विश्व डाक दिवस और शुरुआत कब और कैसे?
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World post day |
World Post Day 2020: विश्व डाक दिवस 9 अक्टूबर को पूरे विश्व में मनाया जाता है। क्योंकि इसी ही दिन स्विटजरलैंड के बर्न में 1874 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (UPU) की स्थानपना हुई थी। 1969 में जापान की राजधानी टोक्यो में हुए upu कांग्रेस में 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के रूप में घोषित किया गया था।
आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी में भी अवल क्यों है डाक सेवा?
आज हम जानने की कोशिश करते हैं कि लोगों के विचार आदान प्रदान और आवश्यक दस्तावेजों के आवागमन के लिए उस युग में डाक सेवा बहुत महत्वपूर्ण कदम था और लोगों में संचार सुविधाओं को बेहतर बनाने में मील का पत्थर साबित हुआ। लेकिन धीरे-धीरे तकनीकी विकास के साथ टेलिफोन का विकास तथा फेक्स जैसी सुविधाओं ने डाक और डाकघरों के काम को कम किया । बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विश्व कंम्पयूटर साइंस के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित कर लेता है और फिर जमाना आता है सेल फोन और इंटरनेट का, जिसने संचार और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र को अविश्वसनीय रूप से बदल दिया । आधुनिक युग में या कहें कि इस इक्कीसवीं सदी में सूचना प्रौद्योगिकी और संचार सुविधाओं में नई क्रान्ति का उदय हुआ आज हम एक एन्ड्रोयड सेल फोन के माध्यम से बहुत सारे काम कर सकते हैं जिसमें email, pdf send, photo graphics, audio,vedio, live आदि फीचर्स और सुविधाओं का उपयोग करने लगे हैं। अब विश्व केस लेस e-money के उस दौर में है जिससे आपकी बैंक, आपके सारे रिकॉर्ड, यहां तक कि आपके घर के सारे उपकरण भी आपकी जेब में रखे सेल फोन से नियंत्रित होने लगें है। मतलब इंटरनेट ने तो मानव जीवन के लहजे को बदल दिया है आज इंटरनेट व्यक्ति के जीवन का अहम हिस्सा बन गया है ।
क्यों जुड़ा हुआ है प्रेम संबंध से डाक सेवा का खास महत्व?
पुराने समय में प्रेमी और प्रेमिका के बीच विचारों का आदान-प्रदान डाक से सुन्दर और भावनाओं के सरोबार खतों द्वारा होता था पुरानी प्रेम कहानियों में प्रेम पत्रों का विशेष महत्व रहता था हालांकि पुराने समय में ऐसे खतों के वाहक कबुतर और कुछ विशेष पक्षी हुआ करतें थे फिर भी अट्ठारवी और उन्नीसवीं सदी में पोस्ट के माध्यम से प्रेम पत्रों का आदान-प्रदान होता था दूर स्थानों से अपने प्रेमी के पत्रों का इन्तजार प्रेमिकाएं बेसब्री से करती थी।
क्या भविष्य में डाक सेवा का महत्व खत्म हो जाएगा?
