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संस्कृत गद्य शिक्षण |
संस्कृत गद्य का प्रथम दर्शन यजुर्वेद में होता है, जेमिनी ने यजुर्वेद के विषय कहा है- "शेषे यः शब्दः" अर्थात् ऋक एव सामन् से रहित मन्त्र यजुष् है । यजुर्वेद की तैतरीय प्रायः गद्यात्मक ही है। इस प्रकार कृष्ण यजुर्वेद की तैतरीय काठक मैत्रायणी संहिता, अथर्वैद, ब्राह्मण, आरण्यक एव उपनिषदों में गद्य का प्रयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त पौराणिक गद्य, शास्त्री गद्य (दार्शनिक एवं व्याकरण रूप) लौकिक गद्य में कथा एव आख्यायिका रूप प्राचीन गद्य दण्डी सुबन्धु एवं बाणभट्ट की कृतियों में मिलता है। आधुनिक गद्य में धनंपात कृत तिलक मञ्जरी वाद्भिात गद्यचिन्तामणि, मेरुतंगाचार्य प्रबन्ध चिन्तामणि अम्बिकादत्त व्यास कृत शिवराजविजयम् आदि है। वर्तमान समय अन्य भाषा के गद्य पाठा का सस्कृत अनुवाद करने से कहानी, सस्मरण यात्रावृतान्त आदि भी आधुनिक गद्य शिक्षण के विषय है। संस्कृत गद्य में भावों की अभिव्यक्ति एव कला पक्ष का उत्पन्न करना कठिन कार्य है। अतः साहित्य शास्त्रीयों द्वारा कहा गया है। 'गद्य कवीनां निकष वदन्ति' गद्य शब्द की उत्पत्ति गद् धातु से यत् प्रत्यय करने पर ।
जिसका अर्थ है स्पष्ट शब्द से कथन । अतः गद्य में भाव को स्पष्ट रूप से न कहकर व्यञ्जनों द्वारा कहा जाये। साहित्य की दृष्टि से कहा गया है कि छन्द से रहित रचना गद्य है। संस्कृत गद्य शिक्षण के उद्देश्य गद्य शिक्षण के लिए पाठयोजन निर्माण में दो प्रकार से लिखते है।
संस्कृत गद्य शिक्षण के उद्देश्य
प्रथम ज्ञान बोध क्रिया के आधार पर तथा द्वितीय स्तर एवं प्रकरण के अनुसार ।
1. ज्ञानात्मकोद्देश्य- ये दो प्रकार के हैं।
भाषातत्त्वात्मक ज्ञान प्रदानम्
इसमें उच्चारण वर्तनी, अर्थ की दृष्टि से प्रकरण में कठिन शब्दों का अर्थ सन्धि समास विग्रह प्रकृति प्रत्यय आदि का स्पष्टीकरण करते है।
विषयवस्तु का ज्ञानप्रदानम्
सांस्कृतिक पौराणिक व्यावहारिक वैज्ञानिक सामाजिक राजनैतिक आदि से जिस पक्ष से सम्बन्धित हो उसका ज्ञान प्रदान करना।
2. अर्थग्रहणात्मोद्देश्य- यह उद्देश्य दो प्रकार के कौशलों पर आधारित है।
सुनकर अर्थग्रहण करना (श्रवणकौशल)
पठकर अर्थग्रहण करना (पठन कौशल)
अभिव्यक्त्यात्मक उद्देश्य-
गद्यशिक्षण में अध्यापक आदर्श वाचन कराकर छात्रों से अनुवाचन मौनवाचन करवाकर इस उद्देश्य का प्राप्त करता है।
3. अभिव्यक्ति आत्मकोद्देश्य- इसमें अभिव्यक्ति के दो कौशल होते है।
(क) लिखकर अभिव्यक्ति (लेखन कौशल)
(ख) बोलकर अभिव्यक्ति (वाचन कौशल)
गद्य शिक्षण के समय अध्यापक द्वारा प्रश्नोन्तरों के माध्यम से मौखिक एवं लिखित अभिव्यक्ति का मूल्यांकन किया जाता है।
4. अभिरुच्यात्मकोद्देश्य- विविध विधि-प्रविधि, दृश्य-श्रव्य सामग्री आदि से रुचि पूर्ण अध्यापन कराता है।
5. अभिवृत्यात्मकोद्देश्य- प्रकरण में आये सद्विचारों के प्रति छात्रों का सकारात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न करना।
6. कौशलात्मकोद्देश्य- प्रकरण में पढे गये विषयवस्तु का योग्यतानुसार व्यावहारिक प्रयोग के कौशल का उत्पन्न करना।
स्तरानुसार गद्यशिक्षण के उद्देश्य
प्राथमिक स्तर-6,7,8
शब्द पद पद बन्ध का प्रवाह पूर्ण पढकर शुद्धोच्चारण करना। विरामचिह्नानुसार पठन की योग्यता विकसित करना । शब्दकोष में वृद्धिकरना। नूतन शब्दों को अर्थवगम्य कर उचित प्रयोग की योग्यता विकसित करना । संस्कृत साहित्य के प्रति रुचि उत्पादन करना । संस्कृत गद्य में प्रयुक्त नैतिक प्रसंगो के आधार पर नैतिक मूल्य का विकास करना। लघुवाक्यों में भावाभिव्यक्ति की क्षमता का विकास करना
भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग।
माध्यमिक स्तर- 9,10,11,12
शब्दों के शुद्धोच्चारण की क्षमता उत्पन्न करना । शब्दसूक्तिकोश का विकास कराना।
विविध गद्य शैली से परिचित कराना।
कल्पना शक्ति का सर्जन कराना।
छात्रों द्वारा भाषा का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना। तुलना एवं आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास करना। छात्रों में नैतिकता का विकास करना। संस्कृत गद्य में भावाभिव्यक्ति की क्षमता का विकास करना।
उच्चस्तर स्नातक
संस्कृत में भावाभिव्यक्ति की क्षमता का दृष्टिकरण। गद्य की विविध शैलीयो ज्ञान का पोषण। कल्पना तर्क निरीक्षण समीक्षात्मकशक्ति का उच्चस्तरीय विकास अन्य साहित्य के साथ तुलना। नवीनप्रवृतियों के साथ सर्जनात्मक शक्ति का विकास विषय का पूर्ण संज्ञा
गद्य शिक्षण के सोपान
1. औपचारिक बिन्दु- सर्वप्रथम दिनांक कक्षा विषय विधा प्रकरण विद्यालय कालांश आदि बिन्दुओं का उल्लेख करना।
2. उद्देश्य- पाठ योजना के प्रारम्भ में प्रकरण के आधार पर सामान्य एवं विशिष्ट उद्देश्यों का निर्धारण करते है। सामान्य उद्देश्य अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होते है। विशिष्ट उद्देश्य प्रकरण से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध होते है।
3. सहायक सामग्री- कक्षा में प्रयुक्त होने वाले सामान्य उपकरण श्यामपट, मार्जनी, सुधाखण्ड, वेष्टनफलकादय । विशिष्ट उपकरणचित्र मानचित्र रेखाचित्र, प्रतिकृति आकाशवाणी, दूरदर्शन ध्वन्यभिलेखादि ।
4. पूर्वज्ञान- प्रकरण से सम्बद्ध पूर्व अर्जित ज्ञान के विषय में चिंतन कराते है।
5. प्रस्तावना- छात्रों के पूर्वप्रकरणादि से अर्जित ज्ञान के आधार पर कछ प्रश्नों चित्र, मानचित्र, श्लोक कथा आदि को प्रस्तुत करक पूछते है। प्राप्तोत्तरों को आधार पर पाठ पढ़ाने के लिए छात्रा का मानसिक रूप से तैयार करते है।
6. उद्देश्य कथन- प्रस्तावना के बाद पाठ की सूचना। अध्यापक के दारा कक्षा में उदधोषणा कि जाती है। प्रकरण को श्याम पट्ट पर लिखता है। इसे ही उद्देश्य कथन या पाठ्याभिसूचन कहते है।
7. विषयोपस्थापना/या प्रस्तुतीकरण- उक्त सोपानों के साथ नवीनपाठ का शिक्षण प्रारम्भ करते है।
1. आदर्श वाचन-अध्यापक क्रिया
2. अनुकरण वाचन-छात्र क्रिया
3. अशुद्धिसंशोधन-अध्यायक क्रिया
4. काठिन्यनिवारण-अध्यापक क्रिया
5. बोधप्रश्न या पाठ प्रवर्धनम् -अध्यापक एवं छात्र क्रिया
6. मौन वाचनम्
7. विचारविश्लेषणात्मप्रश्न (दोनों)
8. सारकथन/अध्यापक कथन
9. पुनरावृतिप्रश्ना/मूल्यांकन प्रश्न
10. ग्रहकार्यम्
संस्कृत गद्यादि शिक्षण में काठिन्य निवरण हेतु विधियाँ
काठिन्यनिवारणस्य विद्ययः
उद्बोधनविधि
1. वस्तुप्रदर्शनम्
2. प्रत्यक्षक्रिया (अभिनय)
3. प्रतिकृतिः
4. चित्र-रेखाचित्र मानचित्रादयः
प्रवचनविधि
1. अनुवादविधि
2. कोशविधि
3. परिभाषामाध्यमेन
4. टीकामाध्यमेन
स्पष्टीकरणविधि 1. व्यत्युपत्तया, उपसर्ग प्रत्यय, सुबन्तपद तिङन्तपद सन्धि एवं समासविग्रह 2. तुलना पयार्यवाचीशब्दो से विपरीतार्थ शब्दो से अनेकार्थक शब्द से समध्वनि भिन्नार्थक शब्दो से 3. वाक्य प्रयोग से 4. अन्तः कथाओं से 5. प्रसंग के माध्यम से
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