खेल किस्मत और चुनौतियों का यह सफर और क्रिकेट वर्ल्ड कप के जय पराजय का वह अहसास
दुनिया भर में सबसे रोचक खेल क्रिकेट की शुरुआत तो बहुत पहले हो चुकी थी लेकिन वर्तमान में हो रहे वर्ल्ड कप का आयोजन साल 1975 से शुरू हुआ था। जैसे यह खेल आगे बड़ा तो इस खेल की तकनीक और बारीकियों में परिष्करण हुआ । क्रिकेट खेल के प्रति रुचि और जुनून दिनों-दिन बढ़ता गया आज इस मुकाम पर पहुंचकर यह खेल उस देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने लग गया है।
इसलिए क्रिकेट खेल से जुड़े सभी फोरमेट अपने आप में महत्वपूर्ण है ही लेकिन 50-50 ओवरों के खेल
के बाद 20-20 ओवरों के खेल और टेस्ट मैचों को भी बहुत तवज्जो दी जाती है लेकिन चार वर्षों के बाद आयोजित होने वाला महाकुंभ मतलब एकदिवसीय विश्व कप ट्रॉफी हमेशा हर देश के लिए सपना रहा है। इस ट्राफी और क्रिकेट की बादशाहत को कायम करने में हजारों खिलाड़ियों ने अपने केरियर खपा दिया तो कुछ टीमों को अब भी इस ट्राफी को उठाने का लम्बा इंतजार करना पड़ रहा है। क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतकर ट्रॉफी उठाने का अवसर अपने आप में खास होता है इसलिए हर एक क्रिकेटर की आरज़ू होती है कि वह अपनी कप्तानी या प्रदर्शन से अपने देश को यह तोहफा प्रदान करें।
साल 1975 में वेस्टइंडीज ने आस्ट्रेलिया को हरा कर पहली बार यह ट्राफी अपने नाम की थी उसके बाद आस्ट्रेलिया ने इस ट्राफी से ऐसी मोहब्बत कर ली कि साल 2023 तक वह इसे छ बार जीतकर इसका आदि हो गया है। लेकिन कुछ देशों की टीमों के लिए इस ट्राफी की बहुत अहमियत है वो हर चार साल में अपना सबकुछ दांव पर लगाकर दम-खम लगातें है लेकिन लम्बे सफर और चुनौतियों में कहीं न कहीं चूक कर खाली हाथ लौट जाते हैं।
वर्तमान क्रिकेट खेलने वाली 10 मुख्य क्रिकेट टीमों में केवल 6 टीमों के नाम यह मुकाम आया है दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड जैसी बेहतरीन टीमों को अब भी लम्बा इंतजार करना पड़ रहा है वे केवल एक बार इस ट्राफी को चूमना चाहते हैं लेकिन यह संयोग उनके लिए पिछले लगभग 50 वर्षों का इंतजार है इसलिए यह मुकाम बहुत सी भाग्यशाली खिलाड़ियों के हिस्से में आता है जिसका अपने आप में खेल की भावना तथा भावनात्मक रूप से गहरा संबंध है। अब तक एक से अधिक बार चैम्पियन बनने का अवसर वेस्टइंडीज, आस्ट्रेलिया और भारत को ही मिला है क्रिकेट की शुरुआत करने वाला देश इंग्लैंड तथा इसकी टीम को 1975 से 2015 तक लम्बा इंतजार करना पड़ा था। जिन छ टीमों के कप्तानों ने जब जब अपने देश के लिए यह कप जीतकर तोहफा दिया है उनका नाम हमेशा क्रिकेट इतिहास में बड़ी शान से लिया जायेगा हालांकि हर बार बेहतर प्रदर्शन करने के बाद भी थोड़े से फासले से जो टीमें जीतते-जीतते रह जाती है जिसका मलाल हर खिलाड़ी और उस टीम के नेतृत्वकर्ता को जीवन भर रहता है इसलिए इस मुकाम में उन ऐतिहासिक पलों तथा क्रिकेट का सरताज बनने की अनुभूति को महसूस करते के लिए तकदीर का होना जरूरी है।
साल 1983 कपिल देव के हिस्से में पहला मुकाम
भारत में क्रिकेट का जुनुन और प्रेम चरम पर है भले ही राष्ट्रीय खेल हाकी है लेकिन क्रिकेट प्रोफेशनल और इमोशनल रूप से हर प्रशंसक के दिलो-दिमाग में गहरा समाया हुआ है। भारत की टीम 1975 से ही इस वर्ल्डकप को प्राप्त करने की जिद पर अड़ गया आखिर वर्ष 1983 को कपिल देव की कप्तानी में वो दिन आया जिस दिन भारत ने दुनिया में क्रिकेट का परचम लहराया। यह एक ऐतिहासिक और यादगार पल था जिस गेंद के बाद भारत विश्व चैंपियन घोषित हुआ तथा कपिल देव के हाथों में विधिवत ट्राफी समर्पित कीमुकाम
साल 2011 महेंद्र सिंह धोनी 28 साल बाद किसी दुसरे कप्तान के नाम के संग वर्ल्ड कप ट्रॉफी
