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Sunday, June 14, 2020

Donate blood save someone's life world blood donation day 14 june

Donate blood save someone's life world blood donation day 14 june
Blood donation day

विश्व रक्तदाता दिवस



हर वर्ष 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है। रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए इस दिन को मनाया जाता है। 14 जून यानी विश्व रक्तदाता दिवस के दिन रक्तदान करने के लिए कई जगहों पर कैंप भी लगाए जाते हैं। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है दुनिया में जरूरत के मुताबिक खून उपलब्ध करवाना। अगर ब्लड बैंकों में पर्यापत मात्रा में खून उपलब्ध होगा तो खून की कमी के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु नहीं होगी।

कब से मनाना शुरू हुआ?

विश्व रक्तदान दिवस, शरीर विज्ञान में नोबल पुरस्कार प्राप्त कर चुके वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टाईन की याद में पूरी विश्व में मनाया जाता है। महान वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टाईन का जन्‍म 14 जून 1868 को हुआ था। उन्होंने मानव रक्‍त में उपस्थित एग्‍ल्‍युटिनि‍न की मौजूदगी के आधार पर रक्‍तकणों का ए, बी और ओ समूह की पहचान की थी। रक्त के इस वर्गीकरण ने चिकित्सा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसी खोज के लिए महान वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टाईन को साल 1930 में नोबल पुरस्कार दिया गया था। उनकी इसी खोज से आज करोड़ों से ज्यादा रक्तदान रोजाना होते हैं और लाखों की जिंदगियां बचाई जाती हैं।

रूधिर संरचना एवं आधान

रूधिर एक तरल संयोजी उतक है मानव में में रुधिर का आयतन लगभग 5 लीटर होता है। रुधिर की उत्पति
भ्रूण की मीसोडर्म (Mesoderm) से होती है। रुधिर के दो अवयव होते हैं

