रक्षाबंधन पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व है। यह भाई एवं बहन के भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व है। इस दिन बहन भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांधती है तथा उसके दीर्घायु जीवन एवं सुरक्षा की कामना करती है।
भारत में श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन पर्व
मनाया जाता है। उत्तर भारत में जहां यह कजरी-पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है, वहीं पश्चिमी भारत में इसे नारियल-पूर्णिमा कहते हैं। रक्षाबंधन और श्रावण पूर्णिमा ये दो अलग-अलग पर्व हैं जो उपासना और संकल्प का अद्भुत समन्वय है। और एक ही दिन मनाए जाते हैं। पुरातन व महाभारत युग के धर्म ग्रंथों में इन पर्वों का उल्लेख पाया जाता है।
इस पर्व को राखी, श्रावणी, सावनी, और सलूनों के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन राखी के धागे को कवच सा शक्तिशाली माना गया है, जो कच्चे सूत, रंगीन कलावे और रेशमी धागे से निर्मित है। राखी का यह धागा रक्षा के संकल्प का पवित्र प्रतीक है। यह आंतरिक और बाह्य भय के उन्मूलन का पर्व है।
राखी बांधने का मुहुर्त :-
श्रावण पूर्णिमा 2020 सोमवार शुभ का चोघड़िया :प्रातः 9:30 से 11 बजे तक रहेगा।
अभिजित-मुहूर्त : दोपहर 12:18 से1:10 बजे तक रहेगा।
लाभ -अमृत का चोघड़िया : दोपहर 4:02 से 7:20 बजे तक रहेगा ।
मिथिला पंचागों को मुताबिक सोमवार को श्रावण पूर्णिमा रात 08.35 बजे तक है। सुबह 08.35 में भद्रा समाप्ति हो जायेगी।
सन 2020 में भाई बहिन के अटूट विश्वास और प्रेम का त्यौहार रक्षाबंधन 3 अगस्त को पूरे देश में मनाया जा रहा है। हालांकि कोरोना के संकट के कारण बाजारों और आवागमन में थोड़ी पाबंदी भी रहेगी। लेकिन कुछ भी हो भाई बहिन के इस पवित्र पर्व पर सभी बहिनें उत्साह में हैं। उनका भाई के प्रति प्रेम और विश्वास में कोई कमी नहीं है।
रक्षाबंधन का इतिहास और राखी का प्रचलन
बहन द्वारा भाई को रक्षासूत्र बांधने का यह चलन कब से शुरु हुआ यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतिहास में रक्षाबंधन का जिक्र जरूर मिलता है।
एक किंवदंती प्रचलित है जिससे कहा जाता है कि राजा बलि से भगवान श्री कृष्ण ने तीन कदम जमीन मांगी थी क्योंकि राजा बलि की सत्य की डगर कितनी मजबूत है इसकी परीक्षा लेने के लिए। जब भगवान ने अपने कदमों से जमीन को मापना शुरू किया तो दो कदमों में ही पूरी पृथ्वी माप ली राजा बलि ने अपना दृढ सत्य रखने के लिए तीसरा कदम अपनी पीठ पर रखने को कहा जैसे ही भगवान ने बलि की पीठ पर कदम रखा तो राजा बलि सहित भगवान श्री कृष्ण पाताल लोक में पहुंच गए। तो बलि ने हठ कर के भगवान का पेर पकड़ लिया और मृत्युलोक पर जाने से रोक दिया। इधर राधा रानी पतिव्रता का पालन कर रही थी भगवान का मूंह देखकर ही भोजन करती थी। तो कुछ दिन बीत जाने के बाद राधा रानी का बुरा हाल हो गया । भगवान श्री कृष्ण का कहीं अता-पता भी नहीं था। इतने राधिका जी में नारद के पास जाकर भगवान श्री कृष्ण का पता लगाने को कहा। नारद ने भगवान कृष्ण के बारे में पता लगा दिया लेकिन वहां से लाना नामुमकिन था । इसलिए राधा रानी स्वय नारद जी के साथ उस स्थान पर पहुंचे जहां भगवान कृष्ण को बलि ने बन्धक बना रखा था । राधा रानी ने पहली बार बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा और भाई मान कर बहन की रक्षा करने का वादा करवा कर अपने पति भगवान श्री कृष्ण को बलि के छुड़वा कर ले आए ।
हालांकि कहीं यह कथा भगवान वामन अवतार और लक्ष्मी से संबंधित बताते हैं जिसमें भगवान वामन बलि के एक वचन में भगवान रसातल में बलि के पास कैद हो गये थे तब लक्ष्मी जी बलि को भाई बनाकर रक्षासूत्र बांध कर भूलोक पर ले आते हैं।
एक उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी का माना जाता है। कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचा कर रक्षा सूत्र का फर्ज निभाया था।
भारतीय इतिहास के अनुसार राखी का बंधन
भारतीय इतिहास में ऐसा ही एक और उदाहरण मिलता है,
1535 में कर्णावती चित्तौड़में दूसरा जौहर गुजरात के बादशाह बहादुर शाह के आक्रमण के समय महाराणा सांगा की महारानी कर्णावती ने जब बहादुरशाह से अपनी रक्षा के लिए हुमायूं को राखी बांधी थी। हुमायूं उसकी रक्षा की पूरी कोशिश करता है, लेकिन दुश्मनों के बढ़ते कदम को रोक नहीं पाया था और अंतत: रानी कर्मावती जौहर व्रत धारण कर लिया था।
संस्कृत दिवस एवं गुरुकुल से राखी की परंपरा
जब शिक्षा गुरुकुल में दी जाती थी उस समय गुरुकुल प्रवेश और वहां गुरुओं द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का अपना ही महत्व था। उस समय जब श्रावण मास की पूर्णिमा को गुरुकुल में प्रवेश होता था तथा शिक्षा का आरंभ होता था तो गुरु और शिष्य एक दूसरे को राखी बांधकर सम्मान और शिष्य गुरु की आज्ञापालन का संकल्प लेते थे। ऐसा माना जाता है कि गुरुकुल में संस्कृत में ही वेदों की शिक्षा दी जाती थी। इसलिए संस्कृत दिवस भी इसी दिन मनाया जाता था आज भी इसी दिन संस्कृत दिवस मनाया जा रहा है। इसलिए माना जाता है कि गुरुकुल से रक्षासूत्र बांधने की प्रकिया शुरू हुई होगी।
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