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पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति के संक्रमण काल में युवाओं के फैसले और सामाजिक मान्यताओं से आहत माता-पिता |
हम आए दिन शहरों की भांति विकसित हो रहे गांवों के युवाओं को शहर के आधुनिक शिक्षण संस्थानों में दाखिले होते देखते हैं या फिर ग्रामीण युवाओं को शहरियों की नक़ल करते पाश्चात्य चकाचौंध में रंगते हुए देखते हैं । धीरे धीरे गांवों के लोगों का रहन-सहन , पहनावा खान-पान आदि शहरों की नक़ल करते हुए देखते हैं। हमारे बुजुर्ग लोग चुपचाप इसे देखते हुए अंगीकृत कर लेते हैं और अधेड़ माता पिता मोर्डन रीति-रिवाज की संतान पंसद भी करते हैं। लेकिन रोकने वाले इस आधुनिकता के पहिए को रोक भी तो नहीं सकते । फिर क्या युवा अपनी जवानी में सनातन बंधनों से मुक्त होकर स्वयं फैसले लेते हैं।
और आए दिन हम सुनते हैं कि बुर्जुग माता पिता अपनी संतान के सामने फैसले को बदलने के लिए गिड़गिड़ाते है भीख मांगते हैं।
दूसरी तरफ कुछ लोग इस फैसलों के विरुद्ध अपनी ही प्रिय संतान को मारने और सबक सिखाने पर उतारू हो जाते हैं जबकि यह तो अपराध है समाधान नहीं।
इसका समाधान हैं ही नहीं। आइए जानते हैं कि समस्या कहा है?
यह पंरपरागत संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति का संगम बिन्दू है यहा पर हमारे युवा और समाज सामंजस्य स्थापित करने में विफल हो रहें हैं । यहां हम दो संस्कृतियों के मिश्रण में संतुलन खो रहे हैं हम आधुनिक युग के साथ न चलकर परंपरागत संस्कृति में रह गये और नई पीढ़ी वर्तमान पाश्चात्य संस्कृति की अग्रसर है तो भला तालमेल कहां रहेगा?
ऐसी दुविधा में समाज और युवाओं को तय करना है कि हमें किस संस्कृति की और मुड़ना है । दोष किसी में भी नहीं है। शहर के किसी धनवान घर या पूंजीपतियों के परिवार में लड़की या लड़का अपनी पंसद से जीवनसाथी चुनने का फैसला लेते हैं तो समझदार परिवार या पिता खुशी से स्वीकार कर देता है, लड़के का स्वागत करते हैं , हंसी खुशी से उत्सव के साथ लड़की की विदाई या सगाई शादी जो भी करते हैं लेकिन
हमारे ग्रामीण लोग जिस संस्कृति में जीना चाहते हैं उसमें यह कलंक मानते है। लेकिन क्या करें आधुनिक पीढ़ी वर्तमान में जीना चाहती है और वो इस समाज के अस्वीकार्य फैसले आए दिन लेते हैं और माता पिता संनातन में विश्वास करते हुए दुःख प्रकट करते हैं।
इस समस्या से निजात पाने के दो सास्ते है या हम अपनी संतान को अपनी पूरा संस्कृति में ले जाएं अगर हम यह करने में सक्षम नहीं है तो आधुनिक पीढ़ी के जीवन ढंग को स्वीकार कर लें। लेकिन पहला रास्ता बहुत कठीन है क्योंकि हमारी पूरी दिनचर्या आधुनिक युग में ढलने लग रही है हम चाह कर भी रूढ़ीवादी युग में नहीं लौट सकते।
यह गंभीर समस्या नहीं है यह भारत में दो संस्कृतियों के संक्रमण काल का परिणाम है ।
एक तरफ हमें बेटियां स्वतंत्र , शिक्षित,और आधुनिक चाहिए दूसरी तरफ हमें उनकी जीवन शैली परम्परागत चाहिए यह संभव नहीं है।
या तो हमें वापिस पंरपरागत अवैज्ञानिक लौकिक समाज की और लौट जाना चाहिए या फिर समय की मांग में ढलने की आदत डाल लेनी चाहिए।
