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Bhangarh Fort Alwar Rajasthan |
भानगढ़ दूर्ग रहस्यमयी अतीत और दहशत के रोचक तथ्य
भानगढ़, नाम सुनते ही दिल में दहशत और रौंगटे खड़े हो जाते हैं। आखिर भानगढ़ का रहस्य क्या है? क्या यहां वाकई भूतों का बसेरा है या फिर सिर्फ सुनी सुनाई बातें? क्या हकीकत रात में यहां आने वाला वापस नहीं जाता? भानगढ़ राजस्थान के अलवर जिले में राष्ट्रिय उद्यान सरिस्का के पास है , बड़ी तादाद में लोग यहां घूमने के लिए आते हैं लेकिन रात होने से पहले ही वापस चले जाते हैं। आस पास के लोग कहते हैं कि रात के वक्त यहां पर पायल की आवाजें सुनाई देती हैं और घुंघरुओं की गूंज भी। इस किले का निर्माण 15वीं या 16वीं शताब्दी में हुआ। ये किला भूतिया कैसे बना इस बारे में कई कहानियां सुनाई जाती हैं। किला बहुत प्रसिद्ध है जो 'भूतों का किला' माना जाता है। इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने सन् 1573 में बनवाया था। भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मानसिंह के भाई माधोसिंह ने बाद में इसे अपनी रिहाइश बना लिया । माधोसिंह के तीन बेटे थे- सुजाणसिंह, छत्रसिंह और तेजसिंह। माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ का शासक हुआ। छत्रसिंह के बेटा अजबसिंह थे, यह भी शाही मनसबदार थे। अजबसिंह ने अपने नाम पर अजबगढ़ बसाया था। अजबसिंह के बेटा काबिलसिंह और इस के बेटा जसवंतसिंह अजबगढ़ में रहे । अजबसिंह के बेटा हरीसिंह भानगढ़ में रहे (वि. सं. 1722 माघ वदी भानगढ़ की गद्दी पर बैठे)। माधोसिंह के दो वंशज (हरीसिंह के बेटे) औरंगजेब के समय में मुसलमान हो गये थे। उन्हें भानगढ़ दे दिया गया था। मुगलों के कमजोर पड़ने पर महाराजा सवाई जयसिंह जी ने इन्हें मारकर भानगढ़ पर कब्जा कर लिया। भानगढ़ का किला चहारदीवारी से घिरा है, जिसके अंदर घुसते ही दाहिनी ओर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाजार है जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनाई गई दोमंजिली दुकानों के खंडहर हैं। किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल है जिसकी ऊपरी मंजिल लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है।
पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही रहस्य और संयोग होता है। ऐसी कोई जगह जहा मौत का साया बनकर रूहें घूमती हो जिन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है और एक अजीब दुनिया के सामने जिसके बारे में उसे कोई अंदाजा नहीं होता है, अपने घुटने टेक देता है। दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले हैं जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है और वहाँ आज भी रूहों का वास है। दुनिया में ऐसी जगहों के बारे में लोग जानते है, लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इनसे रूबरू होने की हिम्मत रखते हैं। जैसे हम दुनिया में अपने होने या ना होने की बात पर विश्वास करते हैं वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है। ये अलग बात है कि कई नास्तिक या भूत-प्रेत को न मानने वाले लोग दुनिया के सामने इसे मानने से इनकार करते हों, लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्ली दे सकते हैं, दुनिया की हकीकत को नहीं बदल सकते है। कुछ ऐसा ही एक किले के बारे में आपको बता रहे हैं जो कि अपने इतिहास में एक शानदार बनावट के साथ-साथ एक बेहतरीन अतीत भी छुपाए हुए है, जहाँ सूरज डूबते ही रूहों का कब्जा हो जाता है और शुरू हो जाता है मौत का तांडव । जयपुर के नजदीक व अलवर में स्थित इस किले को भानगढ़ के किले के नाम से जाना जाता है।
भानगढ़ किले का इतिहास
भानगढ़ किला सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करवाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर की सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगढ़ की जनसंख्या तकरीबन 10000 थी । भानगढ़ अलवर जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है। चारों तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्पकलाओं का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदि के बेहतरीन और अति प्राचीन मंदिर विद्यमान हैं। इस किले में कुल पाँच द्वार हैं और साथ-साथ एक मुख्य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है, जो अति प्राचीन काल से अपने यथास्थिती में पड़े हुये हैं।
भानगढ़ किले पर काले जादूगर सिंधिया का शाप