(1) प्लाज्मा (2) रुधिर कणिकाएँ

• प्लाज्मा ( Plasma)- यह रुधिर का अजीवित तरल
भाग होता है। रुधिर का लगभग 55% भाग प्लाज्मा होता है। प्लाज्मा में लगभग 92% भाग जल तथा 8% भाग कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ घुलित या कोलॉइड रूप
में पाये जाते हैं।
रुधिर प्लाज्मा के कार्यः
• हार्मोन तथा पचे भोजन का संवहन करना।
• शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करना
• शरीर में उष्मा का समान वितरण करना।
• रुधिराणु या रुधिर कणिकाएँ (Blood Corpuscles)
ये रुधिर का 40-45% भाग बनाती हैं। रुधिर में निम्नलिखित तीन प्रकार के रुधिराणु होते हैं• लाल रुधिराणु (RBC)(Red Blood Corpuscles or Erythrocytes) • श्वेत रुधिराणु (White Blood Corpuscles or Leucocytes: WBC) (a) ग्रेन्यूलोसाइट्स (Granulocytes)
(i). न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) (ii) इओसिनोफिल्स (Eosinophils)
(iii) बेसोफिल्स (Basophils)
(b) एग्रेन्यूलोसाइट्स (Agranulocytes)
(i) लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes)
(ii) मोनोसाइट्स (Monocytes)
• रुधिर पट्टिकाएँ (Blood Platelets or Thrombocytes)
लाल रूधिराणु
वयस्क पुरुष तथा स्त्रियों में इनकी संख्या क्रमश: 5 मिलियन तथा 4.5 मिलियन होती है। इरिथ्रोसाइट्स में लाल रंग का वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है जो
ऑक्सीजन के परिवहन के लिए उत्तरदायी होता है। रक्ताणु (इरिथ्रोसाइट्स) का निर्माण अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में होता है। इनका जीवन काल 120 दिन होता है। लाल रुधिर कणिकाएँ यकृत, प्लीहा एवं अस्थि मज्जा में नष्ट होती हैं। अतः प्लीहा (Spleen) को लाल रक्त कणिकाओं का कब्रिस्तान भी कहते हैं। श्वेत रुधिराणु (Leucocytes) : श्वेताणु (ल्यूकोसाइट्स) रंगहीन होते हैं। मानव में इनकी संख्या 6000-9000 प्रति क्यूबिक मिमि. तक होती है परंतु संक्रमण (Infection) की अवस्था में इनकी संख्या में वृद्धि हो जाती है। इनका निर्माण अस्थि मजा तथा लसीका ऊतकों में होता है। इनका जीवनकाल 4-5 दिन का होता है। ये निम्नलिखित प्रकार की होती हैं• ग्रेन्यूलोसाइट्सः ये कुल श्वेताणुओं का लगभग 65% भाग बनाती हैं। इनके कोशिका द्रव्य में कणिकाएँ पायी जाती है अतः इन्हें ग्रेन्यूलोसाइट्स कहते हैं। ये तीन प्रकार की होती है। न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils)- श्वेत रुधिराणुओं में इनकी संख्या सबसे अधिक लगभग 60-70% तक होती है। इसका मुख्य कार्य, जीवाणुओं तथा अन्य बाह्य पदार्थों का भक्षण (Phagocytosis) करना है। इन्हें माइक्रोफेजेज (Microphages) भी कहते हैं। इओसिनोफिल्स (Eosinophils)- इनका केन्द्रक द्विपालित (Bilobed) होता है। परजीवी संक्रमण तथा एलर्जी प्रतिक्रियाओं के समय इनकी संख्या बढ़ जाती है। बेसोफिल्स ( Basophils)- ये कुल श्वेताणुओं का 0.5% भाग बनाती हैं।
एग्रेन्यूलोसाइट्स ( Agranulocytes): इनके कोशिका द्रव्य में किसी प्रकार की कणिकाएँ नहीं पायी जाती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं
लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes)- इनकी संख्या कुल श्वेताणु का 20-28% तक होती है। इनका जीवनकाल 2-100 दिनों तक हो सकता है। ये थाइमस ग्रंथि एवं लसीका ऊतकों में ऐसी कोशिकाओं से उत्पन्न होती हैं, जिनका उद्भव अस्थि मज्जा से होता है। ये शरीर के लिए आवश्यक प्रतिरक्षियों  (Antibodies) का निर्माण करते हैं।
मोनोसाइट्स (Monocytes )- ये बड़े आकार है। की कोशिकाएँ होती हैं। ये भक्षणकारी होती हैं। इन्हें
वृहत भक्षकाणु (Macrophages) भी कहते हैं।
रुधिर पट्टिकाएँ ( Blood Plateletes): ये केवल स्तनधारियों के रुधिर में ही पायी जाती हैं। स्तनधारियों के अतिरिक्त अन्य सभी कशेरूकियों में इनके स्थान पर थॉम्बोसाइट्स (Thrombocytes) पायी जाती हैं। इनका जीवन काल लगभग एक सप्ताह (7 दिन) का होता है। इनका मुख्य कार्य रक्त का थक्का (Blood Coagulation) बनाना है।
रुधिर स्कंदन ( Blood Clotting ): रुधिर वाहिकाओं के क्षतिग्रस्त होने पर, कटे से रुधिर निकलता है तो यह कुछ समय में जैली के समान संरचना में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया को रक्त स्कंदन (Blood Clotting) कहते हैं। रक्त के कार्यः • पोषक पदार्थों, उत्सर्जी पदार्थों, हार्मोन्स आदि का परिवहन करना। • रक्ताणु O2 व CO2 का परिवहन करते हैं। • श्वेताणु, जीवाणुओं, विषाणुओं आदि का भक्षण कर रोगों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। • रुधिर थक्का जमाने तथा घाव भरने में सहायता करता है।
• शरीर के ताप को एक सा बनाए रखता है।
वर्ग

एन्टीजन

एंटीबोडी

दिया जाने वाला rakt
किसको दे सकता हैं
A
A
b
A,O
A,AB  
B
B
a
B,O
B,AB
AB
AB
-
A,B,AB,O
AB
O
-
A,b
O
ALL

रुधिर वर्ग ( Blood Groups)

 रुधिर वर्गों की खोज कार्ल लैण्डस्टीनर (1900 ई.) ने की। लाल रुधिराणु में उपस्थित ग्लाइको प्रोटीन (एण्टीजन) की उपस्थित के आधार पर मनुष्यों में चार प्रकार के रुधिर वर्ग पाये जाते हैं।
Blood group
Blood donation system



