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Tiger day |
बाघ Tiger संरक्षण को प्रोत्साहित करने, उनकी घटती संख्या के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए साल 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की घोषणा हुई थी। इस सम्मेलन में मौजूद विभिन्न देशों की सरकारों ने 2022 तक बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया था। तब से हर वर्ष पूरे विश्व में 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। बाघ विश्व में कई देशों में किसी न किसी संगठन या संस्था के प्रतीक चिन्ह के रूप में देखा जा सकते हैं वहीं बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है। यह देश की शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि और धीरज का प्रतीक माना जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को छोड़कर पूरे देश में पाया जाता है। शुष्क खुले जंगल, नम और सदाबहार वन से लेकर मैंग्रोव दलदलों तक इसका क्षेत्र फैला हुआ है। चिंता की बात ये है कि बाघ को वन्यजीवों की लुप्त होती प्रजाति की सूची में रखा गया है। लेकिन खुशी की बात ये है कि 'सेव द टाइगर' जैसे राष्ट्रीय अभियानों की बदौलत देश में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है।
बाघ जंगल में रहने वाला मांसाहारी स्तनपायी पशु है। यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और ताकतवर पशु है। यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप-समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है। यह भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया में अधिक संख्या में पाया जाता है।
टाइगर, (पैंथेरा टाइग्रिस), बिल्ली परिवार का सबसे बड़ा सदस्य, केवल ताकत और क्रूरता के लिए जाना जाता है। इसलिए जंगल में इसका खौफ रहता है। बाघ अपनी पूरी श्रृंखला में लुप्तप्राय है, जो रूसी सुदूर पूर्व से उत्तर कोरिया, चीन, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों से होकर इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप तक पाया जाता है। साइबेरियाई, या अमूर, बाघ (पी। टाइगरिस अल्टिका) सबसे बड़ा है, जिसकी लंबाई कुल लंबाई में 4 मीटर (13 फीट) है और इसका वजन 300 किलोग्राम (660 पाउंड) तक है। भारतीय या बंगाल, बाघ सबसे अधिक है और कुल बाघों की आबादी का लगभग आधा हिस्सा है। नर मादा से बड़े होते हैं और लगभग 1 मीटर की एक पूंछ को छोड़कर लगभग 1 मीटर और लगभग 2.2 मीटर की लंबाई की ऊंचाई प्राप्त कर सकते हैं; वजन 160-230 किलोग्राम (350-500 पाउंड) है, और दक्षिण से बाघ उत्तर की तुलना में छोटे हैं।
इसे वन, दलदली क्षेत्र तथा घास के मैदानों के पास रहना पसंद है। इसका आहार मुख्य रूप से सांभर, चीतल, जंगली सूअर, भैंसें जंगली हिरण , गौर और मानव के पालतू जानवर हैं। अपने बड़े वजन और ताकत के अलावा बाघ अपनी धारियों से पहचाना जा सकता है। बाघ की सुनने, सूँघने और देखने की क्षमता तीव्र होती है। बाघ अक्सर पीछे से हमला करता है। धारीदार शरीर के कारण शिकार का पीछा करते समय वह झाड़ियों के बीच इस प्रकार छिपा रहता है कि शिकार उसे देख ही नहीं पाता। बाघ बड़ी एकाग्रता और धीरज से शिकार करता है। यद्यपि वह बहुत तेज रफ्तार से दौड़ सकता है, भारी-भरकम शरीर के कारण वह बहुत जल्द थक जाता है। इसलिए शिकार को लंबी दूरी तक पीछा करना उसके बस की बात नहीं है। वह छिपकर शिकार के बहुत निकट तक पहुँचता है और फिर एक दम से उस पर कूद पड़ता है। यदि कुछ गज की दूरी में ही शिकार को दबोच न सका, तो वह उसे छोड़ देता है। हर बीस प्रयासों में उसे औसतन केवल एक बार ही सफलता हाथ लगती है क्योंकि कुदरत ने बाघ की हर चाल की तोड़ शिकार बननेवाले प्राणियों को दी है। बाघ सामान्यतः दिन में चीतल, जंगली सूअर और कभी-कभी गौर के बच्चों का शिकार करता है।
