संस्कृत पद्य या काव्य शिक्षणJagriti PathJagriti Path

JUST NOW

Jagritipath जागृतिपथ News,Education,Business,Cricket,Politics,Health,Sports,Science,Tech,WildLife,Art,living,India,World,NewsAnalysis

Saturday, February 29, 2020

संस्कृत पद्य या काव्य शिक्षण

   


Sanskrit pddhy shikshan
संस्कृत पद्य या काव्य शिक्षण

काव्य शिक्षण के उद्देश्य

छात्रों में संस्कृतकाव्य के प्रति अनुराग उत्पादन करना । काव्यगत सौन्दर्य की अनुभूति के लिए अभिप्रेरणा देना । 
छात्रों में स्वर लय गति भावानुसार काव्यपाठ की योग्यता । कल्पना एवं तर्क शक्ति का विकास। 
श्रवण वाचन, लेखन एवं पाठन कौशलों का विकास । 
शब्द भण्डार का विकास।
 छात्रों के नैतिक मूल्यों का विकास। 
 कवि की शैली एवं उसके जीवन दर्शन का ज्ञान । सर्जनात्मकता की योग्यता का विकास। 
 छात्रों की चितवृत्ति का, शोधन कर उच्च आदर्शों की स्थापना । 
 वाच्चार्थ, लक्ष्यार्थ, व्यग्यार्थ, आदि का ज्ञान । 
 काव्य के रस की अनुभूति के प्रति अभिप्रेरणा। 
 कवि का काव्यगत संदेश का परिचय करवाना। समन्वयवादी दृष्टिकोण का विकास ।



Sanskrit kavya skishan
संस्कृत पद्य शिक्षण


 काव्य या पद्य शिक्षण में रुचि उत्पादन के उपाय 

 विशिष्ट श्लोकों एवं सुभाषितों को कण्ठस्थीकरण के लिए प्रेरित करना । 
 कक्षा में समवेत स्वर से सस्वरवाचन का अभ्यास कराना चाहिए। 
 ध्वन्यभिलेख से संस्कृत गीतों को सुनाना चाहिए ।
  श्लोक अन्त्याक्षरी श्लोकपाठप्रतियोगिता करके। 
संस्कृत कवियों की जन्म दिवस (जयन्ती) पर उत्सव मनाकर। शिक्षक द्वारा छात्र में उनके कोमलभावों की आनन्दाभूति की योग्यता को उत्पन्न करके  श्लोंको के भावों की व्याख्या छात्रों के स्तरानुसार करनी चाहिए।
काव्य शिक्षण गद्य शिक्षणवत् नहीं करना चाहिए। 


काव्य या पद्य शिक्षण विधि


अन्य शिक्षण की तुलना में काव्य शिक्षण के लिए विशिष्ट कला कीआवश्यकता होती है। क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को रसानुभूति एवं सौन्दर्यनुभूति करना होता है। इसलिए कक्षा में काव्यमय वातावरण प्रदान करना चाहिए। उसके पश्चात् उनके काव्य का गहन भाव धारा के साथ जोड़कर विभिन्न विधियों का प्रयोग करना चाहिए।

1. गीतविधि या नाट्यविधि- 

इसका प्रयोग प्रारम्भिक कक्षाओं उपयुक्त रहती हैं क्योंकि यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि किसी कार्य को करने के लिए जितनी इन्द्रियों का प्रयोग होगा तो वह उतना ही स्थायी होगा । अतः स्वर लय गति एवं अभिनय द्वारा श्लोक को पढाना चाहिए।

2. भाषानुवाद विधि-

 इसे परम्परागत या अर्थबोधविधि भी कहते है। इसमें अध्यापक स्वयं श्लोक पढकर अर्थ करता है या छात्रों द्वारा श्लोक वाचन कराकर उनकी सहायता करके अर्थ करता है। श्लोक प्रयुक्त कठिन शब्दों का मातृभाषा में अर्थ कहता है।
1.यह काव्य शिक्षण की शुष्क विधि है। 2. अमनोवैज्ञानिक हैं। 3. रसानुभूति नहीं होती है।
4. शिक्षक सक्रिय 5. छात्र निष्क्रिय 

