अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून योग के लाभ,शीतली,उज्जायी,कपालभाती,भस्त्रिका,भ्रामरी, सीत्कारी उद्गित,अनुलोम - विलोम प्राणायाम एवं आसनJagriti PathJagriti Path

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Sunday, June 21, 2020

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून योग के लाभ,शीतली,उज्जायी,कपालभाती,भस्त्रिका,भ्रामरी, सीत्कारी उद्गित,अनुलोम - विलोम प्राणायाम एवं आसन


Benefits-of-Yoga--pranayayam
योग दिवस ,योग का लाभ एवं महत्व



योग मनुष्य के शरीर को स्वस्थ एवं सुखी रखने तथा मन मस्तिष्क को शांत रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल में भी योग क्रिया के प्रमाण मिलते हैं प्राचीन काल में जब आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था का विकास नहीं था तब हमारे  ऋषि  मुनियों ने योग क्रिया द्वारा स्वास्थ्य को बेहतर बनाना जाता है। योग किसी एक व्यक्ति द्वारा संचालित नहीं है यह तो शारीरिक कसरत की तरह लाखों मुद्राएं है जो भिन्न-भिन्न शारीरिक अंगों की क्रियाशीलता बढ़ाने हेतु लाखों आसनों के माध्यम से किया जाता है योग एक जीवन जीने की कला है। इसलिए भारत में प्राचीन काल से योग संबंधित साक्ष्य मिलते हैं। भारत की पहल से आज योग के महत्त्व को पूरे विश्व ने स्वीकारा है और अपनाया है । इसी के परिणामस्वरूप जून महीने की 21 तारीख को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है।
योग सही तरह से जीने का विज्ञान है और इस लिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक, आदि सभी पहलुओं पर काम करता है। योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना। आध्यात्मिक स्तर पर इस जुड़ने का अर्थ है सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है। यह योग या एकता आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बँध, षट्कर्म और ध्यान के अभ्यास के माध्यम से प्राप्त होती है। तो योग जीने का एक तरीका भी है और अपने आप में परम उद्देश्य भी।
योग सबसे पहले लाभ पहुँचाता है बाहरी शरीर  को, जो ज्यादातर लोगों के लिए एक व्यावहारिक और परिचित शुरुआती जगह है। जब इस स्तर पर असंतुलन का अनुभव होता है, तो अंग, मांसपेशियां और नसें सद्भाव में काम नहीं करते हैं, बल्कि वे एक-दूसरे के विरोध में कार्य करते हैं।
बाहरी शरीर के बाद योग मानसिक और भावनात्मक स्तरों पर काम करता है। रोज़मर्रा की जिंदगी के तनाव और बातचीत के परिणामस्वरूप बहुत से लोग अनेक मानसिक परेशानियों से पीड़ित रहते हैं। योग इनका इलाज शायद तुरंत नहीं प्रदान करता लेकिन इनसे मुकाबला करने के लिए यह सिद्ध विधि है।

