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Eid-ul- Adha 2020 |
ईद-उल-अजहा
1 अगस्त 2020 शनिवार को दुनियाभर में ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार मनाया जा रहा है। देशवासी एक दूसरे को मुबारकबाद दे रहे हैं।जगह-जगह लोग मस्जिदों में नमाज अदा करते दिख रहे है। ईद-उल-फितर के अलावा और ईद-उल-अजहा (Eid-ul-Adha 2020) इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। इस त्यौहार पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है इसलिए इसे ईद-उल-अजहा बकरीद (Bakrid) को कहते हैं। ईद-उल-अजहा के खास मौके पर जम्मू और कश्मीर में 1 और 2 अगस्त को छुट्टी रहेगी। इससे पहले ईद की छुट्टी 31 जुलाई और 1 अगस्त को प्रस्तावित की गई थी, लेकिन अब ईद-उल-अजहा का त्योहार 1 अगस्त को मनाए जाने के चलते जम्मू और कश्मीर में ईद की छुट्टी 1 और 2 अगस्त को रहेगी।
शेष भारत के अन्य राज्यों राजस्थान आदि में एक अगस्त को छुट्टी रहेगी। कोरोनावायरस के प्रकोप के चलते देश और दुनिया में प्रत्येक त्योहार प्रभावित हुए हैं क्योंकि आपसी दूरी बनाए रखना भी अपने आप में एक चुनौती है तो विभिन्न त्यौहारों और मेलों में कोरोना का विशेष ध्यान रखा जा रहा है साथ ही त्यौहारों को मनाने का आनंद भी लिया जा रहा है।
भारत जैसे सर्वधार्मिक देश में मुस्लिम भाईयों को हिन्दू सहित अनेक धर्मों के लोग बधाई देते हैं। हालांकि कुछ लोग मुस्लिमों के इस पाक त्यौहार के खिलाफ बोलते हैं ईर्षा रखतें हैं और कुर्बानी का विरोध भी करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है हिन्दू धर्म में भी कुर्बानी की पंरपरा है। जिसमें बच्चे के जन्म होने के बाद जात की रस्म अदा की जाती है तब पशु बलि दी जाती है। हमें धर्म और आस्था पर सवालिया निशान लगाते समय प्रत्येक धर्म और उसकी मान्यताओं के बारे में अवश्य जान लेना चाहिए। रोचक बात तो यह है कि अधिकतर हिन्दू लोगों का पशुपालन व्यवसाय है । हिन्दु लोग भी बकरी पालन करते हैं तथा बकरों को बेचते हैं ईद के मौके पर इन बकरों के भाव में बहुत तेजी आती हैं। कुछ विशेष नस्ल के बकरे के भाव पर बोली लगती है। तो हम कह सकते हैं कि त्यौहार भले ही किसी भी धर्म के अप्रत्यक्ष रूप से हर धर्म के लोगों को यह त्यौहार प्रभावित करते हैं भले ही रोजगार के रूप में हो बाजारों की सजावट और रौनक से हो। यह त्यौहार भले ही अलग-अलग अंदाज में मनाएं जाते हो लेकिन देश की सांस्कृतिक, धार्मिक, भाईचारे आदि के प्रतीक हैं। यह देश के लोगों को शान्ति, सौहार्द और आपसी प्रेम को बढ़ाते हैं।
इसलिए मनाया जाता है यह त्यौहार
इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार, कहा जाता है अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा। इसलिए ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है।
इस्लाम धर्म में ईद-उल-अजहा का विशेष महत्व है। इस्लामिक मान्यता के मुताबिक हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा की राह में कुर्बान किया था। तब खुदा ने उनके जज्बे को देखकर उनके बेटे को जीवनदान दिया था। इसी कुर्बानी की याद में विश्व के अनेक मुस्लिम देशों में यह त्यौहार मनाया जाता है।
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 12वें महीने की 10 तारीख को ईद उल अजहा का त्योहार मनाया जाता है। ईद उल फितर के करीब 70 दिनों के बाद यह त्योहार मनाया जाता है। मीठी ईद के बाद यह इस्लाम धर्म का प्रमुख त्योहार है। यह फर्ज-ए-कुर्बानी का दिन है। इस त्योहार पर गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन लोग गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन करवाकर ईद उल अजहा की मुबारकबाद देते हैं और रिश्तेदारों को भोजन करवाकर बड़े धूमधाम से ईद का यह त्यौहार मनाने है।
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