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Friday, October 10, 2025

Aaj ka sone ka bhav taula आज का सोने का भाव? आखिर कौन तय करता है सोने का भाव गोल्ड के भाव तेजी से क्यों बढ़ रहें हैं

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Gold

price of gold सोने के भाव सोने के भाव में तेजी के कारण 


 What is the price of gold? Why do gold prices increase? आज सोने का भाव क्या है और सोने की कीमतें तेजी से क्यों बढ़ रही हैं — इसके कारण, प्रभाव और आगे की संभावनाएँ क्या है आइए जानते हैं।

आज सोने के भाव (Gold Rate Today)


सोने का भाव रोज़ बदलता है क्योंकि यह एक कमोडिटी (बहुमूल्य धातु) है जिसे वैश्विक एवं स्थानीय कई कारक प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए:

मनी कंट्रोल (Hindi) पर आज (जून 2025 में) 22 कैरेट एवं 24 कैरेट सोने के भाव दिये गये हैं। 
GoodReturns के अनुसार, मुंबई में 24 कैरेट सोने की कीमत प्रति ग्राम ₹12,202 है, और 22 कैरेट की कीमत ₹11,185 है। 

कुछ राज्यों में 22 कैरेट सोने की कीमत ₹92,283 प्रति 10 ग्राम है, और 24 कैरेट सोने का भाव ₹1,00,663 प्रति 10 ग्राम है। 
बाजारों में हाल ही में सोने के भाव में रिकॉर्ड उछाल भी देखा गया है — उदाहरण के लिये, सोना दिल्ली में 2,600 रुपये की बढ़ोतरी के साथ ₹1,26,600 प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गया। 
इस तरह से यह स्पष्ट है कि सोने की कीमतें पहले से ही काफी ऊँची स्तर पर हैं और अस्थिरता बनी हुई है।

सोने की कीमतों में तेजी — कारण


नीचे मैं अलग-अलग कारणों से इस “तेजी” को समझने की कोशिश करूँगा। ये कारण वैश्विक, देशीय और भावनात्मक / प्रवृत्ति-आधारित हो सकते हैं।

वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और संकट — “Safe-Haven” का रोल


जब वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चित होती है — जैसे कि युद्ध, भू-राजनीतिक तनाव, आर्थिक मंदी, वित्तीय संकट — तब निवेशक जोखिम (risk) लेने की बजाय सुरक्षित परिसंपत्तियों (safe assets) में पैसा लगाते हैं। सोना एक पारंपरिक सुरक्षित आश्रय माना जाता है।
इस वर्ष वैश्विक तनावों में वृद्धि हुई है — मध्य-पूर्व संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध, आर्थिक अस्थिरता आदि — जिसने “सुरक्षा की चाह” को बढ़ाया है। 
“ग्लोबल अस्थिरता बढ़ने पर निवेशक सोने की ओर भागते हैं” Econofact की रिपोर्ट कहती है कि सोने की कीमत में हाल की तीव्र वृद्धि का मुख्य कारण वैश्विक अनिश्चितता में वृद्धि है। इसलिए, जैसे ही दुनिया में “खतरा” बढ़ता है, सोने की मांग बढ़ जाती है — और इस मांग के दबाव से कीमत ऊपर जाती है।

मुद्रास्फीति (Inflation) एवं मुद्रा अवमूल्यन


मुद्रास्फीति का मतलब है कि रुपए की क्रय शक्ति (purchasing power) समय के साथ गिरती है। जब मुद्रास्फीति अधिक होती है, बैंक जमा (interest) या अन्य साधारण निवेशों पर रियल (मूर्ति-समायोजित) रिटर्न नकारात्मक हो सकता है — यानी कि आपके पैसे की वास्तविक शक्ति कम हो सकती है। ऐसी स्थिति में, लोग सोने जैसे भौतिक (real) एसेट की ओर रुख करते हैं।
यदि मुद्रास्फीति बहुत अधिक हो, तो पैसे की ज़रूरतों को पूरा करने में परेशानी होती है — सोना एक “हैज” (hedge) बन जाता है। 
साथ ही, यदि भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो जाता है, तो सोने की आयात लागत बढ़ जाती है क्योंकि सोना डॉलर में खरीदा जाता है। इससे स्थानीय स्तर पर सोने की कीमतें और बढ़ जाती हैं। 
इस तरह मुद्रास्फीति + रुपया अवमूल्यन मिलकर सोने की कीमतों पर ऊँचा दबाव डालते हैं।

