एक देश एक चुनाव" लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक परिप्रेक्ष्य,लाभ- बाधाएं समीक्षा, बिल और संविधान संशोधन तथा समिति की रिपोर्ट Jagriti PathJagriti Path

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Thursday, December 19, 2024

एक देश एक चुनाव" लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक परिप्रेक्ष्य,लाभ- बाधाएं समीक्षा, बिल और संविधान संशोधन तथा समिति की रिपोर्ट

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One Nation one Nation 



"एक देश एक चुनाव" विस्तृत अध्याय 


One Nation One Election: ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल लोकसभा में पेश कर दिया गया. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया, जिसे आमतौर पर ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के रूप में जाना जाता है.
एक देश, एक चुनाव (One Nation, One Election) एक विचार है, जिसमें भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य चुनावों की बार-बार होने वाली प्रक्रिया को कम करना और समय, संसाधन तथा धन की बचत करना है। हालांकि यह बिल पास भी हो चुका है पूरे देश में चर्चा का विषय है पक्ष और विप‌क्ष की बातें हो रही है विरोध हो रहा है। लेकिन अब यह बिल पास होने के बाद संविधान संशोधन का रूख करेगा जहां पर भी मतदान होना है जो महत्वपूर्ण विषय हैं।

हालांकि भारत में एक देश एक चुनाव कोई अनूठा प्रयोग नहीं है, पहले भी इस मुद्दे को की बार विभिन्न सरकारों द्वारा उठाया गया था लेकिन संभव नहीं हो पाया था। फिलहाल एनडीए सरकार इस बिल को पास करवाकर जल्द संविधान संशोधन करवाना चाहती है। बता दें कि वर्ष 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा हो चुका है, जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे। यह क्रम तब टूटा जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएँ विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गई। 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे। सरल भाषा में कहें कि जब इस प्रकार चुनाव पहले भी करवाए जा चुके हैं तो अब करवाने में क्या समस्या है। लेकिन संवैधानिक रूप से इसे लागू करने में संविधान संशोधन की आवश्यकता है इसलिए यह मुद्दा जटिल विषय बन जाता है संयोगवश कुछ राज्यों के विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हो सकते हैं लेकिन हमेशा के लिए साथ-साथ मतदान हो ऐसा कानूनी रूप से तय करना ही वन नेशन वन इलेक्शन का काॅन्सेप्ट है। जिसे समझने की कोशिश करते हैं कि वर्तमान में पूरे देश में एक चुनाव कैसे संभव है तथा इसके लाभ और समस्याएं क्या है?

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद की अध्यक्षता में बनी समिति तथा रिपोर्ट 


191 दिनों की छानबीन के बाद इस समिति ने 18,626 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की। सितंबर 2024 में प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने समिति की सिफ़ारिशों को मंजूरी दी। इसके बाद 12 दिसंबर को 'वन नेशन, वन इलेक्शन' से जुड़े विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी मंजूरी दे दी है, जो इसे क़ानून बनाने की दिशा में पहला कदम था। इस रिपोर्ट की सिफ़ारिशों में बताया गया है कि 
 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए, जिनमें से 32 दल 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के समर्थन में थे। कुछ दलों को छोड़कर बाकी 32 दलों ने साथ-साथ चुनाव कराने का समर्थन किया और कहा कि ये तरीका संसाधनों की बचत, सामाजिक तालमेल बनाए रखने और आर्थिक विकास को तेज़ी देने में मदद करेगा इसी रिपोर्ट के बाद प्रधानमंत्री मोदी और सरकार इस मुद्दे को गम्भीरता से समर्थन कर अमलीजामा पहनाना चाहती है।

क्या है एक देश, एक चुनाव?


इसमें लोकसभा (संसद) और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं।चुनाव हर पाँच साल में एक ही समय पर होंगे। सभी मतदाताओं द्वारा अपने राज्यों के विधायक और और राज्य से चुनने वाले सांसदों को एक ही चुनाव के माध्यम से चुनना है। हालांकि चुनाव आयोग ने पहली बार एक साथ चुनाव करने का प्रस्ताव 1983 में दिया था। लेकिन अब तक संभव नहीं हुआ है।

भारतीय लोकतंत्र की मौजूदा व्यवस्था:


वर्तमान में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे देश में लगभग हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव चलते रहते हैं। जहां राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की सरकारें केन्द्र सरकार के कार्यकाल से भिन्न रूप से चलती है। जैसे कहीं राज्यों में सरकारे गिरती है तो वहां पुनः मतदान होते हैं।

एक देश एक चुनाव के लाभ:


एक देश एक चुनाव के कुछ फायदे भी बताएं जा रहें हैं जो समझना चाहिए।

समय और धन की बचत: 