क्रिकेट में हार जीत होती है यह सिलसिला हर दिन किसी छोटे मोटे ट्रुनामेंट में चलता रहता है लेकिन विश्व कप की जंग में सभी टीमों के साथ लगभग 10-12 मैचों में अच्छा प्रदर्शन करते हुए आखिर फाइनल या खिताबी मुकाबले में जीतना ही कप उठाने का प्रायय है इसलिए इस चुनौती भरे सफर में तारतम्यता और सिलसिलेवार तरीके से आगे बढ़ना ही चैम्पियन बनने का रास्ता तय करता है लेकिन बहुत कम और विरले मौके ही आते हैं जब यह सब पायदान पार करके उस दहलीज पर पहुंचते हैं जहां अन्तिम में एक ही जीत आपको थोड़ी देर बाद चैम्पियन और विश्व विजेता का ताज आपके सिर पर बांधकर आपको वो ट्राफी सौंप दी जाती है जो उस देश के नागरिकों के लिए गौरव और खुशी की बात होती है।
इसलिए यह अपने आप में इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह मौका कब हाथ लगे और किस कप्तान के नेतृत्व में लगे ? यह बताना बहुत कठिन और अनिश्चितता भरा है। इसलिए उस शख्स का नसीब भी अहम हो जाता है जिसके नेतृत्व में यह संयोग बनता है। 2011 में भारतीय टीम के तात्कालीन कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के हिस्से में वो सबकुछ गया जैसा 1983 में कपिल देव के हिस्से में गया था। हालांकि 20-20 ओवरों के नवीन प्रारूप में भी 2007 में पहले ही आयोजन में महेंद्र सिंह धोनी इसका पहला वर्ल्ड कप भी हासिल कर चुके हैं। लेकिन यह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है कि कब आपकी पूरी टीम बेहतरीन प्रदर्शन कर। एकजुटता के साथ खेलकर चैम्पियन बनेगी और इसका नेतृत्व कर्ता कौन होगा?
महेंद्र सिंह धोनी भारतीय टीम के बेहतरीन कप्तान माने जाते हैं उनकी शांत चित्त कप्तानी और निर्णय हमेशा सम्मान के साथ याद किये जाते उनका व्यक्तित्व महान है ही साथ में उनका नाम जब ताज और विश्व विजेता के साथ आता है तो उनका कद और भी ऊंचा हो जाता है। यह अचीवमेंट हालांकि किस्मत से नहीं जुड़ी हुई है क्योंकि यह दबाव झेलने और अपनी ताकत का उपयोग करते हुए बेहतरीन निर्णयों के साथ साथ बेहतरीन खेल खेलने से जुड़ी है इसलिए जो यह सब करने में जो टीम सफल हो जाती है उसे और उसके नेतृत्वकर्ता के हाथ यह कामयाबी लगती है। लेकिन यह सब आसानी से नहीं होता है इसमें संभावनाएं और असंभावनाए बराबर रूप से मौजूद होती है इसलिए जो बाजी मार जाता है वो खास हो जाता है। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर भी अपनी कप्तानी में यह मुकाम हासिल नहीं कर सकें बेहतरीन खिलाड़ियों की वजह से ही वर्ल्ड कप जीते जाते हैं लेकिन यह संयोग भी अपने आप में खास है कि उस समय नेतृत्व कौन रहा होता है। 1983 हो या 2011 जब जब भारत चैम्पियन बना खेल तो सभी खिलाड़ियों ने अच्छा खेला तभी जीत मिली लेकिन नेतृत्वकर्ता की भूमिका सब पर भारी पड़ती है। विराट कोहली अकेले अनेक मैच जितवा सकते हैं लेकिन उनके नेतृत्व में भी यह ताज मिलना भी आसान नहीं हुआ 2023 में कप्तान रोहित शर्मा उस पायदान से महज एक कदम पीछे रह गये जबकि पुरी टीम पूरे टूर्नामेंट में अजय रही और बेमिसाल रही फिर भी वो क्षण नहीं आ सका जिस क्षण में वो सबसे प्रिय और आकृषित पुरस्कार को उठाकर दुनिया को दिखा सके कि हमारे पास विश्व विजेता का प्रतीक है। इसलिए यह अपने आप में भावनात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि एक गेंद या एक रन तथा एक गलती से हम उस क्षण को प्राप्त करने में बहुत दूर चले जाते हैं जिसका दुबारा इंतजार करना होता है। कभी कभी यह इतना अनिश्चितत हो जाता है कि एक खिलाड़ी के खेल केरियर पूरा होने पर भी सम्भव नहीं हो पाता है। दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ी जो अकेले दम पर खेल का रुख बदल देते हैं वे भी इस विश्व कप के बिना अनेक उपलब्धियों के साथ अपने जीवन में खेल के कालखंड को पूरा कर देते हैं।