मौद्रिक नीति और ब्याज दरें Monetary Policy and Interest Rates


सोना कोई ब्याज नहीं देता — यानी कि यदि आप सोना खरीदते हैं, तो आपको कोई नियमित आय नहीं होती। इसलिए, जब ब्याज दरें (interest rates) ऊँचे हों, निवेशक उन साधनों की ओर जाएंगे जो ब्याज देते हैं — बांड, डेपॉजिट आदि। यह सोने की मांग को दबा सकता है।
यदि द्रव्यमान (real) ब्याज दर (मूल्य वृद्धि को मिलाकर) नकारात्मक हो, तो सोना आकर्षक हो जाता है।
इसके अलावा, केंद्रीय बैंक (विशेषकर अमेरिकी फेडरल रिज़र्व) द्वारा दरों में कटौती की उम्मीदें भी निवेशकों को सोने की ओर खींचती हैं क्योंकि कम ब्याज दरें सोने को अधिक आकर्षक बनाती हैं। 
जब फेडरल रिज़र्व दरों को स्थिर रखता है या कटौती संकेत देता है, सोने की मांग बढ़ सकती है। 
इसलिए, ब्याज दरों की दिशा सोने की कीमतों को ऊपर या नीचे धक्का दे सकती है।

केंद्रीय बैंकों का खरीद व्यवहार


कई केंद्रीय बैंक (विशेष रूप से उभरती अर्थव्यवस्थाएँ) इस समय अपनी रिज़र्व पोर्टफोलियो में सोने का भाग बढ़ा रहे हैं, ताकि डॉलर पर निर्भरता कम हो सके।
जब बड़े स्तर पर सोना खरीदा जाए, वह वैश्विक आपूर्ति पर दबाव डाल सकता है और कीमतों को ऊपर ले जा सकता है। 
इस तरह का आचरण यह संकेत देता है कि “स्वर्ण सुरक्षित संपत्ति है”।

मांग – त्योहारी, शादी, सांस्कृतिक कारण


भारत में सोना सिर्फ निवेश का साधन नहीं है — यह एक सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक महत्व भी रखता है।
त्योहारी सीजन (जैसे दिवाली, दशहरा, धनतेरस) और शादी-समारोहों में सोने की मांग बहुत तेजी से बढ़ जाती है। 
एक रिपोर्ट कहती है कि “त्योहारों में FOMO (छूट जाने का डर)” के कारण लोग अभी सोना खरीद रहे हैं, जिससे कीमतों में और तेजी आ रही है। 
भारत, विश्व के बड़े सोना उपभोक्ताओं में से एक है — यहाँ पर व्यक्तिगत निवेश, आभूषण मांग अधिक होती है। 
इस प्रकार, घरेलू मांग में वृद्धि सीधे बाजार दबाव बढ़ाती है।

सीमित आपूर्ति / खनन लागत Limited supply/mining cost


हालाँकि सोना नई धातु की आपूर्ति (खदानों से) सीमित होती है, लेकिन किसी बड़े उत्पादन बढ़ोतरी की संभावना थोड़ी मुश्किल होती है।
सोने का खनन, शोधन और परिवहन महँगा है। यदि इन लागतों में वृद्धि होती है (ऊर्जा, मजदूरी, पर्यावरण नियमों की पूर्ति इत्यादि), तो नई सोने की आपूर्ति महँगी हो जाएगी। 
इसके अलावा, भारत को अधिकांश सोना आयात करना पड़ता है। यदि अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति-दबाव हो या निर्यात-निरोध (export restrictions) हों, तो घरेलू उपलब्धता कम हो सकती है।
इसलिए, सीमित आपूर्ति + बढ़ती मांग = कीमतों में तेजी।

निवेश प्रवृत्तियाँ, ETF और वित्तीय मांग


सिर्फ भौतिक मांग ही नहीं, बल्कि वित्तीय निवेश की प्रवृत्तियाँ भी भूमिका निभाती हैं।
सोना आधारित ETF (exchange traded funds) और अन्य वित्तीय उत्पादों में बढ़ती प्रवाह (inflows) से भी सोने की मांग बढ़ती है। 
यदि निवेशक शेयर, क्रिप्टो या अन्य जोखिम भरे साधन छोड़कर सोने की ओर जाते हैं, तो उस दिशा में दबाव बढ़ता है। कभी-कभी “FOMO” (छूट जाने का डर) या “गुंजाइश है कि और ऊपर जाएगा” जैसी भावना निवेशकों को आगे बढ़ने पर मजबूर करती है।

