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Wednesday, March 30, 2022

The Kashmir Files: द कश्मीर फाइल्स मूवी रिव्यू जानिए इस फिल्म के रिलीज होने के बाद देश की आबोहवा और राजनीति क्यों गर्मा गई

The Kashmir Files movie cast story and review
The Kashmir Files Photo credit Facebook



The Kashmir Files: द कश्मीर फाइल्स 


ड्रामा या मूवी समाज देश और वातावरण का दर्पण होती है तो दूसरी तरफ यह पर्दे पर दिखाई कहानियां लोगों के विचार और सोच बदल देती है। फिल्में अक्सर कल्पनाओं के अलावा जानकारी के स्रोत के रूप में भी समाज और किसी देश के माहौल को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रंगमंच पर प्रदर्शन किए गए यह दृश्य केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि देश के लोगों में शान्ति-तनाव, नैतिकत-अनैतिक, नफरत-प्रेम आदि प्रकार के परिवर्तन के लिए जिम्मेदार होती है तो दूसरी तरफ यह इतिहास और भविष्य का आइना दिखाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। कुछ मूवीज़ समाज की कूरीतियों , जुल्म तथा शोषण के खिलाफ आवाज और न्याय के लिए प्रसांगिक भी होती है। लेकिन दुर्भाग्यवश लाखों फिल्मों के बाद भी सुधार की गुंजाइश कम और खौफ और एक्शन की नकल ज्यादा की जा रही है। हालांकि आजकल लोगों की जरूरतों के हिसाब से फिल्मों में सच्चाई और संस्कारों की जगह एक्शन लड़ाई और अश्लील दृश्य ज्यादा दिखाये जातें हैं। हमने बात की कि फिल्में वास्तविक और छुपी हुए रहस्यों को पर्दे पर लाने का काम करती है।
लेकिन विडंबना यह है कि बंद कमरों में लिखी गई कहानियां अक्सर राजनीति,धर्म और देश के साम्प्रदायिक तथा जातिगत तथा धन लालचा के पूर्वग्रह से दूषित हो जाती है। जिससे यह देश में सौहार्द का माहौल ख़राब करती है। दूसरी तरफ फिल्में निर्माता और निर्माता कंपनी में काम करने वाले लोगों के विचारों से प्रभावित भी होती है। इसलिए बालीवुड में अनेक फिल्में धार्मिक पक्षपात तथा अन्य विवादों के चलते बदनाम हुई है तथा जनता का विरोध भी झेला है।
बात करते हैं कश्मीर फाइल्स फिल्म की जिसके आने के बाद हर हिन्दू व्यक्ति इस फिल्म को सच दिखाने तथा लम्बे समय से सच छुपाने का आरोप पहले के फिल्मी करोबार पर लगाकर फिल्म को बहुत शानदार फिल्म बता रहे हैं। संसद से बड़े बड़े राजनीतिक नेताओं की जुबानी इस फिल्म की बात सुनी जा सकती है। यह भी जानेंगे कि वह फिल्म की कहानी क्या है जिसकी वजह से देश में एक बहस छिड़ गई है।
गौर करने वाली बात यह है कि आखिर इस फिल्म में ऐसा क्या दिखाया गया है जिससे यह फिल्म सुर्खियों के सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है ।
आइए जानते हैं कश्मीर फाइल्स फिल्म की कास्टिंग, पटकथा तथा अन्य महत्वपूर्ण बातें जो इस मूवी को खास बना रही है।


कश्मीर फाइल्स के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री


द कश्मीर फाइल्स फ़िल्म के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री हैं, जो इससे पहले लालबहादुर शास्त्री की मौत से जुड़ी मिस्ट्री पर एक फ़िल्म द ताशकंद फाइल्स बना चुके हैं। इसके अलावा लेफ़्ट विंग को लेकर बनी उनकी फ़िल्म बुद्धा इन अ ट्रैफ़िक जाम ने भी काफ़ी सुर्ख़ियां बटोरी थीं। अब वो 'द कश्मीर फाइल्स' दर्शकों के सामने लेकर आए हैं। उनकी यह फिल्म सुर्खियों में बनी हुई है वहीं यह फिल्म राजनीति को लेकर काफी विवादित भी हो रही है।


