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Monday, August 9, 2021

विश्व आदिवासी दिवस: शुरुआत एवं इतिहास तथा वर्तमान में आदिमजाति की दिशा एवं दशा

World tribal day
World Tribal Day: Beginning and History and Direction and Condition of Tribals in Present


विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त


भारत समेत विश्व के कई देशों में आदिवासी जाति के लोग निवास करते हैं। इनका रहन-सहन, खान-पान और रीति-रिवाज और पहनावा आदि बाकी अन्य लोगों से अलग होता है। समाज के मुख्यधारा से कटे होने की वजह से दुनियाभर में आदिवासी लोग आज भी काफी पिछड़े हुए हैं। भले ही यह लोग पिछड़े हुए हो लेकिन इनकी संस्कृति और रहन सहन आज भी इतिहास की झलक दिखाता है।
भारत सहित विश्व में आदिवासी समाज के मुख्यधारा से जोड़ने और आगे बढ़ाने के लिए देश-दुनिया में विभिन्न तरह के सरकारी कार्यक्रम और गैर-सरकारी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। भारत की आजादी की लड़ाई में आदिवासी समाज के लोगों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आजादी की लड़ाई में बिरसा मुंडा ने झारखंड और छोटानागपुर क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन आज विकास की पटरी पर तेज दौड़ तथा आधुनिक युग में आदिवासी लोग बहुत पीछे रह रहे हैं। आदिवासी लोगों में शिक्षा और आधुनिक युग की जागरूकता ना होना उनकी एक बड़ी समस्या है।
विश्व के आदिवासी लोगों की संस्कृति और उनके अस्तित्व को सम्मान देने के लिए प्रति वर्ष आदिवासी दिवस World Tribal Day मनाया जाता है। आइए आदिवासी शब्द की उत्पत्ति तथा आदिवासी दिवस के इतिहास और महत्व के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।

आदिवासी शब्द का अर्थ,इतिहास तथा दिशाज्ञ एवं दशा


आदिवासी शब्द दो शब्दों 'आदि' और 'वासी' से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। आदि यानी बहुत पहले के तथा वासी यानी निवासी जो लोग आदिकाल से इस पृथ्वी पर मौजूद रहे हैं वे आदिवासी या मूल निवासी है। प्रत्येक देश में आदिवासी शब्द उन लोगों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो लोग मूलरूप से उस देश से सबसे प्राचीन निवासी या नागरिक रहें हैं। भारत में आदिवासी लोगों की बात करें तो भारत में आज भी पहाड़ी इलाकों में आदिवासी लोग बड़ी मात्रा में निवास करते है जिनका रहने सहन और जीवन शैली अन्य लोगों से थोड़ी भिन्न रहती है। भारत में आदिवासियों की प्रमुख समस्या उनकी शिक्षा तथा मुख्य धारा से जुड़ा हुआ होना नहीं है इसलिए आधुनिक युग में यह बहुत जरूरी है कि देश के सभी लोग समान रूप से आधुनिक सुख-सुविधाओं का उपयोग करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा बनें। भारत में आदिवासियों की समस्यायों पर केवल सियासत होती है और वोट बैंक बनाने की कोशिश की जाती है लेकिन वास्तविक समाधान नहीं किया जा रहा है। इसलिए भारत में आज भी आदिवासी लोगों की स्थति दयनीय है उनके प्राकृतिक आवास जंगलों पर कब्जा किया जाता है लेकिन उनके कल्याण हेतु कारगार कदम नहीं उठाये जाते हैं। भारत की कुल जनसंख्या का 8.6% (लगभग 10 करोड़) बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। इनमें से कुछ आदिवासी स्थायित्व की और चल कर मुख्य धारा से जुड़े हैं तो कुछ आज भी जंगली जीवन यापन कर रहे हैं। आदिवासियों के महात्मा गांधी का कथन प्रसिद्ध है जिसमें वे आदिवासियों को गिरिजन (पहाड़ पर रहने वाले लोग) कहते है। यह कथन सार्थक भी है क्योंकि अधिकतर आदिवासियों का निवास पहाड़ी क्षेत्रों में ही होता है।
भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए 'अनुसूचित जनजाति' (ST) Scheduled Tribes शब्द का उपयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में भीलाला, धानका, गोंड, मुण्डा, खड़िया, हो, बोडो, कोल, भील, कोली, फनात, सहरिया, संथाल, कुड़मी महतो,मीना मीणा, उरांव, लोहरा, परधान, बिरहोर, पारधी, आंध, टाकणकार आदि हैं।