विश्व कप की ट्राफी और वो भाग्यशाली कप्तान जिसका नाम इससे जुड़ जाता है
क्रिकेट हो या फुटबॉल एक बेहतरीन खिलाड़ी होने तथा ट्राफी उठाने का संबंध बिल्कुल नहीं है फुटबॉल खेल भला क्रिस्टियानो रोनाल्डो से बेहतर कौन खेल सकता है लेकिन वो पल वो क्षण किसी ने नहीं देखा कि फीफा विश्व कप उठाये हुए रोनाल्डो देखें गये हो। इसलिए महेंद्र सिंह धोनी का नाम और कद ऊंचा हो जाता है कि उनके नेतृत्व में भारत दूसरी बार क्रिकेट का सम्राट बना। अब यह भी अपने आप में महत्वपूर्ण प्रश्न और कयास है कि तीसरा कप्तान कौन होगा जो देश को यह दिखाने में कामयाब होगा कि उसने फाइनल जीतकर एक कीमती धातु से बनी ट्राफी अपने और अपने देश के नाम की हैं? यह श्रण जब भी आएगा अद्भुत और अविस्मरणीय होगा क्योंकि इसमें अब महेन्द्र सिंह धोनी और कपिल देव नहीं होंगे कोई नया चेहरा ही होगा लेकिन कौन होगा इस जबाव में बहुत अनिश्चितता और कौतूहलता है क्योंकि खेल हो या जंग उसमें अपार चुनौतियों के साथ संभावनाएं और असंभावनाए होती है। रोहित शर्मा और विराट कोहली के खेल में कोई कमी नहीं है लेकिन जीवन में कुछ ऐसे मौके होते हैं उसके सामने जीवन छोटा पड़ जाता है आपका बने रहना और उन अवसरों तक पहुंचना अनिश्चितता के अंधकार में होता है क्योंकि हर अवसर में परिस्थितियां , तालमेल और पूर्ण संयोजन भिन्न भिन्न रूप से परिलक्षित होता है। लेकिन संभावनाएं भी उसी रूप में मौजूद होती है।
क्लाइव लॉयड (वेस्टइंडीज) ,कपिल देव (भारत),एलन बॉर्डर (ऑस्ट्रेलिया),इमरान खान (पाकिस्तान),अर्जुन रणतुंगा (श्रीलंका) स्टीव वॉ (ऑस्ट्रेलिया),रिकी पोंटिंग (आस्ट्रेलिया) महेंद्र सिंह धोनी (भारत) माइकल क्लार्क (ऑस्ट्रेलिया) इयान मोर्गन (इंग्लैंड), पेट कमिंस (आस्ट्रेलिया) इन सब ने कैसे और कब सोचा होगा कि हजारों खिलाड़ियों की लम्बी मेहनत और पसीने से हासिल की गई उपलब्धि के साथ वे हमेशा याद किये जायेंगे। इसलिए एक विश्व के एक नम्बर खिलाड़ी बनने के बाद भी उस खेल का सर्वोच्च पुरस्कार उसके हाथ लगे यह बहुत आहत करने वाली बात है क्योंकि जिन खेलों में चाहे क्रिकेट हो या फुटबॉल जहां एक से अधिक सदस्यों के साथ खेला जाता है वहां पूरी टीम का तालमेल और पूर्ण योगदान की बदोलत ही चैम्पियन का सपना साकार होता है इसलिए यहां अनिश्चितता और भी बढ़ जाती है राहुल द्रविड़,सौरव गांगुली,क्रिस गेल, हर्शल गिब्स, जैसे खिलाड़ियों को बिना वर्ल्ड कप की ट्राफी उठाये अपने खेल केरियर को समाप्त करना पड़ा। हजारों बेहतरीन क्रिकेटर रहे हैं और भविष्य में भी होंगे जो अपने खेल केरियर में उस मुकाम के लिए तरसते रहेंगे। इसलिए कोई टीम विश्व कप के फाइनल में बहुत कम अंतर या दूरी से चैम्पियन बनने से रह जाती है तो यहां कोई बड़ी क्षति और नकारात्मक भावों वाली बात नहीं है क्योंकि हार जीत और तरसना पाना ही खेल का एक खूबसूरत हिस्सा है लेकिन अहसास और इतिहास के पन्नों में गर्द से ढके पन्ने को जब पलटा जाये और तनिक भावनात्मक रूप से महसूस किया जाए तो कहीं न कहीं किस्मत नसीब जैसे भाव हमारे जहन से खेल को उस नजरिए से झलक दिखाते हैं कि काश ऐसा होता तो आज यहां उस सख्स के नाम यह आंकड़े दर्ज होते। लेकिन बहुत कम फासले से कोई कैसे अपना नाम दर्ज करवाता है तो कोई कैसे सबकुछ दांव पर लगाकर उस लम्हे के बहुत करीब से गुजर कर बहुत दूर चला जाता है जिसे इतिहास बेरहमी से भुला देता है। एक खिलाड़ी या एक खेल प्रेमी के लिए ऐसे भावुक पल उसका पीछा कभी नहीं छोड़ते। एक खेल प्रेमी अन्दर सबकुछ महसूस करता है वो विजेता वाली रात जिसकी सुबह नहीं होती और वो एक लम्बा इंतजार और अपने से हमेशा के लिए दूर जाता एक लम्हा!
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