चुनावों में भारी मात्रा में खर्च होता है, जिसे कम किया जा सकता है। हर बार होने वाले चुनावों में नौकरशाही और प्रशासनिक मशीनरी का प्रयोग खर्चीला साबित होता है इससे समय और धन की बचत होगी।

शासन पर असर कम: 


बार-बार चुनाव होने से प्रशासनिक कार्यों पर असर पड़ता है।
चुनावों में सरकारें एवं राजनीतिक पार्टियां चुनावों में व्यस्त हो जाती है जिससे शासन प्रशासन ने बाधा उत्पन्न होती है।


चुनावी आदर्श आचार संहिता: 


बार-बार चुनाव होने से सरकार को नीति-निर्धारण और विकास कार्य रोकने पड़ते हैं। किसी राज्य में होने वाले चुनावों में बार बार आचार संहिता लागू करनी पड़ती है जिससे राज कार्य में बाधा आती है।

मतदाता जागरूकता: 


मतदाता हर पाँच साल में एक बार सभी स्तरों के चुनाव में भाग लेंगे। जिससे मतदाताओं में चुनावी दिलचस्पी ज्यादा बढ़ेगी तथा उनमें जागरूकता पैदा होगी।



एक देश एक चुनाव के समक्ष चुनौतियां और समस्याएं 


हालांकि एक देश एक चुनाव सुनने में आसान लगता है तथा इसके लाभ भी है लेकिन क्या यह जनता और देश के लिए फायदेमंद है या नहीं?यह भी बड़ा सवाल है। हालांकि कुछ समस्याएं हैं जो एक देश एक चुनाव की स्वीकार्यता को प्रभावित करती है।

संसद और विधानसभाओं का कार्यकाल: 


भारतीय संविधान में संघात्मक ढांचे के अधीन यह व्यवस्था बिल्कुल विपरीत है तथा विभिन्न व्यवस्थाओं में बाधा डालती है। अगर किसी सरकार का कार्यकाल पहले समाप्त हो जाए, तो अस्थिरता बढ़ सकती है। दुसरी तरफ राष्ट्रपति शासन व्यवस्था भी संघात्मक शासन का मुख्य विषय है। कभी कभी केन्द्र में सरकारें अल्पमत में आकर विश्वास खो देती है तथा सरकारें गिर जाती है ऐसे में एक बड़े देश में जहां राज्य सरकारें अपने अलग-अलग कार्यकाल में काम करती है वहीं जिन राज्यों में विधान परिषद है उनका कार्यकाल भी अलग-अलग है ऐसे में संवैधानिक रूप से मौजूदा व्यवस्था में एक देश एक चुनाव संभव नहीं है।

संसाधनों का प्रबंधन: की समस्या 


मौजूदा व्यवस्था में राज्यों में राज्य चुनाव आयोग तथा केन्द्र मे चुनाव आयोग विभिन्न चुनाव का कार्य करवातें है। एक देश एक चुनाव मतलब एक ही समय में पूरे देश में चुनाव करवाना एक बड़ी चुनौती है। एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी मात्रा में सुरक्षाबलों और चुनाव अधिकारियों की आवश्यकता होगी। 
मौजूदा हालातों मे चुनाव व्यवस्था में अधिकारियों और संसाधनों की बड़ी चुनौती रहतीं हैं जो विभिन्न चरणों में चुनाव होते हैं अगर एक दिन में यह सभी चुनाव सम्पन्न करवाने है तो हम कल्पना कर सकते कि कितनी बड़ी मात्रा में प्रशासनिक मशीनरी के उपयोग की जरूरत पड़ेगी तथा बड़े स्तर पर नौकरशाही की जरूरत पड़ेगी जो एक समय में उपलब्ध करवाना बड़ी चुनौती बन सकती है। शान्ति और व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है।

मध्यावधि चुनाव और सरकार की अस्थिरता 


एक देश एक चुनाव की सबसे बड़ी चुनौती किसी राज्य में सरकार के बहुमत गिर जाने के बाद शेष कार्यकाल के लिए दुबारा चुनाव और सरकार बनाने का सवाल है मानते हैं कि किसी राज्य में कोई सरकार अपने चौथे वर्ष में गिर जाती है तो आगामी एक वर्ष के लिए चुनाव करवाने जरूरी नहीं है? अगर है तो एक वर्ष के लिए कौन दल चुनाव में समय बर्बाद करना चाहेगा तथा राजनैतिक दलों को इसमें कितनी दिलचस्प होगी तथा मतदाताओं में इसके लिए कितनी दिलचस्पी होगी? यहां पर अस्थिरता बड़ा सवाल है।

एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन: 


