CAA पर पशोपेश के बाद देश में NRC की मुनासिबतJagriti PathJagriti Path

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Sunday, January 5, 2020

CAA पर पशोपेश के बाद देश में NRC की मुनासिबत


NRC and CAB
NRC and CAB


नागरिकता के सम्बन्ध में संविधान के भाग-2 तथा अनुच्छेद 5-11 में प्रावधान किया गया है। इन अनुच्छेदों में केवल यह प्रावधान किया गया है कि भारत का नागरिक कौन है और किसे भारत का नागरिक माना जाए। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 11 द्वारा संसद को भविष्य में नागरिकता के सम्बन्ध में क़ानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस अधिकार का प्रयोग करके संसद ने नागरिकता के सम्बन्ध में अधिनियम, 1955 बनाया है। इसमे कई बार संशोधन हो चुके हैं। हाल ही में असम में शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए पहले राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का प्रयोग किया गया। हालांकि नागरिकता संशोधन विधेयक के मसविदे में कहा गया है कि असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी इलाकों में इस अनुच्छेद के प्रावधान लागू नहीं होंगे। इन इलाकों संविधान की छठी अनुसूची और ‘द इंटर लाइन  परमिट’ (आइएलपी) के प्रावधान लागू हैं। 
 हाल ही असम में एनआरसी से लगभग उन्नीस लाख लोग इसके दायरे में नहीं रहे, उसमें से काफी मात्रा में गैर मुस्लिम भी बाहर हो गये। इन बाहर हुए हिन्दु,सिक्ख, ईसाई, बौद्ध,जैन, पारसी धर्म के लोगों को पड़ोसी तीन देशों में इनकी प्रताड़ना का हवाला देते हुए नागरिकता प्रदान करने के उद्देश्य से  CA विथेयक लोकसभा में लाया गया। दोनों सदनों में सामान्य बहुमत से पारित हुआ।गौरतलब है कि यह संविधान में संशोधन नहीं है। अलबत्ता यह प्रावधान भी है कि इस अधिनियम में संसद सामान्य बहुमत से संशोधन कर सकती हैं। इसी के तहत यह नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 दोनों सदनों में बहस के बाद आखिर पारित हो गया। 12 दिसंबर गुरुवार को देर रात राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद जारी अधिसूचना के मुताबिक यह कानून गजट प्रकाशन के साथ लागू हो गया। इसके साथ ही नागरिकता अधिनियम 1955 में बदलाव भी हो गया है। इसके तहत 31 दिसंबर, 2014 तक धर्म के आधार पर प्रताड़ना के चलते पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को अवैध घुसपैठिया नहीं माना जाएगा, बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।  फिर इसका विरोध शुरू हुआ, देश में कई जगह विरोध हो रहा है हिंसक घटनाएं भी हो रही है। इस विरोध को समझने के लिए गांधी लियाकत समझौता,असम समझौता,और देशीयकरण नागरिकता प्रावधान को भी समझना जरूरी है क्योंकि यह मुद्दे इस कानून को मजबूती के साथ-साथ विवादास्पद भी बनाते हैं। गांधी लियाकत समझौते की कमजोरी इस कानून को मजबूत करती है तो असम समझौता इस कानून की मनाही भी करता है। नागरिकता देने के कुछ प्रावधान है।जिसमें जन्म,वंश, पंजीकरण,क्षेत्र समाविष्ट और देशीयकरण।  कोई भी विदेशी व्यक्ति जो वयस्क हो चुका है और प्रथम अनुसूची में वर्णित देशों का नागरिक नहीं है, भारत सरकार से निर्धारित प्रपत्र पर देशीयकरण के लिए आवेदन पत्र दे सकता है। कुछ निर्धारित शर्तों के आधार पर केन्द्रीय सरकार द्वारा संतुष्ट होने के पश्चात् आवेदन कर्ता को देशीकरण के प्रमाणपत्र से नागरिकता दी जा सकती है। दरअसल, इस नागरिकता कानून में ये प्रावधान है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले हिन्दुओं, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।इस दायरे से इन तीनों देशों के मुसलमानों को बाहर रखा गया है।उत्तर, पूर्व और दक्षिण भारत में इस कानून के इसी प्रवाधान को लेकर उग्र विरोध हो रहा है। पहला विवाद तो इस बात को ही लेकर हो रहा है कि यह बिल मुस्लिमों के खिलाफ है, और दूसरी बात ये है कि आखिर धर्म के हिसाब से ये कैसे तय किया जा सकता है कि किसे नागरिकता देनी है, और किसे नहीं। विपक्षी पार्टियों और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि ये कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन कर रहा है। यह इस कानून का सबसे विवादस्पद पहलू है, विपक्ष का कहना है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर नागरिकता कैसे दी जा सकती है?
भारत का नागरिकता कानून 1955 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को भारत की नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है। लेकिन इस नागरिकता संशोधन के जरिए अब यह अवधि घटाकर छः वर्ष कर दी है। विदित है कि नागरिकता व्यक्ति और धर्म सम्बन्ध न होकर राज्य और व्यक्ति का संबंध है तो जाति धर्म से विभेद नहीं किया जा सकता लेकिन संसद तार्किक वर्गीकरण कर सकती हैं बल्कि यह भेद सभी मायनों में न्यायसंगत और बुध्दिगम्य विभागीकरण हो। समझदारी से CAA का विरोध केवल यह होना चाहिए कि इस तार्किक विभेद में एक धर्म को बाहर क्यो रखा गया है? तो चीन, भूटान, श्रीलंका और म्यांमार को बाहर क्यो रखा जबकि वो गैर-इस्लामिक धर्म से संबंधित और पड़ोसी भी है और वहां अल्प मुस्लिम समुदाय से प्रताड़ना नहीं होती यह स्पष्ट होने के क्या तथ्य है।खैर सरकार अपने तर्कों पर अडिग है लोग विरोध कर रहे हैं। लेकिन विरोध की जड़ यह है कि धार्मिक वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उलंघन करता है या नहीं? बुध्दिगम्य और तार्किक है या नहीं? यह किन मानदंडों पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के विरुद्ध है? यह अस्पष्ट और जटिल मामला है। इसका परीक्षण सिर्फ भारत का सुप्रीम कोर्ट कर सकता है। 

