नक्सलवाद Naxalism माओवाद maoism तथा मार्क्सवाद marxism में वैचारिक संबंध एवं उदय
नक्सलवाद की पृष्ठभूमि के लिए हमें मार्क्सवाद और साम्यवाद को समझना चाहिए। मार्क्सवादी विचारधारा के जन्मदाता कार्ल मार्क्स 1818-1883 तथा फ्रेडरिक एन्जिल्स 1820-1895 है। इन दोनों विचारको ने इतिहास history समाजशास्त्र sociology विज्ञान science अर्थशास्त्र economic व राजनीति विज्ञान political science की समस्याओ पर संयुक्त रूप से विचार करके जिस निश्चित विचारधारा को विश्व के सम्मुख रखा उसे मार्क्सवाद का नाम दिया गया। दूसरी तरफ बात करें साम्यवाद की तो कार्ल मार्क्स के कम्युनिस्ट घोषणापत्र ने 1848 में एक विचारधारा के रूप में प्रमुख रूप से साम्यवाद को स्थापित किया था। मार्क्सवाद की बात करें तो यह विश्व की बहुत पुरानी विचारधारा है। साम्यवाद, सामाजिक-राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत एक ऐसी विचारधारा के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की बात कही गई है। अब हमें नक्सलवाद को बारीकी से समझने के लिए माओवाद को समझना चाहिए माओवाद चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओत्से तुंग की विचारधारा है जो शस्त्र संघर्ष के पक्ष में रहकर संपूर्ण व्यवस्था को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने में विश्वास करती है। उनके विचारों के समर्थन को ही माओवाद कहा गया। इसप्रकार नक्सलवाद के विचारों के पूंज को इन पूर्व विचारधाराओं में बिठाकर अगर माओवाद से जोड़े तो हमें लगता है कि माओवाद साम्यवाद के नजदीक तथा सम्यवाद मार्क्सवाद से उत्पन्न होता। रूसी क्रान्ति की पृष्ठभूमि भी लेनिन नेे मार्क्स से प्रभावित होकर तैैैयार करता है। ताजुब वाली बात यह है कि इस क्रांति से रूस में सर्वाहारा वर्ग की दशा और दिशा ही बदल जाती है।
मार्क्सवाद या माओवादी आन्दोलन गरीबों और पिछड़े शोषित वर्गों के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं जिसकी शुरुआत विश्व भर में पूंजीवाद के वर्चस्व के खिलाफ शोषित वर्गों को शोषक वर्गों से मुक्ति दिलाने से हुई थी। इसी विचारधारा के चलते भारत में भी समय-समय पर मार्क्सवाद के विचारों की मांग को देखा गया। लेकिन हमें नक्सलवाद की उत्पत्ति के लिए मार्क्सवाद साम्यवाद और माओवाद की उत्पत्ति समझने के बाद इनके सिद्धांतों को ब्रीफ में समझना होगा। क्योंकि नक्सलवाद को हम सीधे मार्क्सवादी नहीं कह सकते हैं।
विचारधारा की बात करें तो मार्क्सवाद और माओवाद में अन्तर है मार्क्स जहां एक वर्ग की क्रान्ति की बात करता है तथा देश में आय संसाधनों पर मजदूरों की पकड़ बनाने की बात करता है। मार्क्सवाद मजदूरों के शोषण से मुक्ति चाहता है वहीं माओवाद सतत क्रान्ति में सम्पूर्ण शोषित वर्ग को शामिल करता है। माओवादी माओत्से तुंग के कथन "सता बंदुक की नोक से प्राप्त की जाती है" पर हिंसक क्रान्ति में विश्वास रखते हैं। अब हमें नक्सलवाद की उत्पत्ति को माओवाद तथा मार्क्सवाद के संदर्भ समझकर इनके लक्ष्यों और उद्देश्यों को समझना होगा तभी हम नक्सलवाद को मार्क्सवाद से अलग कर सकते हैं।
भारत में नक्सलवाद एवं कंम्युनिष्ट आन्दोलन
भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी गाँव से हुई थी। नक्सलबाड़ी गाँव के नाम पर ही उग्रपंथी आंदोलन को नक्सलवाद कहा गया। यही से नक्सलवादी शब्द की शुरुआत मानी जाती है। नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ।
