
सूचना का अधिकार दिवस

भारत: सूचना का अधिकार अधिनियम 2005
15 जून 2005 को भारत में सूचना का अधिकार कानून को अधिनियमित किया गया और पूर्णतया 12 अक्टूबर 2005 को सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू कर दिया गया।
इसलिए इस दिन को सूचना अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाए तो कोई हर्ज नहीं है। सूचना का अधिकार को अंग्रेजी में राईट टू इन्फॉरमेशन कहा जाता है, जिसका तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार। जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना के अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य प्रणाली और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है। इस प्रकार भारत में इस कानून को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से पूर्व नौ राज्यों ने इसे पहले से लागू कर रखा था, जिनमें तमिलनाडु और गोवा ने 1997, कर्नाटक ने 2000, दिल्ली ने 2001, असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं महाराष्ट्र ने 2002 तथा जम्मू-कश्मीर ने 2004 में लागू कर दिए थे।
सूचना के अधिकार की बुनियाद और आधारशिला
सूचना के अधिकार की मांग राजस्थान से प्रारम्भ हुई। राज्य में सूचना के अधिकार के लिए 1990 के दशक में जनान्दोलन की शुरूआत हुई, जिसमें मजदूर किसान शक्ति संगठन (एम.के.एस.एस.) द्वारा अरूणा राय की अगुवाई में भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए जनसुनवाई कार्यक्रम की शुरूआत हुई थी| 1989 में केन्द्र में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद बी.पी. सिंह की सरकार सत्ता में आई, जिसने सूचना का अधिकार कानून बनाने का वायदा किया था। 3 दिसम्बर 1989 को अपने पहले संदेश में तत्कालीन प्रधानमंत्री बी.पी. सिंह ने संविधान में संशोधन करके सूचना का अधिकार कानून बनाने तथा शासकीय गोपनीयता अधिनियम में संशोधन करने की घोषणा की थी| किन्तु बी.पी. सिंह सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद भी इस कानून को लागू नहीं कर किया जा सका| वर्ष 1997 में केन्द्र सरकार ने H.D. शौरी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करके मई 1997 में सूचना की स्वतंत्रता का प्रारूप प्रस्तुत किया था किन्तु शौरी कमेटी के इस प्रारूप को संयुक्त मोर्चे की दो सरकारों ने दबाए रखा। वर्ष 2002 में संसद ने ‘सूचना की स्वतंत्रता विधेयक’ को पारित किया। इसे जनवरी 2003 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, लेकिन इसकी नियमावली बनाने के नाम पर इसे लागू नहीं किया गया। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकार ने पारदर्शिता युक्त शासन व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के लिए 12 मई 2005 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को संसद से पारित करवाया, जिसे 15 जून 2005 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली और अन्ततः 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया। इसी के साथ सूचना की स्वतंत्रता विधेयक 2002 को निरस्त कर दिया गया।
विश्व में सूचना के अधिकार का स्वरूप
विश्व में सबसे पहले स्वीडन ने सूचना का अधिकार कानून को 1766 में लागू किया था। इस कारण स्वीडन को सूचना के अधिकार कानून की जनक कहा जाता है। स्वीडन में सूचना मांगने वाले को तत्काल और निःशुल्क सूचना देने का प्रावधान है। इस प्रकार सूचना का अधिकार भारत सहित लगभग अस्सी देशों में लागू है।
सूचना का अधिकार और जनता का उपयोग और जागरूकता
हालांकि 2005 में सूचना के अधिकार के लागु होने के बावजूद भी आम जनता और जरूरतमंद लोगों को इस अधिकार के उपयोग के बारे में जानकारी और जागरूकता नहीं है। इस कानुन के लागु होने के कई सालों बाद भी बहुत कम लोग ही इसका उपयोग कर पाए हैं। क्या कारण रहे हैं कि आज भी आम आदमी किसी शक्तिशाली संगठन और विभाग से सूचना मांगने में कतराता है। लेट लतीफी और विभागों में कार्यो की शिथिलता के चलते समय पर सूचना उपलब्ध नहीं करवाई जाती है तथा कुछ विभाग अपने आंकड़े तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं या फिर अधर झूल में लटका देते हैं। यह अधिकार लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण होना चाहिए , मौलिक अधिकारों की मजबूती के लिए यह अधिकार बहुत महत्वपूर्ण साबित होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश इस अधिकार के उपयोग में लोगों की दिलचस्पी बहुत कम रही है। भ्रष्टाचार और विभागों में आम जनता के शोषण को रोकने के लिए यह अधिकार मील का पत्थर साबित होना चाहिए था। क्यों की सूचना के अधिकार से प्रशासन और विभागों में पारदर्शिता आती हैं। जितनी अधिक पारदर्शिता होगी उतनी ही विभागीय कार्यवाही में इमानदारी और गुणवत्ता आएगी। भारत में सूचना के अधिकार में काफी महत्वपूर्ण विषयों और विभागों को बाहर रखा है हालांकि देश की सुरक्षा और गोपनीयता के लिए कुछ विभागों को आरटीआई से बाहर रखना बहुत जरूरी भी है। इस अधिकार के उपयोग की बात करें तो लोगों की बेरूखी ही रही है । यह सवाल उठता है कि सूचना के अधिकार को मजबूत और शक्तिशाली बनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? इस कानुन को मजबूत करने लिए अब भी जनता को जागरूक करने की आवश्यकता है तथा देश की जनसंख्या में साक्षरता दर में वृद्धि करना भी जरूरी है जब देश में लोग साक्षर भी नहीं होंगे तो सूचना मांगेंगे कैसे? इसके साथ साथ सूचना के अधिकार से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं को अपनी कार्यशैली में इमानदारी और त्वरितता लानी होगी तथा सूचना मांगने वाले निवेदन का सहयोग करना होगा तभी इस अधिकार का सुनियोजित तरीके से उपयोग हो सकेगा।
सूचना के अधिकार का संशोधित स्वरूप 2019
भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जीतेंद्र सिंह ने 19 जुलाई, 2019 को लोकसभा में सूचना का अधिकार (संशोधन) बिल, 2019 पेश किया। यह बिल सूचना का अधिकार एक्ट, 2005 में संशोधन हो गया था जिसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए।
इस संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार तय करेगी। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि RTI अधिनियम की धारा-13 में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध किया गया है। इसमें कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते और शर्ते क्रमश: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होंगी। इसमें यह भी उपबंध किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश: निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगा ।