द कश्मीर फाइल्स रिलीज डेट व बाक्स आफिस कलेक्शन
The Kashmir Files Box Office Collection


ऑनलाइन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 'द कश्मीर फाइल्स' की कमाई अभी तक 232.72 करोड़ रुपये हो गई है। द कश्मीर फाइल्स के रिलीज डेट की बात करें तो यह मूवी 11 मार्च 2022 को रिलीज हुई थी।

कश्मीर फाइल्स मूवी का विषय The Kashmir File Subject


कश्मीर फाइल्स का विषय 1990 के वर्ष में वहां के पंडितों पर हुए अत्याचारों को बयां करता है। इस फिल्म के रिलीज होने के बाद ऐसा बताया जा रहा है कि 32 सालों तक कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के क्रूरता से भरे किस्से को एक आवरण में कैद रखा गया। लेकिन, हाल ही में रिलीज हुई निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स ने कश्मीरी पंडितों की अमिट पीड़ा को पर्दे पर उतार कर देश में एक बहस छेड़ दी है। चौक-चौराहे से लेकर सोशल मीडिया तक पर द कश्मीर फाइल्स का जिक्र छिड़ा हुआ है। द कश्मीर फाइल्स की रिलीज के साथ ही पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों और आतंकवादियों की भी चर्चा की जाने लगी है। इस फिल्म के बाद बीजेपी सरकार के नेता फिर से कांग्रेस पर हिन्दूओं पर अत्याचार होने पर कोई कार्रवाई ना करने का आरोप लगाकर इस फिल्म की चर्चा के बहाने हिन्दू मुस्लिम राजनीति को हवा दे रहे हैं तो दूसरी तरफ कट्टर हिन्दू इस मूवी को बड़ी और सच्चाई वाली 

कश्मीर फाइल्स फिल्म की कहानी The Kashmir Files Story


फिल्म की कहानी की बात करें तो कहानी इतिहास की बुरी यादों को फिर से ताजा करने वाली है। 1990 में घटित घटनाओं के बारे में है जिसमें कश्मीर के पंडितों को वहां से भगाया जाता है। फिल्म 1990 से शुरु होती है और मौजूदा साल तक पहुंचती है। इस फिल्म की पटकथा में लेखक कश्मीर में पंडितो पर हुए अत्याचारों को दुनिया में फिर से एक्टिंग के माध्यम से सामने लाता है। इस कहानी की शुरुआत में दिल्ली में पढ़ रहा कृष्णा (दर्शन कुमार) अपने दादाजी पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए श्रीनगर जाता है। कश्मीर के अतीत से बेखबर वह अपने परिवार से जुड़ी सच्चाई की खोज में है। श्रीनगर में उसकी मुलाकात दादाजी के चार दोस्तों से होती है। उनके बीच धीरे धीरे कश्मीरी पंडितों के पलायन और नरसंहार की चर्चा शुरु होती है और कहानी पहुंचती है साल 1990 में जिस समय कश्मीर के पंडितों को वहां से पलायन के लिए मजबूर किया गया था।
साल 1990 की कहानी जेकेएलएफ (JKLF) द्वारा सतीश टिक्कू की हत्या के साथ शुरू होती है। फिल्म में दिखाया जाता है कि किस प्रकार कश्मीर की गलियों में आतंकी बंदूकें लेकर खौफनाक मंजर दिखाते हैं और कश्मीरी पंडितों को ढूंढ ढूंढ कर मार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं। ना महिलाओं को बख्शा जा रहा है, ना बच्चों को। गली गली में 'रालिव, चालिव या गालिव' के नारे गूंज रहे हैं, जिसका अर्थ है " या तो धर्म बदलो, या भागो या मर जाओ......" इस फिल्म के पहले दृश्य के साथ ही निर्देशक स्पष्ट कर देते हैं कि यह फिल्म 1990 की घटना को मार्मिक तरीके से पेश करने वाले हैं।
प्रलेखित रिपोर्ट्स के आधार पर फिल्म कश्मीरी पंडितों पर हुए तमाम हिंसा को दर्शाती है। बीके गंजू की चावल की बैरल में हत्या हो या नदीमर्ग नरसंहार हो, जहां 24 कश्मीरी पंडितों को भारतीय सेना की वेश में आए आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। ये घटनाएं हम पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) और उनके परिवार की नजरों से देखते हैं। वह अपने बेटे, बहू और दो पोतों के साथ श्रीनगर में रहते हैं। जब उनके परिवार पर खतरा मंडराता है तो वो अपने चार दोस्तों ब्रह्म दत्त (मिथुन चक्रवर्ती) जो कि आईएएस हैं, डीजीपी हरि नारायण (पुनीत इस्सर), विष्णु राम (अतुल श्रीवास्तव) जो कि मीडिया के लिए काम करते हैं और डॉ महेश कुमार (प्रकाश बेलावाड़ी) से मदद मांगते हैं, लेकिन तत्कालीन राज्य के अपंग प्रशासन के सामने सभी असहाय दिखाई देते हैं। ये सभी किरदार प्रतीकात्मक हैं, जो उस वक्त मौन रही सरकार को दिखाते हैं। निर्देशक ने फिल्म में कृष्णा की दुविधा के द्वारा आज के युवाओं को इंगित किया है। एक तरफ उसकी प्रोफेसर राधिका मेनन (पल्लवी जोशी) कश्मीर की "आजादी" के नारे लगवाती है, दूसरी तरफ है उसके परिवार और कश्मीरी पंडितों का इतिहास। कृष्णा किस पक्ष की ओर से न्याय की मांग करता है, यही है फिल्म की कहानी है।