मुद्रा नीतियाँ, व्यापार संतुलन एवं विदेशी पूँजी प्रवाह Monetary policies, trade balance and foreign capital flows


कुछ और कारक भी हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से सोने की कीमतों को प्रभावित करते हैं:
यदि देश का व्यापार घाटा हो, रुपये पर दबाव पड़ेगा, जिससे सोना महँगा हो सकता है।
विदेशी निवेशों का बहिर्वाह (capital outflows) ऋणहवास या शेयर बाजारों से पूँजी निकलने से भी रुपये पर दबाव डालता है, जिससे आयातित सोने की लागत बढ़ जाती है।
निर्यात-निरोध (trade barriers) या आयात शुल्क में बदलाव, सीमा शुल्क नीतियाँ आदि भी आयातित सोने की कीमत को प्रभावित कर सकते हैं।


तेजी के इस दौर का प्रभाव


सोने की कीमतों की यह तेज़ी केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि लोगों, ज्वेलर्स, निवेशकों और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालती है। चलिए देखते हैं कि इसके क्या सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं:

सकारात्मक प्रभाव


1. निवेशकों को लाभ
जो पहले से सोना रखे हुए हैं, वे पूँजीगत लाभ (capital gains) देख सकते हैं।
2. सोने का उपयोग सुरक्षित आश्रय के रूप में बढ़ना
आर्थिक अस्थिरता की स्थिति में, सोना लोग “सुरक्षित बंदरगाह” की तरह देखते हैं।
3. गहना उद्योग को प्रोत्साहन
यदि सोना महँगा हो, तो लोग छोटे गहने या हल्के डिज़ाइन चुनने लगते हैं, जिससे डिज़ाइन एवं क्रिएटिविटी की मांग बढ़ सकती है।
4. केंद्रीय बैंक की स्वर्ण भंडार नीति
यदि बैंक अधिक स्वर्ण खरीदते हैं, वह उनकी विदेशी मुद्रा और मुद्रा पोर्टफोलियो को विविध बनाता है।


नकारात्मक प्रभाव


1. गहने खरीदने वालों के लिए महँगा
त्योहार, शादी या पूजा के लिए सोना खरीदना सामान्यतः अधिक महंगा हो जाता है, जिससे आम उपभोक्ता दबाव में आ सकता है।
2. आभूषण उद्योग पर दबाव
यदि कीमतें बहुत ऊँची हों, कुछ ग्राहकों की क्रय शक्ति कम हो सकती है और उद्योग को बिक्री घाटे का सामना करना पड़ सकता है।
3. मायावी बुलबुला जोखिम
यदि तेजी अत्यधिक हो जाए और उसे आर्थिक मूल (fundamentals) न सहारा दें, तो अचानक गिरावट का सामना करना पड़ सकता है।
4. सकल आर्थिक संकेतों पर दबाव
यदि सोने की कीमतें तेजी से बढ़ती हैं, यह संकेत हो सकता है कि मुद्रास्फीति अधिक है या मुद्रा नीति अस्थिर है — जो समग्र अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक हो सकता है।


सोने के भावों में बढ़ोतरी की आगे की संभावनाएँ: सोने की कीमतें कहाँ जाएँगी?


भविष्य कह पाना आसान नहीं है, लेकिन कुछ रुझान और अनुमान देखने योग्य हैं:
यदि वैश्विक अनिश्चितता बनी रहती है (जैसे युद्ध, आर्थिक मंदी), तो सोने की कीमत और बढ़ सकती है।
यदि अमेरिका और अन्य शक्तिशाली देशों की केंद्रीय बैंकें ब्याज दरों में कटौती करें या मौद्रिक राहत दें, तो सोने को और समर्थन मिल सकता है।
लेकिन यदि मुद्रास्फीति नियंत्रण में आ जाए या आर्थिक विकास मजबूत हो, तो निवेशक जोखिम संपत्तियों की ओर लौट सकते हैं, जिससे सोने पर दबाव आ सकता है।
यदि भारतीय रुपये में मजबूती आती है या भारत में सोने के आयात एवं टैक्स नीतियाँ सुधरती हैं, तो स्थानीय कीमतों पर नियंत्रण हो सकता है।
लंबे समय में, यदि सोने की मांग स्थिर रहे और आपूर्ति सीमित रहे, तो कीमतों की ऊँची सतह बनी रह सकती है।
एक रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि अगले 5 वर्षों में 10 ग्राम सोने की कीमत ₹2 लाख तक पहुँचने का संभावित लक्ष्य हो सकता है — यदि मौजूदा रुझान जारी रहे। 