योग के लिए सावधानियां

~किसी गुरु के निर्देशन में योग अभ्यास शुरू करें।
~सूर्योदय या सूर्यास्त के वक़्त योग का सही समय है।
~योग करने से पहले स्नान ज़रूर करें।
~योग खाली पेट करें। योग करने से 2 घंटे पहले कुछ ना खायें।
~आरामदायक सूती कपड़े पहनें।
~तन की तरह मन भी स्वच्छ होना चाहिए - योग करने से पहले सब बुरे ख़याल दिमाग़ से निकाल दें।
~किसी शांत वातावरण और सॉफ जगह में योग अभ्यास करें।
~अपना पूरा ध्यान अपने योग अभ्यास पर ही केंद्रित रखें।
~योग अभ्यास धैर्य और दृढ़ता से करें।
~अपने शरीर के साथ ज़बरदस्ती बिल्कुल ना करें।
~धीरज रखें। योग के लाभ महसूस होने मे वक़्त लगता है।
~निरंतर योग अभ्यास जारी रखें।
~योग करने के 30 मिनिट बाद तक कुछ ना खायें। 1 घंटे तक न नहायें।
~प्राणायाम हमेशा आसन अभ्यास करने के बाद करें।
~अगर कोई मेडिकल तकलीफ़ हो तो पहले डॉक्टर से ज़रूर सलाह करें।
~अगर तकलीफ़ बढ़ने लगे या कोई नई तकलीफ़ हो जाए तो तुरंत योग अभ्यास रोक दें।
~योगाभ्यास के अंत में हमेशा शवासन करें।
~किसी भयानक रोग से पीड़ित हैं तो डाक्टर की सलाह के बाद योग करें।
~योग करते समय सकारात्मक सोच रखें नकारात्मक और तनाव में योग नहीं करें।
~ महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए। किंतु आप अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार यह अनुमान लगा सकती हैं कि आपको मासिक धर्म के दौरान योगाभ्यास सूट करता है कि नहीं।
~गर्भावस्था के दौरान योग किसी गुरु की देखरेख में करें तो बेहतर होगा।
~10 वर्ष की आयू से कम के बच्चों को ज़्यादा मुश्किल आसन ना करायें। 
ख़ान-पान में संयम बरते। समय से खाएं-पीए।
~धूम्रपान सख्ती से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। अगर आपको तंबाकू या धूम्रपान की आदत है, तो योग अपनायें और यह बुरी आदत छोड़ने की कोशिश करें। 
~नींद ज़रूर पूरी लें। शरीर को व्यायाम और पौष्टिक आहार के साथ विश्राम की भी जरूरत होती है। इसलिए समय से सोए।
~अपने आप में और योग में विश्वास रखें। सकारात्मक सोच एक आदर्श योगाभ्यास की सच्चा साथी है। आपकी मानसिक दशा ओर दृष्टिकोण ही अंत में आपको योग से मिलने वाले तमाम फायदे दिलाती है।
योग के 4 प्रमुख प्रकार या योग के चार रास्ते हैं।
राज योग
कर्म योग
भक्ति योग
ज्ञान योग
 ऋषि मुनियों ने योग के द्वारा शरीर मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के साधन बताएँ हैं, जिसे अष्टांग योग कहते हैं..
1.यम
2.नियम
3.आसन
4.प्राणायाम
5.प्रात्याहार
6.धारणा
7.ध्यान
8.समाधि

प्राणायाम / Pranayam


प्राण का अर्थ, ऊर्जा अथवा जीवनी शक्ति है तथा आयाम का तात्पर्य ऊर्जा को नियंत्रित करनाहै। इस नाडीशोधन प्राणायाम के अर्थ में प्राणायाम का तात्पर्य एक ऐसी क्रिया से है जिसके द्वारा प्राण का प्रसार विस्तार किया जाता है तथा उसे नियंत्रण में भी रखा जाता है।
प्राणायाम के कुछ प्रमुख प्रकार हैं:
1.नाड़ी शोधन प्राणायाम
2.शीतली प्राणायाम
3.उज्जायी प्राणायाम
4.कपालभाती प्राणायाम
5.डिग्र प्राणायाम
6.भस्त्रिका प्राणायाम
7.बाह्य प्राणायाम
8.भ्रामरी प्राणायाम
9.उद्गित प्राणायाम
10.अनुलोम - विलोम प्राणायाम

यहाँ पर  महत्वपूर्ण और बेहतर स्वास्थ्य के लिए कुछ  प्राणायामों के बारे में विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे जिससे करने पर छोटी मोटी शारीरिक समस्याओं से निजात पा सकते हैं।

1.अनुलोम-विलोम प्राणायाम / Anulom Vilom Pranayam




तरीका:-

ध्यान के आसान में बैठें।
बायीं नासिका से श्वास धीरे-धीरे भीतर खींचे।
श्वास यथाशक्ति रोकने (कुम्भक) के पश्चात दायें स्वर से श्वास छोड़ दें।
पुनः दायीं नाशिका से श्वास खीचें।
यथाशक्ति श्वास रूकने (कुम्भक) के बाद स्वर से श्वास धीरे-धीरे निकाल दें।
जिस स्वर से श्वास छोड़ें उसी स्वर से पुनः श्वास लें और यथाशक्ति भीतर रोककर रखें… क्रिया सावधानी पूर्वक करें, जल्दबाजी ने करें।

फायदे:-
शरीर की सम्पूर्ण नस नाडियाँ शुद्ध होती हैं।
शरीर तेजस्वी एवं फुर्तीला बनता है।
भूख बढती है।
रक्त शुद्ध होता है।
सावधानी:-
नाक पर उँगलियों को रखते समय उसे इतना न दबाएँ की नाक कि स्थिति टेढ़ी हो जाए।
श्वास की गति सहज ही रहे।
कुम्भक को अधिक समय तक न करें।