रक्त वर्ग o को सार्वत्रिक दानकर्ता (Universal Donor) कहते हैं क्योंकि इसमें कोई एण्टीजन नहीं होता है और इसका आधान किसी भी प्राप्तकर्ता में किया जा सकता है। इसी प्रकार रक्त समूह AB को सार्वत्रिक प्राप्तकर्ता (Universal Recepient) कहते हैं क्योंकि ये सभी वर्गों से रुधिर प्राप्त कर सकता है।
Rh-कारक रक्त में इस कारक की खोज लैण्डस्टीनर एवं वीनर (1940) ने रीसस बंदर में की थी। जिन व्यक्तियों के रक्ताणुओं पर Rh एण्टीजन पाया जाता है उन्हें Rh धनात्मक (Rht ) तथा जिनमें इसका अभाव होता है उन्हें Rh ऋणात्मक (Rh-) कहते हैं। Rh एण्टीजन के विरुद्ध प्लाज्मा में कोई एण्टीबॉडी नहीं पायी जाती है, परंतु यदि Rh- व्यक्ति को Rh रुधिर दे दिया जाये तो
Rh- व्यक्ति में एण्टी Rh एन्टीबॉडी उत्पन्न हो जाते हैं। . रुधिर एवं परिसंचरण तंत्र सम्बन्धी रोग (Disease
Related to blood and Circulating System): • रक्ताल्पता (Anaemia)- हीमोग्लोबिन की कमी को रक्ताल्पता कहते हैं। लौह की कमी, विटामिन B2 एवं
फोलिक अम्ल की कमी से रक्ताल्पता हो जाती है।
• वेरिकोस शिराएँ (Vericose Veins)- इस रोग में शिराएँ खिंच जाती हैं तथा इनके कपाट दोषपूर्ण हो जाने से फूलकर टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं जिसके कारण वे ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर पाती। आर्टेरियोस्क्लेरोसिस ( Arterio-sclerosis)- इस रोग में धमनी की भित्ति दृढ़ एवं कठोर हो जाती है तथा इसकी प्रसारणशीलता समाप्त हो जाती है।
•एन्जाइना (Angina)- जब हृदय पेशियों को ऑक्सीजन की आपूर्ति बन्द हो जाती है या कम हो जाती है तब ये मृत हो जाती हैं। इससे हृदय में कष्टकारी दर्द होता है।
•हृदय आघात ( Heart Shock) - कोरोनरी धमनी में थक्का बन जाने (थ्रोम्बोसिस) के कारण या रुधिर वाहिका में रुकावट आ जाने के कारण यह रोग हो जाता है। इससे मृत्यु तक हो जाती है।

रक्तदान के फायदे

ब्लड डोनेशन से हार्ट अटैक की आशंका कम हो जाती है। डॉक्टर्स का मानना है कि डोनेशन से खून पतला होता है, जो कि हृदय के लिए अच्छा होता है।
एक नई रिसर्च के मुताबिक नियमित ब्लड डोनेट करने से कैंसर व दूसरी बीमारियों के होने का खतरा भी कम हो जाता है, क्योंकि यह शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है।
ब्लड डोनेट करने के बाद बोनमैरो नए रेड सेल्स बनाता है। इससे शरीर को नए ब्लड सेल्स मिलने के अलावा तंदुरुस्ती भी मिलती है।
ब्लड डोनेशन सुरक्षित व स्वस्थ परंपरा है। इसमें जितना खून लिया जाता है, वह 21 दिन में शरीर फिर से बना लेता है। ब्लड का वॉल्यूम तो शरीर 24 से 72 घंटे में ही पूरा बन जाता है।
ब्लड देने से पहले छोटा सा ब्लड टेस्ट होता है। इसमें हीमोग्लोबिन टेस्ट, ब्लड प्रेशर व वजन लिया जाता है। ब्लड डोनेट करने के बाद इसमें हेपेटाइटिस बी व सी, एचआईवी, सिफलिस व मलेरिया आदि की जांच की जाती है। इन बीमारियों के लक्षण पाए जाने पर डोनर का ब्लड न लेकर उसे तुरंत सूचित किया जाता है।
ब्लड की कमी का एकमात्र कारण जागरूकता का अभाव है। 1 साल से अधिक उम्र के स्त्री-पुरुष, जिनका वजन 50 किलोग्राम या अधिक हो, वर्ष में तीन-चार बार ब्लड डोनेट कर सकते हैं। ब्लड डोनेट करने योग्य लोगों में से अगर मात्र 3 प्रतिशत भी खून दें तो देश में ब्लड की कमी दूर हो सकती है। ऐसा करने से असमय होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।

रक्त दान के बाद

रक्तदान के बाद हर 3 घंटे में हैवी डाइट लेनी चाहिए जो पौष्टिक हो यानी उसमें फल और सब्जियां शामिल हो।
आयरन युक्त आहार की ज्यादा मात्रा लेनी चाहिए।
रक्तदान के बाद अगले 24 से 48 घंटे तक लिक्विड की ज्यादा मात्रा लेनी चाहिए ताकि कमजोरी महसूस ना हो।
ब्लड डोनेट करने के तुरंत बाद आपके नाश्ते में नमक, चीनी, लिक्विड और बिस्कुट जैसा कोई ठोस आहार शामिल होना चाहिए।
- रक्तदान के बाद क्या नहीं करना चाहिए
रक्तदान के 12 घंटे बाद तक हैवी एक्सरसाइज ना करें।
रक्तदान के तुरंत बाद तेज गति से चहलकदमी करने से बचना चाहिए।
ब्लड डोनेट करने के बाद कम से कम चार घंटे तक किसी भी नशीली चीज का सेवन करने से परहेज करना चाहिए।


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