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महात्मा गांधी |
देश के लोगों द्वारा राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार करना गांधी जी की अपने-आप में एक बड़ी उपलब्धि थी। असाधारण व्यक्तित्व, सत्य पर अडिग , सादा जीवन गांधी जी को महापुरुष बनाने के मुख्य लक्षण थे। लेकिन देश में उनके सम्मान में कोई कमी नहीं रही। हालांकि कुछ विचारधाराओं के प्रचार के कारण उनको आलोचनाओं का शिकार हो ना पडा। मोहनदास करमचंद गांधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। राजनीतिक और सामाजिक प्रगति की प्राप्ति हेतु अपने अहिंसक विरोध के सिद्धांत के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली। विश्व पटल पर महात्मा गांधी सिर्फ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और अहिंसा का प्रतीक हैं।
महात्मा गांधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की के बारे में लोग जानते थे, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह, शांति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2007 से गांधी जयंती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की है।
गांधी जी के बारे में प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि -'हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इंसान भी धरती पर कभी आया था।
महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के लिए आंदोलन चलाए। गांधीजी वकालत की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड भी गए थे। वहां से लौटने के बाद उन्होंने बंबई में वकालत शुरू की। महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे।
एक बार गांधीजी मुकदमे की पैरवी के लिए दक्षिण अफ्रीका भी गए थे। वह अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर अत्याचार देख बहुत दुखी हुए। उन्होंने डांडी यात्रा भी की।
गांधीजी की 30 जनवरी को प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी। महात्मा गांधी की समाधि राजघाट दिल्ली पर बनी हुई है।
भारत में 30 जनवरी का दिन इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक के लिए याद किया जाता है।1948 में आज ही के दिन नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी थी। अहिंसा को अपना सबसे बड़ा हथियार बना कर अंग्रेजों को देश से बाहर का रास्ता दिखाने वाले महात्मा गांधी उस दिन भी रोज की तरह शाम की प्रार्थना के लिए जा रहे थे।उसी दौरान अचानक सामने आए गोडसे ने उन्हें बहुत करीब से गोली मारी और साबरमती का संत ‘हे राम’ कहकर दुनिया से विदा हो गया।
30 जनवरी, 1948 को एक नव स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत के सिर से उसके ‘पिता’ का साया उठ गया।बाद में गोडसे ने कहा कि उसने देश के बंटवारे के लिए गांधीजी को जिम्मेदार मानते हुए उनकी हत्या की।लेकिन उस घटना के बाद का इतिहास गवाह है कि देश ने गोडसे को नकारा है और गांधी को एक विचार के रूप में जिंदा रखा है। उन्हें मृत्यु के बाद दुनियाभर में और ज्यादा सम्मान मिला। हत्या के बाद दोषियों पर कार्रवाई की गई। मुकदमा दर्ज किया गया।
इस मुकदमे में शंकर किस्तैया, गोपाल गौड़से, मदनलाल पाहवा, दिगम्बर बड़गे, नारायण आप्टे, वीर सावरकर, नाथूराम गोडसे और विष्णु रामकृष्ण करकरे कुल आठ लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बनाया गया था। इन आठ लोगों में से दिगम्बर बड़गे सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया। वीर सावरकर के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं जुटाया जा सका अत: उन्हें भी अदालत ने जुर्म से मुक्त कर दिया। शंकर किश्तैया को निचली अदालत से आजीवन कारावास का हुक्म हुआ था परन्तु बड़ी अदालत ने अपील करने पर उसकी सजा माफ कर दी।
और अन्त में बचे पाँच अभियुक्तों में से गोपाल गौड़से, मदनलाल पाहवा और विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास तथा नाथूराम गोडसे व नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई गई।
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