2.कपालभाति प्राणायाम / Kapalbhati Pranayam


तरीका:-
कपालभाति प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ है, मष्तिष्क की आभा को बढाने वाली क्रिया।
इस प्राणायाम की स्थिति ठीक भस्त्रिका के ही सामान होती है परन्तु इस प्राणायाम में रेचक अर्थात श्वास की शक्ति पूर्वक बाहर छोड़ने में जोड़ दिया जाता है।
श्वास लेने में जोर ने देकर छोड़ने में ध्यान केंद्रित किया जाता है।
कपालभाति प्राणायाम में पेट के पिचकाने और फुलाने की क्रिया पर जोर दिया जाता है।
इस प्राणायाम को यथाशक्ति अधिक से अधिक करें।

फायदे:-
हृदय, फेफड़े एवं मष्तिष्क के रोग दूर होते हैं।
कफ, दमा, श्वास रोगों में लाभदायक है।
मोटापा, मधुमेह, कब्ज एवं अम्ल पित्त के रोग दूर होते हैं।
मस्तिष्क एवं मुख मंडल का ओज बढ़ता है।

3.भस्त्रिका प्राणायाम  (Way of doing bhastrika pranayama)



तरीका:-
समतल और हवादार स्थान पर किसी भी आसन जैसे पदमासन या सुखापन में बैठकर इस क्रिया को किया जाता है। दोनों हाथ को दोनों घुटनों पर रखें। अब नाक के दोनों छिद्र से तेजी से गहरी सांस लें। फिर सांस को बिना रोकें, बाहर तेजी से छोड़ दें।

इस तरह कई बार तेज गति से सांस लें और फिर उसी तेज गति से सांस छोड़ते हुए इस क्रिया को करें। इस क्रिया में पहले कम और बाद में धीरे-धीरे इसकी संख्या को बढ़ाएं (यदि किसी व्यक्ति को दमा या सांस संबंधी कोई बीमारी हो तो वह अपने डॉक्टर से परामर्श कर ही इस क्रिया को करें)
फायदे:-
यह पूरी शरीर की बहुत अच्छी कसरत करवा देता है !
 इस क्रिया के अभ्यास से फेफड़े में स्वच्छ वायु भरने से फेफड़े स्वस्थ्य और रोग दूर होते हैं। यह आमाशय तथा पाचक अंग को स्वस्थ्य रखता है। इससे पाचन शक्ति और वायु में वृद्धि होती है तथा शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है। इस क्रिया से सांस संबंधी कई बीमारियां दूर ही रहती हैं।

4.सीत्कारी (शीतकारी) प्राणायाम करने की विधि (Procedure of Sitkari pranayama or Shitkari, Sheetkari)


– बहुत कम लोगों को मालूम है कि सीत्कारी प्राणायाम और शीतली प्राणायाम दोनों की क्रिया विधि एक जैसी है बस दोनों में अंतर यह होता है कि सीत्कारी प्राणायाम में सांस को मुड़ी हुई जीभ से अंदर खीचने के बाद तुरंत नाक से बाहर निकाल देते हैं जबकि शीतली प्राणायाम में सांस को मुड़ी हुई जीभ से अंदर खीचने के बाद कुम्भक (अर्थात सांस को यथा संभव अंदर रोके भी रहता है) करता है फिर नाक से रेचक करके सांस को बाहर निकाल देता है !
सीत्कारी प्राणायाम के फायदे (Benefits of Sitkari pranayam)
इसके लम्बे अभ्यास से भूख प्यास पर विजय प्राप्त होती है ! शरीर चमकदार और चिर युवा रहता है ! पेट की गर्मी और जलन शांत होती है । शरीर पर स्थित झुर्रियां, फोड़ा, फुन्सिया, मुहांसे आदि का नाश होता है ! डायबिटीज जैसे जिद्दी रोगों में भी बहुत फायदेमंद है !

5.शीतली प्राणायाम करने की विधि (Procedure of sheetali pranayama)




सीत्कारी प्राणायाम और शीतली प्राणायाम दोनों की क्रिया विधि एक जैसी है बस दोनों में अंतर यह होता है कि सीत्कारी प्राणायाम में सांस को मुड़ी हुई जीभ से अंदर खीचने के बाद तुरंत नाक से बाहर निकाल देते हैं जबकि शीतली प्राणायाम में सांस को मुड़ी हुई जीभ से अंदर खीचने के बाद कुम्भक (अर्थात सांस को यथा संभव अंदर रोके भी रहता है) करता है फिर नाक से रेचक करके सांस को बाहर निकाल देता है !

