आज इतिहास का वह महान दिन है क्योंकि आज ही के दिन शहीद ए आजम क्रांतिकारी अमर शहीद ऊधम सिंह को फांसी दी गई थी । भारत भूमि का वह सपूत जिसने अंग्रेज़ो से बदला लेने के लिए अपनी जवानी और जीवन के हर ज़र्रे को मातृभूमि के लिए न्यौछावर कर दिया था। अमर बलिदानी उधम सिंह जैसे महान सैनानी इस धरती पर विरले ही जन्म लेते हैं। जिनके जीवन की गाथा आज भी करोड़ो भारतियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी अमर गाथा और दृढ़ संकल्प आज भी हर भारतीय के सीने को देशभक्ति से ओतप्रोत कर देता है। उधम सिंह ऐसे कर्मठ, साहसी, और बहादूर देशभक्त थे जिन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों का बदला लेने के लिए खूंखार शेर की तरह आंखों में सपना पाल लिया था। हम कल्पना नहीं कर सकते कि वह महान सेनानी बदला लेने के लिए लंदन चले गय और कितना दर्द अपने सीने में पाल कर उसने मातृभूमि के कर्ज चुकाने के लिए अपने जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य में शामिल किया। एक ऐसा दृढ़ संकल्प अपने सीने में पाल कर अंजाम दिया जिसे दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकी। कहा जाता है कि अपनी किताब के बीच पिस्तोल को छुपाकर किस तरह अपनी वर्षों की लगी आग को अंजाम दिया।
आइए जानते हैं शहीद ए आजम उधम सिंह के बारे में उनका जीवन कितने संघर्ष भरा रहा फिर भी उन्होंने अपनी जिंदगी मातृभूमि की रक्षा के लिए लगा दी।
शहीद ए आजम उधम सिंह का जीवन परिचय
उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले में सुनाम स्थान पर हुआ। उनकी माता का देहान्त दो वर्ष की उम्र में ही हो गया था। कुछ समय बाद जब वे 7 वर्ष के थे, उनके पिता सरदार निहाल सिंह उन्हें अनाथ छोड़कर चल बसे। उनके सम्बन्धियों में से किसी ने भी उनकी आर्थिक सहायता नहीं की। विवश होकर उधमसिंह को अपने छोटे भाई साधूसिंह के साथ एक गाँव से दूसरे गाँव में सहारे के लिए भटकना पड़ा। अन्त में सुनाम के तत्कालीन सुप्रसिद्ध समाज-सेवी सरदार चन्दासिंह ने उनकी मदद की और अमृतसर के पुतलीघर स्थान पर स्थित अनाथालय में उन्हें भर्ती करा दिया। इस अनाथालय में रहकर उन्होंने अपनी मातृभाषा पंजाबी का ज्ञान प्राप्त किया साथ-साथ उर्दू और हिन्दी लिखना भी वे सीख गए। कालान्तर में वे अच्छी अंग्रेजी भी सीख गए थे। किन्तु उनकी आजीविका का साधन हाथ की कारीगरी था।
बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में पंजाब की जनता में असन्तोष व्याप्त था। पंजाब के गवर्नर सर डेजिल एबटसन ने 1907 में वायसराय को जो रिपोर्ट दी थी, उसने स्थिति को और अधिक विद्रोहपूर्ण बना दिया। इस रिपोर्ट में पंजाब में फैली ‘नई हवा' का उल्लेख था और भारत सरकार को यह चेतावनी दी गयी थी कि यदि इस समय स्थिति को संभालने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए तो पंजाब की हालत काबू से बाहर हो जाएगी। पंजाब के किसान भी सरकार द्वारा नहरों पर लगाए गए अतिरिक्त करों से बहुत असन्तुष्ट थे। शहरी जनता भी प्रगतिशील आन्दोलनों से प्रभावित हो रही थी। सारे पंजाब में हडतालें हो रही थी और कई जगह के दंगे यह जाहिर करते थे कि प्रदेश की हालत बिगड़ी हुई है। अमृतसर जो कि शान्तिप्रिय स्थान माना जाता था, अनायास स्वतन्त्रता संग्राम का केन्द्र बन गया और स्वाधीनता के लिए कहीं-कहीं कई गुप्त कार्य प्रारम्भ हो गए। उधम सिंह भगत सिंह से बहुत प्रभावित थे। दोनों दोस्त भी थे। एक चिट्ठी में उन्होंने भगत सिंह का जिक्र अपने प्यारे दोस्त की तरह किया है। भगत सिंह से उनकी पहली मुलाकात लाहौर जेल में हुई थी। इन दोनों क्रांतिकारियों की कहानी में बहुत दिलचस्प समानताएं दिखती हैं।दोनों का ताल्लुक पंजाब से था।दोनों ही नास्तिक थे। दोनों हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार थे। दोनों की जिंदगी की दिशा तय करने में जलियांवाला बाग कांड की बड़ी भूमिका रही।
