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Holi festival is associated with devotion of Prahlada, ego of Hiranyakashyap and fire bath of Holika, this holy festival Holi |
भारत त्योंहारों, मेलों और पर्वो का देश है यहां वर्ष में हर दिन किसी राज्य में कोई ना कोई त्योंहार या महोत्सव मनाया जाता है। लेकिन पूरे देश में होली ,दिपावली, रक्षाबंधन सहित कुछ महत्वपूर्ण त्योंहार है जो पूरे देश में धूमधाम से मनाए जाते हैं। यह त्योंहार सनातन धर्म एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं। तथा धर्म एवं पौराणिक इतिहास से जुड़े होते हैं। जहां दीपावली श्रीराम के वनवास से लौटने की खुशी में मनाया जाता है वही होली भी इसी प्रकार पौराणिक धार्मिक मान्यताओं पर आधारित पर्व है । यह सभी त्योंहार सामाजिक सौहार्द एवं आपसी भाईचारे के प्रतीक होते हैं । आइए जानते हैं होली त्योंहार के इतिहास महत्व एवं मान्यताओं के बारे में।
होली त्योहार की प्राचीन कथा एवं मान्यता
किसी भी त्योंहार के पीछे कोई न कोई घटना जुडी हुई होती है हालांकि यह पौराणिक मान्यताएं सनातन चली आ रही है । हालांकि कथाएं और कहानियां कितनी सच है तथा हकीकत है यह जानना मुश्किल है । होली का त्यौहार होलिका और प्रहलाद भक्त से जुड़ी हुई एक पौराणिक घटना से जुड़ा है। एक प्राचीन कथा है जिसमें
हरदोई क्षेत्र में भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार लिया था। दूसरा अवतार हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए लिया था। हालांकि पहला अवतार ब्राह्मण रूप में राजा बलि से तीन पग जमीन मांगने पर राजा बलि के समय लिया था। हरदोई नगरी में दीति का पुत्र हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था। इसने अपने घमंड और अहंकार में आकर स्वयं को ईश्वर कहना शुरू कर दिया था और घोषणा कर दी कि राज्य में केवल उसी की पूजा की जाएगी। उसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुति बंद करवा दी और भगवान के भक्तों को सताना शुरू कर दिया था।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त हुआ था। पिता के समझाने के बावजूद प्रहलाद विष्णु की भक्ति करता रहता था। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की, जिससे वह उसे नदी में डालता है, सांपों के बिल के पास डालता है लेकिन वह मरता नहीं है। होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि स्नान करवाने के बाद वह उसे गर्म लोहे के स्तंभ से लिपटवाता है तब भगवान विष्णु अवतार लेकर हिरणाकश्यप का वध करते हैं। लेकिन हिरणाकश्यप की बहिन होलिका को अग्नि से नहीं जलने का वरदान था। वह अग्नि स्नान किया करती थी। इसलिए हिरणाकश्यप ने सोचा कि प्रहलाद को मारने का यह अच्छा तरीका है। जिसमें प्रहलाद होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि स्नान करेगी तो प्रहलाद जल जाएगा लेकिन कहा जाता है कि यहां चमत्कार होता है और प्रहलाद बस जाता है और होलिका जल जाती है। प्रहलाद की भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं होता है। इसलिए इसी दिन लोग शाम को शुभ मुहूर्त में होलिका दहन करते हैं इन दहन को पवित्र अग्नि मानकर इसके चारों ओर चक्कर लगाते हैं। किसान गेंहू की बालियां इस अग्नि में सेकते है। इस पवित्र अग्नि में लोग घी , नारियल और दूध चढ़ाते हैं।
होली दहन विधि
