियाई सेनाओं के बीच 27 सितंबर को संघर्ष शुरू हुआ था, जिसमें अब तक हजारों लोगों की मौत हो चुकी है। 
हाल ही मे यह संघर्ष काफी उग्र होता जा रहा है। लगातार रिहायशी इलाकों पर गिरती मिसाइलें लोगों की जान ले रही है। दोनों के बीच जारी संघर्ष में रिहायशी इमारतों को निशाना बनाया जा रहा है।
हालांकि दोनों ही देशों ने कुछ दिन पहले  रूस की मध्यस्थता के बाद संघर्षविराम के लिए समझौता किया था। हालांकि उस समझौते के बाद भी लड़ाई जारी रही। बीते महीने दोनों देशों के बीच उस विवादित क्षेत्र को लेकर लड़ाई शुरू हो गई है जिसे अंतरराष्ट्रीय जगत अज़रबैजान का हिस्सा मानता है मगर जिस पर आर्मीनियाई लोगों का नियंत्रण है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने एक बयान में आर्मेनिया और अजरबैजान से नागोर्नो-करबाख पर लड़ाई में नागरिकों पर किए गए अत्याचार  और हमलों की कड़ी निन्दा की है तथा हताहत हुए नागरिकों का  सम्मान करने का आह्वान किया है।
ईरान ने कहा है कि अगर काराबाख़ की तरफ़ से ईरान की धरती पर मिसाइल या तोप के गोले आए तो वो इसका जवाब देगा। ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद ख़तीबज़ादे ने कहा,ईरान की धरती पर किसी भी तरह का हमला हुआ, चाहे वो अनजाने में ही किया गया क्यों ना हो, तो फिर ईरान उसका उययुक्त जवाब देगा।



संघर्ष के कारण और विवादित इतिहास

Causes of conflict and disputed history

अजरबैजान देश का परिचय - पूर्व सोवियत गणराज्य, कैस्पियन सागर और काकेशस पर्वत से घिरा यह भूभाग जो एशिया और यूरोप में फैला है।  इसकी राजधानी, बाकू, इसकी मध्ययुगीन दीवार से घिरे आन्तरिक शहरों के लिए प्रसिद्ध है।  इनर सिटी के भीतर शिरवंश के महल, 15 वीं शताब्दी में एक शाही रिट्रीट भी यहां पर है। अजरबैजान में अन्य प्राकृतिक संसाधन हैं, पर्यटन की दृष्टि से बाकू सबसे सुंदर दर्शनीय स्थल हैं। खनिज भण्डार ही यहां बहुल क्षेत्र में है
जिनमें प्राकृतिक गैस, आयोडोब्रोमाइड , सीसा, जस्ता, लोहा और तांबां मुख्य खनिज हैं, एल्यूमीनियम, आम नमक और मार्बल, चूना पत्थर और संगमरमर सहित निर्माण सामग्री पाई जाती है नेफलाइन सिनेटाइट्स भी यहां मिलते हैं।। इसका क्षेत्रफल 87,000 वर्ग किलोमीटर है। यहां की भाषा अजरबैजानी है।

आर्मेनिया देश का परिचय-आर्मेनिया एशिया और यूरोप के बीच  काकेशस पहाडी क्षेत्र में बसा पूर्व सोवियत गणराज्य का एक अलग हुआ एक देश है जो  शुरुआत में ईसाई सभ्यताओं के बीच यह राष्ट्र धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है जिसमें गार्नी का ग्रीको-रोमन मंदिर और अर्मेनियाई चर्च का मुख्यालय  चौथी शताब्दी के ईटमेडज़िन कैथेड्रल शामिल हैं। 
आर्मेनिया 1990 से पहले सोवियत रूस का हिस्सा था जिसे  23 अगस्त 1990 को स्वतंत्रता दी गई थी, लेकिन इसकी स्थापना की घोषणा 21 सितंबर 1991 को की गई थी और बाद में  इसे 25 दिसंबर 1991 को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।  इसकी राजधानी येरेवन है।अरास नदी की घाटी में कपास, शहतूत , अंगूर, खुबानी तथा अन्य फलों, चावल और तंबाकू की खेती होती है। इस देश कि क्षेत्रफल 29,743 वर्ग किलोमीटर है। इसकी राजधानी यरेवन है।

वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद आर्मेनिया और अजरबैजान को आजादी मिली थी। तब सोवियत संघ ने नागोरनो-काराबाख का इलाका अजरबैजान को सौंप दिया था। फिर 1980 के दशक में नागोरनो-काराबाख की  पार्लियामेंट ने खुद को आर्मेनिया का हिस्सा बनाने के लिए वोट किया। तदुपरान्त संघर्ष में 30 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई और 10 लाख से अधिक लोगों को पलायन करना पड़ा था। 1994 में आर्मेनिया की सेना ने नागोरनो काराबाख पर कब्जा कर लिया था। क्षेत्रफल की बात की जाए तो नागोरनो-काराबाख का क्षेत्रफल करीब चवालीस सौ वर्ग किलोमीटर ही है । वहां की ज्यादातर आबादी ईसाई है, ये लोग आर्मेनिया के साथ रहना चाहते हैं और वहां के मुस्लिम तुर्क अजरबैजान का हिस्सा बनना चाहते हैं।
वर्तमान नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच विवाद की शुरुआत वर्ष 1918 में तब हुई थी, जब ये दोनों देश रूसी साम्राज्य से स्वतंत्र हुए थे।



1920 के दशक के प्रारंभ में, दक्षिण काकेशस में सोवियत शासन लागू किया गया और तत्कालीन सोवियत सरकार ने तकरीबन 95 प्रतिशत अर्मेनियाई आबादी वाले नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को अज़रबैजान के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र बन दिया।
यद्यपि स्वायत्त क्षेत्र बनने के बाद भी इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों (आर्मीनिया और अज़रबैजान) के बीच संघर्ष जारी रहा, हालाँकि सोवियत शासन के दौरान दोनों देशों के बीच संघर्ष को रोक दिया है।
मई 1994 में दोनों देशों के बीच संघर्ष को बढ़ते देख रूस ने आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच युद्ध विराम की मध्यस्थता की, किंतु तकरीबन तीन दशकों से यह संघर्ष आज भी जारी है और समय-समय पर संघर्ष विराम उल्लंघन और हिंसा के उदाहरण देखने को मिलते हैं।
अजरबैजान की जनसंख्या में मुसलमान बहुसंख्यक हैं इसलिए आर्मेनिया और अजरबैजान की लड़ाई को ईसाई और मुस्लिम धर्मों के बीच वर्चस्व की लड़ाई माना जाए तो कोई हर्ज नहीं  है । हालांकि कई देश अपने-अपने हितों के हिसाब से समर्थन या विरोध कर रहे हैं। तुर्की इस युद्ध में अजरबैजान का साथ दे रहा है। अजरबैजान में बड़ी संख्या में टर्किश मूल के लोग हैं। आर्मेनिया ने तुर्की पर हालातों को बिगाड़ने का आरोप लगाया है।
तुर्की के साथ पाकिस्तान ने भी अजरबैजान को अपना समर्थन दिया है। तुर्की और पाकिस्तान मिलकर खुद को दुनिया के मुस्लिम देशों का लीडर साबित करना चाहते हैं।