जलियांवाला बाग अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास का एक छोटा सा बगीचा है।ये बाग आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी बयां कर रहा है, जब उसने सैकड़ों लोगों को अंधाधुंध गोलीबारी से मार डाला था। 13 अप्रैल 1919 की तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है।
दोनों को लगभग एक जैसे मामले में सजा हुई। भगत सिंह की तरह उधम सिंह ने भी फांसी से पहले कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ने से इनकार कर दिया था।
बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में पंजाब की जनता में असन्तोष व्याप्त था। पंजाब के गवर्नर सर डेजिल एबटसन ने 1907 में वायसराय को जो रिपोर्ट दी थी, उसने स्थिति को और अधिक विद्रोहपूर्ण बना दिया। इस रिपोर्ट में पंजाब में फैली ‘नई हवा' का उल्लेख था और भारत सरकार को यह चेतावनी दी गयी थी कि यदि इस समय स्थिति को संभालने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए तो पंजाब की हालत काबू से बाहर हो जाएगी। पंजाब के किसान भी सरकार द्वारा नहरों पर लगाए गए अतिरिक्त करों से बहुत असन्तुष्ट थे। शहरी जनता भी प्रगतिशील आन्दोलनों से प्रभावित हो रही थी। सारे पंजाब में हडतालें हो रही थी और कई जगह के दंगे यह जाहिर करते थे कि प्रदेश की हालत बिगड़ी हुई है। अमृतसर जो कि शान्तिप्रिय स्थान माना जाता था, अनायास स्वतन्त्रता संग्राम का केन्द्र बन गया और स्वाधीनता के लिए कहीं-कहीं कई गुप्त कार्य प्रारम्भ हो गए। उधम सिंह भगत सिंह से बहुत प्रभावित थे। दोनों दोस्त भी थे। एक चिट्ठी में उन्होंने भगत सिंह का जिक्र अपने प्यारे दोस्त की तरह किया है। भगत सिंह से उनकी पहली मुलाकात लाहौर जेल में हुई थी। इन दोनों क्रांतिकारियों की कहानी में बहुत दिलचस्प समानताएं दिखती हैं।दोनों का ताल्लुक पंजाब से था।दोनों ही नास्तिक थे। दोनों हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार थे। दोनों की जिंदगी की दिशा तय करने में जलियांवाला बाग कांड की बड़ी भूमिका रही।
जलियांवाला बाग घटना और उधम सिंह की भीष्म प्रतिज्ञा
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पर्व पर पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी सैनिकों ने गोलियां चलाकर सैकड़ों लोगों को मार डाला था। इस गोलीकांड में कई लोग घायल भी हो गए थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड ब्रिटिश इतिहास की वो घिनौनी घटना है जो अंग्रेजों के अत्याचारों की नीचता दर्शाता है।जलियांवाला बाग अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास का एक छोटा सा बगीचा है।ये बाग आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी बयां कर रहा है, जब उसने सैकड़ों लोगों को अंधाधुंध गोलीबारी से मार डाला था। 13 अप्रैल 1919 की तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है।
दोनों को लगभग एक जैसे मामले में सजा हुई। भगत सिंह की तरह उधम सिंह ने भी फांसी से पहले कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ने से इनकार कर दिया था।
उधम सिंह का अंतिम पत्र और शिकायत
अपने अन्तिम पत्र में उन्होंने शिकायत की थी कि उनके मित्रों द्वारा जो पुस्तकें उन्हें भेजी गई वे पुस्तकें जेल के गवर्नर द्वारा उनको दी नहीं गई हैउधमसिंह के शब्दों में - “जेल का गवर्नर बहुत सख्त आदमी है। हर पांचवें मिनट में उसका दिमाग बदल जाता है। उसने तमाम आदमियों को अपनी धार्मिक पुस्तकें पढ़ने की अनुमति दी हुई है। वे चर्च मे भी जाते हैं। लेकिन अंग्रेजों की इस जेल में शायद मैं ही एक अकेला प्राणी हूँ जिसके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। मुझे मालूम है कि वह मुझसे नफरत करता है। लेकिन उनकी परवाह कौन करता है। मैंने इन जैसे शरीफ आदमी पहले भी बहुत देखें है। लेकिन मैं यह मानता हूँ कि हमारी धार्मिक पुस्तकें बिना स्नान किए नहीं पढ़नी चाहिए और यहाँ तो मुझे 20 दिन के बाद ही यह सुविधा दी जाती है। मुझे अत्यन्त दुख है कि मैने व्यर्थ आपको पुस्तकें भेजने के लिए कष्ट दिया और डाक में इतना पैसा खर्च कराया। मैं अदालत से पूछूगा कि क्या ऐसी पुस्तकें जेल में पढ़ना अपराध है?"
