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महान समाज सुधारक और युग पुरुष संत शिरोमणि रविदास |
Sant Ravidas संत रविदास जयंती विशेष
• माघ पूर्णिमा
•सीरगोवर्धन
Guru Ravidas (Raidas) Jayanti : भारत भूमि संतों और महात्माओं की पुज्य भुमि रही है इसलिए यहां अंधविश्वास और पाखण्ड से मुक्त करवाकर जीवन में सद् ज्ञान दिया ऐसे संत महात्माओं ने पाखण्ड भी दूर नहीं किया बल्कि सामाजिक कुरीतियां का भी पर्दाफाश किया । कबीर,रहीम, गुरु नानक आदि ऐसे संत विद्वान हुए जिनकी शिक्षाओं से आज भी मानव जीवन प्रकाशमय होता है। इसी कड़ी में भारत के 15वीं शताब्दी के एक महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज-सुधारक और महापुरुष संत रविदास की बात करते हैं। जिनकी जयंती देशभर में माघ पूर्णिमा के अवसर पर बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाती है। 2021 में गुरु रविदास महाराज की 644वीं जयंती मनाई गई। इस अवसर पर सीरगोवर्धन में भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। यह स्थान गुरु रैदास के अनुयायियों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है।
माघ पूर्णिमा के दिन उनके जन्मस्थान पर, दुनियाभर से लाखों की संख्या में उनके भक्त व अनुयायी काशी पहुंचते हैं। यहां पर देश भर से आये अनुयायियों द्वारा भव्य उत्सव मनाया जाता है।
गुरु रविदास का जीवन परिचय
संत शिरोमणि कवि एवं महापुरुष गुरु रविदास (रैदास) का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। हालांकि उनकी जन्म तिथि के बारे में इतिहासकार एक मत नहीं है। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। संत रविदास जूते बनाने का काम किया करते थे। यह काम पैतृक व्यवसाय के तौर पर उन्हें मिला था। रविदास अपना काम पूरी लगन से करते थे
रैदास निर्गुण संप्रदाय अर्थात् संत परंपरा में एक चमकते नेतृत्वकर्ता और प्रसिद्ध व्यक्ति थे। उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन को नेतृत्व करते थे। ईश्वर के प्रति अपने असीम प्यार और अपने चाहने वाले, अनुयायी, सामुदायिक और सामाजिक लोगों में सुधार के लिए अपने महान कविता लेखनों के जरिए संत रविदास ने विविध प्रकार की आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए। गुरु रविदास जयंती के मौके पर आज आपको उनके अनमोल विचार के बारे में बताते हैं।
स्वावलंबी एवं असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे रविदास
रविदासजी के जमाने में दिल्ली में सिकंदर लोदी का शासन था। कहते हैं सिकंदर लोदी ने उनकी ख्याति से प्रभावित होकर उन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था, लेकिन उन्होंने बड़ी विनम्रता से ठुकरा दिया था। मध्ययुगीन साधकों में रविदास जी का बड़ा स्थान है ।
संत रविदास ने अन्याय को कभी नहीं सहन किया। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। छुआछूत आदि का उन्होंने विरोध किया और पूरे जीवन इन कुरीतियों के खिलाफ ही काम करते रहे।
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