3. दण्डान्वयविधि

इस विधि में अन्वय का विशेष महत्त्व है। इसमें छात्र स्वयं या शिक्षक की सहायता से सर्वप्रथम कविता के प्रधान वाक्य खोजता है । सदा अन्वार्थ के लिए कर्ता क्रिया कर्म सम्बन्धित प्रश्न करते है। इस क्रिया को दण्डान्वय कहते है। अन्वय बोध में दण्डवत् एवं दण्डवत् अन्वय होता है। “दण्डवत् खण्डवच्चैव विभेदोऽन्वय उच्यते' । मुख्य वाक्य का अन्वेषण करके आश्रित वाक्यों को प्राप्त करते हैं इस प्रकार सम्पूर्ण पद एक वाक्य के रूप में परिवर्तन होता है यही दण्डान्वय है।
इस विधि में समस्त कार्य व्याकरण से सम्बन्धित होता है अतः काव्य में रसादि का बोध नहीं होता है अतः यह विधि उच्च कक्षाओं के लिए उचित नहीं इसे सहायक विधि के रूप प्रयोग करना उचित है ।

4. व्याख्या विधि- 

इस विधि में शिक्षक एक-एक शब्द की व्याख्या के साथ श्लोक का अर्थ करता हैं इसके साथ ही श्लोक की रचना शैली, कवि परिचय, प्रसंग मंदर्भ एवं भावार्थ पर विशेष प्रभाव डालता है। किसी श्लोक में ऐतिहासिक घटना या अन्त कथा हो तो उसका भी व्याख्यान करता है।
यह विधि उच्चस्तर के लिए उपयोगी एवं अनिवार्य है। इस प्रयोग उच्च माध्यमिक कक्षाओं में अपेक्षित है। इस विधि से छात्र श्लोक को सम्यक्तया समझ जाता है।

5. खण्डान्वय विधि- 

इस विधि में भी दण्डान्वय की भाँति अन्वय के लिए सर्वप्रथम प्रधान वाक्य खोजा जाता है। दण्डान्वय में प्रश्न व्याकरणात्मक होते हैं ग्खण्डान्वय विधि में प्रश्न साहित्यात्मक विषयवस्तु आधारित होते है। जिससे छान में रसानुभूति एवं भावाभूति होती है तथा काव्य सौन्दर्य प्राप्त होता है। 

 6. भाष्यविधि

इसे व्यासविधि भी कहते है। इसमें शिक्षक कथावचन के समान दृष्टान्त या उदाहरण के आधार पर स्पष्ट करता है इसमें प्रत्येक पद का भाव भाषा की दृष्टि से विचार करके शिक्षक शब्द के महत्त्व, शब्दान्तर प्रयोग में अर्थदोष, माधुर्य वाक्यविन्यास पर पड़ने वाले प्रभावों का संकेत देता है । भाव उनके दृष्टान्तों उदाहरणों की सहायता से ग्रहण कराता है।
इसमें शिक्षक सक्रिय तथा छात्र निष्क्रिय रहता है। उच्च कक्षाओं के लिए अधिक उपयोगी

7. तुलनाविधि

इस विधि में शिक्षक प्रस्तुत श्लोक के तत्समभाव श्लोक की सहायता से तुलना करता है। इसविधि में शिक्षक को अधिक श्रम करना पड़ता है। इससे छात्र की विषयवस्तु के प्रति रुचि अधिक होती है। तथा श्लोकार्थ हृदयङ्गम करने का सामर्थ्य हो जाता है। इसके लिए शिक्षण साहित्य का सम्यक् ज्ञाता तथा भाषाविद् होना चाहिए।
इससे छात्र में तर्क निरीक्षण शक्ति विकसित होती है तथा समभाव श्लोक से कविता से तुलना करने शक्ति उत्पन्न होती है।

8. समीक्षा विधि-

 इस विधि में कविप्रतिपादित जीवनदर्शन के साथ छात्र को जोड़ा जाता है। इससे उसकी भाषा शैली अलंकार छन्द कल्पना विचार एवं भाषा तत्वों का विस्तृत ज्ञान दिया जाता हैं । समीक्षा से अन्यकवियों के भाषा गतविशेषता से तुलना करनी चाहिए। शिक्षक कविता की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, भौगोलिक ऐतिहासिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालता है।
यह विधि उच्चस्तरीय कक्षाओं के लिए उपयोगी है।

9. टीकाविधि- 

संस्कृत विद्वान द्वारा समस्त संस्कृत प्राचीन ग्रन्थों की टीका लिख चुके है। जैसे मल्लिनाथ कृत टीका विशेष विख्यात है। इस टीका में श्लोक का साहित्य एवं व्याकरण से सम्बद्ध व्याख्या दी गई है। तथा प्रसंगानुसार अमरकोष तुलना प्रयोग व्युत्पत्ति आदि का प्रयोग किया है। 

काव्यशिक्षण के सोपान

1. औपचारिकबिन्दु
2. उद्देश्य
3.  सहायक सामग्री
4. पूर्वज्ञान 
5. प्रस्तावना
6. उद्देश्य कथन
7.  विषयोपस्थापना

No comments:

Post a Comment


Post Top Ad