शहीद ए आजम उधम सिंह जलियांवाला बाग नरसंहार से आक्रोशित थे। जनरल डायर की 1927 में ब्रेन हेमरेज से मौत हो चुकी थी । ऐसे में उधम सिंह के आक्रोश का निशाना बना उस नरसंहार के वक़्त पंजाब का गवर्नर रहा माइकल फ्रेंसिस ओ’ डायर जिसने नरसंहार को उचित ठहराया था। 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में बैठक थी । वहां माइकल ओ’ डायर भी स्पीकर्स में से एक था।उधम सिंह उस दिन टाइम से वहां पहुंच गए।
अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक किताब में छिपा रखी थी। किताब के पन्नो को पिस्तौल के आकार में काटकर उसमें सेट कर दी थी। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर को निशाना बनाया। उधम की चलाई हुई दो गोलियां डायर को लगी जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई थी।
अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक किताब में छिपा रखी थी। किताब के पन्नो को पिस्तौल के आकार में काटकर उसमें सेट कर दी थी। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर को निशाना बनाया। उधम की चलाई हुई दो गोलियां डायर को लगी जिससे उसकी तुरंत मौत हो गई थी।
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Amar Shaheed Udham Singh |
जेल के अन्तिम दिन
ब्रिक्स्टन जेल से उनको पेण्टोनविला जेल में तब्दील किया गया जहां उन्हें 31 जुलाई 1940 को फांसी दे दी गई। अपनी राष्ट्र के अपमान का बदला लेने के लिए वे 21 वर्ष तक प्रतीक्षा करते रहे।
उधम सिंह धर्मनिरपेक्ष या सर्व धर्म में यकीन रखते थे। और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर मोहम्मद आज़ाद सिंह रख लिया था जो तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है वे न सिर्फ इस नाम से चिट्ठियां लिखते थे बल्कि यह नाम उन्होंने अपनी हाथ पर भी गुदवा लिया था ।
देश के बाहर फांसी पाने वाले उधम सिंह दूसरे क्रांतिकारी थे। उनसे पहले मदन लाल ढींगरा को कर्ज़न वाइली की हत्या के लिए साल 1909 में फांसी दी गई थी। संयोग रहा 31 जुलाई को ही उधम सिंह को फांसी हुई थी और 1974 में इसी तारीख को ब्रिटेन ने इस क्रांतिकारी के अवशेष भारत को सौंपे। उधम सिंह की अस्थियां सम्मान सहित उनके गांव लाई गईं जहां आज उनकी समाधि बनी हुई है। आज हम सब के लिए यह अमर शहीद हमारी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरणा का स्रोत है और हम सब भारतीयों को उनके जीवन के प्रति गहरी श्रद्धा है। युगों युगों तक अमर शहीद को हर भारतीय के दिल में ऊधम सिंह की तस्वीर रहेंगी। आजादी के हर किस्से में उनको पहली कड़ी में याद किया जाएगा और सम्मान दिया जाएगा।
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