हम कितने मूर्ख है जो बड़े घरों की लड़कियां या लड़के या बालीवूड में बड़ी बड़ी सेलिब्रिटीज हो या आधुनिक पूंजीपतियों की युवा संतानें जो अपने जीवन में अपने पंसद की चार चार शादियां करती है या करते है आधुनिक प्रेम प्रसंग और आधुनिक परिप्रेक्ष्य से जीवन साथी चुनने का फैसला लेते हैं उसे हमारा युवा वर्ग आदर्श मानता हैं उन्हें आइकन मानता है। दूसरी और बेबस रूढ़ीवादी समाज इसे सहजता से स्वीकार कर लेता हैं। दुसरी तरफ हमारे रूढ़ीवादी समाज के लोग भी अपनी संतान को सैलिब्रिटिज बनाना चाहती है लेकिन उनका व्यवहार और फैसले अपने समाज के अनूकूल चाहिए यह संभव नहीं है। यह वो ही समाज है जिनको बेटियों की पंसद के विरुद्ध समाज और परिजनों द्वारा तय वर मानना उचित लगता था। गलत कुछ भी नहीं है । अपनी जगह पर आधुनिक युग भी सही है। आज के युवाओं द्वारा अपनी पसंद से जीवन साथी चुनना या प्रेम-प्रसंग में रहना अनुचित कहां है। लेकिन हमारे उस जीवन ढंग में जरूर अनुचित है जिसमें हमारा समाज परंपरा से जुड़ा है। लेकिन हमने उस पुराने जीवन ढंग की तय सीमाएं बदली ही नहीं और आधुनिकता को प्रवेश करवाने के सारे कपाट खोल दिए। लेकिन जब इसी समाज का युवा आधुनिक परिप्रेक्ष्य में कोई फैसला लेता है तो हमें अपने समाज में यह गंवारा नहीं होता है। यहां यह दुविधा का विषय बनता है । अंतर्जातीय अड़चनें पैदा होती है। फिर अपनी ही प्रिय संतान को समाज से बाहर किया जाता है प्रताड़ित किया जाता है। लेकिन ऐसे मामले आए दिन तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। हालांकि शहरों में यह सहज और सायान्य है लेकिन यह ही मामले दूर दराज गांवों में होते हैं तो कोतूहल का विषय बनते हैं। यह भी सही है कि सनातनी समाज में माता-पिता अपनी बेटी को या बेटे को अपनी इच्छा विरुद्ध एसे फैसले लेते हुए देखकर बहुत दूखी होते हैं , लज्जित होते हैं क्योंकि परम्परागत समाज ने इसकी सीमा हीन और लज्जित पैमाने पर रखी है। लेकिन दुर्भाग्य से वही समाज इस भौतिकवादी तुफानी बदलाव को रोकने की जगह बढ़ावा देना भी चाहता हैं। इसे लज्जित मानने वाले समाज के कुछ पूंजी वादी परिवारों के बच्चे जो शहरों में रहकर अपनी पसंद के जीवन साथी चुनते हैं वे उन्हें सम्मान का पर्याय मानकर स्वीकार कर लेते हैं गरीब परिवार पार्टी फंक्शन में जाकर तालियां भी बजाते हैं लेकिन यह मामला जब निम्न परिवार में हो तब शर्म और लज्जा का विषय बन जाता है। इसलिए इसे समस्या नहीं समझकर मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है। हम इंसानों की स्वभाविक मनोवृत्तियों को कुचलने की कोशिश करें उस से पहले हमें वातावरण और परिस्थितियों का भी ख्याल रखना जरूरी है।
नजरिया और समय के पहिए की चाल के अनुकूल होना जरूरी है।
इसलिए हमें तय करना है कि हमें इस संस्कृति संक्रमण में समाज के नजरिए को कैसे बदलना है।
