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International child Girl's Day |
अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत
साल 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस(International Day of the Girl Child) के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन साल 2011 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने गर्ल चाइल्ड डे यानि की शिशु बालिका दिवस को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में अपनाए गए एक प्रस्ताव को पारित किया था। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लड़कियों को उनके अधिकार के प्रति जागरूक करना और उन्हें समाज में समान दर्जा दिलाना है। आज भी दुनियाभर में लड़कियों को कुछ करने से पहले समाज की कुरीतियों और ताने सहने पड़ते है। इस बार की इंटरनेशनल डे ऑफ़ गर्ल चाइल्ड 2020 की थीम है “With Her: A Skilled Girl Force” यानी की “उसके साथ: एक कुशल लड़की का बल"अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बालिका दिवस मनाने की पहल एक गैर-सरकारी संगठन 'प्लान इंटरनेशनल' प्रोजेक्ट के रूप में शुरुआत हुई। इस संगठन ने "क्योंकि में एक लड़की हूँ" नाम से एक अभियान भी शुरू किया। इसके बाद इस अभियान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने के लिए कनाडा सरकार से संपर्क किया। फिर कनाडा सरकार ने 55वें आम सभा में इस प्रस्ताव को रखा. अंतत: संयुक्त राष्ट्र ने 19 दिसंबर, 2011 को इस प्रस्ताव को पारित किया और इसके लिए 11 अक्टूबर का दिन चुना। इस प्रकार पहला अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर, 2012 को मनाया गया और उस समय इसकी थीम थी "बाल विवाह उन्मूलन" करना था।
भारतीय सरकार ने भी बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए काफी योजनाओं को लागू किया है जिसके तहत "बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओं" एक उल्लेखनीय योजना है। इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकार भी अन्य महत्वपूर्ण योजनायें शुरू कर रही है। भारत में भी 24 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।
नारीशक्ति और लैंगिक असमानता की विचारधारा
आज के युग में काबिलियत को लेकर महिला और पुरुष में कोई भेद नहीं है और भेद करना भी अपराध के समान है। आज लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देना ही न्याय संगत है क्योंकि नारी शक्ति आज हर क्षेत्र में अपनी धाक जमाने हुए हैं विज्ञान , अन्तरिक्ष अभियान, चिकित्सा, विमान उड़ाने,सेना, खेल , राजनीति आदि हर क्षेत्र में नारी पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है तो महिलाओं के कौशल को पुरुषों से तुलना करना भी उनके अपमान के समान है।
पहले समय में नारियों को केवल चारदीवारी में कैद रखा जाता था पुरुष प्रधान समाज में नारियों को अबला, कमजोर आदि संज्ञाएं देकर हमेशा पर्दे के पीछे रखा जाता था। और यहां तक कि इसी मानसिकता के चलते महिलाओं पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार हुआ करते थे । लैंगिक असमानता की मानसिकता ने महिलाओं को पंगु बना दिया था इस वजह से आदिकाल में महिलाएं कई प्रकार की कूप्रथाओं की शिकार हुई । लेकिन उन्नीसवी शताब्दी के आरंभ में लोकतांत्रिक स्वरूप , संविधान, समान शिक्षा आदि नवाचारों से महिलाएं बहुत तेजी से आगे बढी और साबित कर दिया कि वे किसी से कम नहीं हैं लेकिन अवसर प्रदान नहीं करने पर वे पिछड़ हुई थी।
कैसी है विश्व में बालिकाओं की सुरक्षा ?
हालांकि नवयुग में लैंगिक असमानता खत्म हुई माना जा रहा है लेकिन आज भी बालिकाओं और महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को जानेंगे तो चौंक जाएंगे। भारत सहित पुरे विश्व में हर घंटे में महिला और बालिकाओं के साथ किसी न किसी प्रकार का अत्याचार होता है। हम आज लोकतांत्रिक व्यवस्था के परिष्कृत काल में पहुंच गए हैं आज महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी होनी चाहिए लेकिन इनके बावजूद भी महिलाओं के साथ शोषण इंगित करता है आज भी पुरानी लैंगिक असमानता की मानसिकता से महिलाओं को आए दिन शोषण और अपमान का सामना करना पड़ता है पुरुष प्रधान की सोच से लाखों बालिकाएं शिक्षा से वंचित रह जाती है । हालांकि वर्तमान में विभिन्न देशों में शिक्षा के अधिकार तथा वैश्विक स्तर के अभियानों से बालिकाओं की शिक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है आज बालिकाएं उच्च शिक्षा प्राप्त करके प्रत्येक क्षेत्र में अविश्वसनीय योगदान देकर अपनी काबिलियत के झंडे गाड़ रही है। फिर ऐसा क्या कारण है कि इस स्थति में भी गरीब और शिक्षा से वंचित बालिकाओं के साथ सामाजिक अपराध होते हैं तथा उनका शोषण होता है । आज आए दिन बालिकाओं के साथ बलात्कार और हत्याओं की खबरें सुनते हैं , देखते हैं । ऐसे क्या कारण है कि इतने प्रयासों के बावजूद भी बालिकाओं के साथ हो रहे अत्याचारों में कमी नहीं आई जो कि इस विकसित संसार में पूर्ण रूप से आनी चाहिए थी। महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा के लिए हजारों कानून और आयोग होने के बावजूद बालिकाएं सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि भारत में बालिकाओं के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार के तेजी से बढ़ रहें हैं। हर दिन सैकड़ों मामले दर्ज होते हैं जिसमें बालिकाओं के साथ किसी न किसी प्रकार से बुरा व्यवहार किया जाता है। हालांकि निर्भया कांड के बाद भी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति हुई है जिसका जिक्र करना भी मुश्किल है और लज्जित करने वाला है इस घटनाओं और आए दिन दर्द हो रहें नये मामलों की बात की जाए तो हम निसंदेह कह सकते हैं कि आज भी बालिकाएं सुरक्षित नहीं है।
कैसी है भारत में बालिकाओं की स्थिति और सुरक्षा?