नक्सलवाद अगर कंम्युनिष्ट आन्दोलन का प्रयाय माना जाता है तो कंम्युनिष्ट (साम्यवाद) सीधे तौर पर , कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा प्रतिपादित तथा साम्यवादी घोषणापत्र में वर्णित समाजवाद का रूप है जो जो सरकार की ऐसी प्रणाली की वकालत करता है जहां सभी संपत्ति के साधनों पर जनता और मजदूर वर्ग के स्वामित्व में हो तथा पूंजीपतियों का वर्चस्व नहीं हो। लेकिन नक्सलवाद भले ही कंम्युनिष्ट से नजदीकी रखता हो लेकिन वर्तमान में नक्सलवाद को शुद्ध मार्क्सवाद नहीं कहा जा सकता ।
हालांकि वर्तमान नक्सलियों की मांगों की बात करें तो वे जंगल तथा जंगलों में खनिज संपदा पर पुंजीपतियो की दखल का विरोध करते हैं। वे आदिवासी इलाकों में सुख सुविधाओं की मांग करते हैं तथा अपने जंगली क्षेत्रों में पूंजिपतियों तथा सरकार के हस्तक्षेप का विरोध कर रहे हैं। इन मांगों तथा शोषित वर्ग के उत्थान की कोशिशों में नक्सलवाद मार्क्सवाद से जरूर मेल खाता है लेकिन वर्तमान में जिस प्रकार नक्सलवाद हिंसात्मक एवं सैना की तर्ज पर गौरील्ला युद्ध लड़ रहा है। आम जनता पर हमले कर रहा है। मतलब अब इन लोगों की हिंसात्मक क्रियाविधि की मार्क्सवाद से तुलना की जाए तो यह मार्क्सवाद से अलग नजर आता है। अब भारत में नक्सलवाद को सही या ग़लत ठहराने के लिए इसकी उत्पत्ति और लक्ष्यों को समझते हैं।
ऊपर बताया गया है कि मौजूदा नक्सलवाद की शुरुआत और नामकरण 1967 हुआ तब भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की थी। मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे और उनका मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन तंत्र और फलस्वरुप कृषितंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है। इस न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है। 1967 में नक्सलवादियों ने कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की एक अखिल भारतीय समन्वय समिति बनाई। इन विद्रोहियों ने औपचारिक तौर पर स्वयं को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अलग कर लिया और सरकार के खिलाफ़ भूमिगत होकर सशस्त्र लड़ाई छेड़ दी। 1971 में सत्यनारायण सिंह की अगुवाई में आंतरिक विद्रोह शुरू हुआ।
इसके बाद चारू मजूमदार की मृत्यु के बाद यह आंदोलन विभिन्न शाखाओं में विभक्त होकर शनै शनै अपने लक्ष्य और विचारधारा से विचलित हो गया। आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बन गये हैं और संसदीय चुनावों में भाग भी लेते है। लेकिन बहुत से संगठन अब भी छद्म लड़ाई में लगे हुए हैं।
दर-असल इस आंदोलन की पृष्ठभूमि व अब तक के इतिहास को रिव्यू करें तो यह स्पष्ट होता है कि कभी एक अच्छे उद्देश्य से शुरू किया गया जनांदोलन भटक कर हिंसा, अपहरण व लूट की राह पर चलने लगा है । अपने बुनियादी उद्देश्यों से अब इसका रिश्ता लगभग टूटता जा रहा है ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नक्सलवाद कंम्युनिष्ट आन्दोलन का एक परिवर्तन रूप है। जो माओवाद के विचारों पर चलकर कहीं न कहीं छद्म मार्क्सवाद का रंग लिए हुए है। जिनका लक्ष्य शोषित वर्ग के हित है तथा वह पूंजीवाद में निराशा देखता है।
भारत में नक्सलवाद का विस्तार एवं लाल गलियारा
नक्सलियों के सबसे अधिक हमले छत्तीसगढ़ राज्य में होते हैं। यहां घने जंगलों का इलाका नक्सलियों के कब्जे में है।