आज का भाव: सोने की कीमतें पहले से ही रिकॉर्ड स्तरों पर हैं और बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं।
तेजी के कारण: वैश्विक अनिश्चितता, मुद्रास्फीति, रुपए की कमजोरी, ब्याज दर नीति, केंद्रीय बैंक खरीद, घरेलू मांग (त्योहार, शादी), वित्तीय निवेश प्रवृत्तियाँ और सीमित आपूर्ति — ये सभी कारण मिलकर तेजी को उत्प्रेरित करते हैं।
प्रभाव: निवेशकों, आम जनता, आभूषण उद्योग और अर्थव्यवस्था पर यह तेजी का दौर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव डाल सकता है।
आगामी दिशा: यदि अनिश्चितता और मौद्रिक अशांति बनी रहती है, तो यह तेजी संभवतः जारी रहेगी; लेकिन अगर अर्थव्यवस्था मजबूत हो या नीतिगत सुधार हों, तो रिवर्सल (मूल्य गिरावट) का भी खतरा है।

सोने के भाव कौन तय करता है?


यह समझना ज़रूरी है कि सोने की कीमत (Gold Price) किसी एक व्यक्ति, देश या संस्था द्वारा तय नहीं की जाती, बल्कि यह वैश्विक और स्थानीय कई कारकों और संस्थाओं के संयुक्त प्रभाव से बनती है।आइए इसे विस्तार से समझते हैं 


वैश्विक स्तर पर सोने का भाव कौन तय करता है?


 (A) London Bullion Market Association (LBMA)
दुनिया में सोने का “बेंचमार्क प्राइस” LBMA – London Bullion Market Association तय करती है।
यह संस्था London Gold Fixing या LBMA Gold Price के नाम से प्रतिदिन दो बार (सुबह और दोपहर) सोने का मानक भाव तय करती है।
इसमें विश्व की बड़ी बैंकें और बुलियन ट्रेडिंग कंपनियाँ भाग लेती हैं जैसे:

•HSBC
•JP Morgan
•UBS
•Scotia Mocatta आदि।

यह कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार (USD प्रति ट्रॉय औंस) में घोषित होती है।
पूरी दुनिया में सोने की कीमत का आधार यही LBMA Gold Price होता है।

अगर LBMA ने आज सोने का भाव $2,500 प्रति औंस तय किया है, तो सभी देश अपने स्थानीय मूल्य (रुपये, यूरो, पाउंड आदि) में इसी दर के अनुसार भाव तय करते हैं।


भारत में सोने का भाव कौन तय करता है


भारत में सोने की कीमतें वैश्विक LBMA रेट + मुद्रा विनिमय दर + आयात शुल्क + स्थानीय टैक्स को जोड़कर तय होती हैं।मुख्य रूप से निम्न संस्थाएँ और घटक भारतीय सोने की कीमत पर असर डालते हैं 

(A) Indian Bullion and Jewellers Association (IBJA)

भारत में रोजाना सोने और चांदी की कीमत तय करने का काम IBJA (इंडियन बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन) करती है।
यह मुंबई में स्थित है और देशभर के प्रमुख सोना व्यापारियों, आयातकों और ज्वेलर्स के भाव लेकर औसत तय करती है।
IBJA की वेबसाइट पर रोजाना “22 कैरेट” और “24 कैरेट” सोने के रेट अपडेट होते हैं।
यह भाव बेंचमार्क की तरह काम करते हैं, जिन्हें देशभर के शहरों में ज्वेलर्स अपनाते हैं।
वेबसाइट: www.ibja.co

(B) भारत सरकार और रिज़र्व बैंक (RBI)