बालिकाओं के लिये ये बहुत जरुरी है कि वो सशक्त,समान, सुरक्षित और बेहतर माहौल प्राप्त करें। उन्हें जीवन की हर सच्चाई और कानूनी अधिकारों से अवगत होना चाहिये। उन्हें इसकी जानकारी होनी चाहिए तथा उनके पास अच्छी शिक्षा, जागरुकता,पोषण, और स्वास्थ्य देख-भाल का अधिकार है। जीवन में अपने उचित अधिकार और सभी चुनौतियों का सामना करने के लिये उन्हें बहुत अच्छे से कानून सहित घरेलु हिंसा की धारा 2009, बाल-विवाह रोकथाम एक्ट 2009, दहेज रेकथाम एक्ट 2006 आदि से अवगत होना चाहिये। हमारे देश में, महिला साक्षरता दर अभी भी 53.87% है और युवा लड़कियों का एक-तिहाई कुपोषित हैं। भारत में विभिन्न सरकारों ने बालिकाओं के अधिकारों और उनकी स्थति मजबूत करने के लिए समय समय पर विभिन्न कार्य किए हैं जिससे सकारात्मक परिणाम सामने आए। लेकिन इन। सब के बावजूद भी ग्रामीण इलाकों में बाल-विवाह और शिक्षा से वंचित, तथा शहरों में आए दिन बालिकाओं के साथ दरिंदगी , बलात्कर, आदि घटनाएं तेजी से बढ़ रही है एसीड अटेक, हत्या जैसी क्रुरता की जाती है। इन सब नकारात्मक कारणों के बावजूद भी भारत में बालिकाओं को प्रोत्साहित करने में कोई कमी नहीं है। लेकिन कुछ खामियों के चलते तथा बदलते सांस्कृतिक स्वरूप तथा कानुन व्यवस्था राजनीतिक, भाई-भतीजावाद आदि से दुषित हो कर
शिथिल हो जाती है जिससे बालिकाओं के साथ अत्याचार करने वाले असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद हो जाते हैं।
बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना और नारा
हालांकि बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ जैसी योजना लागू है भारत में शुरू की गई है “कन्या शिशु को बचाओ और इन्हें शिक्षित करो” इस योजना को भारतीय सरकार के द्वारा कन्या शिशु के लिए जागरूकता का निर्माण करने के लिए और महिला कल्याण में सुधार करने के लिए शुरू किया गया है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना (बीबीबीपी) महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और परिवार कल्याण मंत्रालय एवं मानव संसाधन विकास की एक संयुक्त पहल है। लड़कियों की सामाजिक स्थिति में भारतीय समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव लाने के लिये इस योजना का आरंभ किया गया है।
इस योजना का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 22 जनवरी 2015 को हरियाणा राज्य के पानीपत जिले में किया था। हरियाणा में इसलिए किया क्योंकि हरियाणा राज्य में उस समय 1000 लड़कों पर सिर्फ 775 लड़कियां ही थी। यह वहां का लिंगानुपात चौंकाने वाला था। इस योजना को शुरुआत में पूरे देश के 100 जिलों में जहां पर सबसे अधिक लिंगानुपात गड़बड़ाया हुआ था वहां पर इस योजना को प्रभावी तरीके से लागू किया गया और अगले वर्षों में इसे पूरे देश में लागू किया गया। इस प्रकार अनेक योजनाओं के लागु होने के बावजूद भी हमारी बेटी रात को आठ बजे के बाद सुरक्षित चल नहीं सकती यह भय आज भी बना रहता है जो कि हमारे लिए शर्म की बात है। हकीकत है कि रात को अकेले चलना या किसी जगह से घर आना खतरे से खाली नहीं है क्योंकि कुछ कलयुगी राक्षसों के कारनामे ऐसे होते हैं कि कुछ बिटियाएं रास्ते में बलात्कार और हत्या की शिकार हो गई जो कभी घर लौट कर नहीं आई। इन घटनाओं का सिलसिला थमा नहीं है हर मिनट हो रही ऐसी अमानवीयता घटनाओं से हम अंदाज लगा सकते हैं कि भारत में बेटियों को सुरक्षित और मजबूत बनाने में अब भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। जिससे हमारी बालिकाएं कभी भी कहीं भी निडर होकर चले तथा उनको किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक क्षति न पंहुचे लेकिन दुर्भाग्य से आज बलात्कर और शारीरिक शोषण के मामले तेजी से बढ़ रहें हैं और अपराधी खुले घुमते है यही बड़ी विडंबना है कि बालिकाएं पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है हमारे राष्ट्र और समाज को देश की के सांस्कृतिक , राजनैतिक, तथा सुरक्षा तंत्र में बहुत सुधार करने की आवश्यकता है जिससे बेटियां सुरक्षित और चहुंमुखी रूप से विकसित हो जिससे हम शान से बालिका दिवस मना सकें।
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