होली उत्साह और उमंग से भरा त्योहार और उत्सव है। इसे रंगों का त्योहार भी कहते हैं। विष्णु भक्त इस दिन व्रत भी रखते हैं। होलिका दहन के लिए लोग सामूहिक रूप से लकड़ी, उपले लकड़ियां आदि इकट्ठा करते हैं और फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन संध्या काल में भद्रा दोषरहित समय में होलिका दहन किया जाता है। होली जलाने से पूर्व उसकी विधि-विधान सहित पूजा की जाती है। होलिका दहन के दिन पवित्र अग्नि के चारों ओर लोग नृत्य करते हैं और लोकगीत का आनंद लेते हैं। इस दिन राधा-कृष्ण की लीलाओं एवं ब्रज की होली की धुन गलियों में गूंजती रहती है और लोग आनंद-विभोर रहते हैं। भारत के राजस्थान में विभिन्न प्रकार की होली मनाई जाती है जिसमें लट्ठमार होली,बेंत मार होली आदि होली के अवसर पर लोग एक दूसरे को रंग एवं गुलाल लगाकर जश्न मनाने है।
होली के अवसर पर गैर नृत्य
भारत के विभिन्न राज्यों में विशेष त्योंहार के दिन नृत्य एवं संगीत की परम्परा है । इसलिए होली पर भारत के कई राज्यों में गैर नृत्य होता है। जो बहुत सुन्दर और मन मोहक होता है।
राजस्थान के बाड़मेर पाली जालोर सहित अन्य जिलों में होली के अवसर पर ढोल और नगाड़े की ताल पर डांडियों की खनक के साथ यह खूबसूरत विश्व प्रसिद्ध नृत्य होता है। गैर यह नृत्य परमुखतः जन्माष्टमी एवं होली के महीने में किया जता है। ये नृत्य पुरुषों एवम् महिलाओं दोनों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य के समय कलाकार रंग बिरंगी पौशाक पहनते हैं तथा पैरों में घुंघरू बांधते हैं। बाड़मेर जिले के कनाना गांव की गैर विश्व प्रसिद्ध है। यह नृत्य होली के पन्द्रह दिन पहले शुरू होता है।
भारत में विभिन्न प्रकार की होली
भारत में होली मनाने का रिवाज अलग अलग और अनौखा है। राजस्थान के बाड़मेर में पत्थरमार होली करौली व भरतपुर में लट्ठमार होली, गंगानगर की कोड़ामार होली,
तथा विभिन्न रिवाज भी है जिसमें गैर नुत्य ,मुर्दे की सवारी , शेखावाटी क्षेत्र में चंग व गीदड़ नृत्य आदि का आयोजन होता है।
होली महोत्सव मथुरा और वृंदावन में एक बहुत प्रसिद्ध त्यौहार है। भारत के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले कुछ अति उत्साही लोग मथुरा और वृंदावन में विशेष रूप से होली उत्सव को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं।
इसके साथ साथ ब्रज की होली अपनी अनूठी और अनोखी परंपराओं के कारण सारे विश्व में प्रसिद्ध है। वसंत पंचमी से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक होली का रंग ब्रज के कण-कण में छाया रहता है। ब्रज मंडल में वसंत पंचमी से ही मंदिरों में ठाकुरजी के नित्य प्रति के श्रृंगार में गुलाल का प्रयोग होने लगता है। होली जलाए जाने वाले स्थानों पर होली के डांडे गाड़ दिए जाते हैं। शिवरात्रि से ढोल और ढप के साथ रसिया गायन प्रारंभ हो जाता है ।
होली 2021 Holi festival 2021
वर्ष 2021 में होली का त्यौहार 29 मार्च, सोमवार, 2021 में है। यह रंग, स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ, एकता और प्रेम का भव्य उत्सव है। इस दिन लोग तरह-तरह के व्यंजन बनाते हैं। नये कपड़े पहनते हैं। तथा परिवार जनों एवं गांव मोहल्ले में एक दूसरे पर रंग लगाते हैं। आंगन में रंगोली बनाते हैं। भाभी देवर होली खेलते हुए एक दूसरे पर रंग लगाते हैं। शुभ मूहूर्त पर होली दहन करते हैं। इस प्रकार यह त्योंहार आपसी प्रेम भाईचारे एवं सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
होली पर्व 2021 होलिका दहन मूहूर्त
दहन का मुहूर्त शाम सात बजे से लेकर अर्धरात्रि 12:39 बजे तक होगा। ज्योतिष के अनुषार होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा को किया जाता है। इसके साथ ही होलाष्टक संपन्न हो जाएगा। होलिका दहन 28 मार्च एवं 29 मार्च को धुलंडी मनाया पर्व है।
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