शीतली प्राणायाम के गुण (Benefits of Sheetali pranayama)
– इस प्राणायाम के अभ्यास से बल एवं सौन्दर्य बढ़ता है। रक्त शुद्ध होता है। भूख, प्यास, ज्वर (बुखार) और तपेदिक पर विजय प्राप्त होती है। शीतली प्राणायाम ज़हर के विनाश को दूर करता है। अभ्यासी में अपनी त्वचा को बदलने की सामर्थ्य होती है।
– अन्न, जल के बिना रहने की क्षमता बढ़ जाती है। यह प्राणायाम अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग और अल्सर में रामबाण का काम करता है। चिड़-चिड़ापन, बात-बात में क्रोध आना, तनाव तथा गर्म स्वभाव के व्यक्तियों के लिए विशेष लाभप्रद है।
– ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मिलता है। पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये। शरीर की अतिरिक्त गरमी को कम करने के लिये व शरीर पर कहीं भी हुए घाव को मिटाने की लिये बहुत उपयोगी है !

6,उज्जायी प्राणायाम करने की विधि (Procedure of Ujjayi Pranayama)


– सुखासन या पद्मासन में बैठकर सिकुड़े हुये गले से आवाज करते हुए सांस को अन्दर खीचना होता है।

उज्जायी प्राणायाम के लाभ (Advantages of Ujjayi Pranayama)
– थायराँइड की शिकायत से आराम मिलता है। तुतलाना, हकलाना, ये शिकायत भी दूर होती है। अनिद्रा, मानसिक तनाव भी कम करता है। टी•बी•(क्षय) को मिटाने मे मदद होती है। गूंगे लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है क्योंकि इसके लम्बे अभ्यास से आवाज वापस आने की संभावना रहती है ! गले में स्थित रहस्यमय विशुद्ध चक्र का जागरण होता है !

7.भ्रामरी प्राणायाम Bhramri Panayam)


स्थिति:- किसी ध्यान के आसान में बैठें.
तरीका:-
आसन में बैठकर रीढ़ को सीधा कर हाथों को घुटनों पर रखें . तर्जनी को कान के अंदर डालें।
दोनों नाक के नथुनों से श्वास को धीरे-धीरे ओम शब्द का उच्चारण करने के पश्चात मधुर आवाज में कंठ से भौंरे के समान गुंजन करें।
नाक से श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ दे।
पूरा श्वास निकाल देने के पश्चात भ्रमर की मधुर आवाज अपने आप बंद होगी।
इस प्राणायाम को तीन से पांच बार करें।
भ्रामरी प्राणायाम के लाभ (Advantages of Bhramri Pranayama)
वाणी तथा स्वर में मधुरता आती है।
ह्रदय रोग के लिए फायदेमंद है।
मन की चंचलता दूर होती है एवं मन एकाग्र होता है।
पेट के विकारों का शमन करती है।
उच्च रक्त चाप पर नियंत्रण


– सुखासन या पद्मासन में बैठें। दोनो अंगूठों से कान पूरी तरह बन्द करके, दो उंगलिओं को माथे पर रख कर, छः उंगलियों को दोनो आँखो पर रख दे। लंबी साँस भरने के बाद, सांस को धीरे धीरे कण्ठ से भवरें जैसा (हम्म्म्म) की आवाज करते हुए निकालना है।
– सायकीक पेंशेट्स को फायदा मिलता है। वाणी तथा स्वर में मधुरता आती है। ह्रदय रोग के लिए काफी फायदेमंद है। मन की चंचलता दूर होती है एवं मन एकाग्र होता है।
– पेट के विकारों का शमन करती है। उच्च रक्त चाप पर नियंत्रण करता है। थायराइड की समस्या दूर करता है ! कंठ स्थित विशुद्ध चक्र का जागरण होता है ! ब्रम्हानंद की प्राप्ति होती है । मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढती है।
– भ्रामरी प्राणायाम करने से साइनस(Sinus) के रोगी को मदद मिलती है। इस प्राणायाम के अभ्यास से मन शांत होता है। और मानसिक तनाव (stress/depression) दूर हो जाता है। भ्रामरी प्राणायाम उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को भी लाभदायी होता है। भ्रामरी प्राणायाम की सहायता से कुंडलिनी शक्ति(Kundalini Power) जागृत करने में मदद मिलती है। इस प्राणायाम को करने से माइग्रेन/अर्धशीशी (Migraine) के रोगी को भी लाभ होता है।
– भ्रामरी प्राणायाम के नित्य अभ्यास से सोच सकारात्मक बनती है और व्यक्ति की स्मरण शक्ति का विकास होता है। इस प्राणायाम से बुद्धि का भी विकास होता है। भय, अनिंद्रा, चिंता, गुस्सा, और दूसरे अभी प्रकार के मानसिक विकारों को दूर करने के लिए भ्रामरी प्राणायाम अति लाभकारक होता है।
– भ्रामरी प्राणायाम से मस्तिस्क की नसों को आराम मिलता है। और हर प्रकार के रक्त दोष मिटते हैं। भ्रामरी प्राणायाम लंबे समय तक अभ्यास करते रहने से व्यक्ति की आवाज़ मधुर हो जाती है। इसलिए गायन क्षेत्र के लोगों के लिए यह एक उत्तम प्राणायाम अभ्यास है।