इधर विरोध उग्र है 17 लोगों की जान जा चुकी है। हमारे माननीय उच्चतम न्यायालय की जिम्मेदारी बनती है कि जल्द सरकार से संज्ञान लेकर स्थति को स्पष्ट किया जाए क्योंकि सबकुछ सुधारने योग्य है लेकिन आम निर्दोष नागरिकों या आन्दोलन में भाग लेने वाले लोगों की जिंदगी वापिस नहीं लौटाई जा सकती। प्रदर्शनकारियों की  हिंसा, पुलिस की लाठियां, और मिडिया का विरोधियों को CAA की फुल फॉर्म पूछना,बहस आदि इसका समाधान नहीं हो सकता । यह कानुनी जटिलता है।सरकार और न्यायालय को मिलकर संवैधानिक तरीके से स्पष्ट करना चाहिए। 
इसके बाद सरकार  सम्पूर्ण देश में एनआरसी लागु करने की बात कर रही है तो लिहाजा देश की सरकार एनआरसी लागु कर सकती है। लेकिन सीएबी की तरह जल्दबाजी न हो क्योंकि विशाल भू-भाग और जनसंख्या वाले देश में लोगों के दस्तावेजों की हालत क्या है, गरीबी, अशिक्षा से अभी तक देश ऊभरा नहीं तो ऐसे हालातो में संम्पूर्ण एनआरसी सम्भव है या नहीं ? दस्तावेजों का आधार क्या होगा? क्या पता मानक दस्तावेजों के कारण बड़ी मात्रा में वास्तविक नागरिक बाहर हो गये तो उनका दस्तावेजी सदमा और विभागी अधिकारियों  के चक्करों की बोखलाहट उनको संयमित रख पायेंगे या नहीं। साथ ही देश की सामयिक परिस्थितियों ,आर्थिक हालातों को भांपकर कदम उठाना बेहतर होगा।  एक बड़े राष्ट्र में शान्ति और नियंत्रण के लिए सरकार को जनतांत्रिक व न्यायिक सहयोग से दूरदर्शी फैसले लेने होंगे जिसमें संवैधानिक मर्यादा, स्वच्छ मंशा और निष्पक्षता की झलक आवश्यक हो।


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