एशियाई जंगली विडालों में तेंदुए के बाद बाघ भौगोलिक रूप से सबसे ज़्यादा फैला हुआ है और व्यापक आवासीय विविधता के अनुरूप उसने अपने आप को ढाल लिया है। बाघ की सबसे ज़्यादा आबादी घने वनों के अतिरिक्त उस भूभाग में पाई जाती है, जहाँ बड़ी संख्या में शिकार पाया जाता है, जैसे ऊँची घास के मैदान, मिश्रित घास के मैदानी जंगल और पतझड़ एवं अर्द्ध पतझड़ वन। पूर्वी एशिया के शीतोष्ण और उष्णोष्ण वनों में विकसित विडालवंशियों में सबसे विशालकाय यह बाघ गर्मी को अब भी अपेक्षाकृत कम ही सहन कर पाता है।
बाघ जंगल में रहने वाला मांसाहारी स्तनपायी पशु है। यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और ताकतवर पशु है। यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप-समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है। यह भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया में अधिक संख्या में पाया जाता है।
टाइगर, (पैंथेरा टाइग्रिस), बिल्ली परिवार का सबसे बड़ा सदस्य, केवल ताकत और क्रूरता के लिए जाना जाता है। इसलिए जंगल में इसका खौफ रहता है। बाघ अपनी पूरी श्रृंखला में लुप्तप्राय है, जो रूसी सुदूर पूर्व से उत्तर कोरिया, चीन, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों से होकर इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप तक पाया जाता है। साइबेरियाई, या अमूर, बाघ (पी। टाइगरिस अल्टिका) सबसे बड़ा है, जिसकी लंबाई कुल लंबाई में 4 मीटर (13 फीट) है और इसका वजन 300 किलोग्राम (660 पाउंड) तक है। भारतीय या बंगाल, बाघ सबसे अधिक है और कुल बाघों की आबादी का लगभग आधा हिस्सा है। नर मादा से बड़े होते हैं और लगभग 1 मीटर की एक पूंछ को छोड़कर लगभग 1 मीटर और लगभग 2.2 मीटर की लंबाई की ऊंचाई प्राप्त कर सकते हैं; वजन 160-230 किलोग्राम (350-500 पाउंड) है, और दक्षिण से बाघ उत्तर की तुलना में छोटे हैं।
इसे वन, दलदली क्षेत्र तथा घास के मैदानों के पास रहना पसंद है। इसका आहार मुख्य रूप से सांभर, चीतल, जंगली सूअर, भैंसें जंगली हिरण , गौर और मानव के पालतू जानवर हैं। अपने बड़े वजन और ताकत के अलावा बाघ अपनी धारियों से पहचाना जा सकता है। बाघ की सुनने, सूँघने और देखने की क्षमता तीव्र होती है। बाघ अक्सर पीछे से हमला करता है। धारीदार शरीर के कारण शिकार का पीछा करते समय वह झाड़ियों के बीच इस प्रकार छिपा रहता है कि शिकार उसे देख ही नहीं पाता। बाघ बड़ी एकाग्रता और धीरज से शिकार करता है। यद्यपि वह बहुत तेज रफ्तार से दौड़ सकता है, भारी-भरकम शरीर के कारण वह बहुत जल्द थक जाता है। इसलिए शिकार को लंबी दूरी तक पीछा करना उसके बस की बात नहीं है। वह छिपकर शिकार के बहुत निकट तक पहुँचता है और फिर एक दम से उस पर कूद पड़ता है। यदि कुछ गज की दूरी में ही शिकार को दबोच न सका, तो वह उसे छोड़ देता है। हर बीस प्रयासों में उसे औसतन केवल एक बार ही सफलता हाथ लगती है क्योंकि कुदरत ने बाघ की हर चाल की तोड़ शिकार बननेवाले प्राणियों को दी है। बाघ सामान्यतः दिन में चीतल, जंगली सूअर और कभी-कभी गौर के बच्चों का शिकार करता है।