8.ओंकार (उद्गीथ) प्राणायाम की विधि (Procedure of omkar / udgeeth pranayama)


– शांत एवं शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर किसी भी आसन में बैठ जाएं। अब अपनी आंखों को बंद करें। गहरी सांस भरकर ओम शब्द का आवाज के साथ उच्चारण करें। इस क्रिया को कम से कम 11 बार करें।


ओंकार (उद्गीथ) प्राणायाम के लाभ (Benefits of omkar/ udgeeth pranayama)

– ॐ शब्द ब्रह्म (अर्थात ईश्वर) है इसलिए इस प्राणायाम करने वाले के सभी चक्रों में जागरण का स्पंदन शुरू हो जाता है जिससे सर्व रोग नाश होता है और कई अतीन्द्रिय क्षमताएँ भी विकसित होती हैं !

– इस प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से मन अति शांत और अति शुद्ध होता है। मानसिक विकार यानि बुरे विचार दूर भागते हैं। मन स्थिर रहता है। पूरे दिन कार्य में मन लगता है। आवाज का आकर्षण बढ़ता है और आनंद की अनुभूति होती है। अनिद्रा की बीमारी दूर होती और नींद अच्छे से आती है। साथ ही जिन लोगों को बुरे सपने परेशान करते हैं उन्हें भी प्राणायाम से लाभ प्राप्त होता है।

9.शांभवी मुद्रा की विधि (How to do shambhavi mudra)


– शांत एवं शुद्ध हवा वाले स्थान पर सुखासन में बैठ जाएं। मेरुदण्ड(रीढ़ की हड्डी), गर्दन एवं सिर एक सीध में रखें। हाथों को एक दूसरे के ऊपर रख लें या घुटनों पर रखे। अब पूर्ण एकाग्रचित होकर दोनों आखे बंद करके भौंहों के बीच में ध्यान लगाएं।

शांभवी मुद्रा के लाभ (Benefits shambhavi yog)

– इस मुद्रा से आज्ञा चक्र जो कि दोनों भौंहों के मध्य स्थित है, विकसित होने लगता है जिससे सूक्ष्म संसार के दिव्य दर्शन होतें हैं ! भविष्य का पूर्वानुमान भी होने लगता है ! दृष्टि दिव्य होने लगती है ! तृतीय नेत्र (third eye) जागृत होने लगता है।

– दिमाग तेजी से कार्य करना शुरू कर देता है। आंखों की चमक बढ़ती है, आत्मविश्वास की झलक दिखाई देती है। इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से मन शांत होता है और एकाग्रता बढ़ती है। याददाश्त में गजब की बढ़ोतरी होती है।

10.अग्निसार क्रिया की विधि (Procedure of Agnisar kriya pranayama Yoga)



– साँस पूरी तरह से बाहर छोडकर, ठुडी को गले से लगा दे, पेट को अंदर चिपकाकर, बार बार एक लहर की तरह रीढ की हड्डी के पास तक ले ज़ाये।

इसे सुविधानुसार करे। (जिन्हे कोई गंभीर समस्या हो वो परामर्श लेकर करे)

अग्निसार क्रिया के लाभ (Benefits of Agnisar kriya)

– यह प्राणायाम सबसे तेज नाभि स्थित रहस्यमय मणिपूरक चक्र को जागृत करता है जिससे शरीर के सभी रोगों का नाश होता है और शरीर पर एक दिव्य आभा व तेज चमकने लगता है !

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