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International Labour Day 2020 |
अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस (International Labour Day 2020 ) एक ऐसा दिवस जो विश्व के उस तबके को समर्पित है जो सबसे मुश्किल भरी जिंदगी जीते हैं और अपने हाड़ मांस के बल पर इस भौतिक सभ्यता में आलीशान विनिर्माण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनता है । मजदूरों के बिना हम किसी भी राष्ट्र की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इसीलिए विश्व के समस्त मजदूर वर्ग को समर्पित यह दिवस मई महीने की पहली तारीख को बड़े उत्साह और सम्मान के साथ मनाया जाता है। इन दिन को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस और मजदूर दिवस भी कहा जाता है। ये दिन पूरी तरह श्रमिकों को समर्पित है। इस दिन भारत समेत कई देशों में मजदूरों की उपलब्धियों को और देश के विकास में उनके योगदान को सलाम किया जाता है। ये दिन मजदूरों के सम्मान, उनकी एकता और उनके हक के समर्थन में मनाया जाता है। इस दिन दुनिया के कई देशों में छुट्टी होती है। इस मौके पर मजदूर संगठनों से जुड़े लोग रैली व सभाओं का आयोजन करते हैं और अपने अधिकारों के लिए आवाज भी बुलंद करते हैं। लेकिन हमें मजदूर दिवस पर मजदूरों की समस्यायों पर चर्चा करके उनकी तमाम उन बाधाओं को दूर करना होगा जिससे मजदूर वर्ग हाड़ तोड़ मेहनत के बदले कम से कम सामान्य एवं सुखी जीवन यापन कर सकें। भारत सहित पूरे विश्व में मजदूरों की स्थिति दयनीय है। आज भी मजदूरों का शोषण होता है। मजदूरों के लिए अभी बहुत कुछ सुधार की गुंजाइश है। जिससे उसकी सूरक्षा, परिवार की स्थिति,स्वास्थ्य आदि लेकिन इस विषय पर बात करने से पहले अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर या लेबल डे के इतिहास के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।
हम जिनते है कि अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत एक मई 1886 को अमेरिका में एक आंदोलन से हुई थी। इस आंदोलन के दौरान अमेरिका में मजदूर काम करने के लिए 8 घंटे का समय निर्धारित किए जाने को लेकर आंदोलन पर चले गए थे। 1 मई, 1886 के दिन मजदूर लोग रोजाना 15-15 घंटे काम कराए जाने और शोषण के खिलाफ पूरे अमेरिका में सड़कों पर उतर आए थे। इस दौरान कुछ मजदूरों पर पुलिस ने गोली चला दी थी जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इसके बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की दूसरी बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह ऐलान किया गया कि 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा। इसी के साथ भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में काम के लिए 8 घंटे निर्धारित करने की नींव पड़ी।
हमारे देश भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। यही वह मौका था जब पहली बार लाल रंग झंडा मजदूर दिवस के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। मजदूरों के लिए आवाज उठाने वाली विचारधारा में मार्क्सवाद सबसे अग्रणी है। लाल झंडा भी मार्क्सवाद का प्रतिक माना जाता है।
मार्क्सवाद और मजदूर सम्बंध
श्रमिकों के पास अपनी बेडियों के अलावा खोने के अलावा और कुछ नहीं है। दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ।"
का यह मान्यता है कि पूंजीवाद स्वयं अपने विनाश के बीज बो रहा है, किन्तु इस कार्य को शीघ्र करने के लिए मज़दूरों को सालित होकर कान्ति कर देनी चाहिए। माक्स की मान्यता है कि पूजीपतियों के संगठित विरोध का सामना श्रमजीवी संगठित होकर क्राति के माध्यम स हा कर सकते हैं। शासक वर्ग बिना संघर्ष सत्ता को नहीं छोड़ेगा। श्रमजीवियों के लिए सत्ता पाने का एकमात्र उपाय सशस्त्र क्रान्ति का अवलंबन है।
मार्क्स की राज्य और शासन संबंधी धारणा प्राचीन एवं परंपरागत विचार भिन्न है। राज्य की उत्पत्ति के संबंध में मार्क्स ने अपने पूर्ववर्ती विचारको प्लेटो एवं अरस्तू की तरह यह नहीमाना है कि राज्य एक प्राकृतिक संस्था है। मार्क्स राज्य की उत्पत्ति का कारण वर्ग विभेद को मानता है। वर्ग विभेद पर आधारित होने के कारण ही मार्क्स राज्य को अनावश्यक एवं अस्थाई मानता है। राज्य के उद्देश्य के संबंध में मार्क्स की मान्यता है कि राज्य शासक वर्ग के हितों को सुरक्षित बनाये रखने का तथा अन्य वर्गों के शोषण करने का साधन या उपकरण मात्र है। राज्य पूंजीपतियों का संगठन हैं जिसका उद्देश्य मजदूर वर्ग का शोषण करना है। मार्क्स के मतानुसार राजनीतिक शक्ति का तात्पर्य उस वर्ग की संगठित शक्ति से है जिसका उपयोग वह दूसरे पर दबाव बनाने के लिए करता है। राज्य श्रमिकों के शोषण के लिए पूंजीपतियों के हाथों में एक हथियार है। मार्क्स ने राज्य को 'पूंजीपति वर्ग की कार्यकारिणी समिति' कहा है। मार्क्स का मत है कि पूंजीपतियों को कुचल देने के बाद राज्य की आवश्यकता नहीं रहेगी। वर्गभेद समाप्त हो जाने के बाद प्रशासन की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी तथा राज्यविहीन वर्गविहीन समाज(Stateless-Classless Society) की स्थापना होगी।
उपरोक्त मार्क्सवाद के विचारों को जानने की कोशिश करें तो हमें लगता है कि पुंजीवाद में मजदूरों की स्थिति बदतर होती है । इसलिए आज भारत सहित विश्व के अधिकांश देशों में पूंजीवाद का प्रभाव बढ़ रहा है।
इस बढ़ती होड़ में अमीर और गरीब के बीच खाई चौड़ी होती जा रही है। इसमें पिछड़ने वाले अधिकतर गरीब मजदूर वर्ग है।
आज के दौर में मजदूर वर्ग को अपनी मेहनत का पूरा दाम नहीं मिल पाता है। मशीनीकरण के युग में मजदूरों की संख्या अधिक है और रोजगार कम इसलिए मजदूर वर्ग में काम के लिए प्रतियोगिता जैसा माहौल है इसलिए मजदूर अपने कार्य का दाम कम करके नियत समय से अधिक काम करने लगते हैं जिससे गरीब मजदूरों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। आज मजदूर वर्ग के लिए सैकड़ों समस्याएं हैं लेकिन उनके हित के लिए क्या करना चाहिए यह महत्वपूर्ण है।
मजदूरों को उचित दाम बढती महंगाई के साथ मजदूरी में वृद्धि , सुरक्षा, परिवार में शिक्षा, जीवन बीमा , भूमिहीन मजदूरों को भूमि आवंटन, निशुल्क चिकित्सा सुविधा, सरकारी योजनाओं से लाभान्वित करना। कार्य स्थल पर सुरक्षा, काम के लिए समय की पाबंदी, बंधुआ मजदूरी से छुटकारा आदि सुधार करके हमारे मजदूर वर्ग को मुख्य धारा में शामिल किया जाए तो विश्व मजदूर दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी।
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