हम यह दावा नहीं कर सकते कि आधुनिक टेक्नोलॉजी की इतनी प्रगति के बाद भी हमारी पुरानी पोस्ट सेवा के महत्व में कोई कमी आई है। डाक सेवा संचार की सबसे पुरानी विधि के रूप में जानी जाती है। आज आधुनिक जमाने के साथ ही डाक सेवा बहुत ही पूराने समय से चल रही है। डाक दिवस के रूप में जब लोक संचार के पूराने संसाधनों को याद करते हैं तो वे यह जानकर सोच में पड़ जाते हैं कि पहले लोगों का जीवन कितना अलग था। कुछ तो अपने यहां चिट्ठी आने या किसी को चिट्ठी लिखने बातें याद आ जाती हैं। परिवार जनों का दूर दराज से आने वाले खत और उत्साह उस जमाने की अपनी विशेषता थी। आज हम विश्व के किसी भी कौने से विडियो कालिंग से बात करते हैं तब उस जमाने के पत्र व्यवहार को याद करके असंभीत हो जाते हैं कि लोगों में विचारों के आदान-प्रदान में कितना समय लगता था। मनी आर्डर हो या पोस्टल आर्डर आदि मुद्रा के आदान-प्रदान के साधन हुआ करतें थे सबकुछ उस समय के अनुसार चल रहा था लोगों में उपयोग की दिलचस्पी हुआ करती थी। आज के इस तुफानी रफ्तार वाले युग में भूली बिसरी डाक सेवा याद करते हैं तो आज भी उस डाक सेवा का बहुत महत्व समझ में आता है। क्योंकि आज भी कुछ ऐसे कार्य है जिससे विश्व डाक सेवा अपने अधीन पूर्ण करवाता है। भारत हो या विश्व के अन्य कोई देश में हो डाक विभाग के ऐसे कार्य है जिसे डाक सेवा post के माध्यम से ही उचित ढंग से किये जाते हैं। अगर हम बात करें कि इंटरनेट युग के चरम में डाक सेवा का महत्व खत्म हो जाएगा एसी संभावना बहुत कम है भले ही डिजिटल हस्ताक्षर हो या हार्ड काॅपी भेजने की बात हो। लेकिन मूल दस्तावेज और मूल मुद्रित सामग्री की बात हो उसकी गोपनीयता की बात हो वहां हम डाक सेवा के महत्व को नजरंदाज नहीं कर सकते बल्कि भविष्य में गोपनीयता और मूल सामग्री के आदान-प्रदान के लिए डाक सेवा को ओर भी मजबूत करना होगा।
भारत सहित दुनिया के कई देशों में डाक सेवा उपक्रम में करोड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है तथा प्रत्यक्ष रूप से कर्मचारी इस विभाग से जुड़े हैं। ऐसे में आधुनिक युग में पुरानी डाक सेवा को मजबूत करने की जरूरत है। डाक सेवा केवल विचार और सूचना के आदान-प्रदान के लिए काम नहीं कर रही बल्कि आज डाक विभाग बीमा योजना, बचत, वित्तीय लेनदेन सहित कई कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को संचालित रहा है।
कैसा था विश्व डाक दिवस का इतिहास?
विश्व डाक दिवस का इतिहास 1840 से शुरू होता है। ब्रिटेन में सर रॉलैंड हिल एक नई व्यवस्था को शुरू किया था जिसमें पत्र तैयार किए जाते थे। उन्होंने यही भी नियम बनाया कि स्थानीय सेवा के विशेष वजन के लिए एक तय शुल्क लगेगा। कहा जाता है कि उन्होंने ही दुनिया की पहली अंतरराष्ट्रीय डाक सेवा शुरू की थी।
हालांकि 1963 में कई यूरोपीय और अमेरिकी देशों द्वारा पेरिस में एक कॉन्फ्रेंस आयोजित की जिसमें अंतरराष्ट्रीय डाक सेवा के लिए बेसिक सिद्धांतों को बनाने का अह्वान किया गया।
भारत में डाक सेवा शुरूआत कब और कैसे?