भानगढ़ किला देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है । भानगढ़ किले के बारे में प्रसिद्ध एक कहानी के अनुसार भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खूबसूरत थी, उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्य में थी और देश के अनेक राजकुमार उनसे विवाह करने. के इच्छुक थे। उस समय उनकी उम्र महज18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई । राज्यों से उनके लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकली थी। राजकुमारी रत्नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय के उस दुकान से कुछ ही दूरी पर एक सिंघिया नाम का व्यक्ति खड़ा होकर उन्हें बहुत ही गौर से देख रहा था। सिंधिया उसी राज्य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था । ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाढ़ प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए कि उसने उस दुकान के पास आकर इत्र के बोतल जिसे राजकुमारी पसंद कर रही थी, पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था। राजकुमारी रत्नावती ने उस इत्र की बोतल को उठाया और वहीं पास के एक पत्थर पर पटक दिया। पत्थर पर पटकते ही वो बोतल गयी और सारा इत्र उस पत्थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्थर फिसलते हए उस तांत्रिक सिंधिया के पीछे चल पडा और तांत्रिक को कुचल दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से है पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी। उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच युद्ध हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्लेआम के बाद वहां मौत की चीखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रूहें घूमती है। किले में सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेद्य फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ है इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती है। एएसआई ने सख्त हिदायत दे रखी है । कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके में किसी भी । व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपनी जान से हाथ भी धोना पड़ा
माना जाता है कि किलें में भटकती है रूहे
इस किले में कत्लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारत सरकार ने अर्द्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहाँ लगायी थी ताकि इस बात की सच्चाई को जाना जा सके, लेकिन वो भी असफल रही। कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्टि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेले होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चीख को महसूस कर सकते हैं। इसके अलावा इस किले के भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुड़ियों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्से में जहाँ एक छोटा सा दरवाजा है, के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्त बहुत ही सन्नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चीखने की भयानक आवाज इस किले में गुंज जाती है।
यह किंवदंती भी प्रचलित है
एक और किंवदंती के मुताबिक यहां एक साधु रहते थे और महल के निर्माण के वक्त उन्होंने चेतावनी दी थी कि महल की ऊंचाई कम रखी जाए ताकि परछाई उनके पास तक ना आए। लेकिन बनाने वाले ने इस बात का ध्यान नहीं रखा और अपनी मर्जी से महल को बनाया। साधु ने गुस्से में श्राप दिया जिससे भानगढ़ तबाह हो गया। एक तीसरी कहानी के मुताबिक 1720 में भानगढ़ इसलिए उजड़ने लगा था क्योंकि यहां पानी की कमी थी। 1783 में एक अकाल पड़ा जिसने यहां रिहाइश को खत्म कर दिया और भानगढ़ पूरी तरह से उजड़ गया।
लेकिन सभी बातों को जानने के बाद भी इस रहस्य को पूर्ण रूप से जानना मुश्किल है क्योंकि नकारात्मक ऊर्जा , लोगों की तर्क शक्ति , नजरिया आदि पर निर्भर करता है कि उनके देखने , सुनने , समझने की स्थिति कैसी है उनके दृष्टिकोण कैसे हैं। लोगों के वैज्ञानिक तथ्यों को आधार मानकर चलते हैं तो सुनने में आया है कि कुछ लोगों ने महसूस किया है कि ऐसा कुछ नहीं है जो आवाज आती है वह खण्डर हुई दीवारों में मिट्टी निकल जाने से कई छेद हो चुके है उन छिद्रों में जब हवा गुजरती है तो डरावनी आवाजें निकलती है। पहली बार जब किसी परिस्थिति में यह दहशत का माहौल बना उसके बाद लोगों के दिमाग में भय का वातावरण बन गया अब जब भी लोग सूर्यास्त के बाद उस जगह पे जाते हैं तो दिमाग में वो पहले से व्याप्त डर के कारण अपने मानसिक सन्तुलन न होने कारण अजीबोगरीब स्थिति का सामना करते होंगे। उपरोक्त दी गई सारी जानकारी और रहस्य का यथार्थ को हम इस लेख से प्रमाणित नहीं कर रहे हैं। हालांकि यह जानकारी जनमानस में प्रचलित है।
असल में इस दुर्ग में रूहों का होना या न होना वैज्ञानिक तथ्यों से सिद्ध नहीं किया गया। न ही ऐसा कोई चलचित्र अभी तक कैमरे में कैद किया है। जिन लोगों की मौत हुई उनकी मौत का सबब क्या रहा होगा।
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