ईद उल फितर
इस्लाम का सबसे बड़ा त्योहार जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। विश्व के अधिकतर देशों में चौबीस मई को मनाई गई और जहां चांद का दीदार आज हुआ है वहां पच्चीस मई को ईद मनाई जाएगी लेकिन कोरोनावायरस की दहशत के कारण सामुहिक मेल-मिलाप भोज ,नमाज, आदि में पाबंदी रहेगी क्योंकि सोसल डिस्टेन्स का भी पालन करना है। फिर भी देश में
जम्मू कश्मीर और केरल में ईद 24 मई को मनाई गई जबकि देश के बाकी हिस्सों में ईद सोमवार 25 मई को मनाई जाएगी। रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने पर इस त्योहार को मनाया जाता है। ईद उल फितर को लेकर लोगों में काफी उत्साह है। जबकि कोरोनावायरस और लॉकडाउन के कारण इस ईद पर पहले जैसी चकाचौंध देखने को नहीं मिल रही है। लॉकडाउन की वजह से सभी लोग अपने-अपने घरों में ही ईद मनाएंगे। 23 मई को भारत में चांद नहीं देखा गया जिसके बाद जामा मस्जिद के इमाम ने ऐलान किया कि देशभर में 25 मई यानी सोमवार को ईद मनाई जाएगी। कोरोना वायरस के चलते धार्मिक स्थल बंद हैं। ऐसे में जामा मस्जिद और फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमामों ने लोगों को घरों में ही रहने और वहीं पर ईद की नमाज पढ़ने की सलाह दी है। वहीं दिल्ली में रविवार को खरीदारी करने कुछ बाजारों में भीड़ देखी गई।
ईद का चांद दिखाई दे गया है, पूरे भारत में अब सोमवार ईद-उल-फित्र (Eid ul Fitr) का त्योहार मनाया जाएगा. दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कहा कि ईद का चांद दिखाई दे गया है, पूरे देश में 25 मई को ईद-उल-फित्र मनाई जाएगी। हालांकि, केरल और जम्मू-कश्मीर राज्यों में शनिवार को ईद के चांद के दीदार होने के बाद ही ईद 24 तारीख रविवार को मनाई गई।
दरअसल, ईद-उल-फित्र मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार है, जो रमज़ान के महीने के पूरा होने पर मनाया जाता है। ईद-उल-फित्र का त्योहार रमज़ान के 29 या 30 रोजे रखने के बाद चांद देखकर मनाया जाता है।सऊदी अरब, यूएई समेत तमाम खाड़ी देशों में 30 रोज़े पूरे होने के बाद चांद देखकर 24 मई को ईद मनाई गई। जबकि भारत में 24 मई को ईद का चांद दिखाई दिया। जिसके बाद 25 मई को ईद का त्योहार मनाया जाएगा।
ईद-उल-फित्र का चांद दिखाई देने के साथ ही रमज़ान का महीना खत्म हो जाता है और शव्वाल का महीना शरू होने के साथ ईद मनाई जाती है। इसलिए चांद के हिसाब की वजह से दुनियाभर में ईद मनाने की तारीख अलग-अलग होती है।
अबकी बार घरों में नमाज पढ़ने की अपील
कोरोना संकट को देखते हुए सभी धार्मिक स्थल बंद हैं, इसलिए मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की इजाजत नहीं है। एक तरफ जहां प्रशासन मुस्तैद है तो वहीं, मौलाना और उलेमाओं की तरफ से घर में ही ईद की नमाज़ पढ़ने की अपील की गई है।इसके साथ ही कोरोना से बचे रहने की दुआ करने की अपील की गई है। इसके अलावा ईद पर गले न मिलने और सोशल मीडिया के माध्यम से मुबारकबाद के लिए भी कहा गया है।घर में परिवार के साथ ईद की खुशियां मनाने की गुजारिश की गई है।
ईद का इतिहास