कश्मीर फाइल्स फिल्म की पूरी कास्ट The Kashmir Files Cast


कश्मीर फाइल्स फिल्म की कास्टिंग की बात करें तो मुख्य एक्टर मिथुन चक्रवर्ती जो आईएएस ब्रह्मा दत्त के रूप में अदाकारी करते हैं। अनुपम खेर पुष्कर नाथ पंडित की भूमिका में नजर आते हैं। अन्य एक्टर्स के रोल की बात करें तो दर्शन कुमार कृष्ण पंडित के रूप में पल्लवी जोशी राधिका मेनन के रूप में, चिन्मय मंडलेकर फारूक मलिक बिट्टा के रूप में प्रकाश बेलावाड़ी डॉ महेश कुमार के रूप में
 पुनीत इस्सर डीजीपी हरि नारायण के रूप में, शारदा पंडित के रूप में भाषा सुंबली तथा अफ़ज़ल के रूप में सौरव वर्मा, लक्ष्मी दत्त के रूप में मृणाल कुलकर्णी पत्रकार विष्णु राम के रूप में अतुल श्रीवास्तव,पृथ्वीराज सरनाइक शिव पंडित के रूप में तथा करण पंडित के रूप में अमान इकबाल की भूमिका अदा करते हैं।



द कश्मीर फाइल्स फिल्म का विवादित पक्ष


इतिहास की किसी घटना पर फिल्म बनाना या उस घटना को कहानी में बयान करना अपने आप में चुनौती पूर्ण और खतरे वाला विषय है क्योंकि जरा सी भी काल्पनिकता इस विषय को विवादित बना सकती है। भारत और विश्व के अन्य युद्ध और प्राचीन नरसंहारों को कहानी के रूप में बताना तो आसान है लेकिन इसके बाद लोगों के दिमाग में बनने वाले हिंसक सम्प्रत्य मौजुदा सौहार्द और शांति के लिए घातक सिद्ध हो जाते हैं। उदाहरण के लिए भारत में मुगलों के हमलें और साम्राज्य विस्तार को अब लोगों को दिखाना बेतुका और व्यर्थ होगा क्योंकि इतिहास की घटनाओं के लिए तात्कालिक परिस्थितियां और लोग जिम्मेदार होते हैं। हालांकि द कश्मीर फाइल्स 1990 की है तो यह घटना ज्यादा पुरानी नहीं है। ऐसे में यह फिल्म और इसकी कहानी हिन्दू लोगों के मस्तिष्क में विप्लव पैदा करेगी तो साथ ही साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का काम करेगी। इसलिए इस फिल्म का विरोध भी किया जा रहा है दूसरी तरफ वहीं बीजेपी सरकार व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित बड़े नेताओं ने तारीफ़ भी की है। 
द कश्मीर फाइल्स मूवी की आलोचना की बात करें तो कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने इस फिल्म को साम्प्रदायिक सौहार्द के विपरित बताया है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सवाल उठाया है कि फिल्म मेकर बताएं ये डॉक्यूमेंट्री है या कमर्शियल फिल्म। उन्होंने यह भी कहा कि उस वक्त वीपी सिंह सरकार थी, उनके पीछे बीजेपी खड़ी हुई थी। नेशलन कॉन्फ्रेंस के नेता मुस्तफा कमाल ने विवादित बयान दिया है। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit Exodus) के साथ जो हुआ वह उनकी अपनी मर्जी से हुआ। उन्होंने कहा कि 1990 में हुई इस घटना के लिए फारूक अब्दुला जिम्मेदार नहीं थे, उस समय राज्य में जग मोहन की सरकार थी और उसके जिम्मेदार वो थे।