1 जुलाई, 1876 को भारत यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना। सदस्यता लेने वाला भारत प्रथम एशियाई देश था। भारत में डाक सेवाओं का इतिहास बहुत पुराना है। भारत में एक विभाग के रूप में इसकी स्थापना 1 अक्तूबर, 1854 को लार्ड डलहौजी के काल में हुई। डाकघरों में बुनियादी डाक सेवाओं के अतिरिक्त बैंकिंग, वित्तीय व बीमा सेवाएं भी उपलब्ध हैं। एक तरफ जहां डाक-विभाग सार्वभौमिक सेवा दायित्व के तहत सब्सिडी आधारित विभिन्न डाक सेवाएं देता है वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी, जनजातीय व दूरस्थ अंडमान व निकोबार द्वीप समूह जैसे क्षेत्रों में भी उसी दर पर डाक सेवाएं उपलब्ध करावाता है
आपको बता दें कि भारतीय डाक का इतिहास डेढ़ सौ साल पुराना है। भारत में पहली बार वर्ष 1766 में डाक व्यवस्था की शुरुआत की गई। भारत में एक विभाग के रूप में इसकी स्थापना 1 अक्तूबर, 1854 को हुई। भारतीय डाक विभाग 9 से 14 अक्टूबर के बीच विश्व डाक सप्ताह मनाता है। ब्रिटिश आधीन भारत में गर्वनर जनरल लार्ड वारेन हेस्टग्सिं ने कोलकाता में प्रथम डाकघर वर्ष 1774 को स्थापित किया।
इंडिया में सन 1852 में पहली बार चिट्ठी पर डाक टिकट लगाने की शुरुआत हुई तथा महारानी विक्टोरिया के चित्र वाला डाक टिकट 1 अक्तूूबर 1854 को जारी किया गया। भारत में अब तक का सबसे बड़ा डाक टिकट पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर 20 अगस्त 1991 को जारी किया गया था। डाक दिवस मनाने का उद्देश्य है कि ग्राहकों को अच्छी जानकारी देना। डाक दिवस पर बेहतर काम करने वाले कर्मचारियों को पुरस्कृत भी किया जाता है।
भारत और विश्व डाक सेवा के महत्त्वपूर्ण तथ्य
विश्व डाक दिवस को स्विट्जरलैंड के बर्न में 1874 ईस्वी में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) की स्थापना की याद में मनाया जाता है। आज 9 अक्टूबर को डाक दिवस मनाने का उद्देश्य और महत्त्व भी विभिन्नता और यथार्थ लिए है , विश्व डाक दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों और व्यवसाय के रोजमर्रा के जीवन में डाक की भूमिका के साथ-साथ वैश्विक, सामाजिक और आर्थिक विकास में इसके योगदान के लिए जागरूकता लाना है। विश्व डाक दिवस को 1969 ईस्वी में जापान के टोकियो में आयोजित यूपीयू कांग्रेस में विश्व पोस्ट दिवस के रूप में आयोजित किए जाने के लिए चुना गया था। ( UPU यूपीयू )पूरी दुनिया में संचार क्रांति के उद्देश्यों पर यह ध्यान में रखते हुए केन्द्रित रहता है की लोग एक-दूसरे को पत्र लिखें और अपने विचारों को साझा कर सकें।यपीयू के सदस्य देशों को इस समारोह को मनाने के लिए अपनी खुद की राष्ट्रीय गतिविधियों को आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिसमें डाकघरों, मेल केंद्रों और डाक संग्रहालयों में खुले दिनों के संगठन के लिए नए डाक उत्पादों और सेवाओं के परिचय या प्रचार आदि सब कुछ शामिल है।
1 जुलाई, 1876 में भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना था। इस सदस्यता को लेने वाला भारत एशिया का पहला देश है। 1 अक्टूबर, 1854 में भारत सरकार ने डाक के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की थी।
भारत में पहला पोस्ट ऑफिस कोलकाता में 1774 में खोला गया था, भारत में स्पीड पोस्ट की शुरूवात 1986 में की गई थी। भारत में मनी आर्डर सिस्टम की शुरूआत 1880 हुई। दक्षिण गंगोत्री अंटार्कटिका भारत का पहला डाकघर है जो भारतीय सीमा के बाहर है जिसकी स्थापना 1983 में की गई थी। डाक सेवा ने बहुत लम्बा सफर तय किया इक्कसवीं सदी के सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट जैसी वैश्विक सुविधाओं के बावजूद भी पोस्टल सेवा अपने पथ पर अडिगता से डटा हुआ है अपनी असलियत, गोपनीयता और मूल गुणवत्ता को लिए हुए।
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