इस्लाम में पांच नियमों का पालन करना अनिवार्य माना गया है, जिसमें नमाज अदा करना, हज की यात्रा, ईमान, रोजा और जकात हैं। मान्यता है कि सबसे पहले ईद 624 ईस्वी में मनाई गई थी। पैगंबर हजरत मुहम्मद ने बद्र के साथ युद्ध किया था और इस युद्ध में पैगंबर हजरत मोहम्मद की जीत हुई थी। जीत के बाद सबसे पहले मीठी चीज खिलाई गई थी इसलिए इस दिन मीठी चीज खाई जाती है। इस खुशी में पहली बार ईद उल-फितर का त्योहार मनाया गया था।
ईद और चांद का रिश्ता
जब भी ईद की बात होती है, तो सबसे पहले जिक्र आता है ईद के चांद का। ईद का चांद रमजान के 30वें रोज़े के बाद ही दिखता है। इस चांद को देखकर ही ईद मनाई जाती है। हिजरी कैलेण्डर के अनुसार ईद साल में दो बार आती है। एक ईद ईद-उल-फितर के तौर पर मनाई जाती है जबकि दूसरी को कहा जाता है ईद-उल-जुहा। ईद-उल-फितर को महज ईद भी कहा जाता है। जबकि ईद-उल-जुहा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।ईद उसी दिन मनाई जाती है जिस दिन चांद नजर आता है। यही वजह है कि कई बार एक ही देश में अलग-अलग दिन ईद मनाई जा सकती है। जहां चांद पहले देखा जाता है, वहां ईद पहले मन जाती है। इस बात से यह स्पष्ट है कि ईद और चांद के बीच खास रिश्ता है।
अमन और सोहार्द का प्रतीक यह त्यौहार
ईद भाईचारा और सोहार्द को बढ़ावा देती है इस दिन सभी मुस्लिम भाई एक दूसरे को बधाई देते हैं और अमन चैन की कामना करते हैं।
हर पर्व के तरह ईद-उल-फितर के पर्व को मनाने का भी अपना एक विशेष तरीका और रीती रिवाज है। रमाजान महीने के समाप्त होने के बाद मनाया जाने वाले इस पर्व पर महौल काफी खुशनुमा होता है। इस दिन लोग सुबह में स्नान करके नये कपड़े पहनते है और मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए जाते है।
इस दिन सफेद कपड़े पहनना और इत्र लगाना काफी शुभ माना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सफेद रंग सादगी और पवित्रता की निशानी है। इसके साथ ही ईद के दिन नमाज पढ़ने से पहले खजूर खाने का भी एक विशेष रिवाज है। ऐसा माना जाता है नमाज पढ़ने से पहले खजूर खाने से मन शुद्ध हो जाता है।
ईद-उल-फितर के दिन मस्जिदों में नमाज पढ़ने वालों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। इस दिन की नमाज के लिए मस्जिदों में विशेष व्यवस्थाएं की जाती है ताकि नमाज पढ़ने वालों को किसी तरह की असुविधा का सामना ना करना पड़े। नमाज अदा करने के बाद सभी एक-दूसरे से गले मिलते है और एक-दूसरे को ईद की बधाई देते है। इसके साथ ही ईद-उल-फितर के मौके पर सेवाइयां बनाने और खिलाने का भी एक विशेष रिवाज है।
इस दिन लगभग हर मुस्लिम घर में सेवई अवश्य बनाई जाती है और उनके द्वारा अपने मित्रों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों को दावत पर भी आमंत्रित किया जाता है। ऐसा माना जाता है ईद-उल-फितर के मौके पर सेवई खिलाने से संबंध प्रगाढ़ होते है और रिश्तों की कढ़वाहट दूर हो जाती है। विश्व के सभी मुस्लिम भाइयों बहनों को ईद की मुबारकबाद के साथ अल्ल्लाह से मेहरबानी की दुआं है कि विश्व जगत में इस महामारी से निजात मिले और लोग बेहतर जीवन और स्वास्थ्य प्राप्त करें।
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