गौरतलब हो कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन तथा भत्ते एवं सेवा शर्तें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान हैं। वहीं केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग, सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है। ऐसे में इनकी सेवा शर्तों को सुव्यवस्थित करने की जरूरत थी।
सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 की धारा 13 और 16 में संशोधन के लिए विधेयक लाया गया है. मूल अधिनियम की धारा-13 में केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच साल या 65 साल की आयु तक (जो भी पहले हो) निर्धारित किया गया है।
विधेयक इस प्रावधान को समाप्त करने की बात करता है और केंद्र सरकार को इस पर फैसला लेने की अनुमति देता है. धारा 13 में कहा गया है कि "मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान ही होंगी। लेकिन विधेयक इसे बदलकर सरकार को वेतन तय करने की अनुमति देने का प्रावधान करता है।
मूल अधिनियम की धारा 16 राज्य स्तरीय मुख्य सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों से संबंधित है। यह राज्य-स्तरीय मुख्या सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों के लिए पांच साल (या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो) के लिए कार्यकाल निर्धारित करता है।
संशोधन का प्रस्ताव है कि ये नियुक्तियां “केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की गई अवधि” के लिए होनी चाहिए. जबकि मूल अधिनियम राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तों को "चुनाव आयुक्त के समान" और राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन और अन्य शर्तों को राज्य सरकार के मुख्य सचिव के "समान" निर्धारित करता है।
यह संशोधन प्रस्तावित करता है कि वेतन और कार्यकाल की अवधि "केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किए जा सकते हैं।
सूचना के अधिकार के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान-
•1.प्रथम प्रावधान- समस्त सरकारी विभाग,पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रही गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थान आदि विभाग इसमें शामिल हैं। पूर्णतया निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं। लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है।
इस प्रकार इस अधिकार के अधिनियम के तय दायरे में आने वाली संस्थाओं को सूचना उपलब्ध करवाना अनिवार्य है।
•2.द्वितीय प्रावधान- प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना अधिकारी बनाए गए हैं, जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं। विभिन्न आवेदन का लेखा-जोखा और उनमें चाही गई सूचना के लिए कार्रवाई करेंगे।
•3.तृतीय प्रावधान- जनसूचना अधिकारी का दायित्व है कि वह 30 दिन अथवा जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) मांगी गई सूचना उपलब्ध कराए। मतलब जनसूचना अधिकारी निहित समय में नामित संस्था से सूचनाउपलब्ध करवाने का कार्य निष्पादन करेगा।
•4.चतुर्थ प्रावधान-यदि जनसूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25,000 तक का जुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही, उसे सूचना भी देनी होगी। मतलब सूचना उपलब्ध नहीं करवाने पर जूर्माना लगेगा।
•5.पंचम प्रावधान- किसी भी लोक सूचना अधिकारी को यह अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का कोई भी कारण पूछे। सूचना मांगने वाले अभ्यर्थी से कोई कारण नहीं पूछा जाएगा।
•6.छष्ठम प्रावधान-सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस देनी होगी, जिसके लिए केन्द्र सरकार ने आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस तय की है। लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, जबकि बीपीएल कार्डधारकों को आवेदन शुल्क में छूट प्राप्त है।
•7.सप्तम प्रावधान-दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होगी। केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है। हालांकि अन्य राज्यों में थोड़ा अन्तर हो सकता है।
•8.अष्टम प्रावधान- यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह मानता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होगी।
•9.नवम प्रावधान- लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते हैं।
•10.दशम प्रावधान- जनसूचना अधिकारी कुछ मामलों में सूचना देने से मना कर सकता है। जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती, उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है। लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है। खासकर वो सूचना जिसे संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता। उसे किसी आम व्यक्ति को भी देने से मना नहीं किया जा सकता है।
•11.एकादश प्रावधान- यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते हैं या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करते हैं, या फिर दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित जनसूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है।
•12.द्वारदश प्रावधान- यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 60 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे सम्बंधित हो) के पास करनी होती है। जहां से वांछित सूचना उपलब्ध करवाने की कार्रवाई की जा सके।
इस प्रकार सूचना का अधिकार अधिनियम भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी को कम करने तथा संस्थानिक कार्यो में पारदर्शिता लाने के लिए जनता के पास एक महत्वपूर्ण हथियार है जिसका उपयोग केवल नियमों के भरोसे नहीं बल्कि प्रशासन और सरकार को सूचना मांगने वाले अभ्यर्थी की सहायता और सहयोग की जरूरत से है तथा लापरवाही करने वाले अधिकारियों पर उचित कार्रवाई से इस अधिकार का सूनियोजित उपयोग हो सकता है तथा इस कानुनी हथियार को मजबूत किया जा सकता है। जो कि संवैधानिक व्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण और जरूरी है।
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