इसलिए मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस


विश्व के लगभग 90 से अधिक देशों मे आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। दुनियाभर में आदिवासी समुदाय की जनसंख्या लगभग 35-37 करोड़ है, इनकी लगभग सात हजार भाषाएं हैं। इसके बावजूद आदिवासी लोगों को अपना अस्तित्व, संस्कृति ,भाषा और सम्मान बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। आज दुनियाभर में नस्लभेद, रंगभेद, उदारीकरण जैसे कई कारणों की वजह से आदिवासी समुदाय के लोग अपना अस्तित्व और सम्मान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत में झारखंड की कुल आबादी का करीब 28 फीसदी आदिवासी समाज के लोग हैं। इनमें संथाल, बंजारा, बिहोर, चेरो, गोंड, हो, खोंड, लोहरा, माई पहरिया, मुंडा, ओरांव आदि बत्तीस से अधिक आदिवासी समूहों के लोग शामिल हैं। इसलिए आदिवासियों में मुख्य धारा से जुड़े लोगों ने शिक्षा तथा जागरूकता के दम पर हमेशा अपनी समस्याओं को लेकर समय समय पर आंन्दोलन किए हैं तथा सरकारों को अपनी मांगों और समस्याओं के समाधान की अपील की है। इसलिए इन लोगों की समस्यायों का समाधान तथा इनकी संस्कृति और रहन-सहन को सम्मान देने तथा विश्व पटल पर लाने के लिए आदिवासी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है जो भारत सहित विश्व के कई देशों में मनाया जाता है। इस दिन को होने वाले कार्यक्रम तथा जागरूकता अभियान अपने आप में इस समुदाय को नवीन पहचान दिला रहे हैं। जो हर वर्ष में एक दिन 9 अगस्त को आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन आदिवासी लोगों में जागरूकता का संसार तथा गौरवशाली इतिहास की पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। इस दिन आदिवासी लोगों के महापुरुषों और उनके संघर्ष की कहानी विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से प्रचारित की जाती है।


UN(संयुक्त राष्ट्र) में आदिवासी दिवस की पहल तथा संवर्धन


आदिवासी लोगों का संघर्ष और गौरवशाली इतिहास उनको संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गया। जिससे साबित होता है कि आदिवासी लोगों की संस्कृति और सभ्यता को मानव जाति से अलग नहीं किया जा सकता है। इसलिए उनको बराबर अधिकार और स्वतंत्रता देने के लिए उनके लिए वैश्विक स्तर के प्रयास जरूर थे। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने 9 अगस्त 1982 को प्रथम बार आदिवासी विषय पर चर्चा की थी। इसके बाद 1994 से प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया। इसी क्रम में 13 सितंबर 2007 को विश्व आदिवासी अधिकार घोषणा पत्र 144 राष्ट्रों की सहमति से जारी किया गया, ताकि विश्व के 90 देशों में रह रहे करीब 37 करोड़ (विश्व आबादी का 6.2%) आदिवासियों के हासा (भूमि), भाषा, जाति, धर्म, इज्जत, आबादी, रोजगार, चास-वास और आत्म- निर्णय आदि का संरक्षण और संवर्धन संभव हो सके। इस दिन अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र (United Nation) में आदिवासी संगठन के लोग सामूहिक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। इस दौरान आदिवासियों की मौजूदा स्थिति और भविष्य की चुनौतियों और समस्याओं को लेकर चर्चा होती है। साल 2021 में विश्व आदिवासी दिवस की थीम है "किसी को पीछे नहीं छोड़नाः स्वदेशी लोग और एक नए सामाजिक अनुबंध का आह्वान" रखी गई है। अमेरिका पहला देश है जिसने साल 1994 में अमेरिका से अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस की शुरुआत हुई थी दरअसल अमेरिका में पहली बार साल 1994 में आदिवासी दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था‌ जिसके बाद से हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन किया जाता है।


भारत के राजस्थान में आदिवासी दिवस का अवकाश घोषित


भारत के राजस्थान राज्य में अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी को महत्वपूर्ण दिवस मानते हुए इस दिन को धूमधाम से मनाने के साथ साथ सरकारी दफ्तरों में अवकाश की घोषणा की गई है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में 9 अगस्त को सम्पूर्ण राजस्थान में सार्वजनिक अवकाश घोषित करने का निर्णय लिया । गहलोत ने आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधियों की काफी लम्बे समय से चली आ रही मांग पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने का महत्वपूर्ण निर्णय किया है। इस दौरान गहलोत सरकार ने आदिवासी लोगों के हित के लिए विभिन्न योजनाओं का शुभारंभ किया। राजस्थान में आदिवासी आबादी की भौगोलिक स्थिति और वितरण की बात करें तो राज्य में यह आबादी आधुनिक सभ्यता के प्रभाव से वंचित रहकर अपने प्राकृतिक वातावरण के अनुसार जीवन यापन करते हुए अपनी भाषा, संस्कृति, रहन-सहन आदि को संरक्षित किए हुए हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 92.38 लाख। (कुल जनसंख्या का 13.48%) है आबादी के दृष्टिकोण से राज्य में उदयपुर जिला जनजातियों की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण जिला माना जाता है। राजस्थान राज्य का भारत में अनुसूचित जनजाति की आबादी की दृष्टि से 6 वां स्थान हैं।

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