आज सम्पूर्ण विश्व कोरोनावायरस की भयानक महामारी से जूझ रहा है। दुनिया के शक्तिशाली देशों की चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। इटली,स्पेन, अमेरिका आदि देशों की अर्थव्यवस्था भी दयनीय दौर से गुजर रही है। दावा किया जा रहा है कि चीन कोरोना को रोकने में कामयाब हुइ है। अगर चीन को कामयाबी मिली है तो विश्व के अन्य देशों के लिए सुखद अनुभव है तथा इससे अन्य देशों को कोरोना से लड़ने में प्रेरणादायक ऊर्जा का संचार होगा। हमारे देश में जहां कोरोनावायरस से जंग जारी है केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें पुरजोर तरीके से काम कर रही है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने कोविड 19 के खतरे को भांपते हुए 24 मार्च को संपूर्ण लाॅक डाउन की घोषणा कर दी थी ,जिसमें कोरोनावायरस के संक्रमण की श्रृंखला को तोड कर देश में इस वायरस पर काबू पाया जा सकें।
बड़ी आबादी वाले देश में अचानक बन्द से शुरूआती दिनों में बड़े शहरों में काम कर रहे मजदूरों को को समस्या का सामना करना पड़ा जिससे दिल्ली जैसे बड़े शहरों में हालात बेकाबू हुए लेकिन सरकार ने जल्द नियंत्रण करने की कोशिश भी की। खतरनाक वायरस की दहशत में लोगों को अपने सामाज में आपसी दूरी बनाए रखना भी बेहद जरूरी भी है लेकिन इस विकट स्थिति में कुछ समस्याएं उभर कर सामने आ रही जो कोराना से भी अधिक भयावह है । जो गरीब और न्यूनतम आय वाले मध्यम वर्ग को झेलनी पड़ रही है। जिसमें सबसे बड़ी चुनौती अन्य गंभीर बिमारियों से जूझ रहे उन गरीब तबके के लोगों की हैं जो निजी अस्पताल और निजी रोगनिदान केन्द्र तक पहुंचने में सक्षम नहीं है। दूसरी बात अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य बिमारी के निदान और उपचार के लिए किसी दूर शहर के अस्पताल जाने की सोचें तो उसके सामने सबसे बड़ी समस्या आवागमन के साधन की है कुछ निजी वाहन मालिक पुलिस प्रशासन से अनुमति लेकर आपातकालीन परिस्थितियों में अपने वाहन भेजते हैं लेकिन उनका आसमान छूता किराया चुकाना गरीब मजदूर के बस की बात नहीं है। वह बड़ी मुश्किल से शहर के किसी बड़े अस्पताल पहुंच पाता है लेकिन सरकार ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारी अस्पतालों की OPD बंद कर दी है, इसके कई कारण हो सकते हैं । चिकित्साकर्मियों की भारी कमी भी है तथा कोरोना के फैलने का डर भी है। लेकिन इस वर्ग का क्या होगा जो आज इन हालातों में केवल सुविधा की कमी और निजी खर्च चाहे वह वाहन का हो या निजी लैब में जांच का हो या फिर निजी अस्पताल में भारी भरकम फीस और दवाईयों का हो आदि की वजह से अपनी स्वास्थ्य से समझौता कर रहे हैं तो यह मुसीबत बहुत बड़ी है। क्योंकि कुछ अमीर लोग जिनके स्वयं के वाहन है तथा वे निजी अस्पताल में उपचार भी आसानी से करवा लेते हैं लेकिन गरीब मजदूर और किसान जिनकी आय सीमित होने के कारण उनके पास बचत नहीं है तो कुछ दिहाड़ी मजदूर बिल्कुल खाली हाथ घरों में बन्द है इन लोगों के परिवार मे अगर कोई सदस्य किसी गंभीर बिमारी से ग्रसित है या होता है तो किसी गहन चिकित्सीय जांच की जरूरत पड़ती है तो इनका किसी दूरस्थ अस्पताल जाना बेहद मुश्किल है। सबसे बड़ी समस्या आवागमन के साधनों की है जो पहली दफा तो कोई साधन उपलब्ध भी नहीं है अगर कोई निजी वाहन है तो उसका किराया इतना अधिक है कि इन लोगों के बस की बात नहीं है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या है कालाबाजारी और राशन सामग्री के बढे हुए दाम हालांकि सरकार ने राशन वितरण की सुविधा भी उपलब्ध करवा दी है तथा स्थानीय भामाशाह भी मदद के लिए आगे आ रहे हैं लेकिन गांवों में दूर दराज रह रहे लोगों तक मुफ्त राशन पहुंच पाना भी चुनौतीपूर्ण कार्य है तो ऐसे हालातों में कोरोना से बचने की गंभीर चुनौती भी है तो मूलभूत आवश्यकताओं मिलना भी जरूरी है। सबसे बड़ी समस्या तब हुई जब सरकारी अस्पतालों के रिटायर्ड विशेषज्ञ चिकित्सकों का परामर्श मिलना बंद हो गया है। इस मुश्किल घड़ी में सब जानते है कि देश सिर्फ कोरोना से निपटने को प्राथमिकता में है लेकिन भारत जैसे जनसंख्या बहुल देश के अन्य गंभीर बिमारियों से लड़ रहे लोगों की संख्या भी कहीं ज्यादा है। इसलिए सरकार कोरोनावायरस की जांच के लिए निर्धारित किए गए अस्पतालों के अलावा अन्य सरकारी अस्पतालों में आउटडोर मरीजों की देखभाल हेतु रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों की उपलब्धता तथा सरकारी वाहनों की वांछित व्यवस्था जारी रखें तो कोविड 19 के अलावा उपचार के अभाव से होने वाली मौतों के सिलसिले में कमी लाई जा सकती है। हालांकि देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है तो यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती है तो लोगों को सरकार और स्वास्थ्य विभाग की सलाह का पालन करना बहुत जरूरी है । हमें जाति-धर्म आदि संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर साहस और एकता का परिचय देकर देश को इस वैश्विक महामारी से मुक्त करना है तो छोटी-छोटी समस्याओं को झेलना भी है। लेकिन जहां तक अपरिहार्य कारणों जिसमें जननी सुरक्षा, स्वास्थ्य और भोजन की बात है तो इसे दरकिनार करना सफल लाॅक डाउन के लिए अच्छा संकेत नहीं है। सरकार चाहे तो सुरक्षित और प्रभावी ढंग से नया रास्ता निकाल कर इन असहाय लोगों की मुसीबत दूर करने में सफल हो सकती है।
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