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छात्र आन्दोलन |
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हॉस्टल फीस बढ़ोतरी के खिलाफ छात्र विरोध कर रहे हैं। छात्रों का विरोध फीस और नियमों को यथावत रखने का है। यद्यपि जेएनयू प्रशासन ने फीस में रियायत का फैसला लिया था। फीस बढ़ोतरी पर पुनर्विचार करने के लिए एक हाई लेवल कमेटी बनाई है, जिसने सभी छात्रों के लिए बढ़ी हुई फीस में 50 फीसदी की कटौती का फैसला लिया है। वहीं गरीबी रेखा से नीचे के छात्रों को फीस बढ़ोतरी से 75 फीसदी की छूट दी गई है लेकिन इस रियायत से भी जेएनयू छात्र यूनियन संतुष्ट नहीं है और फीस में इस कमी को
जेएनयू प्रशासन की ओर से छात्रों को रियायत देते हुए सर्विस और यूटिलिटी फी (शुल्क) में कटौती की घोषणा पर जेएनयू छात्रसंघ ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
इससे पहले जेएनयू प्रशासन ने सर्विस और यूटिलिटी शुल्क में 50 प्रतिशत छूट देने की और बीपीएल श्रेणी के छात्रों के लिए 75 प्रतिशत छूट देने की घोषणा की थी।जेएनयूएसयू की मांग शुल्क में बढ़ोतरी पूरी तरह वापस लेने की है।
इस विवाद पर हर कोई अपने-अपने विचार व्यक्त करता नजर आता है । कोई इस विवाद पर छात्रों को दोषी ठहरा रहा है तो कोई सरकार और जेएनयू प्रशासन को दोषी बता रहें हैं।
कुछ लोग जेएनयू को बन्द करने की गुहार लगा रहे हैं तो कोई जेएनयू को देशद्रोही विश्वविद्यालय बता रहे है ।
हमें इस विवाद को शिक्षा और सुविधा की दृष्टि से देखा जाना चाहिए ना कि राजनीतिक दृष्टिकोण से।
वैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1969 में हुई थी। यह मानविकी, समाज विज्ञान, विज्ञान, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन आदि विषयों में उच्च स्तर की शिक्षा और शोध कार्य में संलग्न भारत के अग्रणी संस्थानों में से है। जेएनयू को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NACC) ने जुलाई 2012 में किये गए सर्वे में भारत का सबसे अच्छा विश्वविद्यालय माना है। NACC ने विश्वविद्यालय को 4 में से 3.9 ग्रेड दिया था, जो कि देश में किसी भी शैक्षणिक संस्थानो को प्रदत उच्चतम ग्रेड है।
इसलिए हमें उन तमाम विषयों में जेएनयू को ग़लत बताने की जगह शिक्षा और शिक्षा से जुड़े विवादों को सकारात्मक रूप से समझना चाहिए और उनकी समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करनी चाहिए। हमारे देश को विश्व गुरु की परिभाषा दी जाती है। इस तरह शिक्षार्थी और शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर विरोध या आन्दोलन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था का दुर्बल संदेश देंगे। विश्व गुरु भारत में शिक्षा व्यवस्था से जुड़े विवाद शोभा नहीं देते । जेएनयू के छात्रों पर अश्लीललता और देश विरोधी होने के आरोप है तो उसका समाधान किया जाना चाहिए।
सरकार और जेएनयू प्रशासन को देर रात पुस्तकालय में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं पर नजर रखकर सुरक्षित वातावरण उपलब्ध करवाना चाहिए। जो छात्र पढ़ने वाले है, उनके साथ समय की पाबंदी उचित नहीं है। कई विश्वविद्यालयों में पुस्तकालय चौबीस घंटे खुले रहते हैं पठाकू छात्र देर रात तक पढ़ते भी हैं ऐसे में कोई छात्र इस व्यवस्था का दुरपयोग करते हैं तो निसंदेह उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। दूसरी बात हॉस्टल, भोजनालय आदि की फीसवृद्धि की है। जिससे छात्रों में गहरा असंतोष है। छात्रों का कहना है कि इस फीस वृद्धि से हमें पढ़ाई छोड़ने को मजबूर होना पड़ेगा । बढ़ाई गई राशि कितनी ज्यादा है या कम है इन तमाम बातों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए। बात शिक्षा के अधिकार की है उन गरीब लोगों की है जिनकी आय बहुत कम है। उनके लिए फीस वृद्धि चिंता का विषय है। भारत एक विशाल अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र है। यहां जनकल्याण के लिए अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं तो इस तरह शिक्षा के क्षेत्र फीस वृद्धि करके शिक्षार्थियों में असंतोष व्याप्त करना उचित नहीं है। क्योंकि शिक्षा आज के युग में मौलिक आवश्यक के साथ अधिकार भी है। हर वर्ष राज्य एवं केन्द्र सरकार अरबों रुपए का बजट शिक्षा तथा शिक्षा से वंचित वर्ग पर खर्च करती है। तो इस तरह मात्र फीस वृद्धि से उत्पन्न विवाद देश की शिक्षा और सुविधा की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
यूनिवर्सिटी में क़रीब 40 प्रतिशत छात्र ऐसे परिवारों से आ रहे हैं जिनकी पारिवारिक मासिक आय 12 हज़ार से कम है तो कुछ छात्र कर्ज लेकर अध्ययन करते हैं ऐसे में इनका फीस वृद्धि विरोध लाज़मी है। मात्र शुल्क को यथावत रखने से विवाद शान्त होता हो, तो पुलिस से लाठीचार्ज करवाने की जगह मामले को शांत करना उचित होगा। क्योंकि देश हित में शिक्षा मुफ्त मुहैया कराई जाए तो भी गलत नहीं होगा।
माना जेएनयू के कुछ छात्रों ने देश विरोधी नारे लगाए उन्होंने जेएनयू की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने का काम किया कुछ छात्र अब भी गन्दी राजनीति करते है या अनैतिक कार्य करते हैं तो उन्हें निसंदेह सजा मिलनी चाहिए। लेकिन फीस बढ़ाना या विरोध को बलपूर्वक दबाना उचित नहीं है। जेएनयू देश को समय समय पर कई प्रतिभाएं प्रदान करता आ रहा है जिसमें निर्मला सीतारमण ने जेएनयू से सेंटर ऑफ इकोनॉमिक्स स्टडीज एडं प्लानिंग (सीईएसपी) में मास्टर डिग्री की है और जेएनयू से ही इंटरनेशनल रिलेशन में एम.फिल की है तथा एस जयशंकर प्रसाद ने जेएनयू से पॉलिटिकल साइंस में मास्टर डिग्री के बाद इंटरनेशनल रिलेशन में पीएचडी की है। जेएनयू इतनी बुरी नहीं नहीं है जितना इसको वर्तमान विवादों से जोड़ कर देखा जा रहा है। शिक्षा के शीर्ष संस्थान को राजनीतिक अखाड़ा बनाना मूर्खता होगी। सरकार चाहे तो छात्रहित के लिए नियंत्रित,शुद्ध,और स्वच्छ वातावरण बनाकर देश की एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान को बचा सकती है।
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