विश्व एड्स दिवस : रोग कारक,लक्षण,निदान,बचाव और जागृति
एड्स का सबसे पहले 1981 में पता चला और पिछले वर्षों में सारे विश्व में फैल गया है और अब तक इस रोग से करोड़ों लोगों की जान जा चुकी हैं। तथा हर वर्ष नये रोगियों की संख्या में इजाफा भी हो रहा है। इसलिए इस भयानक लाइलाज बिमारी को रोकने के लिए प्रतिवर्ष विश्व एड्स दिवस पूरे विश्व में 1 दिसम्बर को लोगों को एड्स के बारे में जागरुक करने के लिये मनाया जाता है। एड्स ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी (एचआईवी) वायरस के संक्रमण के कारण होने वाला महामारी का रोग है। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने साल 1995 में विश्व एड्स दिवस के लिए एक आधिकारिक घोषणा की थी, जिसके बाद से दुनिया भर में विश्व एड्स दिवस मनाया जाने लगा। एड्स एक ऐसी बीमारी है जिसमें इंसान की संक्रमण से लड़ने की शरीर की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। इतने सालों बाद भी अबतक एड्स का कोई प्रभावी इलाज नहीं है।
विश्व एड्स दिवस की पहली बार कल्पना Imagine for the first time on World AIDS Day
1987 में अगस्त के महीने में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न द्वारा एड्स दिवस की कल्पना की गई थी। थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न दोनों डब्ल्यू.एच.ओ.(विश्व स्वास्थ्य संगठन) जिनेवा, स्विट्जरलैंड के एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक सूचना अधिकारी थे। उन्होंने एड्स दिवस का अपना विचार डॉ. जॉननाथन मन्न (एड्स ग्लोबल कार्यक्रम के निदेशक) के साथ साझा किया, जिन्होंने इस विचार को स्वीकृति दे दी और वर्ष 1988 में 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रुप में मनाना शुरु कर दिया। उनके द्वारा हर साल 1 दिसम्बर को विश्व एड्स दिवस के रुप में मनाने का निर्णय लिया गया।
विश्व में एड्स का पहला रोगी
First AIDS patient in the world
ऐसा माना जाता है कि एचआईवी एड्स सबसे पहले कॉन्गो में 1920 के आसपास एक चिंपांजी की वजह से हुआ। बताया जाता है कि कैमरून के जंगलों में एक घायल चिंपांजी ने एक शिकारी को खरोंचा और काट खाया था। इससे शिकारी के शरीर पर भी गहरे जख्म हो गए। इसी दौरान घायल चिंपाजी का खून शिकारी के शरीर में जा मिला और इससे एचआईवी का इंफेक्शन फैल गया।
हालांकि ऐसा भी माना जाता है कि 1959 में अफ्रीका के कॉन्गो में एड्स का पहला मामला सामने आया था, जिसमें कि एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। जब उसके रक्त की जांच की गई तो पुष्टि हुई कि उसे एड्स है। 1980 के दशक के शुरुआत में यह बीमारी सामने आई, जिसके बाद अब तक पूरी दुनिया में लाखों की तादाद में लोग इस बीमारी से जान गंवा चुके हैं।
भारत में एड्स का आगमन Arrival of AIDS in India
1986 में भारत में एड्स का पहला मामला सामने आया था। भारत में पहले एड्स केस की पुष्टि 1986 में हुई। डॉक्टर सुनीति सोलोमन ने चेन्नई के सेक्स वर्कर्स के बीच एड्स के पहले मरीजों की पहचान की थी। केरल के क्विलोन में भी 3 विदेशी छात्रों में एड्स के जीवाणु पाए गए, वो भी तंजानिया से थे।
हिन्दुस्तान को पूर्णतः एड्स मुक्त होने में अभी काफी समय लगेगा क्योंकि अभी भी देश में 15 से 49 वर्ष की उम्र के बीच के लगभग 20 से 25 लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं। यह आँकड़ा विश्व में एड्स प्रभावित लोगों की सूची में तीसरे स्थान पर आता है।
एड्स रोग क्या है ? What is AIDS disease?