ईरान ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है। ईरान के आर्मेनिया के साथ करीबी संबंध है। ईरान और अजरबैजान पड़ोसी देश हैं और माना जाता है कि ईरान नहीं चाहता कि उसका पड़ोसी ताकतवर हो।
जॉर्जिया की सीमा आर्मेनिया और अजरबैजान दोनों देशों से मिलती है।जॉर्जिया की 88 प्रतिशत जनसंख्या ईसाई है, लेकिन तुर्की के साथ गहरे संबंधों की वजह से जॉर्जिया ने मुस्लिम बाहुल्य देश अजरबैजान का साथ दिया है।
फ्रांस ने दोनों देशों को बातचीत का रास्ता अपनाने की सलाह दी है।फ्रांस में आर्मेनिया से आए लोगों की संख्या काफी अधिक है। रूस और आर्मेनिया के संबंध बहुत खास हैं।आर्मीनिया में रूस का एक मिलिट्री बेस भी है। लेकिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के अजरबैजान से भी अच्छे संबंध हैं इसलिए उन्होंने दोनों देशों से युद्धविराम की अपील की है। अमेरिका ने हिंसा रोकने और शांति से समझौता करने की सलाह दी है।
इस तनाव भरी स्थिति हरा  एक देश अपनी विदेश नीति और स्वार्थों के अनूरूप  आर्मेनिया या अजरबैजान में से किसी एक देश को समर्थन दे रहा है। कुछ देश आर्मेनिया के साथ है तो कुछ देश अज़रबैजान के साथ है।
ध्यातव्य है कि बीते लगभग चार दशक से भी अधिक समय गौरतलब है कि एशिया में आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच चल रहे क्षेत्रीय विवाद और जातीय संघर्ष ने नागोर्नो-करबाख क्षेत्र के आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक विकास को काफी वर्षों से खासा प्रभावित किया है।

कौन सा देश किसके साथ?

Which country with whom?



नार्गोनो-काराबाख़ में शांति बनाए रखने के लिए 1929 में फ़्रांस, रूस और अमरीका की अध्यक्षता में ऑर्गेनाइज़ेशन फ़ॉर सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप मिंस्क ग्रुप की मध्यस्थता में शांति वार्ता शुरू हुई थी। कुछ दिनों पहले मिंस्क ग्रुप की एक बैठक के बाद अमरीका, फ़्रांस और रूस ने नार्गोनो-काराबाख़ में जारी लड़ाई की आलोचना की थी और कहा है कि युद्ध जल्द ख़त्म होना चाहिए।
हालाँकि अज़रबैजान के समर्थन में उतरे तुर्की ने युद्धविराम की मांग को रद्द कर दिया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन ने कहा कि युद्धविराम तभी संभव है जब आर्मीनिया अज़रबैजान के इलाक़े पर अपना कब्ज़ा ख़त्म करे।वहीं, रूस के आर्मीनिया के साथ गहरे संबंध हैं और मौजूदा तनाव के दौरान उसने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की थी लेकिन आर्मीनिया पर इन हमले के बाद  एक बार फिर रूस की और लग रहा है।

भारत के आर्मेनिया-अजरबैजान के साथ संबंध और नीति

India's relations and policy with Armenia-Azerbaijan

भारत की विदेश नीति हमेशा पंचशील आधारित शान्ति और अहिंसा वाली रहीं हैं भारत किसी युद्ध या तनाव की स्थिति में आग में घी डालने वाला काम नहीं करता। भारत शुरुआत से ही विश्व शांति का समर्थक रहा है। इस प्रकार इस सिलसिले में भारत के इन दोनों देशों से अच्छे संबंध हैं और रहे भी है।  इसलिए भारत के लिए ये मुश्किल भरी स्थिति है कि वह किसका समर्थन करें और किसका विरोध।
भारत के साथ मजबूत संबंध आर्मेनिया के लिए भी जरूरी हैं।अजरबैजान, तुर्की और पाकिस्तान के गठबंधन का मुकाबला करने के लिए आर्मेनिया को भारत की जरूरत है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद आर्मेनिया ने भारत का साथ दिया । जबकि अजरबैजान इस के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थक रहा था।
भारत अपनी ऊर्जा आपूर्ति के लिए तेल हेतु अजरबैजान से नजदीकियां रखता है। लेकिन इस तनाव से भारतीय बाजार और तेल की आपूर्ति या आयात में कोई असर पड़ने वाला नहीं है । शायद भारत पर इस युद्ध में तटस्थ रहने वाला है, लेकिन तनाव और बढ़ा तो तेल और गैस और का आयात कम हो जाएगा जिससे भारत में तेल के दामों में बढ़ोतरी हो सकती है।

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