सरकार सोने के आयात पर कस्टम ड्यूटी (Import Duty) और GST (3%) लगाती है।
RBI और वित्त मंत्रालय समय-समय पर सोने से जुड़े नियमों (जैसे गोल्ड बॉन्ड, आयात नीति, विदेशी मुद्रा नियंत्रण आदि) को नियंत्रित करते हैं। यदि सरकार आयात शुल्क बढ़ाती है, तो सोना महँगा हो जाता है।
यदि रुपया कमजोर होता है, तो डॉलर में सोना खरीदना महँगा पड़ता है — यानी घरेलू कीमतें बढ़ जाती हैं।

(C) स्थानीय ज्वेलर्स एसोसिएशन और मंडी रेट

भारत बहुत बड़ा देश है, इसलिए हर राज्य या बड़े शहर की अपनी “ज्वेलर्स एसोसिएशन” होती है।
वे IBJA द्वारा घोषित भाव को आधार बनाकर, अपने शहर के टैक्स, ट्रांसपोर्ट और डिमांड को जोड़कर लोकल रेट तय करते हैं। इसीलिए दिल्ली, मुंबई, जयपुर, चेन्नई या लखनऊ के सोने के भावों में थोड़ा फर्क होता है।

सोने के भाव को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्व


कारक प्रभाव

अंतरराष्ट्रीय LBMA दरें वैश्विक बाजार में तय मानक कीमत, भारत में आधार यही होता है।
रुपया बनाम डॉलर दर रुपया कमजोर होने पर सोना महँगा।
आयात शुल्क (Import Duty) सरकार बढ़ाएगी तो कीमत बढ़ेगी।
मांग और आपूर्ति शादी/त्योहारों में मांग बढ़ने पर भाव बढ़ते हैं।
वैश्विक तनाव / युद्ध अस्थिरता बढ़े तो निवेशक सोने की ओर भागते हैं।
मुद्रास्फीति और ब्याज दरें महँगाई या कम ब्याज दरों के समय सोने में निवेश बढ़ता है।

LBMA Gold Price तय कैसे होता है?


1. हर ट्रेडिंग दिन में दो बार (लंदन समयानुसार सुबह 10:30 और दोपहर 3:00 बजे) कीमत तय होती है।
2. बड़े-बड़े बैंकों और ट्रेडर्स से बोली (Bids) और माँग (Offers) ली जाती है।
3. जब मांग और आपूर्ति का संतुलन बन जाता है, तो उस समय की औसत कीमत को “Fix Price” कहा जाता है।
4. यह दर अमेरिकी डॉलर में प्रति ट्रॉय औंस तय की जाती है।
5. इसी दर को बाद में दुनिया भर की मुद्राओं में परिवर्तित करके स्थानीय मूल्य तय किए जाते हैं।


उदाहरण के लिए भारत में सोने की कीमत कैसे तय होती है

मान लीजिए:

LBMA Gold Price = $2,500 प्रति औंस

1 ट्रॉय औंस = 31.1035 ग्राम

1 डॉलर = ₹84

Import Duty = 12.5%

GST = 3%


अब गणना करें 

1 ग्राम सोने की मूल कीमत = (2500 × 84) ÷ 31.1035 = ₹6,750
Import Duty जोड़ें = ₹6,750 + 12.5% = ₹7,593
GST जोड़ें = ₹7,593 + 3% = ₹7,820 प्रति ग्राम (लगभग)
यानी 10 ग्राम = ₹78,200 (लगभग 24 कैरेट शुद्ध सोने का रेट)।
यही रेट IBJA और स्थानीय ज्वेलर्स अपने हिसाब से थोड़ा-बहुत एडजस्ट करते हैं।


क्या सरकार सीधे सोने का भाव तय कर सकती है?


नहीं 
सरकार केवल “नीतियाँ और टैक्स” तय करती है, जैसे:
Import Duty बदलना
GST दरें
गोल्ड बॉन्ड स्कीम
विदेशी मुद्रा नियंत्रण

लेकिन बाजार में सोने की वास्तविक कीमत मांग-आपूर्ति और अंतरराष्ट्रीय रुझान से तय होती है।

इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय स्तर LBMA रोज़ दो बार सोने का वैश्विक बेंचमार्क प्राइस तय करती है।
भारत में IBJA (Indian Bullion and Jewellers Association) रोजाना भारत के औसत भाव घोषित करती है।
सरकार केवल टैक्स, आयात शुल्क और नीति तय करती है, कीमत नहीं।
मूल्य निर्धारण LBMA दर + डॉलर दर + आयात शुल्क + GST + स्थानीय डिमांड = भारत में सोने का भाव।


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