हालांकि माना जाता है कि रेड कॉरीडोर Red coridor पशुपति नेपाल से तिरूपति आंध्र प्रदेश तक माना जाता है भारत के कर्नाटक से शुरू होकर उड़ीसा, महाराष्ट्र मध्य प्रदेश से निकले छत्तीसगढ से होते हुये झारखंड, बिहार और बंगाल और नेपाल तक फैला हुआ है। गौरतलब है कि केरल कर्नाटक से लगाकर भारत के पूर्वी राज्यों में यह क्षेत्र नेपाल तक जुड़ा हुआ है । इसप्रकार 100 जिलों में तथा भारत के क्षेत्र के 40% हिस्से पर नक्सल्वादियों की गतिविधियां होती है इसमे मुख्य रूप से हैं मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, प. बंगाल, छ्त्तीसगढ, उडीसा व महाराष्ट्र राज्य है। इस प्रकार क्षेत्र का नाम ही " रेड कोरिडोर " पड गया है । लेकिन अकेले छत्तीसगढ़ में हिंसा की घटनाएं अधिक होती है।
नक्सलवाद के लक्ष्य क्रियाविधि एवं वर्तमान में मुख्य मांगे
नक्सलवाद से जुड़े लोगों तथा लोगों की मांगों की बात करें तो यहां के नक्सलियों का कहना है कि वो उन आदि वासियों , पिछड़े और गरीबों के लिए लड रहे हैं जिनकी सरकार ने दशकों से कोई सूध नहीं ली है । वहीं माओवादियों या नक्सलवादियों का मानना है कि वो जंगल की जमीन के अधिकार और संसाधनों के उचित वितरण के लिए स्थानियों लोगों के हक मे संघर्ष कर रहे हैं । इसलिए यहां के क्षेत्रों में पूंजिपतियों की दखल से यहां के लोगों का अहित जुड़ा है। यह लोग नहीं चाहते कि यह क्षेत्र सरकार के कब्जे में आ जाए तथा यहां पूंजीपति उद्योग लगाकर जमीन हड़प लें।
लेकिन सरकार की यही मंशा है कि इन क्षेत्रों में विकास करके यहां उद्योग शुरू किए जाएं जिससे यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार मिले। लेकिन इन लोगों को यह भी आशंका है कि अगर यहां सरकार और कंपनियां पहुंच जाती है तो हमारी दशा खराब भी हो सकती है।
दूसरी तरफ नक्सलियों का कहना है कि भारतीय मजदूरों और किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं । जिसकी वजह से अन्य वर्गों का शासनतंत्र और कृषि तंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है । माओ की विचारधारा को अपनाकर यह लोग मानते इस न्याय विहिन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है । नक्सलवाद अपने मूल रूप मे जमींदारों और खेतिहरों के बीच फसल बंटवारे को लेकर शुरू हुआ था लेकिन भूमि सुधार आज किसी के भी एजेंडा मे शामिल नही है । बाद मे सी.पी.एम. नेताओं जैसे डी.वी. राव, टी.नागारेडी व चंद्फुल्ल रेड्डी आदि ने इस आंदोलन की ठोस वकालत की । लंबे समय तक यंहा यह आंदोलन बडी तेजी से अपनी जडें जमाता रहा । लोग इससे जुडते रहे लेकिन अब यहां यह अपहरण, फिरौती और हिंसा का शिकार होकर रह गया है । जिस मूल उद्देश्य से इसकी शुरूआत हुई थी वह भटक गया।
भारत में नक्सलवाद की चुनौती एवं बाधाएं
भारत में नक्सलवाद की चुनौती बहुत गंभीर है इस समस्या यह समस्या इसलिए गंभीर है क्योंकि इसका धरातलीय संबंध असंतोष, असामनता तथा राजनैतिक सामाजिक और आर्थिक विषमता से जुड़ा हुआ है। नक्सलवादी प्रभावित ज्यादातर इलाके आदिवासी बहुल हैं और यहाँ जीवनयापन की बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं इसके उपरांत इन इलाकों की प्राकृतिक संपदा के दोहन में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी है। भारत में आजादी के बाद विभिन्न सरकारों ने आंतकवाद और नक्सलवाद को एक ही दृष्टि से दिखाकर इनके प्रति घृणा पैदा की जिससे इन लोगों की नियति हिंसक और विध्वंसक होती चल गई। ताजुब वाली बात है कि इस विचारधारा में महिलाएं भी शामिल है। इसलिए देश के पूर्व शोषित वर्ग जो वर्तमान में हिंसक वर्ग बना है। उन्हें अचानक सैन्य ताकतों से नहीं कुचल सकते हैं।