हर चीज के साइड इफेक्ट्स है आज हर पिता सपना देखता है कि उसकी बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त करें , आधुनिक पहनावा पहने, अच्छी नौकरी करें , मतलब आज के माता-पिता अपनी संतानों को वर्तमान की तकनीक, संसाधन ,विकास और भौतिक प्रगति के साथ जोड़ने के सपने को लेकर उनको आधुनिक ,भौतिकवादी और आलीशान आरामदायक व्यवसायिक ,सामाजिक जीवन के मैदान में उतारते हैं फिर संताने जब इसी ढंग से व्यवहार करने लगती है तो दुःख महसूस करते हैं लेकिन इन्हें कौन समझाए कि इस आधुनिक डगर के यह साइड इफेक्ट्स है जो अवश्य दिखेंगे । जिसे हम चाह कर भी पाबंदी नहीं लगा सकते।
इसलिए जब कोई लड़की माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध कोर्ट में विवाह कर ले या लड़का ऐसा कर लें तो ऐसी घटनाएं बुरी लगने लगती है। समाज को बुरा क्यो लगें? जब हमें इस भौतिकवादी युग के उपभोग का लालच भी है और परिणाम स्वीकार्य भी नहीं।
हमारा समाज अभी तक आडम्बरों को साथ लेकर चल रहा है और आधुनिक भौतिकवादी युग का उपभोग भी करना चाहता है जो संभव नहीं है क्योंकि जो रूढ़ीवादी परम्पराओं वाला समाज जो पाश्चात्य युग से चाह रहा है वह लौटाने के लिए है नहीं भौतिकवादी युग के पास!
आज हम बेटियों को पुलिस , डाक्टर, पायलट देखना चाहते हैं और साथ में घूंघट ! नहीं ! हमें इस अपेक्षा को छोड़ देना चाहिए।
हम बेटे को विदेश में इंजिनियर देखना चाहते हैं और उसका वहां विदेशी महिला से विवाह स्वीकार नहीं! यह हो नहीं सकता। इस पाश्चात्य संस्कृति और युग को स्वीकर कर के उपभोग करके हम इसे कोचते फिरते हैं यह गलत है। हमें आधुनिक सुविधाएं चाहिए सेल फोन चाहिए , इंटरनेट चाहिए , लेकिन इसके उपयोगकर्ताओं का बदलता व्यवहार स्वीकार नहीं ऐसा हो नहीं सकता। इसलिए यह गंभीर मुद्दा नहीं है क्योंकि गंभीर मुद्दा होता तो कानुन में स्वीकार्य नहीं होता आधुनिक कानून निर्माताओं और बुद्धिजीवियों को इस समय का आभास था इसलिए इस युग में होने वाले साइड इफेक्ट्स को स्वीकार्यता दे दी। और हमारा रूढ़ीवादी समाज आधुनिक भौतिकवादी युग को स्वीकार भी कर रहा है लेकिन इसके रास्ते पर चलना नहीं चाहता। जबकि इसके रुख में चलना भी जरूरी है।
इसलिए अपनी संतान को इस संस्कृति संक्रमण काल में सामंजस्य और विवेक के धरातलीय प्रभाव में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है युवाओं को संवेदनशील, आदर्श, नैतिक और शुद्ध संस्कारों के लिबास पहनाने कि कोशिश करनी चाहिए कहीं आपकी बेटी या बेटी भौतिकवादी युग का उपभोग करने के बाद भी इसके दुष्प्रभावों से बच सकें।
छोटा उदाहरण- आपकी बेटी या बेटी सेल फोन या इंटरनेट पर कामूक अश्लील विज्ञापन देखेंगे इसे आप रोक नहीं सकते क्योकि अर्द्धनग्न , अश्लील, कामुक विज्ञापन और सामग्री इस टूल का हिस्सा है। लेकिन आपकी संतान इसके देखने के बाद पोर्न विडियो देखने की कोशिश करें या कामुक आचरण करे या इस सामग्री से घृणा करने लगे; यह बात माता पिता और परिवार के दिए संस्कारों और आदर्श जीवन शिक्षा पर निर्भर करेगा।
लेख पब्लिकेशन चेतावनी
यह लेख तात्कालिक समाज में युवाओं की विकसित हो रही नवीन सोच और परंपरागत विचारधारा पर निजी विचार है। किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित नहीं है।
This article not for legal proposal.
Posted by RameRA KUMAR
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