एशियाई जंगली विडालों में तेंदुए के बाद बाघ भौगोलिक रूप से सबसे ज़्यादा फैला हुआ है और व्यापक आवासीय विविधता के अनुरूप उसने अपने आप को ढाल लिया है। बाघ की सबसे ज़्यादा आबादी घने वनों के अतिरिक्त उस भूभाग में पाई जाती है, जहाँ बड़ी संख्या में शिकार पाया जाता है, जैसे ऊँची घास के मैदान, मिश्रित घास के मैदानी जंगल और पतझड़ एवं अर्द्ध पतझड़ वन। पूर्वी एशिया के शीतोष्ण और उष्णोष्ण वनों में विकसित विडालवंशियों में सबसे विशालकाय यह बाघ गर्मी को अब भी अपेक्षाकृत कम ही सहन कर पाता है।
बाघों की जिंदा प्रजातियां:
साइबेरियन टाइगर, बंगाल टाइगर, इंडोचाइनीज टाइगर, मलायन टाइगर, सुमात्रन टाइगरविलुप्त हो चुकीं प्रजातियां:
बाली टाइगर, कैस्पियन टाइगर, जावन टाइगर
भारत का प्रोजेक्ट टाइगर और बाघ परियोजना
विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के अनुसार, वर्तमान में दुनिया में केवल 3,900 जंगली बाघ हैं। रिपोर्टों के अनुसार, 20वीं शताब्दी की शुरुआत के बाद से लगभग 95 फीसदी वैश्विक बाघों की आबादी खत्म हो गई है। उपर्युक्त समझौते में शामिल देशों का मानना है कि 2022 तक बाघों की आबादी दोगुनी हो जाएगी।बाघ परियोजना (Project Tiger)
का आरम्भ भारत सरकार द्वारा 7 अप्रैल 1973 को तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तथा। केंद्रीय वन्यपशु समिति’ के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ कर्ण सिंह के नेतृत्व में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, उत्तराखंड में बहुप्रतीक्षित परियोजना प्रोजेक्ट टाईगर (बाघ बचाओ परियोजना) की शुरुआत किया गया था।
राष्ट्रीय पशु बाघ को संरक्षित करने के लिये। ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ लॉन्च किया था । 1972 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट बनने के बाद कॉर्बेट पार्क में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया । प्रारंभ में इसके लिए 9 राज्यों में एक-एक अभ्यारण्य को चुना गया । वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर (WWF) तथा भारतीय वन्य प्राणी बोर्ड द्वारा 1970 में गठित एक विशेष कार्य दल की संस्कृति पर बाघ परियोजना 1973 में प्रारंभ की गई थी।
कैलाश सांखला बाघों के संरक्षण के लिए काफी लोकप्रिय हुए हैं। इन्हें “भारत का टाइगर मैन” के रूप में भी जाना जाता था, और 1973 में भारत में स्थापित एक संरक्षण कार्यक्रम प्रोजेक्ट टाइगर के गठन में भी शामिल थे। 1989 में इन्होंने टाइगर ट्रस्ट की स्थापना की थी।
राष्ट्रीय पशु बाघ को संरक्षित करने के लिये। ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ लॉन्च किया था । 1972 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट बनने के बाद कॉर्बेट पार्क में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया । प्रारंभ में इसके लिए 9 राज्यों में एक-एक अभ्यारण्य को चुना गया । वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर (WWF) तथा भारतीय वन्य प्राणी बोर्ड द्वारा 1970 में गठित एक विशेष कार्य दल की संस्कृति पर बाघ परियोजना 1973 में प्रारंभ की गई थी।