उन्हें हथियारों की कार्रवाई की जगह रोजगार शिक्षा सामान्य आर्थिक जीवन के अवसर प्रदान करने होंगे तथा उनकी मांगों को मध्यनजर रखकर देश की प्रगति में शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि यह लोग विदेशी नहीं है। लेकिन सरकारों की इन्ही कोशिश के बावजूद अभी तक इन आन्दोलनकारीओं का हिंसक रूप शान्त करके संतोषजनक वार्ता का कदम सफल नहीं हो पाया है।
वहां की स्थानीय आदिवासी जो नक्सली नहीं है बल्कि निम्न जीवन स्तर की वजह से वह हिंसक नक्सलियों में शामिल हो रही है। यह बढ़ती गंभीर समस्या है आज तक सभी सरकारों ने नक्सलवाद पर राजनैतिक रोटियां तो सेकी है। लेकिन उनकी उत्पत्ति के अनुसार उनसे उपजी मूलभूत समस्या पर ध्यान नहीं दिया है। यह आजादी के बाद की उन शक्तिशाली सरकारों की हठधर्मिता थी जिसके प्रतिशोध में वे लोग आखिर हिंसक हो गये। लेकिन लम्बे समय तक की उदासीनता ने एक बड़े क्षेत्र में बड़े वर्ग को हिंसा की ज्वाला में धकेल दिया। इसके साथ साथ सरकार वामपंथी चरमपंथी से प्रभावित क्षेत्रों में आधुनिक बुनियादी ढाँचे, कौशल विकास, शिक्षा, ऊर्जा और डिजिटल संपर्क के विस्तार पर काम कर रही है।
दूसरी तरफ यहां पाँचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में Tribes Advisory Council की स्थापना तथा स्वशासित प्रशासन की क्रियान्वन्ता भी सफल साबित नहीं हो रही है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती तथा यह है कि इस हिंसक घटनाओं में हर बार करोड़ों का नुकसान होता है। सुरक्षा बलों के जवानों को वीरगति को प्राप्त होना पड़ता है। स्थानीय एवं आम लोग मारे जाते हैं। आदिवासी बहुल इन इलाको में नक्सलियों और स्थानीय लोगों में भेद भी नहीं किया जा सकता है। हर बार आमने-सामने की बातचीत तथा वार्ता सफल नहीं होती है। क्योंकि इन लोगों का लक्ष्य इन क्षेत्रों का पूर्ण सरकारी दखल से मुक्त चाहिए लेकिन सरकार आय एव औद्योगिक विकास के लिए इन क्षेत्रों को छोड़ना भी नहीं चाहती है।
भारत में नक्सलवाद के लिए समाधान ओपरेशन
ऑपरेशन ‘समाधान’ भारत में नक्सली समस्या को हल करने के लिये गृह मंत्रालय से राजनाथ सिंह ने नक्सली समस्या से निपटने के लिए नया फॉर्मूला दिया है जिसे समाधान SAMADHAN नाम से जाना जाता है।
S -कुशल नेतृत्व Smart Leadership ,A -आक्रामक रणनीति Aggressive Strategy,M -अभिप्रेरणा एवं प्रशिक्षण otivation and training ,A -अभियोज्य गुप्तचर व्यवस्था Actionable Intelligence ,D -कार्ययोजना आधारित प्रदर्शन सूचकांक एवं परिणामोन्मुखी क्षेत्र Dashboard Based key Performance indicators and key result areas
H -कारगर प्रौद्यौगिकी Harnessing Technology
A -प्रत्येक रणनीति की कार्ययोजना Action plan for each threat N -no access to financing
N-वित्त-पोषण को विफल करने No access to Financing नक्सलवाद को रोकने के लिए भारत सरकार का यह नवीन ओपरेशन मैप है। लेकिन हिंसा के साये में इन सभी प्रयासों के बावजूद नक्सलियों का सरकार पर भरोसा हासिल नहीं हो रहा है।
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