विश्व तपेदिक टीबी दिवस World Tuberculosis (TB) Day
World Tuberculosis (TB) Day 2021: प्रत्येक वर्ष में कोई ना कोई दिन किसी विशेष कारण के लिए खास बनाया जाता है। मानव ने प्रकृति की रक्षा धर्म आस्था शिक्षा,स्वास्थय आदि विषयों के लिए जागरूकता एवं संरक्षण के लिए विभिन्न दिवस घोषित किए हैं। मानव ने विभिन्न रोगों के बचाव एवं सुरक्षा के लिए भी विशेष दिवस घोषित किए हैं जिसमें एड्स,कैसर,दमा, आदि दिवस मनाएं जातें हैं। इसलिए 24 मार्च को क्षय रोग या टीबी (तपेदिक) के प्रति जागरूक करने के लिए टीबी दिवस मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस बिमारी के लक्षण कारण और उपचार क्या है? तथा भारत सहित विश्व के देशों द्वारा टीबी उन्मूलन के लिए कौन कौनसे प्रयास किए जा रहे हैं?
विश्व तपेदिक दिवस इसे मनाने का फैसला दुनिया से इस बीमारी काखात्मा करने एवं जागरूकता लाने के लिए मनाया जाता है।
फेफड़ों से जुड़ी इस बीमारी को क्षय, तपेदिक और राजरोग के नाम से भी जाना जाता रहा है, हालांकि इससे शरीर के अन्य हिस्से भी प्रभावित होते हैं। तथा आज कल फेंफड़ों के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में भी टीबी का प्रकोप होता है। इसके बारे में आगे जानेंगे की फेफड़ों के अलावा आंतों हड्डियों में टीबी का असर होता है। एक समय था जब ये बीमारी लाइलाज मानी जाती थी। लेकिन इसके वैक्सीन(टीका) बनने के बाद इसकी रोकथाम हुई है,लेकिन अभी भी यह दुनिया में इस बिमारी से बहुत लोग पीड़ित हैं तथा मौतें भी होती है।
यह दिन एक दिवस ही नहीं बल्कि यह पूरी दुनिया का एक जागरूकता कार्यक्रम है, जिसका सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य तपेदिक रोग के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना है।तथा इस दिन का उद्देश्य लोगों को उन प्रयासों से अवगत कराना भी है, जो न केवल इस बीमारी को रोकने बल्कि इसके उपचार के लिए किए जा रहे हैं।
विश्व टीबी दिवस का इतिहास एवं शुरुआत
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के कारण होने वाला, टीबी एक जीवाणु संक्रामक रोग है, जो आमतौर पर किसी व्यक्ति के फेफड़ों को प्रभावित करता है। वर्ष 1882 में 24 मार्च के दिन एक जर्मन चिकित्सक और माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. रॉबर्ट कोच ने पाया कि इस बीमारी का कारण टीबी बैसिलस था। 100 साल बाद, 1982 में, इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरक्लोसिस एंड लंग डिजीज ने इसी तारीख को विश्व टीबी दिवस के रूप में घोषित किया। 1996 से अन्य संगठनों के साथ WHO भी ने इस क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया जिसने औपचारिक रूप से 1998 में स्टॉप टीबी पार्टनरशिप की स्थापना हुई। इन संपूर्ण प्रयासों का मकसद टीबी रोग का उन्मूलन तथा उपचार करना था जिससे इस बिमारी से लोगों को बचाया जा सकें।
तपेदिक रोग के लक्षण
इस बिमारी में अधिकतर छाती में दर्द रहता है जब यह बिमारी फेफड़ों में होती हो। यह दर्द सांस लेते समय हो सकता है। क्रोनिक खांसी हो सकती है या रक्त के साथ हो सकती है जिसमें बलगम में खून भी आ सकता है। पूरे शरीर में थकान रहती है । बुखार, भूख न लगना, अस्वस्थता, रात को पसीना आदि इस बिमारी के लक्षण है।
इसके अलावा आम लक्षणों में मांसपेशियों की हानि, कफ, अनजाने में वजन में कमी, सांस की तकलीफ, या सूजन तथा बढ़ी हुई लसिका ग्रन्थिया( लिम्फ नोड्स) भी शामिल है।
तपेदिक रोग का निदान
तपेदिक बिमारी की जांच के लिए आज बहुत से तरीके उपलब्ध है । मेडिकल साइंस में इस रोग की सटीक जांच के लिए नवीन प्रयोग किए जा रहे हैं। निम्न जांच तरीके आजकल अधिकतर उपयोग में लाए जाते हैं।
जीन एक्सपर्ट टेस्ट