संविधान में कई प्रावधानों को बदलने की आवश्यकता होगी, जैसे अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 आदि। मानों किसी किसी राज्य की विधानसभा अपने पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले भंग हो जाती है, तो उस विधानसभा के शेष पांच वर्ष के कार्यकाल को पूरा करने के लिए ही मध्यावधि चुनाव कराए जाएंगे। विधेयक में अनुच्छेद 82(ए) (लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव) जोड़ने तथा अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), 172 और 327 (विधानसभाओं के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन करने का सुझाव दिया गया है जो संविधान में संशोधन के बाद ही संभव है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद की अध्यक्षता वाली समिति के अनुसार, पहला विधेयक संविधान में एक नया अनुच्छेद – 82A – शामिल करेगा. अनुच्छेद 82A उस प्रक्रिया को स्थापित करेगा जिसके द्वारा देश एक साथ चुनाव की ओर बढ़ेगा। दूसरी तरफ अनुच्छेद 85 के अंतर्गत प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा को भंग करने की राष्ट्रपति की शक्ति को सीमित कर सकता है, जिससे कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्ति संतुलन में संभावित रूप से परिवर्तन आ सकता है। साथ साथ इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन आवश्यक होगी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय का मूल संरचना सिद्धांत इन संशोधनों में बड़ी बाधा बन सकता है। 

एक देश एक चुनाव ONOE :इतिहास और प्रयास:


स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों (1951-52, 1957, 1962, 1967) में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ कराए जाते थे। चुनाव आयोग ने पहली बार एक साथ चुनाव करने का प्रस्ताव 1983 में दिया था। 1999 में लॉ कमीशन ने इसकी सिफारिश की। 2016 और 2020 में संसदीय समितियों ने इसे लागू करने की सिफारिश हुई। बीजेपी सरकार तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक इसे लागू करने के पक्षधर रहे हैं। एक देश एक चुनाव विचार, जिसे प्रथम बार 2017 में प्रस्तावित किया गया था, अब पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा की गई है।

एक देश एक चुनाव प्रक्रिया के लिए समाधान:


इस प्रणाली को लागू करने के लिए व्यापक सहमति, मजबूत तंत्र और संविधान संशोधन की आवश्यकता होगी।
इसके तहत आंशिक रूप से लागू करने के लिए चरणबद्ध योजना बनाई जनी जरूरी है। भविष्य में राज्य और केंद्र में विभिन्न कार्यकाल में आने वाली विसंगतियों के समाधान का उल्लेख कर उनके समाधान की व्यवस्था भी संविधान संशोधन में करनी होगी तथा भविष्य में बन रही विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार व्याख्या करना भी जरूरी होगा जिससे आने वाले समय में उसका जबाब और समाधान संविधान से मिल सके।

एक देश एक चुनाव चिंताजनक कैसे?



भारतीय संविधान भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की रुपरेखा का सबसे बड़ा स्रोत है जहां लोगों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेद प्रत्येक व्यवस्था को सुलझाने के साथ साथ एक दूसरे को जोड़ती है इससे एकज् देश एक चुनाव कानून भारतीय संविधान के अनेक अनुच्छेद को प्रभावित करेगा। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 2 के तहत संसद द्वारा किसी नये राज्य को भारतीय संघ में शामिल किया जा सकता है और अनुच्छेद 3 के तहत संसद कोई नया राज्य राज्य बना सकती है, जहाँ अलग से चुनाव कराने पड़ सकते हैं। वहीं पर यह व्यवस्था किस विकल्प पर कार्य करेगी? इसी प्रकार अनुच्छेद 85(2)(ख) के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा को और अनुच्छेद 174(2)(ख) के अनुसार राज्यपाल विधानसभा को पाँच वर्ष से पहले भी भंग कर सकते हैं। अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल लगाकर लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। इसी तरह अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है और ऐसी स्थिति में संबंधित राज्य के राजनीतिक समीकरण में अप्रत्याशित उलटफेर होने से वहाँ फिर से चुनाव की संभावना बढ़ जाती है। ये सारी परिस्थितियाँ एक देश एक चुनाव के विपरीत हैं।


निष्कर्ष:

एक राष्ट्र, एक चुनाव योजना विवादास्पद है और इसे न्यायालय और संसद में चुनौती मिलने की संभावना है।
"एक देश, एक चुनाव" का उद्देश्य लोकतंत्र को अधिक प्रभावी और सुगम बनाना है, लेकिन इसे लागू करने के लिए चुनौतियों का समाधान और राजनीतिक दलों की सहमति आवश्यक है। तथा सर्वोच्च न्यायालय जब संविधान संशोधन को उचित मानें तथा विभिन्न जटिलताओं का समाधान संविधान में करें तो एक देश एक चुनाव बेहतर साबित होगा।


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