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Sunday, March 31, 2024

Shitala Saptami Parv: शीतला सप्तमी त्योहार शीतला माता की पौराणिक कथा एवं इस त्योहार का महत्व

Sheetala-Saptami
शीतला सप्तमी/शीतलाष्टमी व्रत पूजा


शीतला सप्तमी/शीतलाष्टमी


शीतला सप्तमी का इतिहास भारतीय संस्कृति में बहुत पुराना है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में महत्वपूर्ण माना जाता है, जहां लोग इसे महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर के रूप में मानते हैं। इस दिन लोग शीतला माता की कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा-अर्चना में लगे रहते हैं। शीतला सप्तमी को लोग बासी भोजन करते हैं तथा शीतलाष्टमी का व्रत भी करते हैं। इस प्रकार होलिका दहन के बाद यह त्योहार सप्तमी और अष्टमी के दिन मनाया जाता है। 
होली के त्योहार के बाद शीतला सप्तमी और बास्योड़ा पर्व भी मनाया जाता है 

शीतला सप्तमी का ऐतिहासिक महत्व


शीतला सप्तमी एक हिंदू त्योहार है जो शीतला माता की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार भारत में विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन लोग शीतला माता की पूजा करते हैं और उन्हें प्रसाद के रूप में नैवेद्य चढ़ाते हैं। इस दिन घरों को सफाई की जाती है और खासकर रसोई की सफाई को महत्व दिया जाता है। लोग इस त्योहार के दौरान व्रत रखते हैं और समाज में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। शीतलाष्टमी एक हिंदू त्योहार है जो माता शीतला की पूजा और उनकी आराधना के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार चैत्र माह के अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो किसी वर्ष के मार्च या अप्रैल माह के बीच होती है। यह त्योहार विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रमुखतः मनाया जाता है, जहां भक्त इस दिन माता शीतला की पूजा और उनकी कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

देवी शीतला माता का पौराणिक परिचय


शीतला माता हिंदू धर्म की देवी हैं जिन्हें आमतौर पर विष्णु की अवतार माना जाता है। वे रोगों और महामारियों की रक्षातंत्री मानी जाती हैं और उन्हें अपने भक्तों की सेवा करने का आदर्श माना जाता है। शीतला माता की पूजा भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न रूपों में की जाती है। वे स्वास्थ्य और निरोगता के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।


शीतला माता को भगवान शिव की अर्धांगिनी शक्ति का ही स्वरूप माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवलोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं। लेकिन, राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया। राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गई। शीतला माता के क्रोध की अग्नि से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल लाल दाने हो गए. लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी। तब राजा विराट ने अपनी गलती पर माफी मांगी। इसके बाद राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ। तब से माता देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है। इस प्रकार ‌छोटे बच्चों को चेचक से बचाने के लिए विशेषकर शीतला देवी की पूजा की जाती है। यह वर्णन स्कंद पुराण में शीतला माता से जुड़ी एक पौराणिक कथा में मिलता है ।

राजस्थान में शीतला सप्तमी त्योहार का महत्व


राजस्थान में शीतला सप्तमी का विशेष महत्व है और यहां इसे विशेष उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। शीतला सप्तमी को राजस्थान में "बड़ी शीतला" के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है।
राजस्थान में इस त्योहार को बहुत धूमधाम और उत्सव के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में शीतला माता की पूजा करते हैं और उन्हें खीर, पूरी, खिचड़ी, आलू की सब्जी आदि खाने की प्रसाद मानते हैं। विशेष रूप से गाँवों में शीतला सप्तमी का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, जहां लोग नृत्य, संगीत, मेला, और खेल-मेले का आनंद लेते हैं। राजस्थान में शीतला सप्तमी को धार्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है और यहां लोग इसे खास उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते हैं।


शीतला माता की पूजा कैसे की जाती है?


शीतला माता की पूजा को विशेष रूप से उनकी अवतार और धार्मिक श्रद्धा के अनुसार की जाती है। यहां कुछ मुख्य चरण हैं जो शीतला माता की पूजा में शामिल होते हैं:

1. ध्यान और मन्त्रों का जप: शीतला माता की पूजा शुरू करते समय ध्यान और मन्त्रों का जप किया जाता है। इसमें माता के नामों का जाप और भक्ति भरी मन की अराधना शामिल होती है।

2. पूजा विधि: शीतला माता की पूजा में उपयुक्त पूजा सामग्री जैसे फल, फूल, चावल, दीपक, धूप, नैवेद्य, गंध आदि का उपयोग किया जाता है। यह सभी सामग्री उनकी पूजा में उपयुक्त मानी जाती है।

3. आरती: पूजा के अंत में शीतला माता की आरती गाई जाती है और दीपों की प्रदीपना की जाती है। इसके साथ ही भक्तों को प्रसाद भी बांटा जाता है।

4. व्रत और उपासना: कुछ भक्त शीतला माता के व्रत रखते हैं और उनकी उपासना करते हैं। इसमें विशेष प्रकार की भोग, पूजन, और पर्वों के अनुसार कई विधियां और नियम होते हैं।

यह सभी चरण और विधियां भक्तों के श्रद्धालुता और स्थानीय सम्प्रदायों के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती हैं।


शीतला माता का मेला चाकसू जयपुर


शीतला माता का मेला जयपुर जिले की चाकसू तहसील के ग्राम सील की डोंगरी में चैत्र कृष्ण अष्टमी (मार्च-अप्रैल) पर हर साल शीतला माता की स्मृति में आयोजित किया जाता है। शीतला माता को छोटे चेचक जैसे रोग से बच्चों का रक्षक माना जाता है। देवी शीतला माता का प्रतिनिधित्व लाल पत्थर से किया जाता है। शीतला माता एक पुराण देवी हैं।

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