वहीं इस फिल्म की चर्चा देश के कोने-कोने में होने लगी कोई तारीफ़ कर रहा है तो कोई आलोचना राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कश्मीर फाइल्स देश में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ती है। उन्होंने कहा कि अतीत पर टिप्पणी करना सही नहीं है। पूरे देश और सभी धर्मों के लोग उस समय की घटनाओं का दर्द महसूस करते हैं। यह फिल्म हिंदू-मुसलमानों और अन्य सभी धर्मों के बीच विभाजन को बढ़ा सकती हैं। कांग्रेस तमिलनाडु प्रमुख केएस अलागिरी ने कहा कि फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' एक समुदाय के खिलाफ नफरत को उकसाती है। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य एकतरफा अर्धसत्य और निराधार मनगढ़ंत बातों को प्रदर्शित करके इस्लामी लोगों के खिलाफ नफरत को भड़काना है। दूसरी तरफ इस फिल्म के विवाद की बात करें तो यह फिल्म इतिहास के विवादित अध्याय से जुड़ी है तो इस मूवी के देखने के बाद हिन्दू लोगों में मुस्लिम धर्म के प्रति नफ़रत का माहौल पैदा होगा । हालांकि उस समय घटित इस घटना का न्यायिक पक्ष तथा रिकार्ड को भी मध्यनजर रखना जरूरी है। बीबीसी की एक पोस्ट के मुताबिक जम्मू और कश्मीर सरकार ने 2010 में विधानसभा को बताया था कि 1989 से 2004 के बीच कश्मीर में 219 पंडित मारे गए थे। राज्य सरकार के अनुसार, उस समय कश्मीर में 38,119 पंडित परिवार रजिस्टर्ड थे, जिनमें से 24,202 परिवार पलायन कर गए थे। इस प्रकार इन आंकड़ों के संदेह एवं कहानी के सचमुच साक्ष्यों के बिना एक बड़ी स्क्रिप्ट लिखना विश्वसनीयता के आधार पर बड़ी चुनौती होती है। भारत सहित अनेक देशों में इतिहास में अनेक नरसंहार और विवादित घटनाएं हुई हैं जिसे वर्तमान में विश्लेषित करना नये विवाद को जन्म देती है। भारत में मुगल साम्राज्य तथा अंग्रेजी हुकूमत की विभिन्न रक्तरंजित घटनाओं के बाद विभाजन तक जो मसले हुए अब उन गढ़े मुर्दे उखाड़ कर लोकतांत्रिक व्यवस्था में ताजा करना प्रसांगिक नहीं है। देश की आजादी के बाद भी विभिन्न घटनाएं हुई हैं क्या उन सब पर हकीकत आधारित फिल्में बनना संभव है? 

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