अमेरिकी संसद में ट्रंप समर्थकों की हिंसा! लोकतंत्र के ध्वजवाहक राष्ट्र में आखिर ऐसा क्यों और कैसे हुआ ?America Capitol Building AttackJagriti PathJagriti Path

JUST NOW

Jagritipath जागृतिपथ News,Education,Business,Cricket,Politics,Health,Sports,Science,Tech,WildLife,Art,living,India,World,NewsAnalysis

Saturday, January 9, 2021

अमेरिकी संसद में ट्रंप समर्थकों की हिंसा! लोकतंत्र के ध्वजवाहक राष्ट्र में आखिर ऐसा क्यों और कैसे हुआ ?America Capitol Building Attack

US Capitol Hill Siege protests
Trump supporters storm Capitol; DC National Guard activated; woman fatally shot photo ctcred twitter



अमेरिकी संसद में ट्रंप समर्थकों की हिंसा! लोकतंत्र का जनक कहे जाने वाले अमेरिका के इतिहास में काला अध्याय 

America Capitol Building Attack it is black lesson of history


अमेरिका जैसे मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले राष्ट्र को से अभिप्रेत होकर दुनिया के कई देशों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था अपना कर इस व्यवस्था में नये कीर्तिमान स्थापित किए हैं। लेकिन अमेरिका खुद आज लड़खड़ाता हुआ नजर आ रहा है। क्योंकि आज विश्व के कई बड़े बड़े राष्ट्रों में सता के लिए होने वाली राजनीति के मायने बदल गए हैं। सता के लिए वोटबैंक बनाने में अनैतिक रास्तों और साधनों का इस्तेमाल बहुत तेजी से होने लगा है। जिसमें पूंजीवाद, धर्म, अलगाववाद तथा विचारधाराओं की डिप्लोमेसी के तहत आमजनता में एक प्रकार की जहरीली वैचारिक सोच भरने की परिपाटी शुरू हो गई है जिससे उस नेता के समर्थक अपने प्रिय नेता के लिए हिंसा तथा खुन खराबे पर उतर जाते हैं।
भारत के संविधान निर्माता डॉ आंबेडकर ने कहा था कि लोकतंत्र में करिश्माई नेता इस व्यवस्था के लिए घातक साबित होंगे। बिल्कुल वैसा ही अमेरिका में हुआ। पूंजीवाद की तर्ज पर चलने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के इतिहास में वैचारिक मतभेदों का भूचाल खड़ा कर दिया जिससे अधिकतर लोगों ने ट्रंप को नकार दिया। इसी बौखलाहट को ट्रंप सहन नहीं कर पाये जिससे उसके समर्थकों ने लोकतंत्र की सीमाओं को भूलकर एक घिनौने कृत्य को अंजाम दिया।

डोनाल्ड ट्रंप  राष्ट्रपति चुनाव में शिकस्त के बाद भी हार मानने को तैयार नहीं हैं। डोनाल्ड ट्रंप दबाव बना रहे हैं कि चुनाव में धांधली हुई है। डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने इसी सिलसिले में बुधवार को कैपिटल बिल्डिंग पर धावा बोल दिया। कैपिटल बिल्डिंग में ही संसद के दोनों सदनों (हाउज ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट) की बैठक होनी थी। इसमें ट्रंप और बाइडेन को मिले इलेक्टोरल कॉलेज वोटों की गिनती होनी थी। हालांकि, ट्रंप समर्थक संख्याबल में कम पड़े पुलिसवालों को छकाते हुए संसद के अंदर घुस गए और उपद्रव करने लगे। लेकिन अमेरिका देश की सुरक्षा प्रणाली और न्याय व्यवस्था निष्पक्ष रूप से कार्रवाई करते हुए इस घटना से जल्द उबर तो गई। लेकिन लोकतंत्र का जनक कहा जाने वाले अमेरिका के उन सुनहरे पन्नों पर एक धब्बा लग गया जिसे मिटाने में कई साल लग जाएंगे।

