हैदराबाद में महिला डॉक्टर से बलात्कार और निर्मम हत्या की घटना ने एक बार फिर मानवता को शर्मशार ही नहीं बल्कि मानवता भी झुलसाया गया है। नैतिकता और राम राज्य की अवधारणा के युग में भी ऐसे क्रुर और घिनौने अपराधों का सामना कर रहे हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। महिलाओं और बच्चों के साथ जिस प्रकार बर्बरता होती है। इंसान इंसानियत की सारी हदें पार कर इंसान की निर्मम हत्या कर देता है तो हम विचलित होकर सोचते हैं कि मानवता दानवता की ओर क्यों बढ़ रही है? यह सवाल हमें अपनी इस निर्मित शिथिल व्यवस्था जिसमें कानुन, सुरक्षा,और नैतिक मूल्यों का विनाश करने वाले कारकों से करना चाहिए। अपराध एक प्रकार की सामाजिक विषमता है। यह व्यक्तिगत मानसिक विषमता का परिणाम है। इस प्रकार की विषमता का प्रारंभ हमारी दुषित और कमजोर सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था से होता है। हम इस भौतिकवाद और सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में लोगों की मानसिकता का पोषण किस प्रकार कर रहे हैं? यह समझना महत्वपूर्ण है।
हमारे समाज में बच्चों, युवाओं आदि को श्रव्य-दृश्य तथा मुद्रित सामग्री में क्या परोस रहे? कहीं न कहीं हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक तथा बहुमाध्यम तंत्र का वर्तमान स्वरुप गलती कर रहा हैं।जरुर हमारा सिस्टम हिंसात्मक तथा अपराधिकि प्रवृति के लिए जिम्मेदार है। सोशल मीडिया, विज्ञापनों, और इंटरनेट से युवाओं को जिस प्रकार अश्लिलता देखने को मिलती उससे गन्दी मानसिकता घर कर लेती है। इसके साथ-साथ त्वरित जाॅच तथा कार्रवाई नहीं होना, न्यायिक तथा दण्ड प्रक्रिया में लम्बा समय लगने से भी अपराधियों का दुस्साहस बढ़ता है। नवीन औद्योगिक सभ्यता में अपराध का रूप तथा प्रकार भी बदल गया है। नए किस्म के अपराध होने लगे हैं जिनकी कल्पना करना कठिन है। भारत जैसी पवित्र और नैतिक मूल्यों की देवभूमि में बढ़ते घिनौने अपराध चिंता का विषय है।
हमारे देश में महिलाओं , बच्चों,और वंचित कमजोर लोगों के प्रति अपराध तेजी से बढ़ रहें हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर एक घंटे में 4 रेप होते हैं। 2012 में 23 साल की निर्भया के साथ मानवता की सारी हदे पार करते हुए बालात्कार की घटना सामने आने के बाद भी ये सिलसिला लगातार जारी है।
जिसके बाद उन्नाव, कठुआ आदि बलात्कार और निर्मम हत्याओं के अनेक मामले सामने आए। कुछ मामले दर्ज नहीं होते तो कई मामलों का खुलासा नहीं होता, इस प्रकार की घटनाओं के आंकड़ों की बात नहीं करके, इनके कारण और लगाम की बात करना उचित होगा।
हाल ही हैदराबाद में महिला डॉक्टर के साथ दरिंदगी के बाद हत्या कर दी गई महिला का शव जला हुआ मिला। इससे पहले भी ऐसे निर्मम अपराधों ने मानवता को शर्मशार किया है। इस घटना से सरकार को सबक लेकर ऐसे अपराधों के प्रति माकूल इंतजाम किए जाने चाहिए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि अनेक प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए अनेक कानूनी प्रावधान,अधिनियम और सजाओं के बाद भी अपराधियों में अपराधिक प्रवृति क्यों बढ़ रही है? जिसमें सजा का अंदाजा होने के बावजूद भी युवा हैवानियत की सारी हदें पार कर अपराध को अंजाम देते हैं। हैदराबाद में महिला डॉक्टर से बलात्कार और हत्या की घटना के बाद लोगों में आक्रोश है, वे अपराधियों को फांसी की मांग कर रहे हैं। लेकिन दिनों-दिन बढ़ती जनघन्य अपराध प्रवृति से निबटने के लिए मनौवैज्ञानिक तथा दंडसंहिता दोनों का सहारा लेना चाहिए क्योकि अपराध प्रवृति का इतिहास पुराना है। सरकार को अरब देशों की तरह निष्पक्ष जांच और कड़ी सजा के साथ-साथ उन कारणों पर भी शिकंजा कसने की आवश्यकता है जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपराध प्रवृति को बढ़ावा देते हैं। क्योंकि कुछ आतंकवाद जैसे अपराधों में अपराधी मृत्यु दण्ड जैसी सजा होने के बावजूद भी आत्मघात करके अपराध को अंज़ाम देते हैं क्योंकि उन पर सजा से ज्यादा उग्र मानसिकता हावी रहती हैं इसी प्रकार समाज में बढ़ रहे घिनौने कुकृत्यों पीछे भी दुषित मानसिकता और विकृत विचारधारा रहती हैं जिससे विवेक शुन्य युवा अपराध को अंज़ाम देते हैं। इसलिए सबसे पहले हमारी सरकार और सुरक्षा तंत्र को ऐसे अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है।
अपराध की प्रकृति के अनुसार मृत्यु दण्ड जैसी कठोर सजा देकर ऐसे अपराधियों पर नकेल कसी जा सकती है। लेकिन भविष्य में इस गम्भीर समस्या के लिए प्रगतिशील समाज में शौकिया अपराधियों को अपराध प्रवृति से विरत करने के लिए अपराध को प्रोत्साहन देने वाले वातावरण को समाप्त करना जरूरी है। साथ ही हमें पीछे मुड़कर यह भी देखना चाहिए आखिर जिम्मेदार कौन हैं। समाज के मंच और इंटरनेट के प्रचार-प्रसार के युग में हम कितनी हिंसात्मक, भड़काऊ, अश्लीललता, तथा असभ्य प्रवृति फिल्मों, विज्ञापनों तथा अन्य माध्यमों से दिखा रहे हैं ,सुना रहें हैं? रेप गाने, रोमांटिक सीन,लड़ाई के सीन आदि युवाओं को दिखाकर उनसे क्या जता रहे हैं। फिर उनसे सभ्यता और नैतिकता की उम्मीद भी रखते हैं। युवाओं में वासना की आग को जगाने वाले सभी माध्यमों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। आज असमाजिक कृत्यों में लिप्त हो रहे युवाओं को सही मार्गदर्शन ,स्वच्छ मानसिकता, शिक्षा, रोजगार, समायोजन के लिए अवसर,आदर्श जीवन शैली तथा नैतिकता के आधार उपलब्ध कराने की जरूरत है। साथ ही निष्पक्ष जांच और समय पर सजा हो जिससे दरिंदों में भय बना रहे। समय रहते सामाजिक, न्यायिक, कानुनी,सुरक्षा, किशोर शिक्षा आदि हर क्षेत्र में सुधार करना होगा वरना न जाने भविष्य में कितनी हैदराबाद और दिल्ली जैसी मनहूस घटनाएं देखनी पड़ेगी।
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