कैलाश सांखला बाघों के संरक्षण के लिए काफी लोकप्रिय हुए हैं। इन्हें “भारत का टाइगर मैन” के रूप में भी जाना जाता था, और 1973 में भारत में स्थापित एक संरक्षण कार्यक्रम प्रोजेक्ट टाइगर के गठन में भी शामिल थे। 1989 में इन्होंने टाइगर ट्रस्ट की स्थापना की थी।
भारत का ‘टाइगर राज्य’
भारत में मध्य प्रदेश को टाइगर राज्य के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां देश के कुल 8 बाघ रिजर्व एवं कुल बाघों की संख्या का लगभग एक तिहाई बाघ पाए जाते हैं।इसी टाइगर रिजर्व अभियान के अंतर्गत अब तक 50 टाइगर रिजर्व बनाए जा चुके हैं।
इसी प्रोजेक्ट के तहत निम्न टाइगर रिजर्व स्थापित किए गए जहां पर बाघों का प्राकृतिक रूप से संरक्षण किया जा सके।
टाइगर रिज़र्व सूची भारत
1बन्दीपुर टाइगर रिज़र्व (1973-74)कर्नाटक 2कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व (1973-74)उत्तराखंड 3कान्हा(1973-74)मध्य प्रदेश। 4.मानस (1973-74) असम 5.मेलघाट (1973-74)महाराष्ट्र 6.पलामाऊ (1973-74)झारखण्ड 7 रणथंभौर (1973-74)राजस्थान 8.सिमिलीपाल (1973-74)ओडिशा 9.सुंदरबन (1973-74)पश्चिम बंगाल 10.पेरियार (1978-79) केरल 11.सरिस्का (1978-79)राजस्थान 12.बुक्सा (1982-83)पश्चिम बंगाल 13.इन्द्रावती (1982-83)छत्तीसगढ़14.नाम्दाम्फा (1982-83)अरुणांचल प्रदेश 15.दुधवा (1987-88)उत्तर प्रदेश 16.कलाकड़ – मुन्दंरई (1988-89) तमिलनाडू 17.वाल्मीकि (1989-90)बिहार 18.पेंच (1992-93)मध्य प्रदेश 19तोदबो-अँधेरी (1993-94)महाराष्ट्र 20बांधवगढ़ (1993-94)मध्य प्रदेश 21.पन्ना (1994-95)मध्य प्रदेश 22.दाम्प (1994-)मिजोरम 23.भद्र (1998-99) कर्नाटक 24पेंच (1998-99)महाराष्ट्र 25. पखुई (1999-2000)अरुणांचल प्रदेश 26.नामेरी (1999-2000)असम 27.सतपुडा (1999-2000)मध्य प्रदेश 28.अनामलाई (2008-09)तमिलनाडू 29.उदंती-सीतानदी (2008-09)छत्तीसगढ़ 30.सत्कोसिया (2008-09)ओडिशा 31.काजीरंगा (2008-09)असम 32.अचानकमार (2008-09)छत्तीसगढ़ 33.दंदेली-अंशी टाइगर रिज़र्व (काली) (2008-09)कर्नाटक 34.संजय-दुबरी (2008-09)मध्य प्रदेश 35.मुदुमलाई (2008-09)तमिल नाडू 36.नागरहोल (2008-09)कर्नाटक 37.पराम्बिकुलम (2008-09)केरला 38.सह्याद्री (2009-10)महाराष्ट्र 39. बिलिगिरी रंगनाथ (2010-11)कर्नाटक 40.कवल (2012-13)तेलगाना 41.सथ्यमंगालम (2013-14)तमिलनाडु 42.मुकंदरा हिल्स (2013-14)राजस्थान 43.नवेगांव – नाग्जिरा (2013-14)महाराष्ट्र 44 .नागार्जुनसागर सिरिसैलुम (1982-83)आंध्र प्रदेश और तेलंगाना 45.अम्राबाद (2014)तेलंगाना 46.पीलीभीत (2014)उत्तर प्रदेश 47.बोर (2014)महाराष्ट्र 48.राजाजी (2015)उत्तराखंड 49.ओरंग (2016)असम 50.कम्लंग (2016)अरुणांचल प्रदेश
इन सब प्रयासों के बावजूद भी बाघ और अन्य संकटापन्न प्रजातियों को बचाने के लिए आमूल चूल बदलाव करने होंगे। प्राकृतिक आवास पर संरक्षण , प्रजनन और रहने के लिए अनूकूल आवास आदि की विभिन्न राष्ट्रों की सरकारों को करनी होगी । यह सब प्राणी और पेड़ पौधे प्राकृतिक सुंदरता है इसलिए इनके अस्तित्व को बनाए रखना बहुत जरूरी है। आज भी कुछ स्थानों पर पर्यटक और घनी आबादी में मानव के आवागमन से बाघों की रहन सहन प्रवृति में बदलाव आया है। प्राकृतिक एवं कृत्रिम आपदाओं ने भी वन्यजीवों की संख्या और वृद्धि पर गहरा असर डाला है।
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