एड्स शब्द उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण
(Acquired Immune Deficiency Syndrome
एड्स-एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसियेंसी सिंड्रोम) के लिए प्रयुक्त होता है। इसका अर्थ है प्रतिरक्षा तंत्र की न्यूनता, जो व्यक्ति के जीवनकाल में उपार्जित होती है और जो इस बात का संकेत है कि यह न्यूनता कोई जन्मजात रोग नहीं है।
एड्स विषाणु रोग है जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस) (HIV virus एचआईवी वायरस) के कारण होता है। एचआईवी विषाणुओं के उस समूह में आता है जिसे पश्चविषाणु (रिट्रोवायरस) कहते हैं जिनमें आरएनए जीनोम को ढकने वाला आवरण होता है । आमतौर पर एचआईवी का संक्रमण निम्नलिखित से होता है—
(1) संक्रमित व्यक्ति के यौन संपर्क से,
(2) संदूषित रक्त और रुधिर उत्पादों के आधान से,
(3) संक्रमित सुइयों के साझा प्रयोग से जैसाकि अंत: शिरा (इंटावेनस) द्वारा ड्रग का कुप्रयोग करने वालों के मामले में
(4) संक्रमित माँ से अपरा द्वारा उसके बच्चे में।
जिन लोगों में यह संक्रमण होने का बहुत खतरा है वे हैं— ऐसे व्यक्ति जो अनेक से मैथुन करते हैं, मादक द्रव्य व्यसन करते हैं। वैश्यावृत्ति में लिप्त लोगों को भी बहुत खतरा रहता है। असुरक्षित यौन संबंध बनाने वाले लोगों में, एचआईवी संक्रमित खून प्राप्त करने वालों लोगों, में तथा एचआईवी संक्रमित माता-पिता की संतान में इसका खतरा रहता है। लेकिन सुरक्षा और जागरूकता इन सभी खतरों को समाप्त कर नये रोगियों की संख्या को आसानी से कम कर सकती हैं।
एड्स के लक्षण symptoms of aids
एचआईवी संक्रमण के कुछ हफ्तों के भीतर, फ्लू जैसे लक्षण जैसे बुखार, गले में खराश और थकान हो सकती है। तब बीमारी आमतौर पर स्पर्शोन्मुख होती है जब तक वह एड्स की ओर नहीं बढ़ जाती है। एड्स के लक्षणों में वजन कम होना, बुखार या रात को पसीना, थकान और बार-बार संक्रमण शामिल हैं। अन्य लक्षणों में पेट में दर्द,निगलते समय कठीनाई हो ,सूखी खांसी हो सकती है
पूरे शरीर में थकान, बुखार, भूख न लगना, अस्वस्थता, रात को पसीना, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल में मतली, लगातार दस्त, उल्टी या पानी जैसा दस्त, इसके अलावा, सिरदर्द,मुंह में छाले, निमोनिया, लाल धब्बे, त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ना, लिम्फ नोड्स (लसीका ग्रंथियों) में सूजन आदि।
ध्यान रहे कि ऊपर दिए गए लक्षण अन्य सामान्य रोगों के भी हो सकते हैं। अतः एड्स की निश्चित रूप से पहचान केवल और केवल, औषधीय परीक्षण से ही की जा सकती है व की जानी चाहिये। एच.आई.वी. की उपस्थिति का पता लगाने हेतु मुख्यतः एंजाइम लिंक्ड इम्यूनोएब्जॉर्बेंट एसेस यानि एलिसा टेस्ट किया जाता है।
एचआईवी टेस्ट कैसे होता है? How to aids diagnosis?
यूएसए में 1985 से सभी रक्त दानों की एचआईवी (HIV)-1 और एचआईवी (HIV)-2 के लिये एकएलिसा (ELISA) परीक्षा और एक न्यूक्लिक एसिड परीक्षा की जाती है। ये निदानकारक परीक्षाएं एड्स सहित कई रोगो के निदान के लिए की जाती है।
कुछ एचआईवी परीक्षण इम्यून सिस्टम द्वारा एचआईवी संक्रमण की प्रतिक्रिया में तैयार किए जाने वाले एंटीबॉडीज की जांच के लिए किए जाते हैं। जबकि अन्य एचआईवी टेस्ट वायरस की मौजूदगी का पता लगाने के लिए। रैपिड टेस्ट में 20 मिनट के अंदर परिणाम आ जाते हैं।
ऐसे कई प्रकार के टेस्ट होते हैं जो खून या शरीर के अन्य तरल पदार्थों की जांच करके यह बताते हैं कि आप संक्रमित हैं या नहीं। लेकिन ज्यादातर टेस्ट तुरंत एचआईवी टेस्ट की पहचान नहीं कर पाते, क्योंकि शरीर में पैदा हुऐ वायरसों के लिए पर्याप्त एंटीबॉडी बनाने में शरीर समय लेता है। इसलिए आज आधुनिक मेडिकल साइंस में एड्स के निदान के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल होने लगा है। कुछ टेस्ट सस्ते और अविलंब होते हैं तो कुछ टेस्ट महंगे और उच्च गुणवत्ता वाले भी होते हैं।
सामान्य एचआईवी टेस्ट के मुख्य रूप से तीन प्रकार प्रयोग में लाए जाते हैं।
1.एंटीबॉडी टेस्ट (Antibody Tests)
2.संयोजित टेस्ट (एंटीबॉडी और एंटीजेन टेस्ट)
3.एचआईवी सन्यूक्लिक एसिड टेस्ट (Nucleic Acid Tests)
कैसे बचें एड्स से? How to avoid AIDS?
