मातृ-दिवस हर साल माँ और उसके मातृत्व को सम्मान
तथा आदर देने के लिये मनाया जाता है। इसे हर वर्ष मई
महीने के दूसरे रविवार के दिन मनाया जाता है।
दुनियाभऱ में मदर्स डे अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। भारत में मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है वहीं, यूएसए, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, चीन, जापान, फिलिपींस में यह खास दिन 12 मई को मनाया जाता है। अरब देशों में 21 मार्च को मदर्स डे मनाया जाता है। भले ही तिथियां अलग हो लेकिन मां और ममतत्व को समझने और महसूस करने के लिए यह दिन अपने आप में खास दिन है क्योंकि इस जहां में मां से बढ़कर कुछ नहीं है इसलिए उस मां को समर्पित यह दिवस कब से मनाना शुरू हुआ यह दिवस खास क्यो है? आइए जानते हैं उस मां के बारे जो अपनी संतान के लिए अपने सुख-दुख न्यौछावर कर देती है।
एक माँ अपनी संतान के रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी विपत्तियों का सामना करने का साहस रखती है। एक माँ स्वयं चाहे जितने भी कष्ट सह ले लेकिन अपने बच्चों पर किसी तरह की आंच नही आने देती है। इन्हीं कारणों से तो माँ को पृथ्वी पर ईश्वर का रुप माना गया है और इसलिए यह कहावत भी काफी प्रचलित है कि “ईश्वर हर जगह मौजूद नही रह सकता है इसलिए उसने माँ को बनाया है।”
गर तुम से पूछें कि जन्नत की हकीकत क्या है।तो बता देना कि मां के पैरों की मिट्टी से सबकुछ बयां है ।
हालांकि मातृदिवस मनाने का इतिहास बहुत पुराना है सनातन से मातृ पूजा की परंपरा चली आ रही है। तथा पूरानी सभ्यताओं में भी मातृ शक्ति के सम्मान और आदर की भावना तथा विचारों की जानकारी मिलती है।
एक विचारधारा ने दावा किया कि मातृ पूजा की रिवाज़ पुराने ग्रीस से उत्पन्न हुई है। जो स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं, उनके सम्मान में ही मातृ दिवस मनाया जाता है।
प्राचीन रोमवासी एक अन्य छुट्टी मनाते थे, जिसका नाम है मेट्रोनालिया, जो जूनो को समर्पित था, यद्यपि इस दिन माताओं को उपहार दिये जाते थे।
यूरोप और ब्रिटेन में कई प्रचलित परम्पराएं हैं जहां एक विशिष्ट रविवार को मातृत्व और माताओं को सम्मानित किया जाता हैं जिसे मदरिंग सन्डे कहा जाता था। मदरिंग सन्डे समारोह, अन्ग्लिकान्स सहित, लितुर्गिकल कैलेंडर का हिस्सा है, जो कई ईसाई उपाधियों और कैथोलिक कैलेंडर में लेतारे सन्डे, चौथे रविवार लेंट में वर्जिन मेरी और "मदर चर्च" को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता हैं।
बात करते हैं उस मां की जो नौ महीने का कष्ट फिर दर्दनाक प्रसव पीड़ा सह कर हमें संसार में भेजती है। हजारों कठिनाइयों का सामना करने हुए अपनी संतान का पालन पोषण करती है। मां खुद गीले बिस्तर पर सो कर अपनी संतान को सूखे पर सुलाती है। स्वयं भुखी रह सकती है लेकिन अपनी संतान को कभी दुखी नहीं होने देती इन सब बातों से हमें लगता है कि मां कितनी अद्भुत होती है, मां के दिल में कितनी दया होती है कितना त्याग होता है, कितना प्रेम और वात्सल्य होता है इसकी कोई सीमा नहीं है। मां का ह्रदय तो अथाह सागर के समान है जिसमें हर किसी को पनाह मिलती है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में जो कुछ हासिल होता है वह उस मां की बदौलत होता है। वह मां ही होती है जिसको हमेशा अपनी संतान के लिए चिंता होती है। एक नारी पर मां का दारोमदार आता है तब वह कितना त्याग करती है इसे शब्दों में बयां कर नहीं सकते।
लेकिन आज के भौतिकवादी,स्वार्थवादी और सुख वादी युग में इंसान केवल व्यक्तिगत हित और संकीर्ण मानसिकता के कारण मां को भूल जाता है। अंधा इंसान मां का दामन ऐसे वक्त पर छोड़ देता है जब मां को सख्त जरूरत होती है। लेकिन वह मां उस बच्चे का दामन हरगिज नहीं छोड़ती है जब वह असहाय होता है। लेकिन बड़ी विडंबना है कि आज कुछ माएं वृद्धाश्रम में अपनी असहाय बुढ़ापे की जिंदगी काट रही है। आज उस मां की दशा क्या है क्या कारण है कि हम उस मां के उपकार को भूलकर उस मां की कदर नहीं कर रहे। अगर हमें मातृदिवस मनाने की सार्थकता सिद्ध करनी है तो सबसे पहले मां और मातृत्व के प्रति हमारे कर्त्तव्य पालन करने जरूरी है। उस मां के प्रति हमारी जिम्मेदारी क्या है उसे समझना जरूरी है। बूढापे में माता पिता को एक भावात्मक आधार की जरूरत है साथ ही उनको थोड़ा समय निकाल कर संबंल देना, बात करके उनको उन उम्मीदों के अनुरूप आभास करवाना है कि उनकी संतान उनके लिए दुनिया की बेहतरीन संतान है। माता पिता और कुछ नहीं मांगते बस वो हमेशा उस गहरे अहसास की तलाश में रहते हैं कि उनके बेटे और बेटियां उन्हें खुशियां देने के लिए बगल में बैठे। मां के लिए दिन ही माना रहे हैं तो साथ ही उस बुढी मां का दिल भी मनाना जरुरी है जो अक्सर बेटे विदेश में रहने और छोटे परिवार की चाहत में तोड़ देते हैं।
Happy mother's day
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