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Economic Crisis |
भारत सहित दुनिया के कई देशों में आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती के स्पष्ट संकेत दिख रहे हैं। अर्थव्यवस्था के मंदी की तरफ बढ़ने पर आर्थिक गतिविधियों में चौतरफा गिरावट आती है। ऐसे कई दूसरे पैमाने भी हैं, जो अर्थव्यवस्था के मंदी की तरफ बढ़ने का संकेत देते हैं। हमारे देश में पिछले कुछ समय से आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो रही है। इसी संकट का सामना सिर्फ उद्योग क्षेत्र ही नहीं,आम जनता पर भी खराब आर्थिक हालातों का असर है। हमारी अर्थव्यवस्था में यदि उद्योग का पहिया रुकेगा तो नए उत्पाद नहीं बनेंगे। मंदी के दौर में उद्योगों का उत्पादन कम हो जाना, मिलों और फैक्ट्रियों का बन्द हो जाना आदि कारणों से बाजार में बिक्री घट रही है।
यदि बाजार में औद्योगिक उत्पादन कम होता है तो कई सेवाएं भी प्रभावित होती है। इसमें माल ढुलाई, बीमा, गोदाम, वितरण जैसी तमाम सेवाएं शामिल हैं। कई कारोबार जैसे टेलिकॉम, टूरिज्म सिर्फ सेवा आधारित हैं, मगर व्यापक रूप से बिक्री घटने पर उनका व्यवसाय भी प्रभावित होता है। आर्थिक मन्दी के कुछ मुख्य कारण को समझ सकते हैं जिससे डॉलर के मुकाबले रुपये की घटती हुई कीमत है।आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट से देश का राजकोषीय घाटे का बढ़ना और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आना।इसके अलावा अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर की वजह से भी दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिसका असर भारत पर भी पड़ा है। लेकिन सरकार को संकट से जल्द उभरने की कोशिश करनी चाहिए। हालांकि यह हमेशा कहा जाता है कि भारत बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था है, यहां की अर्थव्यवस्था में मांग में कमी आना बहुत मुश्किल है। ऐसे में अगर मांग में कमी आयी है तो इसका मतलब साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था को संरचनागत सुधार की जरूरत है।इसलिए नये वर्ष में इन आर्थिक हालातों को सुधारने की चुनौती भी है। सरकार को ऐसी परिस्थितियों में उचित मौद्रिक और राजकोषीय नीति अपनाने की जरूरत है। यह ठीक होगा इस नीति द्वारा सरकार कर और व्यय में परिवर्तन द्वारा पूर्ण रोजगार और क़ीमत स्तर में स्थिरता लाने का प्रयास करती है। सरकार को सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के प्रयास करने चाहिए जैसे सड़कें, बांध,स्कूलें, अस्पताल आदि जिससे रोजगार,आय और मांग का सृजन होगा।
इसी के साथ करों मे कमी उपभोक्ताओं के व्यय योग्य आय में वृद्धि करती है। यह प्रयास तभी कारगर साबित होगा जब सरकार करों में कोई वृद्धि नहीं करती है। इसी तरह मौद्रिक नीति में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि की जानी चाहिए जिसके परिणामस्वरूप ब्याज की दर में कमी आएगी तथा निजी विनियोग में वृद्धि भी होगी। इन आर्थिक हालातों से निजात पाने के लिए सरकार चाहे तो उचित विस्तारक मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों की आजमाइश कर सकती हैं। जहां तक हो सरकार को राजकोषीय नीति अपनाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि राजकोषीय प्रबन्ध से सफलता की सम्भावना अधिक रहती है।अर्थव्यवस्था के कई प्रमुख क्षेत्रों को प्रभावित हुए हैं। इसलिए जरूरी है कि मांग में आ रही कमी को दूर किया जाए। यह तीन साल पहले नोटबंदी, जीएसटी, बैंकों के एनपीए बढ़ने के साथ शुरू हो गयी थी। इसकी वजह से मांग में कमी आना शुरू हो चुका था। पहले असंगठित क्षेत्रों में उसके बाद संगठित क्षेत्रों में दिक्कतें आना शुरू हो गयी। ऑटोमोबाइल सेक्टर उत्पादन में संकट, लाखों नौकरियों का जाना आदि। इसलिए नये वर्ष 2020 में हमारे देश के आर्थिक हालातों को पटरी पर लाने की कोशिश सर्वोपरि होनी चाहिए।अर्थव्यवस्था में आई मंदी इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है। फिर भी हम आशा करते हैं कि नववर्ष 2020 में ही इस आर्थिक मंदी के खत्म होने की संभावना है साथ ही मौजूदा सरकार गंभीरतापूर्वक विचार करके इन हालातों से उबरने की कोशिश करेगी।
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