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डाक्टर भीमराव अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस |
महापरिनिर्वाण दिवस विशेष
Mahaparinirvan Diwas: बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकरबाबा साहेब आंबेडकर भारत रत्न युग पुरुष महापरिनिर्वाण दिवस 6 दिसंबर को मनाया जाता है।
6 दिसंबर 1956 के दिन भारत मां के इस महान सपूत ने अंतिम सांस ली थी। इसलिए 6 दिसम्बर को भारत सहित विश्व के अन्य देशों में भी भारत रत्न , संविधान निर्माता, दलितों के मसीहा, दुनिया के सबसे बड़े शिक्षाविद , कानून के महारथी , विभिन्न भाषाओं के जानकार , भारत के प्रथम कानून मंत्री,और भारत तथा विश्व में प्रसिद्ध महापुरुष की पुण्यतिथि मनाई जाती है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर Babasaheb Ambedkar की याद में उनकी पुण्यतिथि महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक बुराइयों जैसे छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष में लगा दिया। इस दौरान बाबा साहेब गरीब, दलितों और शोषितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। आजाद भारत के वो पहले विधि एवं न्याय मंत्री बने। अंबेडकर ही भारतीय संविधान के जनक हैं। इसलिए लोकतांत्रिक भारत में आज उनका स्थान बहुत ऊंचा है।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का एकमात्र लक्ष्य समाज में व्याप्त विषमता और अपराजिता का अंत करना तथा अछूतों का उद्धार करना था। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने सब कुछ त्याग दिया। वे संघर्ष की राह पर निकल चले। हिंदू धर्म में व्याप्त जाति प्रथा पर उन्होंने तीखे प्रहार किए। कुछ ही समय में वह दलितों के लोकप्रिय नेता के रूप में उभर कर आगे आये। सन 1913 में उन्होंने दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में दलितों का प्रतिनिधित्व किया।दलितों को पृथक प्रतिनिधित्व की मांग को स्वीकार कर लिया गया। डॉक्टर साहब ने हिंदू धर्म में व्याप्त असमानता के तत्वों की समाप्ति के लिए बहुत संघर्ष किया लेकिन जब उन्हें सफलता ना मिली तो उन्होंने अपनी मृत्यु से 2 माह पूर्व अक्टूबर 1965 में लाखों दलित साथियों के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली।
डाक्टर अम्बेडकर की पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण के रूप में मनाते समय हमारा दिल उस महान व्यक्ति को याद करके बहुत भावुक हो जाता है तो दूसरी तरफ उनके संघर्षों को जानकर एक नई ऊर्जा का संचार होता है कि वाकई उनके संघर्ष असाधारण थे । क्योंकि जिस समय बाबा साहेब ने जन्म लिया था उस समय दलित समाज की स्थति बहूत दयनीय थी । शिक्षा ,अभिव्यक्ति,स्वतंत्रता आदि से वंचित तथा अत्याचार से ग्रस्त समाज में बड़े किसी मुकाम तक पहुंचना बहुत मुश्किल था । लेकिन बाबा साहेब का जज्बा और जुनून उच्च कोटि का था। उन्होंने सब कुछ करके दिखाया जो उस समय इस समाज के किसी व्यक्ति द्वारा नामुमकिन था। आज भी अगर दलित समाज का कोई व्यक्ति सवर्ण समाज या अन्तरजातीय महिला से विवाह करता है , तो उसके साथ बहुत अत्याचार होते हैं । लेकिन हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि उस विकट समय में भी बाबासाहेब ने इस सामाजिक भेदभाव के कंलक को समाप्त करके अंतर्जातीय विवाह किया था। बाबासाहेब ने डाक्टर सविता जो कुलीन ब्राह्मण परिवार से थी उनसे 15 अप्रैल 1948 को दिल्ली स्थित अपने आवास में शादी कर ली तथा यह मिथ्य तोड़ दिया कि जाति तथा धर्म प्रेम और जीवन साथी बनाने में आड़े नहीं आते। इसलिए बाबा साहेब आंबेडकर ने जिस तरह भारतीय सामाजिक व्यवस्था को जो नवीन दिशा दी उसके अनुसार चलना ही उनके महापरिनिर्वाण दिवस को मनाकर उनको सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित होगी। लेकिन दुर्भाग्यवश आज अम्बेडकर के विरोध में वे लोग उनकी मूर्तियों को तोड़ते हैं । क्योंकि जिस तरह भारतीय समाज में ऊंच-नीच की भावना व्याप्त थी उसी को अंबेडकर ने समाप्त करने की कोशिश की और पिछड़े तबकों तथा महिलाओं की स्थति सुधारने के लिए भारतीय संविधान में अनेक प्रावधान जोड़ दिए इसलिए कानूनी तौर पर महिलाओं और पिछड़े लोगों की प्रगति से उन अत्याचार करने वाले तथा तथाकथित उच्च श्रेणी के लोगों को बुरा लगा जिसकी वजह से आज भी उस विचारधारा तथा धर्म,जाति से जुड़े कुछ लोग जिनकी समझ केवल धर्म जाति और पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं वे लोग उनका अपमान और विरोध करते हैं। लेकिन भारत के संविधान निर्माता तथा आधुनिक समाज के उद्धारक इस महापुरुष को संपूर्ण भारतीय लोगों द्वारा सम्मान देना चाहिए , उनकी शिक्षाओं और आदर्शों का अनुसरण करना चाहिए।
इसलिए संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस प्रत्येक वर्ष मनाने है । स्कूल , कालेज, तथा अन्य कार्यालयों में इस बाबासाहेब को पुष्प अर्पित किए जाते हैं। विद्यार्थियों के लिए निबन्ध प्रतियोगिताओं आदि का आयोजन होता है। भारत के संविधान के प्रमुख वास्तुकार एवं दलित आदर्श आंबेडकर का 6 छह दिसंबर, 1956 को निधन हुआ था। इसलिए यह दिन भारत के लिए ऐेतिहासिक दिन है । इस दिन भारत ने विश्व के समाज सुधारक, महान विधिवेत्ता और दार्शनिक को खो दिया था।
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