एड्स से बचाव के लिए सामान्य व्यक्ति को एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति के वीर्य, योनि स्राव अथवा रक्त के संपर्क में आने से बचना चाहिए। साथ ही साथ एड्स से बचाव के लिए निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए।
(1) पीड़ित साथी या व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित नहीं करना चाहिए, अगर कर रहे हों तो सावधानीपूर्वक कंडोम का प्रयोग करना चाहिए। लेकिन कंडोम इस्तेमाल करने में भी कंडोम एक्सीडेंट का खतरा रहता है। अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहें, एक से अधिक व्यक्ति से यौन संबंध ना रखें। वैश्यावृत्ति से बचें। अनजान स्त्री या पुरुष से संभोग या अन्य प्रकार के मैथून से बचें।
(2) खून को अच्छी तरह जांचकर ही उसे चढ़ाना चाहिए। कई बार बिना जांच के खून मरीज को चढ़ा दिया जाता है जोकि गलत है। इसलिए डॉक्टर को खून चढ़ाने से पहले पता करना चाहिए कि कहीं खून एच.आई.वी. दूषित तो नहीं है।
(3) उपयोग की हुई सुईओं या इंजेक्शन का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि ये एच.आई.वी. संक्रमित हो सकते हैं।
(4) दाढ़ी save बनवाते समय हमेशा सेविंग दुकान में सेव बनाने वाले से नया ब्लेड उपयोग करने के लिए कहना चाहिये।
(5) hiv positive व्यक्ति को समाज से ईमानदारी रखनी चाहिए धोखे से किसी अनजान को यह रोग जानबूझ कर हस्तांतरित नहीं करना चाहिए।
(6) अपने जीवन में सकारात्मक विचार रखे, स्वच्छ और स्वस्थ जीवनशैली का अनुसरण करें।
एड्स की रोकथाम AIDS prevention
एड्स एक लाइलाज बिमारी है बचाव ही इसका उपचार है, कुछ एंटीबायोटिक दवाओं तथा लक्षणों को कम करने वाले उपचार से बेहतर गुणवत्ता वाला लम्बा जीवन यापन किया जा सकता है। एड्स को ठीक नहीं किया जा सकता इसलिए इसकी रोकथाम ही सबसे उत्तम उपाय है। इसके अलावा, एचआईवी संक्रमण सचेतन व्यवहार पैटर्न के कारण फैलता है न कि न्यूमोनिया या टाइफॉइड की तरह अनजाने में। यह ठीक है कि रक्त-आधान रोगियों में, नवजातों में (माँ से) आदि में यह संक्रमण सही निगरानी (मॉनिटरिंग) न होने के कारण हो सकता है। एकमात्र बहाना अनभिज्ञता हो सकती है , हमारे देश में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एन ए सी ओ-नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन) और अन्य गैर-सरकारी संगठन (एन जी ओ) लोगों को एड्स के बारे में शिक्षित करने के लिए बहुत काम कर रहे हैं। एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनेक कार्यक्रम आरंभ किए हैं। रक्त बैंकों के रक्त को एचआईवी से मुक्त करना, सार्वजनिक और निजी अस्पतालों और क्लिनिकों में केवल प्रयोज्य (डिस्पोजेबल) सुईयाँ और सिरिंज ही काम में लाई जाएँ-इसकी व्यवस्था करना, कंडोम का मुफ्त वितरण, ड्रग के कुप्रयोग को नियंत्रित करना, सुरक्षित यौन संबंधों की सिफारिश करना और सुग्राही समष्टि (ससेप्टेबुल पॉपुलेशन) में एचआईवी के लिए नियमित जाँच को बढ़ावा देना,इन कार्यक्रमों में से कुछ एक है।
एच आई वी से संक्रमण या एड्स से ग्रस्त होना कोई ऐसी बात नहीं है जिसे छुपाया जाए। क्योंकि छुपाने से यह संक्रमण और भी ज्यादा लोगों में फैल सकता है। समाज में एचआईवी/एड्स संक्रमित लोगों को सहायता और सहानुभूति की जरूरत होती है एवं उन्हें हेय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। जब तक समाज इसे एक ऐसी समस्या के रूप में नहीं देखेगा जिसका समाधान सामूहिक तौर पर किया जाना चाहिए, तब तक रोग के व्यापक रूप से फैलने की गुंजाइश कई गुना ज्यादा बढ़ेगी । यह एक ऐसी व्याधि है जिसके फैलाव को समाज और चिकित्सक वर्ग के सम्मिलित प्रयास से ही रोका जा सकता है।
एड्स रोग के प्रति भ्रान्तियां
ऐसे नहीं फैलता एड्स!
1.पीड़ित के साथ खाने-पीने से या रहने से
2.बर्तनों और चीजों कि साझीदारी से
3.हाथ मिलाने या गले मिलने से
4. एक ही टॉयलेट का प्रयोग करने से
5.मच्छर या अन्य कीड़ों के काटने से
6.पशुओं के काटने से
7. खांसी या छींकों
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