मतगणना , हिंसा, मौतें तथा सुरक्षाबलों की कार्रवाई

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के अंतिम दिनों में अमेरिका ने एक बार फिर हिंसा का रूप देखा है।  इस बार वाशिंगटन स्थित कैपिटल हिल में डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने जबरदस्त हंगामा किया।  हजारों की संख्या में ट्रंप समर्थक हथियारों के साथ कैपिटल हिल में घुस गए, यहां तोड़फोड़ की, सीनेटरों को बाहर किया और कब्जा कर लिया। लंबे संघर्ष के बाद सुरक्षाबलों ने इन्हें बाहर निकाला और कैपिटल हिल को सुरक्षित किया। वाशिंगटन की हिंसा में अब तक चार लोगों की मौत की पुष्टि हुई । दरअसल, कैपिटल हिल में इलेक्टोरल कॉलेज की प्रक्रिया चल रही थी जिसके तहत जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने पर मुहर की तैयारी थी।  इसी दौरान हजारों की संख्या में ट्रंप समर्थकों ने वॉशिंगटन में मार्च निकाला और कैपिटल हिल पर धावा बोल दिया। यहां डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता में बनाए रखने, दोबारा वोटों की गिनती करवाने की मांग की जा रही थी
सुरक्षाबलों ने इस  हिंसा के दौरान उन्हें रोकने के लिए  लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया।अमेरिका के वाशिंगटन में हिंसा के बाद पब्लिक इमरजेंसी लगा दी गई थी। अभी यह इमरजेंसी को 15 दिन के लिए रह सकती है।जब ट्रम्प के समर्थको की भीड़ द्वारा  जो बिडेन की जीत को पलट देने की कोशिश की गई।
तब रिपब्लिकन सांसदों ने पेन्सिलवेनिया के मतदाताओं की गिनती पर आपत्ति जताई, जिससे कांग्रेस के निर्वाचक मंडल के वोट की गिनती में देरी हुई थी। हालांकि कुछ आपत्तिजनक सामग्री  को मध्यनजर रखते हुए ट्विटर ने राष्ट्रपति ट्रम्प के खाते को बंद कर दिया।  

अमेरिकी मिडिया और न्यायपालिका ने पेश किया निष्पक्षता का नमूना

हालांकि कई देशों में देखा गया है उस देश की मिडिया, पुलिस  न्यायपालिका आदि उस देश के शक्तिशाली राजनेता के पक्ष में खड़ी हो जाती है। जो ऐसी राजनीतिक हिंसाओं में सता पक्ष की पार्टी का पक्ष लेकर निष्पक्ष कार्रवाई नहीं करते। तथा वहां की मिडिया सही ग़लत से हटकर केवल अपने नेता और पार्टी की तरफदारी करते हैं।
लेकिन अमेरिका में राहत की बात है कि वहां का सोसल मीडिया , मुख्यधारा का मीडिया और न्याय सिस्टम किसी की नहीं सुनता वह केवल अपने देश हित को अहमियत देता है। जिससे तानाशाही करने वाले राजनेताओं की पकड़ कमजोर पड़ जाती है। ट्रंप के समय ऐसा ही हुआ ट्रंप भले ही पांच साल अमेरिका के प्रभावशाली राष्ट्रपति रहे हो लेकिन आज उसकी तरफदारी उसके खास समर्थकों के अलावा न्याय तंत्र , मीडिया तथा सुरक्षा एजेंसियों में नहीं देखी गई। हालांकि कुछ देशों में दुर्भाग्यपूर्ण उस देश की मिडिया और न्यायपालिका एक सत्ताधीन तथा शक्तिशाली दल के लिए काम करते हुए देखे गये है। जिससे उन राष्ट्रों में लोकतंत्र के पांव कमजोर तो हुए ही हैं साथ साथ हिंसा और अलगाववाद ने भी जन्म ले लिया है। इसलिए लोकतंत्र को बचाने के लिए सबसे पहले न्यायपालिका और मिडिया को निष्पक्ष और बिना किसी दबाव में कार्य करने होंगे जिससे आने वाली सदियों तक लोकतंत्र को जीवित रखा जा सके।

जो बाइडेन ने इस हमले को राजद्रोह बताया

दूसरी तरफ जो बाइडेन ने इस हमले को राजद्रोह बताया है। साथ ही कहा है कि यह वह अमेरिका नहीं, जिसकी हम कल्पना करते हैं। इस घटना के बाद ट्रंप के कई साथी और रिपब्लिकन सांसद भी उनके खिलाफ खड़े हो गए हैं और राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की मांग कर रहे हैं।

UN ने जाहिर की चिंता

यूएन महासचिव के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने चिंता जताई और कहा कि वाशिंगटन डीसी के यूएस कैपिटल में हुई घटनाओं से यूएन महासचिव दुखी हैं।संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुतेरस ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में, यह महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक नेता अपने अनुयायियों को हिंसा करने से रोकें, साथ ही साथ लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करें एवं संवैधानिक प्रक्रियाओं और कानून के शासन की कदर करें। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा कि सता का हस्तांतरण शांति पूर्वक होना चाहिए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि महाशक्तियों के रूप में बड़े बड़े राष्ट्रों में सता के लिए हो रहे वैचारिक घमासान के कारण हिंसा को कैसे और कौन रोक सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय संगठन यूएन को इस प्रकार के तानाशाह राष्ट्र प्रमुखों को रोकने के लिए कानून बनाने चाहिए। किसी भी देश में चुनावों से पहले या बाद में कोई राजनीतिक दल जनता में हिंसा के बीज बोता है तो मानवाधिकारों को ध्यान में रखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ अंकुश होने चाहिए। 

No comments:

Post a Comment


Post Top Ad