टीबी की जांच का यह नवीनतम तकनीक पर आधारित तरीका है। यह जांच जीन एक्सपर्ट एक कार्टिरेज बेस्ड न्यूक्लिक एसिड एम्फ्लिफिकेशन आधारित है। जीन एक्सपर्ट द्वारा महज दो घंटे में बलगम द्वारा टीबी का पता लगाया जा सकता है।
स्किन टेस्ट या माॅन्टेक्स टेस्ट
टीबी की इस जांच में इंजेक्शन द्वारा दवाई स्किन में डाली जाती है फिर उसके परिवर्तन को देखा जाता है। तथा 48-72 घंटे बाद पॉजिटिव रिजल्ट होने पर टी.बी. की पुष्टि होती है।
स्पुटम या फ्लूइड टेस्ट
इस टेस्ट में मरीज के बलगम फ्लूइड की लैब में प्रोसेसिंग होने के बाद स्लाइड पर उसका स्मीयर बनाया जाता है फिर उसकी एसिड फास्ट स्टैंनिंग की जाती है। तथा पोजीटिव या नेगेटिव रिजल्ट की पुष्टि की जाती है।
टीबी या तपेदिक के प्रकार
क्षय रोग या तपेदिक के कुछ प्रकार है जो उसकी शरीर में स्थति और स्थान के बारे में इंगित करती हैं।
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। टीबी के बैक्टीरिया संक्रमित रोगियों द्वारा हवा में फैल जाते हैं, और स्वस्थ व्यक्ति द्वारा सांस लेने पर शरीर के भीतर चले जाते हैं तथा संक्रमित करते हैं।
लेटेंट टीबी (Latent TB)
यह तपेदिक का ऐसा रूप है जिसमें टीबी के जीवाणु शरीर में होते हैं लेकिन रोग-प्रतिरोधक क्षमता से यह शरीर में प्रभावी नहीं हो पाते। इस स्थति में यह रोग एक दूसरे में फैलता भी नहीं है। मतलब संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से अन्य व्यक्ति संक्रमित नहीं होता है।
एक्टिव टीबी (Active TB)
यह तपेदिक का वह रूप हैं जिसमें इसके बैक्टेरिया सक्रिय होते हैं तथा रोगी के शरीर में विकसित हो जातें हैं। तथा टीबी के सभी लक्षणों को जाहिर करते हैं। इस स्थति में यह बैक्टीरिया स्वस्थ व्यक्ति में फैल सकतें हैं।
पल्मोनरी टीबी (Pulmonary TB)
यह तपेदिक का प्राथमिक रूप है जो फेफड़ों तक रहता है।
इस स्थिति में जीवाणुओं का प्रमुख स्थान फेफड़ों में रहता है।
एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी (Extra Pulmonary TB)
यह बीमारी फेफड़ों से अन्य जगहों पर होती है तो इसे एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। यह हड्डियाँ, गुर्दे और लिम्फनोड्स (Lymphnodes) आदि स्थानों पर हो सकती है। इसके अलावा मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस एवं एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी भी इसके प्रकार हैं।
भारत में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम एवं अभियान
विश्व के सभी देशों में टीबी उन्मूलन तथा जागरूकता कार्यक्रम चल रहें हैं। भारत में वर्ष 2005 से डाट्स कार्यक्रम लागू किया गया था। भारत सरकार ने 1962 से राष्ट्रीय क्षय नियन्त्रण कार्यक्रम लागू किया। साथ ही भारत में बीसीजी (बैसिलस कैलमेट-गुएरिन) का टीका (Bacillus Calmette–Guerin vaccine) एक टीका है जो टीबी को रोकता है। यह भारत में समय समय पर लगाया जाता है।
भारत में भी टीबी उन्मूलन एवं उपचार के लिए मुफ्त दवाइयां डाट्स कार्यक्रम के तहत उपलब्ध करवाई जाती है। उचित पोषण की कमी भी इस बिमारी के लिए समस्या है। इसलिए भारत में टीबी रोगियों को प्रतिमाह 500 रूपए की राशि दी जाती है। तथा स्वास्थ्य केंद्रो में टीबी रोग के लिए विशेष प्रकोष्ठ स्थापित है जिससे मरीजों की स्समय-समय पर जांच तथा दवाइयां वितरित की जा सकें। क्षय रोग मामलों के स्क्रीनिंग, निदान, उपचार और अनुवर्ती से संबंधित सेवाओं और स्थिति की निगरानी के लिए, निक्षय एक ट्यूबरकुलोसिस नियंत्रण कार्यक्रम चल रहा है जो टीबी रोगी के लिए दवाओं के बारे में अलर्ट, रोगियों और प्रदाताओं के लिए अनुवर्ती चेतावनी आदि देने का काम करता है। इन तमाम सुविधाओं में टीबी रोगियों की जांच, स्क्रीनिंग, सलाह,दवा वितरण, जागरूकता, जानकारी आदि उपलब्ध कराई जाती है।
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